उपभोक्ता आधारित अर्थव्यवस्था बनाम निवेश आधारित अर्थव्यवस्था
Date: 18-05-16
उपभोक्ता आधारित अर्थव्यवस्था बनाम निवेश आधारित अर्थव्यवस्था
- उपभोग आधारित अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता की क्रय शक्ति को बढ़ा दिया जाता है। जैसे सरकार ने सरकारी नौकरी में सातवें वेतन आयोग तथा वन रैंक वन पेंशन के माध्यम से वेतन में बहुत इजाफा किया। जाहिर है कि इससे लोगों में खरीदारी की हैसियत बढ़ेगी, तो वस्तु की मांग भी बढ़ेगी। इस मांग की तुलना में अगर पूर्ति नहीं हो पाई, तो नतीजा होगा- आयात में वृद्धि। इससे हमारी अर्थव्यवस्था को दीर्घकाल में नुकसान ही होगा।
- निवेश आधारित अर्थव्यवस्था अधिक निवेश पर जोर देती है। निवेश अधिक होगा, तो उत्पादन में भी वृद्धि होगी। रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। रोजगार से लोगों की आमदनी बढ़ेगी और देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगा।
- इसलिए मुद्रा स्फीति की स्थिरता तथा अर्थव्यवस्था की दीर्घकाल तक मजबूती के लिए निवेश आधारित अर्थव्यवस्था ही बेहतर मानी जा सकती है। इस अर्थव्यवस्था में मांग और पूर्ति के बीच बेहतर संतुलन की स्थिति होती हैं।
- निवेश आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है कि आर्थिक नीति निर्माता मांग और पूर्ति के बीच संतुलन की स्थिति बनाए रख्ने की स्थिति निर्मित करते रहे।
- पिछले कुछ सालों के बैंक ऑडिट आंकड़े बताते हैं कि 2015 अप्रैल से 2016 फरवरी तक रिटेल लोन में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जबकि निवेश आधारित अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है कि सरकार के अलावा निजी क्षेत्र भी निवेश बढ़ाएं। निजी क्षेत्र निवेश के लिए बैंकों से ऋण लेते हंै। रिटेल या व्यक्ति आधारित ऋण के प्रतिशत में बढ़ोत्तरी उपभोक्ता आधारित अर्थव्यवस्था की ओर इशारा कर रही है, जो देश के लिए सही नहीं है।
- सरकार और बैंकों को चाहिए कि वे अपनी नीतियों को बदलें। उद्योगों को ऋण लेने में नौकरशाही की अड़चनों को हटाएं, ताकि लोग ऋण लेने को उत्सुक हों। तभी हमारी अर्थव्यवस्था निवेश आधारित हो पाएगी।
‘दि इकोनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित
मैथिली भुस्नूरमल के लेख पर आधारित