सिविल सेवा परीक्षा में कॉमन सेंस-3

Afeias
15 Jan 2017
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पिछले अंक से आगे-

प्रारम्भिक परीक्षा के प्रथम प्रश्न-पत्र में कुछ प्रश्न तो सीधे-सीधे ऐसे होते हैं, जिन्हें हम बोध के आधार पर तुरन्त हल कर सकते हैं। मुश्किल यह है कि हम यहाँ यदि अध्ययन के चक्कर में पड़े, ंतो फिर उलझने की पूरी-पूरी गुंजाइश रहती है। आइए, कुछ ऐसे ही प्रश्नों को देखते हैं। एक प्रश्न है- ‘‘भारत की प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें,’’ यह उपबन्ध किसमें किया गया है?
a) संविधान की उद्देषिका
b) राज्य के नीति-निदेशक तत्व
c) मूल अधिकार
d) मौलिक कर्त्तव्य।

चूँकि हर विद्यार्थी मूल अधिकारों के बारे में अच्छे से पढ़ता है, इसलिए वह ;बद्ध विकल्प को निरस्त कर देगा। थोड़ी भी सतर्कता से पढ़ाई करने वाला विद्यार्थी राज्य के नीति के निर्देशक तत्व वाले विकल्प को भी खारिज कर देगा। अब आपके पास दो विकल्प बचते हैं-संविधान की उद्देश्यिका तथा मौलिक कर्त्तव्य। मजेदार बात यह है कि ऊपर जो वक्तव्य दिया गया है, उसका उल्लेख संविधान की उद्देश्यिका में भी है और मौलिक कर्त्तव्य में भी। यहाँ धर्मसंकट यह है कि आपको इन दोनों में से किसी एक को ही चुनना है। तो वह एक कौन होगा? किसे चुनेंगे आप अपना सही उत्तर? यदि मुझे चुनना पड़े, तो मैं यहाँ ज्ञान के बजाए बोध का सहारा लूँगा। आप ध्यान से वक्तव्य को फिर से पढ़ें। इसमें आपको शब्द मिलेगा ‘रक्षा करें’ तथा ‘अक्षुण्ण रखें’। ये शब्द आदेशात्मक हैं। यानी कि आपसे कुछ करने के लिए कहा जा रहा है। यह भाषा अनुरोध की भाषा नहीं है। जाहिर है कि यहाँ आप केवल भाषा के बोध के आधार पर (d) विकल्प पर निशान लगा देंगे।
चलिए, एक अन्य प्रश्न देखते हैं। प्रश्न है-

‘विश्व आर्थिक संभावना’ (Globle Economic Porspect) रिपोर्ट आवधिक रूप से निम्नलिखित में से कौन जारी करता है?

a) एशियाई विकास बैंक
b) यूरोपीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (European  Bank for Reconstruction & Development )
c)US का Federal Reserve Bank
d) विश्व बैंक।

सामान्यतया स्टूडेन्टस् मानकर चलते हैं कि उन्हें इन चारों विकल्पों में दिए गए संगठनों के बारे में जानकारी होनी चाहिए थी। तभी वे सही उत्तर दे पाते। यहाँ तो ये चार ही हैं। लेकिन इस तरह के संगठनों की संख्या 40 से कम नहीं होगी। तो आप किन-किन संगठनों के बारे में कितनी-कितनी जानकारी रख सकते हैं। ऐसा करना न केवल कठिन ही है, बल्कि अव्यावहारिक भी है। तो फिर यह प्रश्न पूछा ही क्यों गया? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि ‘‘आपके कॉमन सेंस को टेस्ट करने के लिए।’’ इसका टेस्ट कैसे किया जा रहा है?
आप कथन को ध्यान से पढ़ें-‘विश्व आर्थिक संभावना’ यानी कि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था के बारे में। यह हुआ पहला विन्दु। दूसरा विन्दु है। ‘आवधिक’ (पीरियाडिकली) यानी कि हर एक निष्चित समय के बाद बार-बार। इससे यह सिद्ध होता है कि इस रिपोर्ट को जारी करना उस संस्था के महत्वपूर्ण कामों में से एक है।
इन तथ्यों को जानने के बाद अब आप विकल्पों पर जाएँ। यदि हम यह मान लें कि विकल्प में दिए गए चारों संगठन आर्थिक संभावना पर आवधिक रूप से रिपोर्ट जारी करते हैं, तो यहाँ हमारे दिमाग में यह बात भी आनी चाहिए कि एशियाई विकास बैंक ऐसी रिपोर्ट एशिया के बारे में जारी करेगा, यूरोपीय पुर्ननिर्माण और विकास बैंक यूरोप के बारे में जारी करेगा। और अमेरीका का फेडरल बैंक अपने देष के लिए जारी करेगा। चूँकि ‘डी’ विकल्प के रूप में बहुत साफ तौर पर ‘विश्व बैंक’ दिया गया है, इसलिए यह सम्भव है कि विश्व की आर्थिक संभावना पर ऐसी रिपोर्ट विश्व बैंक ही जारी करता होगा। सच पूछिए तो विश्व बैंक का विकल्प दिया ही इसलिए गया है, ताकि आप बोध की मदद से उत्तर तक आसानी के साथ पहुँच जाएँ।
मित्रो, इस तरह के दो-चार ही नहीं बल्कि कई-कई प्रश्न होते हैं, जिन्हें पढ़कर और रटकर तैयार नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक अलग ही तरह की समझ की जरूरत होती है और इसी समझ को यहाँ ‘बोध’ कहा जा रहा है। हाँ, यह बात जरूर है कि इस समझ को विकसित करने में अध्ययन का भी पर्याप्त योगदान होता है; विशेषकर सिविल सर्विस परीक्षा से संबंधित बोध को विकसित करने में।

प्रारम्भिक परीक्षा: द्वितीय प्रश्न-पत्र
आप जानते हैं कि इस पेपर की शुरूआत सन् 2011 से की गई है। इसका उद्देष्य ही विद्यार्थी की भाषा अवबोधन एवं तार्किक क्षमता की जाँच करना है। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि यह पूरे का पूरा पेपर ही बोध पर आधारित है; यहाँ तक कि गणित से संबंधित प्रश्न भी। गणित की बात यहाँ मैंने इसलिए की है, क्योंकि यदि इक्के-दुक्के प्रश्नों को छोड़ दिया जाए, तो बाकी सवालों को दिमाग में ही थोड़ा बहुत जोड़-घटा करके हल किया जा सकता है। वैसे भी परीक्षा हॉल में इतना समय होता कहाँ है कि सवालों को गणित के फार्मूले से हल किया जा सके।
इस प्रश्न-पत्र के बारे में निम्न दो बातों को जानना उपयोगी होगा।

  • द्वितीय प्रश्न-पत्र में कुल 80 प्रश्न होते हैं, जिन्हें 120 मिनट में हल करना होता है। इन 80 मिनट में से औसतन 25 प्रश्न केवल भाषा-बोध से संबंधित होते हैं, जिसे हम लेंग्वेज कम्प्रेहेंशन के नाम से जानते हैं। लगभग दो सौ से पाँच-सौ शब्दों बाले अंश दे दिये जाते हैं। फिर उस अंश पर ही आधारित कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं। जो प्रश्न पूछे जाते हैं, वे आब्जेक्टिव किस्म के होते हैं।
  • इन प्रश्नों की सबसे बड़ी दो चुनौतियाँ होती हैं-(1) दिमाग में जनरल स्टडीज की होने वाली घूसपैठ को रोकना तथा प्रश्नों की सूक्ष्मता को पकड़ना।

इन प्रश्नों को आप सही-सही हल कर सकें, यह आपकी केवल इस क्षमता पर निर्भर करता है कि आपने कितने मनोयोग से उस अंश को पढ़ा है और आपकी समझ कितनी सटीक है। जो प्रश्न पूछे जाते हैं, वे सीधे-सीधे नहीं होते। उन्हें आप बोध के स्तर पर ही पकड़ सकते हैं। बेहतर होगा कि इसे हम इस एक उदाहरण से जानने की कोशिश करें।

परिच्छेद

‘‘अपेक्षाकृत समृद्ध राज्यों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे कार्बन उत्सर्जन को कम करें और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में निवेश को प्रोत्साहित करें। ये वे राज्य हैं, जिनको बिजली उपलब्ध है, जिनका विकास अपेक्षाकृत तीव्र गति से हुआ है और जिनकी प्रति व्यक्ति आय अब उच्च है, जिस कारण वे भारत को पर्यावरण-अनुकूली बनाने का भार वहन करने हेतु सक्षम हुए हैं। दिल्ली, उदाहरण के लिए इस रूप में मदद कर सकती है कि वह छतों के ऊपर सौर पैनल के प्रयोग से अपने स्वयं के उपयोग की स्वच्छ बिजली उत्पादित करे या वह निर्धन राज्यों को उनके स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण करके भी मदद कर सकती है। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि राज्य विद्युत बोर्ड, जो वितरण परिपथ-जाल (डिस्टिब्यूशन नेटवर्क) के 95 भाग को नियंत्रित करते हैं, अत्यधिक गहरे घाटे में डूबे हुए हैं। ये घाटे आगे राज्य के सेवा-प्रदाताओं (युटिलिटीज़) को नवीकरणीय को अपनाने से हतोत्साहित करते हैं, क्योंकि नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना जीवाश्मी ईंधनों को अपनाने से अधिक महँगा है।’’
निम्नलिखित में से कौन-सी सर्वाधिक तार्किक और युक्तिसंगत पूर्वधारण उपर्युक्त परिच्छेद से बनाई जा सकती है?

a) अपेक्षाकृत समृद्ध राज्यों को नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादित करने और अपनाने में अग्रणी होना चाहिए।
b) निर्धन राज्यों को विद्युत के लिए सदा समृद्ध राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है।
c) राज्य विद्युत बोर्ड स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को अपनाकर अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार ला सकते हैं।
d) समृद्ध और निर्धन राज्यों के बीच अत्यधिक आर्थिक असमानता भारत में अधिक कार्बन उत्सर्जन का प्रमुख कारण है।

मैं इस बारे में अधिक विश्लेषण करने की जरूरत नहीं समझता। अंश को पढ़ने के बाद जब आप उत्तर देने के लिए विकल्पों को पढ़ते हैं, तो स्वाभाविक तौर पर आपके दिमाग में जो प्रतिक्रियाएँ होंगी, उन्हें आप स्वयं जानने और पकड़ने की कोशिश करें। आपको एहसास हो जाएगा कि यहाँ तथ्यों की भूमिका नहीं है। यहाँ भूमिका है बोध की, सतर्कतापूर्वक प्राप्त किए गए बोध की।

इस पेपर में कई प्रश्न तार्किक क्षमता वाले होते हैं। निश्चित रूप से वहाँ बोध की इतनी बड़ी भूमिका नहीं होती। लेकिन यदि आप प्रश्न को पढ़ने के बाद दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प को सीधे पकड़ने की कोशिश करें, तो बोध उसमें आपकी मदद कर सकता है।

मुख्य परीक्षा

यदि हम वैकल्पिक विषयों को छोड़ दें, तो मुख्य परीक्षा के जितने भी अन्य अनिवार्य पेपर्स होते हैं, उन सबमें अच्छे नम्बर लाने के लिए एक स्टूडेन्ट को अपने अन्दर इस बोध नाम के गुण को विकसित करना ही चाहिए। यह बोध किस तरीके से इस सबसे महत्वपूर्ण स्तर की परीक्षा में मदद करता है, इस बारे में निम्न तथ्य दिए जा रहे हैं।

  1. सामान्य अध्ययन के पहले जो तीन पेपर्स हैं, आप उनके प्रश्नों के स्वरूप को देखें। आपको एक ही प्रष्न के स्पष्ट रूप से दो भाग दिखाई दे जाएंगे। इसका पहले वाला भाग ज्ञान पर आधारित होता है तथा दूसरा भाग बोध पर आधारित। निश्चित रूप से अधिकांश प्रश्न के उत्तरार्द्ध को हल करने के लिए हमें जिस विश्लेषण क्षमता की जरूरत होती है, उसमें तथ्य अधिक उपयोगी होते हैं,लेकिन ऐसा सभी में नहीं होता। उदाहरण के तौर पर इस एक प्रश्न को देखा जा सकता है-
    प्रश्न – ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों में भागीदारी की प्रोन्नति करने में स्वावलंबन समूहों (SHG) के प्रवेश को सामाजिक, सांस्कृतिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। परीक्षण कीजिए।
    यह प्रश्न देखने में ऊपरी तौर पर काफी सरल और जाना-पहचाना-सा लगता है। इसकी तैयारी दो तरीके से हो सकती है। पहली तो यह कि इसके बारे में कहीं पढ़ा, देखा हो। या फिर यह कि हमारे पास इसका कुछ अनुभव हो। पढ़ने की सम्भावना की एक सीमा होती है। सामान्य अध्ययन का पाठ्यक्रम जितना विस्तृत है, और उस विस्तृत पाठ्यक्रमों के अन्दर से भी जितने प्रश्न बनते हैं, उनको देखते हुए ऐसा सोचना अव्यावहारिक ही होगा कि कोई भी स्टूडेन्ट अधिकांश प्रश्नों की पहले से ही तैयारी करेगा। उसे तो यहाँ तक लगता है कि यदि ठीक-ठाक तैयार किए गए टॉपिक्स में से 50 प्रतिशत भी परीक्षा में पूछ लिए गए, तो यही बड़े भाग्य की बात होगी। अधिकांश प्रश्नों कोे हमें अपनी समझ के आधार पर ही हल करना पड़ता है; यहाँ तक कि राजनीति शास्त्र से जुड़े प्रश्नों को भी। हाँ, जहाँ तक भूगोल, अर्थव्यवस्था और विदेशी सम्बन्धों वाले प्रश्नों का सवाल है, वे निश्चित रूप से तथ्यों की मांग करते हैं।
  2. आप रोजना न्यूज सुनते हैं। प्रतिदिन अखबारों में समाचार पढ़ते हैं। साथ ही उन पर सम्पादकीय टिप्पणियाँ और सम्पादकीय लेख भी देखते हैं। गाहे-बगाहे कुछ अच्छी बहसें भी सुनने को मिल जाती हैं। आप ये जो कुछ भी करते हैं, इससे आपकी क्षमताओं में दो प्रकार की वृद्धि होती रहती है। पहला यह कि जिन तथ्यों को आप नोट कर लेते हैं या रट लेते हैं, वे फैक्ट के रूप में आपके ज्ञान के खजाने में शामिल हो जाते हैं। ये विश्लेषण करने में आपकी मदद करते हैं।
    दूसरा लाभ बोध के स्तर पर होता है। इसके बारे में न तो आप अलग से कुछ करते हैं और न ही इसके होने का आपको पता चलता है। यह अपने-आप ही नैसर्गिक तौर पर आपकी सोच में रचता-बसता चला जाता है। अनेक तरह की पढ़ी हुई घटनाएं और उन घटनाओं के विश्लेषण आपके अन्दर एक ऐसी अन्तर्दृष्टि पैदा करते हैं, जिसे आप बोध के समकक्ष रख सकते हैं। यह बोध बहुत से प्रश्नों को हल करने में सीधे-सीधे आपके सहायक होते हैं।
  3. आपने महसूस किया होगा कि अधिकांश प्रश्नों में परीक्षक उस विषय पर आपकी अपनी राय जानना चाहता है। आपकी यह राय दो तरह की हो सकती है। एक तो वह, जो आपने कभी पढ़ी थी। उन्हें ही अपनी राय बना लें। दूसरे यह कि पढ़ी हुई इन रायों में आपकी अपनी अवलोकन, अपनी सोच और अपना बोध शामिल हो जाए। इससे आपका अपना जो राय बनेगी, वह दूसरों से थोड़ी अलग होगी। इससे आप काफी कुछ मौलिक भी बन जायेंगे। इस मौलिकता का जन्म चिन्तन-मनन और बोध के संगम से होता है।
  4. सामान्य अध्ययन का चौथा पेपर – यह मुझे सिविल सेवा परीक्षा का सबसे सरल, सबसे कठिन और सबसे मजेदार पेपर लगता है। आप शायद ‘सबसे सरल और सबसे कठिन’ शब्द को पढ़कर चौंक गए होंगे। लेकिन है यह ऐसा ही। यह सबसे सरल इसलिए है, क्योंकि इसके लिए कोई विशेष तैयारी करने की जरूरत नहीं पड़ती। यह सबसे कठिन भी इसलिए ही है, क्योंकि इसके लिए कोई विशेष तैयारी करने की जरूरत नहीं पड़ती। और तैयारी करने की जरूरत नहीं पड़ने की बात ही इस पेपर को सबसे मजेदार बना देती है।
    सन् 2013 की मुख्य परीक्षा से यह पेपर शामिल किया गया है। इस पेपर में तब से लेकर अब तक के प्राप्त अंक इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि इसमें स्टूडेन्टस् ने सामान्य अध्ययन के शेष उन तीनों पेपर्स से ज्यादा नम्बर प्राप्त किए हैं, जिनकी उन्होंने जी-जान से जुटकर तैयारी की थी। सच तो यही है कि सिविल सर्विस की जो सबसे ज्यादा तैयारी की जाती है, जिन्हें हम सबसे अधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण मानकर डरते हैं, वे ये तीन पेपर्स ही होते हैं। फिर विडम्बना यह देखिए कि इतना सब कुछ करने के बाद भी इन तीन पेपरों में प्राप्त नम्बर के औसत 85-90 से अधिक नहीं होते। वहीं उस चौथे पेपर में, जिसकी हम अब यहाँ चर्चा करने जा रहे हैं, औसत प्राप्तांक 100 के आसपास बैठता है। यहाँ तक देखने में आया है कि सिविल सर्विस में टॉप करने वाले स्टूडेन्टस् ने इसमें 135 नम्बर (54 प्रतिशत) तक हासिल किए हैं, जबकि शेष तीनों पेपर्स के उसके औसत 90 अंक (47.5 प्रतिशत) ही रहे।
    ऐसा आखिर कर कौन रहा है? निश्चित रूप से इसके पीछे एक सोचा-समझा उद्देश्य है। ऊपर कही गई बातों से दो प्रश्न अपने-आप खड़े होते हैं। पहला प्रश्न यह कि क्या जनरल स्टडीज के शुरू के तीनों पेपर्स में अधिक नम्बर नहीं लाए जा सकते? यदि लाए जा सकते हैं, तो उसका उपाय क्या है? दूसरे यह कि चौथे पेपर में यदि 100 नम्बर (40 प्रतिशत) आसानी से लाए जाते हैं, तो क्या इसी से संतोष कर लेना चाहिए? और यदि नही तो फिर अपने प्रतिशत में इजाफा करने के लिए क्या करें?
    हालांकि यहाँ कुल-मिलाकर सवाल तो चार हैं, लेकिन उनके उत्तर केवल दो हैं और ये दो ही चारों सवालों के जवाब देने में सक्षम हैं। हाँ, जनरल स्टडीज के शुरू के तीनों पेपर्स में अधिक नम्बर लाए जा सकते हैं। इसके औसत को 110 नम्बर तक पहुँचा देना बहुत मुश्किल नहीं है। ऐसा कैसे हो सकता है? इसका उत्तर है-बोध के द्वारा। सीधी-सी बात है कि जो स्टूडेन्ट इन पर जितनी मेहनत कर सकता है, उतनी करता ही है। आखिर कोई तो बात होगी कि टॉपर्स तक के औसत 90-95 से ऊपर नहीं पहुँच पाते? तो क्या हम यह मान ही लें कि इनमें इससे ज्यादा की गुंजाइश ही नहीं है? हालांकि यह ठीक है कि यदि सभी को अधिकतम इतने ही नम्बर मिल रहे हैं, तो आपका भी आय.ए.एस. बनने का सपना इतने ही नम्बर पा लेने से साकार हो जाएगा। लेकिन यदि हमें कोई ऐसा फार्मूला मिल जाए, जो हमारे इस सपने को अधिक सुनिश्चित कर सकता हो और हमें दूसरों से आगे खड़ा कर सकता हो, तो हमें उसे अपनाना चाहिए। यहाँ मैं आपको केवल इतना बताना चाहूँगा कि इसके बारे में सबसे बड़ा उपाय है अपने विषय का बोध प्राप्त करना तथा उसके बारे में कॉमन सेंस डव्हलप करना।
    जहाँ तक चौथे पेपर का सवाल है, फिर से वही उत्तर कि इसमें 40 प्रतिशत नम्बर पाने पर आप उस जोन में शामिल हो जाते हैं, जहाँ सफलता की सम्भावना बनने लगती है। लेकिन यहाँ अपको एक विशेष बात ध्यान में रखनी चाहिए। वह यह कि यदि प्रत्येक स्टूडेन्ट इस सीमा तक पहुँच रहा है, तो आपका पहुँचना भी कुछ विशेष मायने नहीं रखता। ऐसा करके तो आप उस भीड़ का ही हिस्सा बन रहे हैं। आपको इस भीड़ के आगे के कुछ लोगों में खड़ा होना पड़ेगा और इसके लिए यह पेपर आपकी काफी मदद कर सकता है।

ऐसा कैसे हो सकता है, इसकी चर्चा मैं अगले अंक में करूंगा।

NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.

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