प्रारम्भिक परीक्षा की चुनौतियां एवं समाधान

Afeias
01 Oct 2017
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आमतौर पर जब मैं सिविल सर्विस की तैयारी करने वाले स्टूडेन्टस् से तैयारियों के बारे में बातें करता हूँ, तो मुझे यह समझने में तनिक भी दिक्कत नहीं होती कि वे इस परीक्षा की सबसे बड़ी चुनौती इस बात को मानते हैं कि इसका सिलेबस निश्चित नहीं है और इसके लिए बहुत अधिक पढ़ना पड़ता है। जाहिर है कि यदि चुनौती यही है, तो उसका सामना करने के लिए जो कदम उठाये जाएंगे, उनमें ‘‘ज्यादा से ज्यादा पढ़ने’’ वाला कदम मुख्य होगा। और सच पूछिए तो चुनौती की यही गलत पहचान इस परीक्षा में उनकी असफलता का कारण बन जाती है, बावजूद इसके कि मेहनत करने में वे कहीं कोताही नहीं करते।

हालांकि अधिक से अधिक पढ़ाई करने की उनकी यह चुनौती प्रारम्भिक एवं मुख्य परीक्षा; या यहाँ तक कि इन्टरव्यू से भी जुड़ी हुई है, किन्तु यहाँ मेरा सरोकार केवल प्रारम्भिक परीक्षा की चुनौतियों से है। इसलिए आप मेरी बातों को इसी स्तर पर सीमित रखें।

मित्रो, सच यह है कि जिस अनगढ़, अदृश्य एवं सीमाहीन पाठ्यक्रम को आप अपनी प्रारम्भिक परीक्षा की चुनौती समझते हैं, वह दरअसल में चुनौती है ही नहीं। सच पूछिए तो उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। ऐसे एकाध नहीं बल्कि हजारों उदाहरण हैं, जिन्होंने कम किन्तु व्यवस्थित एवं जरूरी पढ़ाई करके इस परीक्षा में बेहतर सफलता हासिल की है। लेकिन इसका अर्थ आप यह कतई न लगा लें कि पढ़ना जरूरी नहीं है। पढ़ना तो जरूरी है ही। लेकिन वह यह नहीं है, जिसे आप चुनौती कहेंगे। यह तो इसकी तैयारी का एक सामान्य-सा भाग है।

इस परीक्षा से संबंधित अपने लम्बे अनुभव तथा गहरे चिन्तन के बाद मैं यहाँ पूरी जिम्मेदारी के साथ आपका ध्यान प्रारम्भिक परीक्षा की उन तीन सबसे बड़ी और प्रमुख चुनौतियों की ओर दिलाना चाहूंगा, जिनकी उपेक्षा करने से आपकी मेहनत रंग नहीं ला पाती है। और सच पूछिए तो ये ही वे बिन्दु हैं, जो सिविल सेवा की प्रारम्भिक परीक्षा की तैयारी के लिए एक अलग एवं विशेष तकनीकी की मांग करते हैं। आइये, अब हम इससे जुड़ी तीन सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों को जानते हैं।

(1) प्रश्नों का स्तर
ऐसा नहीं है कि प्रारम्भिक परीक्षा में प्रश्न पाठ्यक्रम से हटकर किसी दूसरी दुनिया से पूछे जाते हैं। आप अनसाल्ड पेपर उठाकर देखें। प्रश्न तो उन्हीं टॉपिक्स से होते हैं, जो किताबों में लिखे गये हैं, और जिनके बारे में आपने पढ़ा भी है। लेकिन उन्हीं टॉपिक से पूछे गये प्रश्नों के स्तर को अपेक्षाकृत इतना ऊपर उठा दिया जाता है कि आपको लगता है कि मैं जानता तो हूँ, किन्तु आप यह नहीं कह पाते कि मैं जानता ही हूँ। और बस, यहीं आपकी सारी की सारी मेहनत धरी की धरी रह जाती है।
तो फिर इसका उपाय क्या है? उपाय न तो अधिक से अधिक पढ़ने में है और न ही विषय को पूरी तरह से रट लेने में है। इसका एकमात्र उपाय है-टॉपिक्स को अच्छी तरह समझ लेने में। यदि आप मेहनत करके विषय को एक बार समझ लेते हैं, तो फिर बाद में मेहनत करने की जरूरत ही नहीं रह जाती। समझने के बाद अपना स्तर बढ़ाकर प्रश्नों के स्तर तक ले जाएं, समस्या खत्म हो जाएगी।

(2) प्रश्नों का स्वरूप
यदि आपने प्रारम्भिक परीक्षा के अनसाल्ड पेपर देखें होंगे, तो आपको इस बात का अच्छी तरह अनुभव होगा कि वहाँ कोई भी प्रश्न सीधे-साधे, सरल और सपाट तरीके से शायद ही पूछा जाता हो। अधिकांश प्रश्नों की चाल केवल साँप की तरह ही टेढ़ी-मेढ़ी नहीं होती बल्कि कुछ प्रश्न तो बिल्कुल भूल-भूलैयाओं की तरह होते हैं। ऐसा भाषा के स्तर पर किया जाता है। साथ ही वाक्यों के गठन और दिये जाने वाले विकल्पों को आधार बनाकर भी। यू.पी.एस.सी. की कोशिश होती है कि हर प्रश्न में आप कहीं-न-कहीं थोड़ा बहुत तो उलझें ही। कुछ प्रश्नों में यह उलझाव बहुत ज्यादा हो जाता है।

आपकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि जो उलझाव वाले प्रश्न हैं, उनमें से कितनों में उलझने से आप खुद को बचा सकते हैं। जहाँ तक थोड़े कम उलझाव वाले प्रश्नों की बात है, जिन्हें मैंने ‘‘साँप की टेढ़ी-मेढ़ी चाल’’ कहा है, यदि आप उनमें नहीं उलझते, तो कोई बड़ी बात नहीं। हाँ, यदि आप इनमें भी उलझ जाते हैं, तो यह इस मायने में बड़ी बात होगी कि इस पहले ही दौर में आपका बाहर हो जाना पक्का है।

(3) समय की कमी
सामान्य अध्ययन के पहले प्रथम प्रश्न-पत्र में आपको 120 मिनट में 100 प्रश्न तथा कुछ ही घन्टों के गैप के बाद सामान्य अध्ययन के द्वितीय प्रश्न-पत्र में 120 मिनट में 80 प्रश्न हल करने होते हैं। निश्चित तौर पर जितने लम्बे-लम्बे प्रश्न होते हैं और जिस तरह की उनकी बुनावट होती है, उसे देखते हुए समय की सीमा को बहुत कम कहा जा सकता है। लेकिन यहाँ कम्पलेंट करने से कुछ भी होने वाला नहीं है। वस्तुतः समय की कमी की यह चुनौती ही आपके सामने आपके सोचने की स्पीड के रूप में प्रस्तुत होती है। इस स्तर पर प्रतियोगिता इतनी अधिक होती है कि आप समय की कमी के कारण कुछ प्रश्नों को हल नहीं कर पाने का जोखिम नहीं उठा सकते। न ही आप इतनी लिबर्टी ले सकते हैं कि प्रश्नों को इत्मीनान के साथ हल करें। जो कुछ करना है, तत्काल करना है और लगातार दो घन्टे तक पूरी गति के साथ करना है। स्पष्ट है कि ज्ञान एवं मनोविज्ञान की यह चुनौती कोई कम बड़ी चुनौती नहीं है।

समाधान
तो फिर इनका समाधान क्या है? पहली चुनौती का समाधान मैं बता चुका हूँ। जहाँ तक दूसरी और तीसरी चुनौतियों का मुकाबला करने की बात है इसके लिए, आपको यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिए कि ये दोनों मूल तत्व ज्ञान की चुनौतियाँ न होकर मस्तिष्क की कार्यप्रणाली की चुनौतियाँ हैं। ये दोनों बिन्दु आपसे एक तीव्र गति से सोचकर तत्काल सही निर्णय वाली मानसिक क्षमता की मांग करते हैं। यदि यह क्षमता नहीं होगी, तो यह मानकर चलें कि सब कुछ जानने के बावजूद चूँकि आपका मस्तिष्क प्रश्नों की बनावट और समय की गति के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहा है, सफलता संदिग्ध हो जाएगी।
आपका मस्तिष्क इसके योग्य बन सके, इसका एकमात्र उपाय है-ऐसे प्रश्नों को हल करने का अभ्यास करना, ज्यादा से ज्यादा अभ्यास करना, ताकि आपका दिमाग प्रारम्भिक परीक्षा के स्वरूप के ढाँचे में ढल सके। लेकिन यहाँ आपको इस तथ्य का विशेष ध्यान रखना होगा कि आप जिन प्रश्नों का अभ्यास कर रहे हैं, वे ज्ञान की दृष्टि से सिविल सेवा परीक्षा के स्तर के अनुकूल हों। साथ ही उनकी बुनावट और भाषा भी उसी के जैसी हो। अन्यथा आपका अभ्यास आधा-अधूरा ही रह जाएगा।

नोट:- डॉविजय अग्रवाल द्वारा यह लेख सबसे पहले दैनिक जागरण ‘जोश‘ में प्रकाशित हो चुका है।