सिविल सर्विस की तैयारी के लिए टाइम मैनेजमेंट-1
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आय.ए.एस. की तैयारी के लिए मेरे पास जितने भी मेल आते हैं, उनमें दो तरह की समायाएं के बारे में सबसे ज्यादा पूछा जाता है। पहला यह कि ‘सर, मुझे तैयारी के लिए समय बिल्कुल नहीं मिल पाता’। दूसरा यह कि ‘उत्तर कैसे लिखना चाहिए।’ इनमें सबसे बड़ी संख्या समय की समस्या के बारे में होती है। जहाँ तक उत्तर कैसे लिखना चाहिए, का सवाल है, इसके बारे में मैंने अपनी पुस्तक ‘आप आय.ए.एस. कैसे बनेंगे’ में काफी लिखा है। हाँ, समय की समस्या के बारे मैंने जरूर उसमें अलग से कोई चर्चा नहीं की है, क्योंकि मुझे लग ही नहीं रहा था कि यह भी कोई समस्या हो सकती है। वैसे तो मैं अब भी यही मानता हूँ कि यह कोई समस्या है ही नहीं। लेकिन चूँकि लगातार इसके समाधान के बारे में इतना अधिक पूछा जा रहा है, तो मेरे मानने, न मानने का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
मित्रो, मुझे यह कहने के लिए माफ कर दीजिए कि आपके दिमाग में यदि यह बात चल रही है कि ‘‘मेरे पास समय नहीं है’’ तो यह महज आपका भ्रम है, एक मिथक है और आपकी अपनी रक्षा के लिए तैयार की गई एक झूठी ढाल है। हालांकि यह बात थोड़ी कड़वी जरूर है और ऊपरी तौर पर सही भी मालूम नहीं पड़ती। लेकिन है पूरी तरह सही ही।
समय के बारे में मेरी पहली सलाह यह है कि आप इसके सच से रुबरु होइए। अपनी दीवारों से बाहर निकलकर लोगों को देखिए और उनसे अपनी तुलना कीजिए। आखिर दूसरे लोग; जो इतने अधिक काम कर रहे हैं, कई-कई तरह के काम कर रहे हैं, आखिर कैसे कर पा रहे हैं? क्या उनके एक दिन की लम्बाई आपकी एक दिन की लम्बाई से अधिक है? यदि ऐसा नहीं है, तो फिर ऐसा हो क्यों रहा है कि वे कई-कई काम कर रहे हैं और आपसे केवल दो काम भी नहीं सध पा रहे हैं? जब आप इस पर विचार करने लगेंगे, तो कम से कम यह सच तो आपकी पकड़ में आ जाएगा कि ‘‘नहीं, समस्या समय के होने या नहीं होने की नहीं है बल्कि कुछ और ही है।’’ अब हम इस ‘और कुछ है’ को जानने की ओर चलते हैं।
आप उन स्टूडेन्टस् के जीवन-वृन्तातों से गुजरे ही होंगे, जिन्होंने यह परीक्षा क्वालीफाई की है। यदि आपने ऐसा नहीं किया है, तो मेरी राय है कि आपको ऐसा करना चाहिए। आप यह पढ़कर चकित रह जाएंगे कि जितने भी नौजवान इस परीक्षा में सेलेक्ट होते रहे हैं, उनमें लगभग तीन-चौथाई प्रतिशत उनका है, जो पहले से ही कहीं न कहीं नौकरी में थे। तो यहाँ प्रश्न है कि वे ऐसा कैसे कर पाए? क्या वे झूठ बोल रहे हैं कि वे नौकरी में हैं या क्या उनके लिए आकाश में कोई दूसरा सूरज उदित होता है? दोनों के उत्तर ‘नहीं’ में हैं। तो वही प्रश्न फिर से खड़ा होता है कि ’’वे ऐसा कर कैसे पाए?’’
मित्रो, मैं यह तो नहीं जानता कि वे ऐसा कर कैसे पाए, लेकिन मैं यह जरूर जानता हूँ कि ऐसा किया जा सकता है। बल्कि इससे भी कहीं अधिक यह कि ऐसा ही किया जाना चाहिए। हाँ, इसके बारे में जो आधारभूत बातें होती हैं, वह सबकी लगभग एक जैसी ही होती हैं और मैं यहाँ उन्हीं आधारभूत बातों की चर्चा करने जा रहा हूँ।
समय को लेकर जितनी भी समस्याएँ मेरे सामने आई हैं,उनमें मुख्यतः तीन तरह के स्टूडेन्टस् रहे हैं।
पहली तरह में वे हैं, जो पहले से ही सरकारी या प्रायवेट नौकरी कर रहे हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जो खुद का ही काम कर रहे हैं। कुल-मिलाकर यह ऐसे लोगों का वर्ग है, जो पहले से ही रोजगार में है। लेकिन अब एक बेहतर रोजगार पाना चाह रहा है।
इन्हंे सबसे बड़ी समस्या यह लगती है कि वे किस प्रकार अपने अभी के समय के साथ आय.ए.एस. की तैयारी करने के लिए आवष्यक समय का तालमेल बैठाएं। इनका कहना होता है कि ‘‘हमारा पूरा दिन नौकरी में निकल जाता है। वहाँ दम मारने की भी फुर्सत नहीं मिलती। लौटकर जब घर आते हैं, तो इतनी बुरी तरह से थके होते हैं कि पढ़ने का मन ही नहीं करता। ऐसे में हम क्या करें?’’
दूसरे वर्ग में ऐसे स्टूडेन्टस् हैं, जो काम तो पढ़ाई का ही कर रहे हैं, लेकिन समय का संकट बना हुआ है। उनकी मुश्किल यह है कि वे एक ही समय में दो प्रकार की पढ़ाई कर रहे हैं-एक कॉलेज की और दूसरी आय.ए.एस. की। इन्हीं में हम कॉलेज के स्थान पर अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं संबंधी पढ़ाई को भी शामिल कर लेते हैं।
इनकी समस्या थोड़ी विचित्र किस्म की है। इनकी शिकायत यह है कि अखबार पढ़ने में ही दो-तीन घंटे लग जाते हैं। फिर कॉलेज जाओ। फिर कॉलेज की परीक्षा की तैयारी। ऐसे में भला आय.ए.एस. की तैयारी के लिए समय कहाँ से निकाला जाये।
तीसरा वर्ग विचित्र लोगों का वर्ग है। यह कुछ नहीं कर रहा है, आय.ए.एस. की तैयारी करने के अलावा। मजेदार बात यह है कि इनसे यह एक ही काम नहीं सध रहा। ये कहते हैं कि ‘‘कोर्स इतना ज्यादा है कि समय कम पड़ जाता है। पूरा अखबार पढ़ो। कई-कई अखबार पढ़ो। फिर उससे नोटस् बनाओ। फिर जनरल स्टड़ीज की दुनिया भर की किताबें। इसके बाद आप्शनल सब्जेक्ट। आप्शनल पेपर में भी एक-एक टॉपिक पर कई-कई लेखकों की किताबें पढ़े बिना काम नहीं चल सकता। ऊपर से रेडियो, टी.वी. की न्यूज भी सुनो। ‘योजना’ और ‘कुरुक्षेत्र’ के साथ-साथ कुछ अन्य पत्रिकाएँ भी पढ़ो। टी.वी.चैनल्स पर कुछ डिस्कशनंस भी सुनो। अपना ग्रूप बनाकर डिस्कशन करो। उत्तर लिखने की ‘प्रेक्टिस’ करो। तथा और भी न जाने क्या-क्या करो। हम आदमी हैं या टाइम मशीन।’’
अब मेरा आपसे एक मूलभूत प्रश्न है। प्रश्न यह कि यदि नौकरी करने वाला अपनी नौकरी छोड़कर सिर्फ आय.ए.एस. की तैयारी करने लगे या फिर कॉलेज की भी पढ़ाई करने वाला स्टूडेन्ट अपने-आपको पूरी तरह आय.ए.एस. की ही तैयारी में लगा दे, तो क्या समय से संबंधित उसकी समस्या समाप्त हो जाएगी? इसका उत्तर देते समय ध्यान दीजिए कि इन समस्याओं से जूझने वाला तीसरा वर्ग पूरी तरह इसी काम में लगा हुआ है। लेकिन वह समय की समस्या से मुक्त नहीं है। क्या आपको नहीं लगता कि सच में मामला उलझा हुआ है। जिसके पास समय नहीं है, उसके पास तो सच में नहीं है। हास्यास्पद बात यह है कि जिसके पास यह है, उसे भी लगता है कि उसके पास यह नहीं है। मैं यहाँ बताना चाहूँगा कि यदि एक दिन को चौबीस घंटे की बजाए उलटकर 42 घंटे का कर दिया जाए, तब भी समय की समस्या उतनी ही बनी रहेगी, जितनी कि अभी है।
दरअसल समस्या समय की नहीं, यह हमारे दिमाग की समस्या है। जब तक हम इसे नहीं समझेंगे, इस समस्या को सुलझा नहीं सकते। तो आइए, यहाँ इस समस्या को सुलझाने की कोशिश करते हैं।
सही फैसला कीजिए
मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि आप कह रहे हैं, तो आप सिविल सर्वेन्ट बनना ही चाह रहे होंगे। लेकिन यदि आप अपनी इस इच्छा के साथ-साथ समय की कमी की बात भी कह रहे हैं, तो फिर आप मुझे अपने उद्देश्य पर संदेह करने का पूरा मौका दे रहे हैं। मेरी इस बात को आप यूँ ही हलके में न उड़ा दें। आपको चाहिए कि आप इस पर गंभीरता से सोचें कि कहीं ऐसा तो नहीं आय.ए.एस. बनने की इच्छा आपकी महज ऊपरी इच्छा ही है, क्योंकि इसका अपना एक अलग ग्लैमर है। आप उस ग्लैमर से तो प्रभावित हैं, लेकिन उस ग्लैमर को पाने के लिए जो अपने चेहरे की रौनक खोनी पड़ती है, उसके लिए तैयार नहीं हैं।
यह भी हो सकता है कि आय.ए.एस. बनने की आपकी यह इच्छा आपकी गहरी इच्छा न होकर अभी आप जिस नौकरी में हैं, उसके प्रति आपकी एक तीव्र प्रतिक्रिया मात्र हो। जैसा कि अक्सर होता है, हम अभी जो कुछ भी कर रहे होते हैं, कुछ दिनों के बाद उसके प्रति हमारा असंतोष उभरने लगता है। उस असंतोष से छुटकारा पाने का सबसे सरल और सर्वज्ञात उपाय यही है कि किसी दूसरी सर्विस के लिए ट्राइ करने लगें। कहीं ऐसा तो नहीं कि सिविल सर्वेन्ट बनने की आपकी यह कोशिश भी इसी श्रेणी में आती हो।
कुछ बातें आपके दिमाग में बहुत साफ होनी ही चाहिए। पहली और सबसे बड़ी बात तो यह कि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए समय की जरूरत तो होगी ही। यह न तो इतनी आसान है कि सरलता से मिल जाएगी और न ही आप स्वयं को कोई ऐसा जादूगर समझें कि आप अपने हाथ को हवा में लहराएंगे और आपकी मुट्ठी में सिविल सर्विस के एप्वाइंटमेंट लेटर की भभूत आ जाएगी। अपने दिमाग में कोई भ्रम न पालें। इस बारे में वैसे तो ज्यादा मुझे नहीं मालूम, लेकिन यह बहुत अच्छी तरह से मालूम है कि यहाँ चमत्कार जैसा कुछ घटित होने वाला नहीं है। इसलिए यदि आप यहां कुछ ऐसा ही घटित होने की उम्मीद कर रहे हों, तो बेहतर है कि अपने इस उद्देश्य पर फिर से विचार करें।
दूसरी बात यह कि इसकी आपको तैयारी करनी पड़ेगी और तैयारी करने के लिए समय चाहिए। यदि आपके पास समय ही नहीं है, तो फिर मुझे नहीं मालूम कि यह तैयारी और किस तरीके से की जा सकती है। मैं जानता हूँ कि आपको भी मालूम नहीं है। यदि मालूम होता तो फिर समस्या ही क्यों आती। इसलिए बात बिल्कुल स्पष्ट है कि यदि आपके पास समय नहीं है, तो सिविल सर्विस के बारे में सोचना बन्द कर दीजिए। क्यों आप बेवजह इसके बारे में सोच-सोचकर अपनी ऊर्जा एक ऐसे काम में लगाएं, जिससे कुछ होना-जाना नहीं है। फिर समझदारी तो इसी में है कि आप अभी जो कुछ भी कर रहे हैं, उसे ही अपना समझकर बेहतर तरीके से करें, ताकि उसी में कैरियर बन सके और खुशी भी मिल सके।
समय संबंधी मिथक
जहाँ तक आय.ए.एस. की तैयारी का सवाल है, समय के बारे में दो सबसे बड़े मिथक स्टूडेन्टस् के दिमाग के बड़े ही गहरे पैठे हुए हैं। इसमें सबसे बड़ा मिथक इस बात को लेकर है कि इसके लिए बहुत अधिक समय चाहिए। यदि यह मिथक है, तो इसके लिए आप स्वयं इतने जिम्मेदार नहीं हैं, जितने हम सब वे लोग, जो इसे क्वालिफाई कर चुके हैं। साथ ही वे लोग भी, जो क्वालिफाई नहीं कर पाए। क्वालिफाई करने वाले यही बताते हैं कि बहुत पढ़ना पड़ता है। रोजाना कम से कम 10-12 घंटे तो पढ़ना ही चाहिए और वह भी कम से कम दो सालों तक। तब कहीं जाकर सफलता मिलती है। हमने यही किया था।
जो क्वालीफाई नहीं कर पाते, वे इसी बात को दूसरे तरीके से कहते हैं। पहला तो यह कि वे उतनी मेहनत नहीं कर पाए, जितनी की जानी चाहिए थी। उनकी पढ़ाई के रोजाना के औसत घंटे सात-आठ ही रहे और चार साल के बाद उन्होंने हथियार डाल दिए। या फिर उनका यह तर्क कि ‘‘मेहनत तो मैंने बहुत की थी, रोजाना बारह-बारह, पन्द्रह-पन्द्रह घंटे। सब कुछ छोड़-छाड़कर इसी में लगा रहा। लेकिन कुछ भी नहीं हो पाया।’ जाहिर है कि यह वर्ग भी वही बातें कह रहा है, जो पहले वर्ग ने कही थी।
सच पूछिए, तो सिविल सेवा की तैयारी के लिए कितना समय चाहिए, इसके बारे में आपके पास जो उत्तर है, वह इन्हीं फैली हुई अफवाहों से पैदा हुआ है। साथ ही यह भी कि आप भी यह सोचकर इनकी बातों पर सन्देह नहीं करते कि निश्चित रूप से यह परीक्षा देश की ही नहीं, बल्कि विश्व की भी कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाती है। यदि इस कठिन परीक्षा में सफल होना है, तो इसके लिए कड़ी मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। फिर आपका दिमाग इस कड़ी मेहनत को बड़ी आसानी के साथ समय से जोड़ देता है-रोजाना पन्द्रह-पन्द्रह घंटों की पढ़ाई और वह भी कई सालों तक।
यह पूरी तरह अफवाह भी नहीं है, बल्कि यह आपके अपने दिमाग के द्वारा गढ़ा गया एक सच है। जब आप जनरल स्टड़ीज के बारे में सोचते हैं, जो सिविल सेवा परीक्षा का सबसे चुनौती से भरा विषय है, तो आपको कुछ विशेष समझ में नहीं आता, सिवाय इसके कि ‘‘इसमें कुछ भी पूछा जा सकता है’’। जाहिर है कि यदि कुछ भी पूछा जा सकता है, तो फिर कुछ भी पढ़ा जाना चाहिए। यानी कि वह सब कुछ पढ़ा जाना चाहिए, जो बाजार में उपलब्ध है। इतना सब कुछ पढ़ने के लिए समय तो चाहिए ही। इस प्रकार आपके दिमाग की सुई एक बार फिर से रोजाना पन्द्रह घंटे की तैयारी पर जाकर टिक जाती है।
मुझे लगता है कि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए समय तो आपके पास है। उसकी समस्या नहीं है। समस्या इस बात की है कि जितने समय की जरूरत के बारे में आपने सोच रखा है, उतना समय आपके पास नहीं है। आपकी यही सोच इस आम भाषा में व्यक्त होती है कि ‘‘समय नहीं मिल पाता’’। कहीं मैं गलत तो नहीं सोच रहा हूँ? शायद नहीं। ज्यादातर के मामले में तो नहीं ही। तो आइए, इससे पहले कि इसके बारे में हम कुछ व्यावहारिक बातें करें, पहले इन मिथकों की सच्चाई को जाँच-परख लेते हैं।
मिथकों का सच
दोस्तों, किसी भी व्यक्ति का यह स्वभाव होता है कि वह अपनी सफलता को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताता है, क्योंकि इससे उसे एक अलग ही किस्म के आत्मसंतोष की अनुभूति होती है। इससे उसकी ‘हीरोइक इमेज’ बनती है। उसके ‘ईगो’ को यह सोचकर अच्छा लगता है कि ’’मैं तुम सबसे अलग एक विशिष्ट व्यक्ति हूँ’’। इसमें कोई दो मत नहीं कि सिविल सर्वेन्ट बनने के बाद वह आम लोगों के बीच में एक विशिष्ष्ट तो बन ही जाता है। लेकिन इसमें गड़बड़ी तब होती है, जब वह विशिष्ट बनने की अपनी इस प्रक्रिया के बारे में बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताने की मनोवैज्ञानिक चाल में फँस जाता है। चूँकि बताने वाला वही व्यक्ति है, जिसने यह सफलता हासिल की है, तो हमारे पास उसके कहे पर शक करने का कोई आधार भी नहीं रह जाता। हम उसके सच को मानने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
दूसरी स्थिति यह भी हो सकती है कि वह सच ही कह रहा हो। लेकिन क्या एक व्यक्ति का सच सिविल सेवा परीक्षा को क्वालिफाई करने वाले सभी लोगों का सच बन सकता है? कदापि नहीं। यह संयोग की ही बात होगी कि आपकी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति हुई, जिसने सिविल सर्विस क्वालिफाई की और जो यह कह रहा है कि ‘‘मैंने इसके लिए अपनी जिन्दगी का बहुत सारा वक्त नहीं खपाया है।’’ ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है। लेकिन आपके सामने जो लोग आते हैं, वे अधिकांशतः पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आते हैं।
जहाँ तक असफल लोगों के वक्तव्यों का सवाल है, दरअसल उसके पीछे मूल कारण समय होता ही नहीं है। उसके अन्य बहुत से कारण होते हैं, जिनमें पढ़ने का तरीका, उत्तर लिखने का ढंग, विश्लेषण करने की क्षमता, भाषा पर अधिकार, संतुलित व्यक्तित्व आदि शामिल हैं। वे इस पर काम नहीं करते। उनका सारा जोर किताबों को पढ़-पढ़कर रट्टा मारने पर होता है और इसे ही वे तैयारी करना कहते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके दिमाग में भी तैयारी करने की कुछ इसी तरह की इमेज बनी हुई हो?
जहाँ तक ‘कठिन परीक्षा’ का सवाल है, उसका समय से थोड़ा बहुत तो सम्बन्ध होता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सारा सम्बन्ध केवल इसी से हो। कठिन को सरल बनाने के तरीके में समय की भूमिका थोड़ी-सी ही होती है। इसमें बड़ी भूमिका होती है-परीक्षा के चरित्र को समझकर स्वयं को उसके अनुकूल ढ़ालने की। इसे ही आज की भाषा में ‘हार्ड वर्क’ की जगह ‘स्मार्ट वर्क’ कहा जाता है।
सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी पायलेट बनने की तैयारी नहीं है, जिसके लिए कुछ निश्चित घंटे तक विमान उड़ाना अनिवार्य हो। सिविल सेवा परीक्षा के किसी भी फार्म में आपको यह कॉलम भरना नहीं पड़ेगा कि इसके लिए आपने कितने घंटे की पढ़ाई की है? यदि घंटे ही महत्वपूर्ण होते, तो बेहतर यही होता कि लाखों लड़कों को एक संस्थान में रखकर यह देखा जाए कि वे किसी काम को कितने घंटे तक कर सकते हैं। यदि घंटे ही सब कुछ हैं, तो मैं ऐसे बहुत से स्टूडेन्टस् को जानता हूँ, जिन्होंने इसे क्वालिफाई किया और जिनके बारे में यह पता ही नहीं लग पाया कि वे इसकी तैयारी करते कब थे।
मैंने यहाँ समय के बारे में फैली कुछ मूलभूत अफवाहों के बारे में आपको बताने की हरसंभव कोशिश की है, यह जानते हुए भी कि आपको इस बारे में विश्वास दिला पाना आसान नहीं है। आपका दिमाग इस बारे में इतना अधिक आतंकित है कि मेरी बातों पर विश्वास करने का मन करने के बावजूद शायद ही आप मुझ पर विश्वास कर सकेंगे। यदि करेंगे भी तो आधे-अधूरे मन से ही। अब यह तो आपके ऊपर है कि इसके बारे में आप क्या सोचते हैं और फिर क्या निर्णय लेते हैं।
समय के बारे में कुछ मूलभूत सिद्धान्त
दोस्तों, अभी तक समय को लेकर मैंने आपसे जो भी बातें की हैं, वे एक प्रकार से कैनवास के ही रूप में हैं। मुझे लगता है कि उन बातों की चर्चा किए बिना मैं शायद आगे की जाने वाली अपनी बातों को ठीक से समझा पाने में सफल नहीं हो पाता। मैं जानता हूँ कि समय के बारे में आप जिस विकट समस्या का सामना कर रहे हैं, उसमें कुछ-कुछ सच्चाई भी है, हालांकि वह इतनी बड़ी सच्चाई नहीं है, जितनी बड़ी वह आपको लग रही है। फिर भी कुछ सच्चाई तो है ही। और यह भी सच है कि जब तक आप अपनी इस समस्या को सुलझाएंगे नहीं, तब तक बात भी नहीं बनने वाली।
इसलिए अब मैं कुछ ऐसी महत्वपूर्ण और व्यावहारिक बातों की चर्चा करने जा रहा हूँ, जिन्हें अपनाकर आप अपनी समस्याओं को न केवल कम ही कर सकेंगे, बल्कि खत्म तक कर सकेंगे। मैं अब जितनी भी बातें करूँगा, वे सारी की सारी व्यावहारिक बातें होंगी। हो सकता है कि इनमें से कुछ को व्यवहार में लाना आपके लिए कठिन हों। लेकिन यदि वह आपकी जरूरत है, तो मेरी सलाह है कि उसे व्यवहार में जरूर लाएं। यह मानकर छोड़ न दें कि ‘‘यह मेरे बस की बात नहीं है।’’ यदि सिविल सेवा परीक्षा को क्वालिफाई करना आपके बस की बात है, तो फिर यह तो उसके सामने कुछ भी नहीं है।
अब हम अपने काम की बातों पर आते हैं।
(1) मैंने अक्सर पाया है कि स्टूडेन्टस् सिविल सेवा की तैयारी करने की बजाए सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने लगते हैं। वे फैसला करते हैं कि उसे इस वर्ष परीक्षा देना है। फिर वे उस समय को ध्यान में रखकर अपनी तैयारी में लग जाते हैं। इस प्रकार समय-प्रबंधन की दृष्टि से वे शुरूआत में ही एक बड़ी गलती कर बैठते हैं।
यदि सच में आपके पास समय कम है, तो आपको अपनी तैयारी की रणनीति को उलट देना चाहिए। आपको एक साल का वक्त केवल इस काम के लिए रखना चाहिए कि ‘‘मुझे सिविल सर्विस की तैयारी करनी है।’’ ऐसा करने से आप समय के दबाव से मुक्त हो जाएंगे। कुछ लोग मानते हैं कि यदि हम अपने परीक्षा का वर्ष निश्चित कर लेते हैं, तो यह टारगेट हमें पढ़ने के लिए प्रेरित करता रहता है। मैं इसे स्वीकार नहीं कर पाता। मेरे विचार से सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की प्रेरणा अन्दर से आनी चाहिए, न कि किसी बाहरी परिस्थिति से। इस सर्विस का ग्लैमर ही अपने-आपमें इस प्रेरणा के लिए पर्याप्त है। यदि यह आंतरिक प्रेरणा काम नहीं कर रही है, तो मुझे शक है कि समय का ‘टारगेट’ जैसा कोई बाहरी लक्ष्य इस बारे में काम कर सकेगा। इसके विपरीत मुझे तो यह लगता है कि समय का दबाव कहीं-न-कहीं तैयारी के लिए मनोवैज्ञानिक स्तर पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। यदि दिमाग ही तनाव से भरा हुआ होगा, तो दिमाग में जो डाला जाएगा, वह शांत और स्थिर कैसे रह सकता है?
(2) जाहिर है कि यदि आपके पास समय कम है, तो आपको अपनी तैयारी के लिए एक लम्बी योजना बनानी चाहिए। ’’लम्बी योजना’’ कहने का मेरा मतलब है कि बजाए इसके कि आप एक साल या दो साल के बारे में सोचे,ं बेहतर है कि आप तीन-चार साल की योजना बनाएं, बशर्ते कि आपके पास इतनी उम्र हो। जैसे ही आप लम्बी योजना बनाएंगे, आप देखेंगे कि आपके दिमाग पर से समय का दबाव और तनाव घट जाएगा। फिर आप इत्मीनान के साथ बहुत व्यवस्थित और व्यावहारिक तरीके से अपनी तैयारी को अंजाम दे सकेंगे। अब आपके समय का पैटर्न घनत्व पर आधारित न होकर विस्तार पर आधारित होगा, लम्बाई पर आधारित होगा। वैसे भी यदि सच पूछिए तो मैं उनके लिए भी, जिनके पास वक्त ही वक्त है, यही सलाह देना चाहूंगा कि इसकी तैयारी के लिए उन्हें लम्बी योजना ही बनानी चाहिए।
यह सब पढ़ते समय आपके दिमाग में एक यह बहुत ही व्यावहारिक सवाल उठ रहा होगा कि आखिर सिविल सर्विस की तैयारी के लिए रोज कितने घंटे की पढ़ाई की जानी चाहिए। आपका यह सवाल बिल्कुल सही है और इसका सही उत्तर यह है कि-तीन से चार घंटे की। मैं यह जो तीन से चार घंटे की बात कह रहा हूँ, इसे आप औसत के रूप में न लें, बल्कि इस रूप में लें कि जैसे आप रोजाना आठ से दस घंटे काम करते हैं, उसी प्रकार आपको तीन से चार घंटे रोजाना इसके लिए भी काम करना होगा। यानी कि आप इसे भी अपने काम में शामिल कर लें।
प्रतिदिन की बात मैं इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि इसकी तैयारी का कुछ भाग ऐसा होता है, जिसे दूसरे दिन पर टाला नहीं जा सकता। उदाहरण के तौर पर अखबार पढ़ना, न्यूज सुनना, यदि किसी अच्छे इश्यू पर डिस्कशन आ रहा हो, तो उसे सुनना आदि-आदि। जहाँ तक किताबों में लिखे हुए ज्ञान का सवाल है, उसे तो आप अगले दिन के लिए या फिर अगले से अगले दिन तक के लिए टाल सकते हैं। लेकिन यदि आप न्यूज के साथ ऐसा करेंगे, तो मानकर चलिए कि फिर आप अपनी सफलता को भी आगे के लिए टाल रहे हैं।
अब सवाल यह है कि क्या न्यूज के लिए रोजाना तीन से चार घंटे दिए जाने चाहिए? क्या यह जरूरी है? बिल्कुल भी नहीं। मैं यहाँ आपको सामान्य तौर पर इसके लिए समय के विभाजन के बारे में बताता हूँ –
- रोजाना रेडियो न्यूज – 15 मिनट
- डेली आडियो गाइडेन्स – 35 मिनट (यदि आप चाहते हैं तो)
- दो अखबार – 45 मिनट
- डेली आडियो पर उपलब्ध कराई गई प्रेस क्लिपिंग-25 मिनट (यदि आप चाहते हैं तो)
- टी.वी.-रेडियो पर डिस्कशन आदि-30 मिनट (यदि हों, तो)
इन सभी कामों में आपको लगभग ढाई घंटे का समय लगेगा। इसके बाद आपके पास एक-डेढ़ घंटे का समय बचता है। इस समय का उपयोग आप अपने दूसरे विषयों की तैयारी के लिए कर सकते हैं; जैसे एनसीआरटी की पुस्तकें पढ़ना, कुछ पत्रिकाएं पढ़ना और अपने आप्शनल पेपर के टॉपिक्स को देखना आदि। इसी समय में यदि आपकी जरूरत हो, तो आप लिखने आदि का भी काम कर सकते हैं।
यहाँ मैं एक बात विशेष रूप से कहना चाहूंगा कि मैंने ऊपर के जिन ढाई घंटों के उपयोग की बात कही है, उसके लिए यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि आपके पास ढाई घंटे का यह समय कंटीन्यूवीटी के रूप में उपलब्ध हो। आप ऊपर दिए गए टाइम के विभाजन को एक बार फिर से देखें। इस ढाई घंटे का इस्तेमाल आप पांच टुकड़ों में करते हैं, एक ही साथ नहीं। ये पांचों टुकड़े एक होने के बावजूद अलग-अलग हैं। इसलिए आपके लिए बेहतर होगा कि आप इस काम को उस समय करें, जब आपके पास इन्हें पूरा करने के लिए वक्त के छोटे-छोटे टुकड़े मौजूद हों। मैं नहीं मानता कि कोई भी स्टूडेन्ट इतना अधिक व्यस्त हो सकता है कि बीच-बीच में वह पन्द्रह-बीस मिनट भी न निकाल सके। आपके पक्ष में एक बात यहाँ यह भी है कि इनके लिए किसी सततता की जरूरत भी नहीं होती है। बेहतर होगा कि आप इन्हें अलग-अलग वक्त पर ही पढं़े। लेकिन आप ऐसा तभी कर सकेंगे, जब आपने अपनी सफलता के बारे में अपेक्षाकृत एक लम्बी योजना बनाई हुई हो।
शेष अगले अंक में………………
NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.