प्रारंभिक परीक्षा 2022 के प्रश्नों का आतंक

Afeias
21 Jun 2022
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5 जून को हुई इस बार की सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा ने परीक्षाथियों को वर्तमान के प्रति जितना निराश और भविष्य के प्रति जितना भ्रमित किया है, उतना इससे पहले की किसी भी परीक्षा ने नहीं। हालांकि पिछले सात सालों से सामान्य अध्ययन का प्रथम पत्र क्रमशः कठिन होता जा रहा है, लेकिन इस साल तो हद ही हो गई। सन् 2016 में प्रारम्भिक परीक्षा का कट ऑफ मार्क्स 200 में 116 अंक था, जो पिछले साल की परीक्षा में गिरते-गिरते 87.54, यानी कि प्रतिशत के हिसाब से मोटे तौर पर पौने चवालीस प्रतिशत हो गया है। इस साल के पेपर को देखते हुए यदि अब यह 41- 42 प्रतिशत हो जाये, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

कट ऑफ मार्क्स के इस चिन्ताजनक गिरावट के कारण को समझना मुश्किल काम नहीं है। गिरावट के इस दौर में सामान्य ज्ञान का पेपर जिस तरह का उटपटांग रूप लेता जा रहा है, उन प्रश्नों को हल कर पाना किसी के भी वश की बात नहीं है। उदाहरण के तौर पर इस वर्ष अफ्रीका की एक बीड़ीबीड़ी नामक बस्ती के बारे में पूछा गया है। यह सन् 2018 में एक बड़ा ‘सेटलमेंट क्षेत्र‘ रहा है। फिर भारतीय मीडिया में इसकी कोई चर्चा नहीं रही है। इसके लिए जिस तरह के विकल्प और विकल्पों की संरचना तैयार की गई, वहाँ भी परीक्षार्थी के लिए सही विकल्प तक पहुँचने की कोई गुंजाइश नहीं दिखाई देती। एक-दो नहीं, बल्कि अधिकांश प्रश्न इसी तरह के अनसुने, अनजाने और पहेलीनुमा हैं। निगेटिव मार्किंग होने के कारण परीक्षार्थी कोई भी जोखिम मोल लेना नहीं चाहते। ऐसे में सफलता के लिए आवश्यक न्यूनतम अंकों में कमी आना स्वाभाविक है।

सामान्य ज्ञान के प्रश्न पत्र को पढ़ने के बाद ऐसा लगने लगा है कि UPSC का उद्देश्य परीक्षार्थी की मानसिक क्षमता का परीक्षण करने की बजाय उसे छकाकर पस्त कर देना अधिक है। वह नहीं चाहता कि युवा प्रश्नों पर विचार करके एक व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक अनुमान के आधार पर सही उत्तर तक पहुँचें। यह तथ्य समझ से परे है कि यदि पूछे गये प्रश्नों से जुड़े तथ्य परीक्षार्थियों के सिर के ऊपर से गुजर रहे हैं, उनके पल्ले कुछ भी नहीं पड़ रहा है, तो फिर आयोग परीक्षण किस योग्यता का कर रहा है।

आयोग ने प्रारम्भिक परीक्षा के बारे में युवाओं को दो मुख्य निर्देश दिये हैं। पहला, उसने पाठ्यक्रम दिया है, जिसमें विषय तो स्पष्ट होता है, लेकिन विषय का स्वरूप नहीं। जैसे कि ‘भारत का इतिहास और भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन‘। इस भारी-भरकम पाठ्यक्रम से कुछ भी पूछने का अधिकार आयोग के पास सुरक्षित है।

दूसरा निर्देश यह है कि प्रश्न पत्र वस्तुनिष्ठ (बहुविकल्पीय) प्रकार के होंगे।

आयोग ने प्रारम्भिक परीक्षा के लिए विभिन्न विषयों के ज्ञान के स्तर के बारे में कुछ भी नहीं कहा है। लेकिन मुख्य परीक्षा के बारे में उसने अपेक्षाकृत विस्तार के साथ और बहुत स्पष्ट भाषा में अपने आशय से परिचय कराया है। आयोग के इस मुख्य परीक्षा के बारे में दिये गये निर्देशों को प्रारम्भिक परीक्षा पर लागू करना अतार्किक और अव्यावहारिक नहीं होगा, क्योंकि इसके स्तर को प्री के स्तर से तो बेहतर माना ही जाना चाहिए। प्री में सेलेक्ट होने के बाद ही मुख्य परीक्षा देने का अवसर मिलता है।

मुख्य परीक्षा में सामान्य ज्ञान के बारे में आयोग के जो वचन हैं, उसके इन तीन मुख्य बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

(1) प्रधान परीक्षा का उद्देश्य उम्मीद्वारों के समग्र बौद्धिक गुणों तथा उनके गहन ज्ञान का आकलन करना है, (2) मात्र उनकी सूचना के भंडार तथा स्मरण शक्ति का आकलन नहीं। (3) सुशिक्षित व्यक्ति बिना किसी विशेष अध्ययन के इनका उत्तर दे सके।

जब हम इन तीनों बिन्दुओं के आधार पर प्रारम्भिक परीक्षा में सामान्य ज्ञान के पूछे गये प्रश्नों पर विचार करते हैं, तो इन दोनों के बीच दूर-दराज तक कोई भी संबंध नजर नहीं आता है। ऐसा लगता है कि प्रश्नों को न तो स्मरण शक्ति के आधार पर हल किया जा सकता है, और न ही सूचना के भंडार के आधार पर। गहन ज्ञान के आधार का तो सवाल ही नहीं उठता है।

ऐसी स्थिति में एकमात्र आधार शेष रह जाता है – तुक्के लगाना, बशर्ते कि उम्मीदवार रिस्क लेने को तैयार हो। पूछे गये प्रश्न तथा दिये गये विकल्पों में ऐसा कोई क्लू नहीं दिखाई देता कि उसके सहारे सही उत्तर को ढूँढने की मानसिक कोशिश की जा सके।

इससे भी अधिक दुखद और चिंताजनक बात यह है कि विभिन्न विषयों से भी इस तरह के तथ्य निकाल-निकालकर प्रश्न बनाये जाते हैं कि उनके उत्तर उस विषय विशेष के विशेषज्ञ तक के पास नहीं होते। इस तरह के तथ्य यह सोचने को मजबूर करते हैं कि इनका प्रशासन से, ज्ञान से, जीवन से, और यहाँ तक कि उस विषय विशेष की समझ तक से क्या कोई संबंध है। उदाहरण के रूप में एक प्रश्न भारत के प्राचीन ग्रंथों के नाम से जुड़ा आया है। इसमें जिन चार ग्रंथों के नाम है, वे हैं – नेत्तिपकरण, परिशिष्टपर्वन, अवदानशतक और त्रिशिष्टलक्षण महापुराण। अच्छे से अच्छे पढ़े-लिखे व्यक्ति और यहाँ तक कि शिक्षित जैनी तक ने भी इनमें से एकाध ग्रंथ के अतिरिक्ति किसी अन्य का नाम शायद ही सुना होगा। फिर इन ग्रंथों पर प्रश्न यह किया गया है कि इनमें से कौन से जैन ग्रंथ हैं?

कुल 120 मिनट में सौ प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं। प्रश्नों की प्रकृति काफी जटिल, लम्बाई काफी अधिक तथा हिन्दी की भाषा अत्यंत क्लिष्ट होती है। ऐसे में सच यही है कि परीक्षार्थी के पास इन प्रश्नों पर विचार करने के लिए समय ही नहीं बचता।

कुल मिलाकर प्रारम्भिक परीक्षा के सामान्य अध्ययन का पेपर इतना उबाऊ और बोझिल होता जा रहा है कि उम्मीदवारों को समझ में नहीं आ रहा है कि वे इसकी तैयारी कैसे करें। अच्छे से अच्छा परीक्षार्थी भी इससे बुरी तरह से आतंकित और भ्रमित हो गया है। उसका हौसला टूटने लगा है। वह अब इसे ‘भाग्य का खेल‘ मानने लगा है, जो अत्यंत चिंताजनक है।

चूंकि यह एक प्रतियोगी परीक्षा है, इसलिए परीक्षार्थियों का सेलेक्शन तो होगा ही | लेकिन इस सेलेक्शन के पीछे सुचिंतित नीति के अभाव का होना अत्यंत दुखद है | इतनी उच्च स्तरीय परीक्षा का इतना कम कट ऑफ मार्क्स का होना वैसे भी सम्मान जनक नहीं लगता |

UPSC को इस गंभीर स्थिति पर पूरी संवेदनशीलता के साथ विचार करना चाहिए।

– डॉ॰ विजय अग्रवाल (आप पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एवं afeias.com के संस्थापक हैं।)