सिविल सर्विस परीक्षा के लिए टाईम मैनेजमेंट-3

Afeias
05 Mar 2017
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पिछले अंक में मैंने अपनी तैयारी की बहुत मोटी-मोटी बातें एक कहानी के रूप में आपके सामने रखी थी। अब मैं इनमें से कुछ वे छोटे-छोटे सूत्र आपके सामने रखना चाहूंगा, जिन्हें आप अपने तरीके से उपयोग में ला सकते हैं।

1. निश्चित रूप से सुबह का समय पढ़ने के लिए सबसे आदर्श समय होता है। चारों ओर शांति, इत्मीनान, स्फूर्त शरीर, स्फूर्त मस्तिष्क, और सच पूछिए तो दिमाग की पूरी स्पष्टता भी। इसका अपना एक विज्ञान है, जिसकी चर्चा करना यहाँ मैं जरूरी नहीं समझ रहा हूँ। लेकिन एक बात मैं जरूर कहना चाहूंगा। वह यह कि यदि आप सुबह एक-डेढ़ घंटे भी पढ़ाई कर लेते हैं, तो आप महसूस करेंगे कि दिन भर आपका मन खुश रहता है। वह यह सोचकर खुश रहता है कि मैंने अपने सबसे जरूरी काम में से एक काम को निपटा लिया है। अन्यथा दिमाग में बेवजह का एक तनाव, एक चिन्ता, एक दबाव सा बना रहता है। और अगर यह बना हुआ है, तो पक्का मानें कि हम जो दूसरे काम कर रहे हैं, उस पर इस मानसिकता का नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा ही। इसका नतीजा यह होगा कि दूसरे कामों में जो गुणवत्ता आनी चाहिए, वह नहीं आएगी। साथ ही वे काम जितने जल्दी होने चाहिए, उसकी अपेक्षा वे ज्यादा वक्त लेंगे। यानी कि हम एक बार फिर से समय को अपने हाथ से फिसलने का मौका दे रहे हैं। आपको विश्वास न हो तो एक बार दो-चार दिनों के लिए इसे करके देख लें। यदि ठीक लगता है, तो करें और यदि नहीं लगता है, तो छोड़ दें।

2. मेरे साथ एक दिक्कत यह थी कि मैं रात में बिल्कुल भी नहीं पढ़ पाता था और आज भी नहीं पढ़ पाता हूँ। रात के भोजन के बाद पढ़ाई करना मेरे लिए एवरेस्ट की चढ़ाई करने से कम नहीं है। निश्चित रूप से तब मैं जल्दी सो जाता था। और जहाँ तक सुबह उठने का संबंध है, वह रात में सोने से जुड़ा हुआ है। आपके बारे में आप कह सकते हैं कि ‘‘मैं रात में जल्दी नहीं सो सकता’’। क्यों नहीं सो सकता, इसके पीछे बहुत से कारण होंगे, जिन्हें मैं आपकी दृष्टि से सही भी मानता हूँ। लेकिन मुझे लगता है कि यदि आप अपने इन वाजिब कारणों से ही अपने अभी तक के सारे निर्णयों को सही ठहराते रहेंगे, तो एक दिन ऐसा भी आएगा, जब आपको अपनी असफलता के कारणों को भी वाजिब ठहराना पड़ेगा। अन्ततः आपको समय तो निकालना ही होगा। हाँ, यह जरूर है कि अभी आपकी देरी से सोकर देरी से उठने की जो आदत पड़ गई है, उसे तोड़ने में थोड़ा वक्त तो लगेगा। यदि आप ऐसा कर सके, तो यह एक आदर्श स्थिति होगी। और यदि ऐसा नहीं कर सके, तो इसका मतलब यह नहीं कि अब कुछ हो ही नहीं सकता। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। मैं तो केवल अपने अनुभव की बात कह रहा हूँ।

3. मेरी ऊपर की कहानी से जो दूसरा सूत्र निकलकर सामने आता है, वह यह कि हम किस प्रकार अपने उस समय का उपयोग कर सकते हैं, जो अन्यथा ही बेकार चला जाता है। जैसे शहरों में रहने वाले स्टूडेन्टस् का काफी समय यात्रा करने में लगता है, यदि वे बाइक से आ-जा नहीं रहे हैं तो। मुझे लगता है कि इस समय में पढ़ाई की जा सकती है। मैंने की है। आप यहाँ यह न सोचें कि उस हल्ले-गुल्ले में ऐसा कैसे संभव है। ज्यादातर स्टूडेन्टस् के दिमाग में सिविल सर्विस की पढ़ाई करने का मतलब होता है-मेडीटेशन करना। यह फालतू की बात है। खुद को इस गलतफहमी से उबारें। और यदि मेडीटेशन है भी, तो याद रखें कि शोरगुल से भरे चैराहे पर भी बैठकर मेडीटेशन किया जा सकता है। और सही मायने में यही सच्चा मेडीटेशन भी है। हिमालय की गुफा में घुसकर ध्यान करना शायद सबसे आसान काम है। यदि आपको पढ़ने में मजा आ रहा है, तो कोई भी स्थिति आपको इस मजे से रोक नहीं सकती। आप ऐसा कर सकते हैं। हाँ, यह अवश्य है कि ऐसे मौकों के लिए आप अपेक्षाकृत थोड़ी हल्की-फुल्की चीजें ले लें। लेकिन यदि आपके अन्दर तैयारी करने का संकल्प है और यह संकल्प सच्चा है, तो आप ऐसा कर सकते हैं। मैं यह उपदेश देने वाली बात नहीं लिख रहा हूँ। यह सच्चाई है और जिन लोगों ने भी कुछ किया है, इसी तरीके से किया है।

4. तीसरा है, नौकरी के दौरान का खाली वक्त। मुझे नहीं लगता कि कोई भी नौकरी ऐसी होती है, जहाँ आॅफिस में जाने के बाद साँस लेने की भी फुर्सत न मिलती हो, हालांकि सभी लोग ऐसा ही दावा करते हैं। इस बारे में मैं अपने काॅलेज मे रहने के दौरान का अनुभव लिख चुका हूँ। आप भी ऐसा कर सकते हैं। आपको यह जानकर शायद विश्वास नहीं होगा कि आइंस्टिन ने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण वे तीन शोधपत्र; जिन्होंने उनको वैज्ञानिक के रूप में स्थापित किया था, तब लिखे थे, जब वे मौसम विभाग के कार्यालय में एक बहुत सामान्य से पद पर काम कर रहे थे। उन्हें जब भी थोड़ा सा वक्त मिलता था, अपने इस काम में जुट जाते थे।
यहाँ आपके दिमाग में एक नैतिकवादी प्रश्न खड़ा हो सकता है, जैसा कि लोग इस वक्त का इस्तेमाल करने के तनाव से बचने के लिए करते भी हैं। वे यह तर्क देते हैं कि क्या हमें आॅफिस के समय का इस्तेमाल अपने काम के लिए करना चाहिए? इसका सीधा-साधा वैधानिक उत्तर है, ‘नहीं’। लेकिन इसका एक अन्य व्यावहारिक उत्तर भी है। वह यह कि यदि इस दौरान आपके पास कोई अन्य काम नहीं है तब आप आखिर में उस समय का कर क्या रहें हैं सिवाय उसे बर्बाद करने के। यह जरूर है कि आप आॅफिस के काम की कीमत पर अपना काम न करें। उसे ही प्राथमिकता दें। लेकिन यदि आप खाली समय का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो मुझे नहीं लगता कि आप कोइ बहुत बड़ा अपराध कर रहे हैं। इसे मैं आपके ऊपर छोड़ता हूँ कि आप इसे किस रूप में लेते हैं।

5. हम चाहें किसी भी नौकरी में हों, कुछ छुट्टियां तो मिलती ही हैं। साल में 54 रविवार आते हैं। यदि आप फाइव डेज़ वीक में काम कर रहे हैं, तो इसमें 54 दिन और जुड़ जाते हैं। साल में दस-पन्द्रह त्यौहार वे आते हैं, जिनमें छुट्टी रहती है। दस-पन्द्रह दिन की छुट्टियां लेने का आपको अलग से अधिकार होता है। कुछ छुट्टियां और भी इधर-उधर की हो जाती हैं। क्या कभी आपने इन छुट्टियों के उपयोग के बारे में सोचा है?
ये छुट्टियां सच पूछिए तो फिलहाल आपके लिए एक ऐसे फ्री हिट की तरह हैं कि आप निश्चिंत होकर अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करते हुए छक्का लगा सकते हैं। ये आपके लिए उस वरदान के समान हैं, जिस पर पूरी तरीके से आपका अपना नियंत्रण है। इन छुट्टियों का अधिकतम इस्तेमाल करके आप अपनी पढ़ाई के औसत को बेहतर बना सकते हैं, बशर्ते कि इनका उपयोग अन्य दिनों की तरह न करें। लेकिन ऐसा तब हो सकेगा, जब आप छुट्टी के इन दिनों को एक अमूल्य उपहार की तरह लेंगे।
मैं जानता हूँ कि मेरी इस बात के खिलाफ आपके दिमाग में बहुत से तर्क उठ रहे होंगे। उदाहरण के लिए यह तर्क कि इस दिन बहुत से अन्य काम निपटाने होते हैं। यह तर्क कि आराम करने के लिए एक ही दिन तो मिलता है। यह भी तर्क कि दिमाग को भी तो कुछ रेस्ट चाहिए। और भी न जाने क्या-क्या तर्क। मैं आपके तर्कों केे प्रति असहमति व्यक्त नहीं कर रहा हूँ। वे सही हैं। लेकिन मेरा यहाँ सवाल केवल यह है कि फिलहाल आपकी प्राथमिकता क्या होनी चाहिए? यदि आपने कोई बड़ा काम करने का फैसला लिया है, तो क्या आपके सोचने-समझने का तरीका भी बड़ा नहीं होना चाहिए? यदि आप भी दूसरों की तरह ही सोचते रहेंगे, तो दूसरों की ही तरह बने भी रहेंगे। फिलहाल तो ये छुट्टियां आपके लिए अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक काम करने का एक अवसर होना चाहिए। जहाँ तक थकान मिटाने और रिलेक्स करने की बात है, मुझे लगता है कि उसके लिए रात ही पर्याप्त होती है। यदि उसके बाद भी जरूरत महसूस हो रही है, तो मानकर चलें कि आपके संकल्प में कुछ न कुछ खामी रह गई है।

6. कोई चाहे किसी भी नौकरी में क्यों न हो, अलग से कुछ छुट्टियां लेने की गंुजाइश हमेशा बनी रहती है, भले ही उन छुट्टियों के बदले में वेतन न मिले। मैं समझ सकता हूँ कि वेतन न मिलने की शर्त पर छुट्टी लेना आर्थिक जरूरतों को देखते हुए आसान नहीं भी हो सकता। लेकिन ज्यादातर मामलों में मैंने इसे एक मनोवैज्ञानिक समस्या के रूप में ही पाया है। लोगों को यह लगता है कि इससे उनका नुकसान हो जाएगा। लेकिन सीधी-सी बात है कि यदि आपकी जरूरत है, तो फिर इस नुकसान से डरना कैसा। वैसे यदि सच पूछें तो मैं कहना चाहूंगा कि यदि आप अपने शेष समय का सही इस्तेमाल कर रहे हों, तो अलग से छुट्टी लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। हाँ, परीक्षा के समय की बात अलग है।
यहाँ मैं आपसे अपने उन दिनों की चर्चा करना चाहूंगा, जब मैं एक प्रायवेट स्टूडेन्ट के रूप में अपने ग्रेज्यूएशन की तैयारी कर रहा था। मैंने यह नियम बना लिया था कि परीक्षा से एक महीना पहले या तो मैं अपने सारे काम बन्द कर देता था या फिर अपने काम अपने छोटे भाई को सौंप देता था। फिर इस एक महीने का पूरी तरह से इस्तेमाल परीक्षा की तैयारी के लिए करता था। मेरे लिए यह एक महीना बहुत जबर्दस्त उत्पादक होता था। पीछे की सारी कमियां यहाँ आकर दूर हो जाती थीं। ऐसा मैंने एकाध साल नहीं, बल्कि ंतब तक किया, जब तक कि मेरी काॅलेज की पढ़ाई पूरी नहीं हो गई। यदि आप चाहें, तो आप भी ऐसा कर सकते हैं। वैसे सामान्य तौर पर मैं यहाँ आपसे इस सिद्धान्त की भी बात करना चाहूँगा कि ‘‘किसी एक बड़ी चीज को पाने के लिए बहुत सी छोटी चीजों को छोड़ना ही पड़ता है।’’ हम सारी चीजों को एक साथ लेकर नहीं चल सकते। इसलिए यदि सच में आपको छुट्टियों की जरूरत महसूस हो रही हो, तो यह सबसे सही वक्त है, जब आपको यह कर लेना चाहिए।

7. यदि हम सभी अपने रोजाना के समय की जाँच-परख उनकी उपयोगिता के हिसाब से करें, तो पाएंगे कि लगभग-लगभग आधा समय ही सही रूप में इस्तेमाल होता है। यहाँ महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इस आधे समय में भी आधा समय उन कामों में निकल जाता है, जिनकी या तो हमें जरूरत ही नहीं है और यदि जरूरत है भी, तो अभी इतनी ज्यादा जरूरत नहीं है कि सिविल सर्विस की तैयारी को छोड़कर उसमें लगें। समय प्रबन्धन का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त यह होता है कि हम अपनी प्राथमिकताएं तय करें। बेहतर होगा कि आप इसके लिए अपनी एक लिस्ट बना लें, जिसमें अपने दिन भर के होने वाले कामों को नोट कर लें। फिर आप उनमें से उन कामों को काटते चले जाएं, जिनके बिना फिलहाल आपका काम चल सकता है। यहाँ आप ऐसा बिल्कुल न सोचें कि इसके बिना तो काम चल ही नहीं सकता। एक बार छोड़कर देखें। बहुत सी चीजें हमें इसलिए छोड़ने में दिक्कत होती हैं, क्योंकि वे हमारी आदत का हिस्सा बन चुकी हैं। कुछ तो बदलना ही पड़ेगा। उसके लिए अभी सबसे सही समय है।
साथ ही आप यह भी कर सकते हैं कि ऐसे बहुत से कामों को दूसरों के लिए छोड़ दें, जो वे कर सकते हैं। ऐसे बहुत से लोग आपके साथ हैं। आपको देखना होगा कि आप कैसे उनसे मदद लेकर अपने समय को बचा सकते हैं। यदि मदद लेने में कुछ पैसा भी खर्च करना पड़ता हो, तो फिलहाल पैसे बचाने के मोह से अपने आपको बचाना बेहतर होगा। पैसा होता ही इसलिए है कि इससे आपकी शक्ति बढ़ सके और आपकी क्षमता भी। पैसा बचाने के लिए अभी बहुत उम्र बाकी है। यहाँ उसे एक साधन मात्र समझकर उसका उपयोग करें।
जहाँ तक मुझे लगता है अभी आपकी प्राथमिकता में सिर्फ दो काम होने चाहिए-पहला आर्थिक सक्षमता, जिसे आप अपना रोजगार या नौकरी कुछ भी कह सकते हैं। और दूसरा है सिविल सर्विस की तैयारी करना। अन्य दूसरे जो भी काम इनमें बाधा पैदा कर रहे हों, बेहतर होगा कि कुछ समय के लिए उन सबसे टा-टा कर लें। घबड़ाइए नहीं। इससे आप कुछ खोएंगे नहीं। सफल होने के बाद खोई हुई ये सारी चीजें आपको वापस मिल जाएंगी और कई-कई गुना अधिक होकर। और यदि सच में वे खो भी जातीं हैं,आप असफल भी हो जाते हैं, और वे खो गई चीजें वापस नहीं आती हैं, तो मानकर चलिए कि वे आपकी थी ही नहीं। अन्यथा वापस आ जातीं। इसलिए फिलहाल आपको अपने जरूरी कामों की लिस्ट छोटी करते-करते उसे केवल दो कामों तक पहुँचा दें।

8. यदि आप मेरी बात को हँसी में न उड़ाएं, तो यहाँ मैं यह भी कहना चाहूँगा कि कोई भी बड़ा काम साधना की मांग करता है। सिविल सर्विस की तैयारी एक बड़ा काम है। इसलिए फिलहाल आपको साधक ही बनना होगा। आपको स्वयं को साधना होगा। स्वयं को साधने का मतलब यह है कि आपको अपनी उन सारी छोटी-छोटी इच्छाओं को खत्म करना होगा, जो बेवजह अपनी जिद्द से आपके समय के खजाने के बहुत से हिस्सों को बेवजह खर्च करा देते हैं, और मिलता कुछ नहीं है सिवाय पछताने के। एक प्रकार से आपको एक बहुत ही सरल और सादगीपूर्ण जीवन को अपना लेना चाहिए। मैं कोई साधू बनने की बात नहीं कह रहा हूँ। यहाँ मेरा मतलब सादा जीवन उच्च विचार वाली जीवन-प्रणाली से भी नहीं है। मेरा मतलब सिर्फ इतना है कि जीवन की सादगी हमें उन बहुत सी फालतू की जटिलताओं से बचा लेती है, जो बेकार में हमारे समय को नष्ट करती रहती हैं। पहले तो हम जटिलताएं पैदा करते हैं और फिर उन जटिलताओं को सुलझाने में समय लगाते हैं। मजेदार बात यह है कि वे जटिलताएं सुलने के बजाए और उलझती जाती हैं। इस प्रकार हम उस जाल में फँसते चले जाते हैं। आखिर इन सबके लिए समय की जरूरत तो पड़ती ही है। आप अपने जीवन को जितना सरल बना सकेंगे, सही मायने में अपने लिए उतना ही अधिक समय बचा सकेंगे।

9. बहुत से नौजवान साथियों को एक यह प्रश्न होता है कि कितने घंटे सोना चाहिए। इसका सीधा-सा उत्तर तो यही है कि जितने घंटे में आपके लगे कि आपकी नींद पूरी हो गई है। या फिर उठने के बाद आपको फ्रेश महसूस हो और फिर से नींद के झटके न आयें। लेकिन यहाँ एक बहुत बड़ा पेंच है। पेंच यह है कि यदि आपको आठ घंटे सोने के बाद ऐसा महसूस होता है, तो क्या आपको आठ घंटे सोने की इजाजत है, तब जबकि आप सिविल सर्विस की तैयार कर रहे हैं और साथ में नौकरी भी कर रहे हैं। बिल्कुल भी नहीं। सच पूछिए तो बिल्कुल भी नहीं। यदि आप मुझे इजाजत दें, ंतो मैं इसे एक प्रकार का अपराध ही कहना चाहूँगा। सामान्य तौर पर भी आपको आठ घंटे सोने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। न्यूनतम छः घंटे और अधिकतम सात घंटे, बस इतना ही, इससे अधिक नहीं। वैज्ञानिक रूप से भी छः घंटे की नींद पर्याप्त होती है। इससे भी बड़ी बात कि यदि आप दिन भर काम में लगे हुए हैं, तो बिस्तर में जाने से पहले तक आपका दिमाग और आपको शरीर इतना थक चुका होगा कि बिस्तर पर जाते ही नींद में डूब जाएगा और फिर इतनी गहरी नींद में डूबता चला जाएगा कि जब छः घंटे के बाद आपकी आँख खुलेगी, तो आपकी नींद पूरी हो चुकी होगी। अगर अब भी आपको नींद आ रही है, तो यह मानकर चलें कि यह मनोवैज्ञानिक नींद है, शारीरिक नहीं। आपको आदत पड़ चुकी है और उसी आदत के तहत आपको ऐसा महसूस हो रहा है कि ‘‘मुझे थोड़ा और सो लेना चाहिए।’’ और जैसे ही आप थोड़ा सोते हैं, वह थोड़ा बहुत हो जाता है। मैं सतर्क करूंगा कि दिमाग की इस चाल को समझिए, कम से कम तब तक तो समझिए ही, जब तक कि आप सिविल सर्विस की तैयारी करने का इरादा पाले हुए हैं।

10. मुझे ऐसा लगता है कि किसी भी ऐसे व्यक्ति के पास, जो थोड़े भी महत्वपूर्ण कामों में लगा हुआ है, और जिसके लिए समय की बड़ी उपयोगिता है, दिन भर का एक टाइमटेबल होना ही चाहिए। मैं ऐसा करता था। आज भी करता हूँ। हालांकि लिखित टाइमटेबल न तो उस समय था और न तो आज ही है, लेकिन मेरे दिमाग में अपने दिन भर की योजना बनी रहती है। उठने का टाइम लगभग-लगभग निश्चित रहता है। दिन भर की गतिविधियां निश्चित रहती हैं और मुझे अच्छी तरह मालूम होता है कि मुझे कब-कब क्या-क्या करना है। आप शायद मेरी इस आदत को जानकर हँसेंगे कि यदि मुझे सुबह उठने के बाद यह मालूम न हो कि मुझे आज क्या करना है या कि मुझे यह मालूम हो कि आज करने केे लिए कुछ भी नहीं है, तो मन इतना बैचेन हो उठता है कि ‘‘अरे बाप रे, तो आज का दिन कटेगा कैसे।’’ मैं वर्कोंहलिक नहीं हूँ। लेकिन इतना जरूर है कि मैं चाहता हूँ कि मैं दिन भर कुछ न कुछ करूं ही। मुझे समझ में नहीं आता कि यदि मैं कुछ नहीं करूंगा, तो फिर खाली बैठना संभव हो कैसे पाएगा। भले ही मैं पढूं या लिखूं या कुछ नही ंतो सोचूं ही, लेकिन कुछ न कुछ किए बिना समय कैसे कट सकता है।
मैं यहाँ समय प्रबंधन के बारे में उन लोगों के लिए बात कर रहा हूँ, जो सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे हैं। तैयारी करने वाला यह वर्ग उन लोगों का है, जिन्हें समय को लेकर समस्या है। इसलिए उन लोगों के लिए यह कुछ अनिवार्य सा हो जाता है कि वे अपने दिन भर की गतिविधियों का एक मोटा-मोटा खाका तैयार कर लें। और फिर पूरे अनुशासन के साथ उसका पालन भी करें। हाँ, यह बात जरूर है कि टाइम की उस पूरी श्रृंखला में बीच-बीच में कुछ इस तरह के गैप देकर चलें कि यदि पहले वाले काम को पूरा होने में थोड़ा अधिक वक्त लग गया, तो उसकी भरपाई उस गैप में हो जाए। यानी कि जो आपका टाइम टेबल हो, वह अधिक व्यावहारिक हो। इतना सघन न हो कि उसे निभाना आपको कठिन मालूम पड़ने लगे। आप अपने दिमाग पर दबाव और तनाव महसूस करने लगें। या आप कुछ दिनों तक तो निभा लें, लेकिन लम्बे समय तक उसके साथ चलना आपके लिए संभव न हो पाये। यह ऐसा हो, जिसे आप रोज पूरा कर सकें और पूरा करने का आत्मसंतोष भी हासिल कर सकें।

11. आमतौर पर यह माना जाता है कि एक आदमी एक दिन में आठ-दस घंटे काम कर सकता है। यह एक लम्बी योजना के तहत तो ठीक है, लेकिन साथ ही मैं यह भी मानकर चलता हूं कि जरूरत पड़ने पर एक आदमी एक दिन में बारह-बारह, पन्द्रह-पन्द्रह घंटे भी काम कर सकता है। आप भी करते होंगे। यदि यह सच है, तो समय प्रबंधन की एक संभावना यहाँ यह दिखाई देती है कि यदि आप चार-पांच दिन दस-पन्द्रह दिन बारह-बारह, पन्द्रह-पन्द्रह घंटे काम कर सकते हैं, तो क्या इन्ही दिनों की संख्या को लम्बे समय तक के लिए नहीं बढ़ाया जा सकता? क्या आप ऐसा एक महीने के लिए नहीं कर सकते, छः महीने के लिए नहीं कर सकते या एक साल के लिए नहीं कर सकते? यदि कुछ दिनों के लिए किया जा सकता है, तो मुझे लगता है कि उसे काफी दिनों के लिए भी किया जा सकता है। मैं प्रकृति के इस सिद्धांत का समर्थक हूँ कि जो घटना एक बार घट सकती है, वह दुबारा भी घट सकती है और जो दुबारा भी घट सकती है, वह कई-कई बार भी घट सकती है।
इसे आप इस रूप में लें। आप आमतौर पर रोजाना दस घंटे काम करते हैं। एक महीने में कुछ दिन ऐसे निर्धारित कर लें, लगातार नहीं बल्कि बीच-बीच में गैप देकर कि मैं इन दिनों तेरह-तेरह घंटे काम करूंगा। यदि आप महीने में सात-आठ दिन भी तेरह-तेरह घंटे काम कर लेंगे, तो आप पाएंगे कि एक महीने में आपने बीस-पच्चीस घंटे कमा लिए हैं और ये बीस-पच्चीस घंटे किसी भी मायने में कम नहीं होंगे।
12. हम सभी मनुष्य हैं और मनुष्य होने के नाते हम सबकी बहुत सी कमजोरियां होती हैं। इन कमजोरियों में कुछ नैसर्गिक रूप से शारीरिक कमजोरियां होती हैं, कुछ मानसिक कमजोरियां होती हैं, तो कुछ हम अपनी आदतों से लाचार होते हैं। कुछ कमजोरियां हमारी इच्छाएं पैदा कर देती हैं। कुछ तो ऐसी भी होती हैं, जो हमारी अपनी उम्र से पैदा होती हैं। यह जो आपका वक्त है, यह इन कमजोरियों का शिकार होने का वक्त नहीं है। बल्कि सच पूछिए तो यह जो वक्त है, वह इन कमजोरियों से उबरने का वक्त है। यहाँ तक कि इन कमजोरियों को अपनी ताकत में बदलने का वक्त है।
आपको मजबूती दिखानी होगी। आपको बहुत निर्मम होकर अपना मूल्यांकन करना होगा। फिर अपनी एक-एक कमजोरियों को अच्छी तरीके से जांच-परखकर उनसे मुक्ति पाने के उपाय सोचने होंगे। उन उपायों को लागू करके उनसे मुक्ति पानी होगी। इससे आपको तत्काल दो फायदे होंगे। पहला तो यह कि मानसिक रूप से आप मजबूत होते जाएंगे, जो आपके व्यक्तित्व का एक सुदृढ़ भाग होगा। सिविल सर्विस के अंतिम चरण में इसकी बहुत जरूरत होगी। इस जरूरत को आप पन्द्रह दिन या एक महीने की किसी भी तरह की ट्रेनिंग से पूरा नहीं कर सकते। आपको दूसरा तत्काल लाभ यह होगा कि आपका समय बचने लगेगा। हमारा समय सिर्फ काम करने से ही नष्ट नहीं होता है, फालतू केे सोचने से भी नष्ट होता है। आप देखेंगे कि ये जो फालतू के विचार आपके दिमाग में लगातार आ-आकर आपको कमजोर कर रहे थे, विचलित कर रहे थे, डरा रहे थे, लालच दिखा रहे थे, अब धीरे-धीरे उन्होंने आना बन्द कर दिया है। चूंकि अब वे आपके दिमाग के स्पेस को कब्जिया नहीं रहे हैं, इसलिए आप एक अलग ही तरह के समय का एहसास करेंगे। शायद यह पहली बार होगा कि आपको लगेगा कि समय ऐसा भी होता है। यह वह समय होगा, जो सबसे अधिक मूल्यवान होगा, सबसे अधिक उत्पादक होगा, सबसे अधिक गुणवत्ताओं से भरा हुआ होगा। चूंकि अभी जो आपके पास समय है, उसका तालमेल सीधे-सीधे आपकी अपनी मानसिक स्थिति से है, इसलिए इस दौरान आप जो कुछ करेंगे, वह सबसे बेहतर तरीके से होगा और सबसे कम समय में भी। सुबह-सुबह महत्वपूर्ण कामों को निपटा लेने की जो बात मैंने शुरू में कही थी, दरअसल उसी बात को यहाँ एक अलग तरीके से आपके सामने रख रहा हूँ।

NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.

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