ऑप्शनल पेपर का चयन कैसे करें
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आई.ए.एस. बनने की सम्पूर्ण प्रक्रिया में इस तथ्य के वजन को कम करके कतई नहीं आंका जा सकता कि आपका आप्शनल पेपर क्या है। सन् 2013 से पहले यह संकट अभी की तुलना में दुगूना था, क्योंकि उस समय दो वैकल्पिक विषय लेने होते थे। अब केवल एक ही विषय लेना है और मैं समझता हूँ कि इसके कारण न केवल आप्शनल पेपर के चयन का संकट पहले की तुलना में आधा ही रह गया है, बल्कि पूरी तरह खत्म भी हो गया है। मेरा यह अनुभव रहा है कि विद्यार्थियों में अक्सर अपने लिए एक विषय चुनने का संकट इतना नहीं होता, जितना दूसरे विषय के चयन को लेकर होता है। उदाहरण के तौर पर इंजीनियरिंग के अधिकांश विद्यार्थी एक विषय के रूप में इंजीनियरिंग का कोई सब्जेक्ट ले लेते हैं, जो उनके लिए सरल और सहज है। संकट दूसरे विषय को लेकर खड़ा होता था। ठीक इसी तरह जिसने भी पोस्ट ग्रेज्युएट किया है, उनके लिए पोस्ट ग्रेज्युएट विषय को लेने का निर्णय दुविधाजनक नहीं होता। समस्या तब आती है जब उन्हें कोई दूसरा विषय चुनना होता है। जाहिर है कि चूँकि अब दूसरा विषय चुनना ही नहीं है, इसीलिए अब इस तरह की कोई समस्या रह ही नहीं गई है।
लेकिन क्या सचमुच में ऐसा है? मुझे अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि ऐसा नहीं है। हालांकि पहले की तुलना में समस्या कम तो हुई है, लेकिन खत्म नहीं हुई है। अभी भी विद्यार्थी पूछते हैं कि ‘सर, कौन-सा विषय लेना चाहिए’, और मुझे उन्हें निराश करते हुए बहुत दुख होता है। लेकिन कहीं-न-कहीं मन में यह दर्द भी उभरता है कि इस विद्यार्थी में इतनी भी क्षमता नहीं है कि वह अपने लिए विषय का चयन कर सके। इसे मैं आरम्भिक स्तर पर ही उसके व्यक्तित्च की एक कमजोरी के रूप में लेता हूँ, जो बहुत गलत नहीं होती। आप थोड़े इत्मीनान से स्वयं सोचकर देखिए कि ‘आपको कौन-सा विषय लेना चाहिए,’ इसका फैसला आपके अतिरिक्त भला अन्य कोई कैसे कर सकता है। दूसरा आपके बारे में जानता ही कितना है कि वह बता सके कि आपको अमुक विषय लेना चाहिए।
विषय के बारे में आप अलग-अलग लोगों से मिलिए, आपको अलग-अलग राय मिल जाएगी। यदि किसी का चयन इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि उसे पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में बहुत कम नम्बर मिले थे, तो वह आपको भले ही यह न बता सके कि कौन-सा विषय लेना चाहिए, यह तो जरूर बता देगा कि ‘पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन भूलकर भी मत लेना।’ हो सकता है कि उसी दिन शाम को आप एक ऐसे लड़के से मिलें, जिसे पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में बहुत अच्छे नम्बर मिले थे। जाहिर है कि वह आपका प्रश्न पूरा होने से पहले ही पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के पक्ष में अपना जोरदार मत जाहिर कर देगा। कोचिंग वालों से पूछिए, तो वे उस विषय को लेने की सलाह देंगे, जिनकी तैयारी वे करा रहे हैं। याद रखिए कि इनमें से कोई भी गलत नहीं है। सबका अपना-अपना सच है। कोचिंग वाले भी जिन विषयों को अच्छा समझते हैं, उसी की तैयारी कराते हैं। यह उनका सच है। लेकिन मुश्किल यह है कि आपका भी अपना सच है और दूसरों का सच आपका सच कभी नहीं हो सकता। बनाया भी नहीं जाना चाहिए।
आय.ए.एस. के बारे में गाइड करने के अपने इतने लम्बे अनुभव तथा अपने सफल जूनियर्स के आधार पर मैं कम से कम यह बात तो पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ कि यू.पी.एस.सी. का कोई भी ऐसा विषय नहीं है, जिसे किसी भी विद्यार्थी ने न लिया हो और उसमें सफल न हुआ हो। अगर ऐसा होता, तो यू.पी.एस.सी. खुद उस विषय को अपने वैकल्पिक विषय की सूची से बाहर कर देती।
मुझे लगता है कि इस समस्या पर थोड़े तार्किक ढ़ंग से विचार किए जाने की जरूरत है, क्योंकि इसे लेकर विद्यार्थी अनावश्यक रूप से बहुत अधिक परेशान होते हुए पाए गए हैं। मेरे इन प्रश्नों पर विचार कीजिए –
- क्या कारण है कि जिस विषय को लेकर एक विद्यार्थी सफल होता है, ठीक वही विषय उसी वर्ष दूसरे विद्यार्थी की असफलता का सबसे बड़ा कारण बन जाता है?
- क्या कारण है कि जो विषय एक विद्यार्थी को बहुत सरल और रुचिकर लगता है, वही विषय किसी दूसरे विद्यार्थी को बहुत कठिन और ऊबाऊ लगने लगता है?
- यू.पी.एस.सी. ने स्केलिंग की पद्धति लागू क्यों की है? दरअसल इसका उद्देश्य ही एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना है, ताकि सभी वैकल्पिक विषयों के प्राप्तांकों में समानता स्थापित की जा सके।
मुझे लगता है कि यदि आप इन तीनों प्रश्नों पर थोड़ी गंभीरता से विचार करेंगे, तो विषय के चयन के लिए आपको एक रास्ता दिखाई देने लगेगा। तभी आप सही विषय का चयन कर पाएँगे। अन्यथा आप अपने-आपको गलत विषय के चयन से बचा नहीं सकेंगे। यहाँ मैंने जिस ‘गलत विषय का चयन’ कहा है उसे मैं इन शब्दों में स्पष्ट करना चाहूँगा कि ‘विषय कोई भी गलत नहीं होता। वह हमारे लिए गलत हो सकता है।’
वह कौन-सा तथ्य है, जो विषय के बारे में निर्णय लेते समय आपके दिमाग को सबसे अधिक प्रभावित करता है? मैं जानता हूँ और आप भी जानते हैं ‘अफवाह।’ आय.ए.एस. की तैयारी करने वालों की जमात में किसी कारण कभी कोई विषय, तो कभी कोई विषय बहुत अधिक चर्चा में आ जाते हैं। इस चर्चा से लोगों को लगने लगता है कि चूँकि अमूक विषय में ज्यादा लोग सेलेक्ट हो रहे हैं, इसलिए यदि मैं भी यह विषय ले लेता हूँ, तो मेरे सेलेक्शन की सम्भावना बढ़ जाएगी। यहाँ दोनों ही तथ्य गलत हैं। जिसे आप अधिक लोगों का चयन मान रहे हैं, दरअसल वह किसी विषय विशेष के कारण नहीं है, बल्कि इसलिए है, क्योंकि उस विषय को अधिक विद्यार्थी ले रहे है।। यदि आप इसे प्र्रतिशत की दृष्टि से देखेंगे, तो उनमें कोई ज्यादा अन्तर दिखाई नहीं देगा। लेकिन यदि आप टोटल नम्बर की दृष्टि से देखेंगे, तो वह ज्यादा दिखाई देगा ही और यहाँ यही हो रहा है।
यहाँ दूसरा गलत तथ्य यह है कि आप यह नहीं समझ पा रहे हैं कि दूसरे के सिर की टोपी को आप पहन तो लेंगे, लेकिन वह आपके सिर पर फिट बैठेगी या नहीं। आपको अपनी ही टोपी चाहिए। आप यह तो जानते हैं कि कितने लड़के उस विषय वाले सिलेक्ट हुए, लेकिन आप यह नहीं जानते कि कितने सेलेक्ट नहीं हुए। यहाँ मेरे कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि जो विषय अधिक लोकप्रिय हो रहे हों, आपको उन विषयों से बचना चाहिए। ऐसा कतई नहीं है। हाँ, यदि आप उस विषय मेंे स्वयं को कंफरटेबल महसूस कर रहे हैं, तो लेने में हिचक दिखाने का कोई कारण नहीं है।
एक बात और है। यह देखा गया है कि हर साल किसी न किसी विषय का पेपर कुछ ज्यादा ही कठिन आ जाता है। इसका दुष्प्रभाव स्कोर पर पड़ता है और देखते ही देखते वह विषय अप्रिय हो जाता है। ऐसा हर साल होता है। किसी-किसी विषय के साथ यह हादसा लगातार दो-तीन साल तक घटता रहता है। लेकिन हर साल किसी न किसी विषय के साथ तो ऐसा होता ही है। ऐसी स्थिति में इस बात की गारंटी मानकर नहीं चलना चाहिए कि यदि पिछले साल उस विषय के पेपर अच्छे और सरल आए थे, तो इस साल भी ऐसा ही होगा। यू.पी.एस.सी. अपने हिसाब से इन सब मामलों में ज्वार-भाटे पैदा करती रहती है। इसलिए मुझे यह लगता है कि विषय की लोकप्रियता के आधार पर किसी विषय के चयन को लेकर थोड़ी सतर्कता बरती जाना चाहिए।
तो क्या करें
मैं यहाँ आपको वह टार्च दे रहा हूँ, जिसकी रौशनी में आप अपने लिए सही और सच्चे विषय का चयन कर सकते हैं। आप मेरी इस टार्च पर भरोसा कर सकते हैं। हालांकि यहाँ इसे मैंने ‘अपनी टार्च’ कहा है लेकिन इस टार्च में जो बैटरी है, वह यू.पी.एस.सी. की है। यू.पी.एस.सी ने मुख्य परीक्षा के पाठ्यक्रम की चर्चा करते हुए यह बात बहुत साफ तौर पर और शुरूआत में ही स्पष्ट कर दी है कि मुख्य परीक्षा का उद्देश्य किसी विद्यार्थी में इस बात का पता लगाना नहीं है कि उसके पास किसी विषय की कितनी ज्यादा जानकारियाँ हैं और उसकी स्मरण शक्ति कितनी अच्छी है। बल्कि इसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि उसकी बौद्धिक क्षमता कितनी है और वह अपने विषय को कितनी गहराई से समझता है।
बात बिल्कुल साफ है कि महत्वपूर्ण विषय नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण विषय की समझ है। आप ही वह हैं, जो किसी विषय को महत्वपूर्ण बनाते हैं। और जब किसी भी विषय के बारे में आपकी बौद्धिक क्षमता विश्लेषणात्मक हो जाती है, तो उस विषय के बारे में आपकी समझ इतनी गहरी हो जाती है कि आप उसके बारे में अपनी मौलिक सोच विकसित करने लगते हैं। इससे सामान्य से सामान्य विषय भी महत्वपूर्ण हो जाता है। अन्यथा महत्वपूर्ण से महत्वपूर्ण विषय को भी आप सामान्य बना सकते हैं।
आपको अपने विषय का चयन करते समय इस टार्च का इस्तेमाल करना चाहिए और भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए। विषय के बारे में हड़बड़ी मत दिखाइए। इसका फैसला इत्मीनान से कीजिए। विषय के चयन के बारे में दूसरों की सुनिए जरूर, दूसरों की राय भी लीजिए, लेकिन उनकी राय से इतने अधिक प्रभावित मत हो जाइए कि उनकी राय को ही अपना निर्णय बना लें। उनकी कच्ची राय को माल की तरह इस्तेमाल करें और तार्किक ढ़ंग से विश्लेषित करने के बाद कोई फैसला लें। और जब एक बार फैसला कर लें, तो उसे आसानी से बदले नहीं। इसे तब ही बदलें जब लाख करने केे बावजूद आप उस विषय से प्यार नहीं कर पा रहे हैं। बहुत अधिक कोशिश करने के बावजूद उस विषय पर अपनी पकड़ नहीं बना पा रहे हैं। या फिर तब बदलें, जब आपको लगे कि आपको अपने विषय से प्यार है और उस पर पकड़ भी है, लेकिन परीक्षा में आपके लिए उसके परिणाम बहुत ही बुरे रहे हैं। मैं परिणाम के बुरे होने की बात नहीं कह रहा हूँ। बहुत ही बुरे होने की बात कह रहा हूँ। यदि परिणाम बुरे रहें, तो यू.पी.एस.सी. को दोष न देकर पेपर को दोष न देकर, कॉपी जाँचने वाले को दोष न देकर और यहाँ तक कि उन किताबों को भी दोष न देकर, जिनसे आपने तैयारी की है, दोष आप स्वयं में देखने की कोशिश कीजिए कि ऐसा क्यों हुआ। दूसरों को दोष देने से आपको एक झूठा आत्म-संतोष तो मिल जाएगा, लेकिन सफलता नहीं। अब यह आपके ऊपर है कि आप आत्म-संतोष चाहते हैं या सफलता। यदि आप सफलता चाहते हैं, तो आप स्वयं ही वह हैं, जिसकी कमियों पर आप काम कर सकते हैं। यू.पी.एस.सी., पेपर तथा परीक्षकों पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है।
यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि मैंने विद्यार्थियों को अपने विषयों को बदलते हुए बहुत देखा है। वे खुद को नहीं बदलते, विषयों को बदलने में लगे रहते हैं, जिसके कारण आने वाले परिणाम भी कभी नहीं बदलते। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, हर विषय में चयन होता है और यह कहीं न कहीं हमारी अपनी ही कमी है, यदि हमारा चयन नहीं हो पा रहा है तो।
लेकिन एक सच्चाई और भी है। सच्चाई यह है कि यदि वह विषय शुरूआत में ही आपकी समझ में नहीं आ रहा है, तो आप उसे बदलने में देरी मत कीजिए। भले ही आपने उसके पीछे एक साल बर्बाद क्यों कर दिया हो। आने वालें पाँच सालों को बर्बाद करने से बेहतर यही है कि एक साल को बर्बाद करके आने वाले सालों को बचा लिया जाए। इससे केवल साल ही नहीं बचेगा, बल्कि भविष्य भी बचेगा।
विषय के चयन का मंत्र
यहाँ ‘मंत्र’ शब्द उस अर्थ में नहीं है कि यह कोई जादू कर देगा, बल्कि इस अर्थ में है कि यह आपके चयन का सबसे पहला और प्रमुख आधार होना चाहिए। निश्चित रूप से विषय अपने-आपमें महत्वपूर्ण होता है। सिविल सर्विस के शेष जो पाँच पेपर हैं, उनकी तुलना में यही वह विषय है, जिस पर आप सबसे मजबूत पकड़ बना सकते हैं। जहाँ तक निबंध और सामान्य ज्ञान के चार प्रश्न-पत्रों का सवाल है, उसकी कोई बहुत निश्चित सीमा नहीं होती। इसकी हर विद्यार्थी अपने-अपने तरीके से तैयारी करता है। लेकिन आपका अॉप्शनल पेपर वह पेपर होता है, जिसका चुनाव आपने किया है। इसका सिलेबस निश्चित है और यहे विश्वविद्यालयों में व्यवस्थित तरीके से पढ़ाया भी जाता है। आप इन विषयों को पढ़ते भी आए हैं। जबकि सामान्य ज्ञान की इस तरह से पढ़ाई आपने कभी नहीं की है। यही वह कारण है कि सामान्य ज्ञान के पेपर्स में तो स्कोर में बहुत अधिक अन्तर देखा जा सकता है, लेकिन अॉप्शनल पेपर्स में नहीं, कुछ अपवादों को छोड़कर। इसलिए आपकी कोशिश होना चाहिए कि अॉप्शनल पेपर में आपकी तैयारी अच्छी से अच्छी हो और इतनी अच्छी हो कि आपका स्कोर हायर रेंज में आए। सही विषय के चयन के बिना ऐसा करना आपके लिए जरा मुश्किल होगा।
आपके लिए सही विषय कौन-सा होगा, अब मैं आपको उसी का सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तरीका बताने जा रहा हूँ। निश्चित रूप से इस तरीकेे में थोड़ा वक्त तो लगेगा, लेकिन यह वक्त लगाया जाना चाहिए, क्योंकि इसकी कीमत काफी अधिक होती है। इससे पहले कि मैं आपको विषय चयन के अन्य पक्ष बताऊँ, फिलहाल इस सबसे महत्वपूर्ण पक्ष की बात करते हैं।
लोगों से बातचीत करने के बाद, अच्छी तरह सोच-विचार करने के बाद यदि आपने किसी एक ही विषय के बारे में फैसला कर लिया है, तो आपको मेरी शुभकामनाएँ हैं। लेकिन यदि ऐसा नही हो सका है और आप दो-तीन विषयों को लेकर द्वंन्द्व में हैं, तो फिर आपको निम्न तरीके का इस्तेमाल करना चाहिए।
प्रथम चरण:
तरीका यह है कि आप अपने इन सभी दो-तीन विषयों की कुछ किताबें लें। ये सभी किताबें सामान्य स्तर की हों, बहुत ऊँचे स्तर की नहीं। इन किताबों का स्तर ग्रेज्युएशन की शुरूआत के सालों का होना चाहिए और किताबें भी ऐसी होना चाहिए, जिनमें उन विषयों के बारे में मूलभूत बातें ही बताई गई हों। ध्यान रखिए कि ये किताबें बहुत अधिक विश्लेषण वाली किताबें न हों। ये सामान्य लेखकों के द्वारा लिखी गई किताबें हों।
अब आप इनमें से किसी एक विषय की किताब को पढ़ें और ध्यान से पढ़ें। इसे पढ़ने में चार-पाँच दिन तो लगाइए ही। पढ़ने के बाद कुछ प्वाइंट नोट कर लें। जैसे कि विषय कैसा लगा, पढ़ने में मजा आया या ऊब हुई, विषय सरल था या कठिन, समझने में आसानी हो रही थी या नहीं, आदि-आदि। बेहतर होगा कि अब आप पढ़े हुए कुछ टॉपिक्स को मन ही मन दुहराने की कोशिश करें और देखें कि कितनी बातें याद रह गई हैं। इन सभी प्वाइंटस् को नोट कर लें।
द्वितीय चरण:
अब आप यू.पी.एस.सी. का पाठ्यक्रम लें और अपने उस विषय के पाठ्यक्रम को बहुत गौर से पढ़ें, जिस विषय की किताब आपने पढ़ी है। किसी भी विषय की एक पुस्तक पढ़ने के बाद हमारे अवचेतन में उस विषय की न केवल एक रूपरेखा ही बनने लगती है, बल्कि उसके प्रति एक इंप्रेशन भी बनने लगता है। अब, जब आप यू.पी.एस.सी. के पाठ्यक्रम को देखेंगे, तो पाएँगे कि उस पाठ्यक्रम के साथ आपका अवचेतन इंटरएक्शन करने लगा है। आपको यह अनुभव करके आश्चर्य होगा कि अब आप, जबकि पुस्तक को पढ़ने के बाद पाठ्यक्रम को पढ़ रहे हैं, उस पाठ्यक्रम के बारे में भी एक इंप्रेशन बनने लगा है। अब इस पाठ्यक्रम के बारे में जो इंपे्रशन बन रहे हैं, उन्हें भी आप नोट कर लें।
तृतीय चरण:
इस चरण में आप उस विषय के पिछले सालों के अनसाल्वड पेपर्स लें। अनसॉल्वड पेपर्स में पूछे गये प्रश्नों को ध्यान से पढ़ें। मैं फिर से दोहराता हूँ कि ध्यान से पढ़ें। केवल पढ़े ही नहीं, बल्कि ध्यान से पढ़ें। ध्यान से पढ़ने पर आपको उन प्रश्नों के शेड़स् दिखाई देंगे। आपको वे कोण दिखाई देंगे, जो उन प्रश्नों में छिपे हुए हैं। यू.पी.एस.सी. में ऐसे सवाल बहुत कम ही पूछे जाते हैं, जिनके उत्तर सीधे-सपाट तरीके से दिए जा सकते हों। यह चरण यह देखने का है कि आप उन कोणों को पकड़ पा रहे हैं या नहीं। यदि वे आपकी पकड़ में आ रहे हैं, तो इसका मतलब है कि यह विषय आपके लिए एक अच्छा विषय हो सकता है।
चतुर्थ चरण:
अंतिम चरण के रूप में अब आपको थोड़ी मेहनत करनी है। करना यह होगा कि पुस्तक की शुरूआत के किसी भी एक अध्याय को लीजिए और देखिए कि उस अध्याय से पिछले सालों के दौरान किस तरह के प्रश्न पूछे गए हैं। इन प्रश्नों को अलग से नोट कर लीजिए। फिर आप उस अध्याय को अब फिर से अच्छे से पढ़िए, कई-कई बार पढ़िए और इस तरह पढ़िए कि उस चेप्टर पर आपकी पकड़ मजबूत हो जाए। उस चेप्टर को समझने की कोशिश कीजिए। जब आप इस बात से संतुष्ट हो जाएं कि ‘मैं जितना भी पढ़ सकता था और समझ सकता था, वह कर चुका।’ अब आप पिछले सालों के दौरान उसी चेप्टर से जुड़े प्रश्नों के उत्तर लिखने की कोशिश कीजिए।
बस, यही आपका निर्णायक क्षण होगा। यदि आप प्रश्नों के उत्तर दे पा रहे हैं, तो समझ लीजिए कि आपको अपना विषय मिल गया है। यहाँ मैं यह बताना चाहूँगा कि अभी आप इन प्रश्नों के उत्तर उस स्तर का नहीं दे पाएँगे, जिस स्तर की अपेक्षा यू.पी.एस.सी. करता है। उस स्तर को पाना तब सम्भव होगा, जब आप इस पूरे विषय को पढ़ चुके होंगे और इस पर आपकी अच्छी तैयारी हो चुकी होगी। फिलहाल सवाल उत्तर के स्तर का नहीं है। सवाल केवल इतना है कि आप अपने-आपको इस स्थिति में पा रहे हैं या नहीं कि ‘मैं इसका उत्तर दे सकता हूँ, भले ही उत्तर हल्का-फुल्का ही क्यों न हो।’
मान लीजिए कि इतनी सब कवायद करने के बाद निष्कर्ष यह निकलता है कि ‘न तो मुझे प्रश्न के शेड्स दिखाई दे रहे हैं और न ही मुझे ठीक-ठाक उत्तर ही सूझ रहा है’, तो समझ लीजिए कि यह विषय कम से कम आपके लायक तो नहीं है। अब आप किसी अन्य विषय पर, जो आपके चयन की रेंज में आते हैं, उसके साथ भी वही कीजिए। यदि इस पूरी प्रक्रिया में पूरा एक महीना भी लग जाता है, तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। आखिर आप आय.ए.एस. बनने जा रहे हैं और आय.ए.एस. बनना कोई मज़ाक तो नहीं है।
तीसरी स्थिति भी हो सकती है। यह स्थिति वह होगी, जब आपको यह सब करने के बाद दोनों ही विषय एक जैसे लग रहे हों। तब आपके सामने समस्या यह खड़ी होगी कि इन दोनों में से आप किसके गले में जयमाला डालें। इसके बारे में फैसला करना मुश्किल नहीं है। अब आपके सामने केवल एक ही मंत्र है। वह यह कि आप देखें कि इन दोनों विषयों में से कौन-सा विषय ऐसा है, जो सामान्य ज्ञान की तैयारी में आपके लिए अधिक मददगार हो सकता है। निश्चित रूप से यह विषय आपके लिए ‘एक पंथ जो काज’ का काम करेगा। उदाहरण के तौर पर इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन तथा अर्थशास्त्र आदि कुछ ऐसे विषय हैं, जिनकी सामान्य ज्ञान की तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वैसे भी इनमें से कोई विषय आपका अॉप्शनल सब्जेक्ट नहीं है, तब भी आपको इन्हें पढ़ना तो पड़ेगा ही। हाँ, यह बात जरूर है कि इतने विस्तार और गहराई से न पढ़ना पड़े, जितना कि अन्यथा आपको पढ़ना पड़ता।
यह तो उस स्थिति की बात हुई, जब विषय के चयन को लेकर आप दुविधा के जाल में फँसे हुए हैं। अब मैं आपको उन उपायों के बारे में बताता हूँ, जो शायद आपको दुविधा के इस जाल में फँसने से बचा लें। मुझे विश्वास है कि यदि आप पूरी संवेदनशीलता के साथ बाहरी अफवाहों और प्रभावों से ऊपर उठकर इन पर विचार करेंगे, तो शायद आप द्वंद्व में पड़ने से बच जायेंगे। तो आइए, इस पर हम कुछ बातें करते हैं।
- यदि आपने पोस्ट ग्रेज्यूएट किया हो, तो मेरी सलाह है कि इस विषय को अॉप्शनल पेपर के रूप में नहीं लेने से पहले इस पर कई बार विचार करें। आखिरकार आपने इस विषय पर दो साल लगाए हैं। हाँ, यदि वे दो साल आपने यूँ ही उपाधि पाने के लिए लगाए हैं, तब तो बात अलग है, अन्यथा यह विषय आपका सबसे अच्छा साथी सिद्ध हो सकता है। वैसे भी यदि आप इस विषय को नहीं लेंगे, तो कोई दूसरा विषय लेंगे और वह दूसरा विषय ऐसा होगा, जिसके बारे में आपको कुछ भी मालूम नहीं है। ऐसी स्थिति में तार्किक दृष्टि से क्या यह बेहतर नहीं होगा कि एक ऐसे विषय को लिया जाए, जिसके बारे में कम से में कुछ तो मालूम है।
एक बात और। जब आप इन्टरव्यू के लिए जाएँगे, तो जिस विषय से आपने पी.जी. किया है, उससे सवाल पूछे जाने की संभावना रहती है, भले ही आपने वह विषय मुख्य परीक्षा के लिए चुना न हो। इसका अर्थ यह हुआ कि इन्टरव्यू की तैयारी के लिए आपको अपने इस विषय को दोहराना तो पड़ेगा ही। इसलिए इसे मैं एक सर्वमान्य सिद्धान्त के रूप में लेता हूँ कि पी.जी. के विषय को आप्शनल सबजेक्ट के रूप में लिया जाना चाहिए।
लेकिन इसका एक अपवाद भी है। अपवाद यह है कि हो सकता है कि पी.जी. करते समय आपने अपने विषय के बारे में गंभीरता से सोचा ही नहीं हो। हो सकता है कि जो सोचा था, वह मिला न हो और जो मिल गया, उसी में करना आपकी मजबूरी हो गई हो। यह भी हो सकता है कि मिला तो सोचा गया विषय ही हो, लेकिन उसमें मजा नहीं आया हो और इसलिए उस विषय पर पकड़ न बन पाई हो। नम्बर भी उसमें कम आए हों। ऐसी स्थिति में इस विषय को लेने के मोह से बचना ही बेहतर होगा।
साथ ही सामान्यतया तीन ऐसे विषय माने जाते हैं, जिन्हें इन विषयों में पी.जी. करने वाले स्टूडेंट भी आय.ए.एस. में लेना पसन्द नहीं करते। उनका मानना है कि इनमें सिलेबस बहुत बड़ा है। विषय बड़ा कठिन है। चूँकि विषय लगातार बदलता रहता है, इसलिए उसके साथ तालमेल बैठाये रखना इतना आसान नहीं होता। इसका नतीजा यह निकलता है कि इनमें नम्बर कम आते हैं। ये तीन विषय हैं-गणित, फीजिक्स और अर्थशास्त्र। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि इन्हें कोई लेता ही नहीं है, और यदि कोई ले लेता है, तो वह सफल नहीं हो पाता। इसमें भी विद्यार्थी सफल होते हैं। जाहिर है कि सफल होने वाले वे विद्यार्थी हैं, जिनकी इन विषयों में रुचि रही है और वे यू.पी.एस.सी की अपेक्षाओं के अनुरूप इन विषयों के साथ अपना तालमेल बैठा लेते हैं। अब यह आपके ऊपर है कि आपकी स्थिति क्या है।
- हो सकता है कि आप पोस्ट ग्रेज्यूएट न हों और केवल ग्रेज्यूएट ही हों। ऐसी स्थिति में आपको क्या करना चाहिए? कम से कम मेरी राय तो यही है कि ग्रेज्यूएशन में हर स्टूडेन्ट कम से कम तीन विषय पढ़ता है और इन तीन विषयों में से उसे उस एक विषय को चुन लेना चाहिए, जो उसे सबसे अच्छा लगता है। यह सुविधा बी.ई. के स्टूडेन्ट्स के लिए भी है कि वे सिविल इंजीनियरिंग या इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग जैसे विषय ले लें और एम.बी.बी.एस. के लिए भी है कि यदि वेे मेडिकल साइंस नहीं ले रहे हैं, तो बॉयलाजी जैसा कोई विषय चुन लें। यहाँ तक कि इन्हें एंथ्रोपोलॉजी और सायकोलॉजी भी सूट करता है।
ग्रेज्यूएशन के विषय लेने के पीछे भी तर्क की वही शक्ति है, जो मैंने पोस्ट ग्रेज्यूएट के विषय को लेने के बारे में बताया है। अपने गे्रज्यूएशन के विषय के बारे में अंततः आप कुछ तो जानते ही हैं और आपको अपने इस ज्ञान का उपयोग यहाँ करना ही चाहिए।
- हालांकि ऐसे विद्यार्थियों की संख्या अब काफी कम होती जा रही है, फिर भी कुछ लोग अभी भी बी.एस-सी. करते हैं। देखने में आया है कि ये विद्यार्थी ग्रेज्यूएशन के अपने विषय में से किसी एक को लेना पसन्द नहीं करते। वैसे भी यदि कोई साइंस ग्रेज्यूएट है, तो उसके लिए आटर्स के विषय लेना कोई गलत निर्णय नहीं होता। साइंस का कोई भी विषय लेना तभी अधिक उपयुक्त होता है, यदि किसी ने उसमें पोस्ट ग्रेज्यूएट किया हुआ हो।
ऐसी स्थिति में साइंस के विद्यार्थी को दो बातें ध्यान में रखनी चाहिए। पहली तो यह कि वे देखें कि वैकल्पिक विषयों की सूची में से कौन-सा विषय ऐसा है, जिसका तालमेल उनके द्वारा पढ़े गए साइंस के विषयों से बैठ पाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी का भू-विज्ञान था, तो वह भूगोल ले सकता है। गणित का विद्यार्थी सांख्यिकी ले सकता है। यदि किसी का बॉयलाजी विषय रहा है, तो एंथ्रोकोलॉजी लेना उसके लिए अधिक फायदेमंद सिद्ध होता है।
दूसरी सलाह के रूप में यह कहा जा सकता है कि जो विषय वह ले, वह उसके लिए सामान्य ज्ञान की तैयार में सहायक हो। लेकिन यह कोई बहुत जरूरी सिद्धान्त नहीं है। हाँ, यदि सम्भव हो सके, तो ऐसा किया जाना चाहिए।
एक अन्य बात; जिसे मैं यहाँ एक बार फिर से दोहराना चाहूँगा कि वह अपनी रुचि की उपेक्षा बिल्कुल न करे। यह हमारे मस्तिष्क का विज्ञान है कि हमारा दिमाग उन्हीं विषयों को अच्छे से ग्रहण करता है जिसमें उसे मज़ा आता है। अरुचिकर विषय के साथ जबर्दस्ती करते हुए बहुत लम्बी और सफल यात्रा कर पाना आसान नहीं होता। आपकी किस विषय में रुचि है, इसे जानने के लिए आप उस तकनीकी का इस्तेमाल करने में थोड़ा समय लगाएं, जिसकी चर्चा मंत्र के रूप में की जा चुकी है।
इस बारे में बस इतना ही। अब मैं कुछ अन्य उन तथ्यों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा, जिनके बारे में आपको बताया जाना चाहिए।
- विषय का चयन केवल सरलता, कठिनता के आधार पर करना सही नहीं होता है। इसके दो कारण हैं। पहला तो यह कि सरलता और कठिनता का सिद्धान्त व्यक्ति सापेक्ष होता है। जो विषय आपके लिए कठिन है, वही दूसरे के लिए सरल हो सकता है और ठीक इसके उलट भी। दूसरी बात यह कि यदि कोई विषय सरल है, सचमुच में सरल है, तो वह केवल आपके लिए ही सरल नहीं है, बल्कि सबके लिए है। और आप यह जानते हैं कि एक प्रतियोगी परीक्षा की सफलता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आपको पासिंग माक्र्स मिल गए। यह इस बात पर निर्भर करती है कि आपको इतने नम्बर मिले या नहीं कि आप चयनित उम्मीदवारों की सूची में शामिल हो सकें।
- किसी भी विषय का सिलेबस कितना बड़ा है, यह एक छोटा सा आधार तो हो सकता है, लेकिन सम्पूर्ण आधार नहीं। सिलेबस के आकार को विषय के चयन का अपना आधार न बनाएँ। आपको देखना केवल यह चाहिए कि उस पाठ्यक्रम पर पुस्तकें उपलब्ध हैं या नहीं। और यदि उपलब्ध हैं, तो उसे हेन्डल कर पाना आपके बस की बात है या नहीं।
- यदि आप बिल्कुल ही नया विषय ले रहे हैं, तो इसका फैसला करने से पहले दो बातों पर जरूर सोचें। पहली बात यह कि उस विषय पर पठनीय सामग्री आप जुटा पाएँगे या नहीं। दूसरी बात यह कि यदि आपको लगता है कि इस विषय को पढ़ने और समझने के लिए आपको किसी की मदद की जरूरत होगी, तो वह मदद आपको उपलब्ध है या नहीं। यदि आप इन दोनों जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएँगे, तो वह विषय भी आपकी अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाएगा।
- अंतिम बात यह कि इस बात पर विश्वास रखिए कि कोई विषय आपको आय.ए.एस. नहीं बना सकता। यह आप ही होंगे कि किसी भी विषय को लेकर आय.ए.एस. बन सकते हैं। इसलिए अपनी सफलता और असफलता का श्रेय विषय को न देकर खुद लेने के सिद्धान्त को अपनाए।
मैंने विषय के चयन को लेकर कुछ बातें आपके सामने रखी हैं। मैं यह दावा नहीं करता कि मेरी इन बातों में वे सारे बिन्दु शामिल हो गए हैं, जिन्हें हटाकर किसी विषय का चयन करना खतरनाक साबित होगा। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यदि आपको मेरी इन सलाहों से कोई मदद मिल सकेगी, तो इसे मैं अपना सौभाग्य मानूँगा। और यदि मेरी ये सलाहें आपके काम नहीं आ सकीं, तो आप अन्य कोई निर्णय लेने में बिल्कुल भी संकोच न करें। यह कतई न सोचें कि आपका वह निर्णय गलत ही होगा, क्योंकि अन्ततः विषय महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि आप उस विषय के साथ व्यवहार किस तरह का करते हैं।