नोट्स कैसे बनाएं-2

Afeias
20 Aug 2017
A+ A-

To Download Click Here.

2. सच तो यह है कि नोट्स बनाना केवल बिखरे हुए तथ्यों को एक जगह समेट देना भर नहीं होता है, बल्कि उससे बहुत कहीं आगे की बात भी होती है। अगर कोई सही में नोट्स बना रहा है, तो उसे यह मानकर चलना चाहिए कि बनाने के दौरान उसे एक जबर्दस्त वैचारिक उत्तेजना से गुजरना पड़ेगा। नोट्स बनाते समय हम केवल पढ़ते ही नहीं हैं, बल्कि पढ़ने के साथ-साथ उन पर विचार भी करते हैं। पहले तो हम अलग-अलग किताबों से पढ़ते हैं। पढ़ने के बाद उन पर विचार करते हैं कि इनमें से कौन सा तथ्य महत्वपूर्ण है, कौन सा तथ्य दूसरे में नहीं है। जो इसमें हैं, उन पर निशान लगाते हैं कि हमें यह सामग्री अपने नोटस् में ले जाना है।

मान लीजिए कि आप चार किताबों से पढ़ रहे हैं, तो चारों को पढ़ने के बाद आप मन ही मन उन चारों किताबों के बारे में एक साथ विचार करते हैं, ताकि वे घुल-मिलकर एक बन सकें और आपके दिमाग में एक स्ट्रक्चर, उसकी एक बुनावट तैयार हो सके। तब कहीं जाकर लिखने की शुरूआत की जाती है।

जब लिखने का दौर आता है, तब आपका मानसिक संकट और भी बढ़ जाता है। वे वैचारिक उत्तेजना के क्षण होते हैं और उस वैचारिक उत्तेजना मेंं ही हमें यह सोचना पड़ता है कि वह तथ्य किस किताब में है और यह तथ्य किस किताब में। वहाँ से ले-ले करके हम नोट्स बनाते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि केवल पढ़ा ही नहीं जाता है, पढ़े हुए को केवल समेटा ही नहीं जाता है, बल्कि पढ़े हुए को मथा भी जाता है और मथने के बाद, जो अलग-अलग हंै, उन्हें एक जैसा बनाकर उतारा जाता है। सच पूछिए तो यह दौर बहुत दुखदायी होता है। यही कारण है कि ज्यादातर स्टूडेन्ट्स नोट्स बनाने से घबड़ाते हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें अगर बने बनाये नोट्स मिल जाएं, तो इससे बेहतर उनके लिए कुछ नहीं हो सकता। दुर्भाग्य से वे यह नहीं समझ पाते कि इससे कुछ भी बेहतर होने वाला नहीं है। हां, यह जरूर है कि जो तथ्यों का बिखराव था, वह आपको एक जगह पर सिमटा हुआ मिल जाएगा। लेकिन जो उससे वास्तविक फायदा होना चाहिए, वह फायदा आप नहीं उठा पायेंगे।

3. द्ध अलग-अलग किताबों से पढ़ने के बाद अब आपको लिखना होता है। जैसा कि मैं बता चूका हूँ, लिखने का यह दौर भी बहुत द्वन्द्वपूर्ण होता है। यह द्वन्द्व कई स्तरों पर होता है। कहाँ कौन-सी सामग्री है, इससे तो दिमाग को जूझना ही पड़ता है। साथ ही इस बात से भी जूझना पड़ता है कि उस सामग्री को यहाँ किस तरीके से लिखा जाये। इसके दो तरीके हो सकते हैं। या तो हम वहाँ की सामग्री को ज्यों का त्यों यहाँ टीप दें। यानी कि ज्यों का त्यों उतार दें। दूसरा तरीका यह हो सकता है कि वहाँ की सामग्री को समझकर फिर हम अपनी भाषा में लिखें। सही नोट्स वे होंगे, जो हम अपनी भाषा में लिखेंगे। यदि हम अलग-अलग किताबों से ज्यों का त्यों उतारेंगे, तो भाषा की जो एकरूपता है, वह खत्म हो जाएगी। हर लेखक की अपनी-अपनी भाषा होती है और यदि भाषा की एकरूपता खत्म हो गई, तो सामग्री में जो लयात्मकता होनी चाहिए, वह बाधित हो जाएगी। फिर पढ़ने का मजा कम हो जाएगा। और अगर पढ़ने का मजा कम हो गया, उसकी लयात्मकता कम हो गई, तो मानकर चलें कि दिमाग की ग्रहण-शक्ति भी उसी के अनुकूल कम हो जाएगी।

इसलिए बहुत जरूरी होता है कि हम पढ़े गये तथ्यों को अपनी भाषा में लिखें। यह इसका अगला बहुत बड़ा लाभ है। इससे हमारे दिमाग को भाषा के स्तर पर सोचने का अभ्यास पड़ता है। उसे अवसर मिलता है कि वह अपनी भाषा विकसित कर सके और फिर अपने विचारों को कापी के पन्ने पर उतार भी सके। कुल मिलाकर यह कि मजबूरी में ही सही, यहां एक बहुत अच्छा काम हो जाता है। अन्यथा सच पूछिये तो जब हम किसी भी परीक्षा की तैेयारी कर रहे होते हैं, तो लिखने का मौका आता ही नहीं, सिवाय परीक्षा हॉल में लिखने के। नोट्स हमें वह अवसर उपलब्ध करा देता है।

4. पता नहीं आपको लगता है या नहीं, लेकिन मुझे यह जरूर लगता है कि यदि मैंने अपने हाथ से नोट्स बनाये हैं, तो मुझे अपने उन नोटस् से एक भावनात्मक लगाव हो जाएगा। उससे एक अलग ही किस्म का जुड़ाव हो जाएगा। चूंकि उसमें मेरा श्रम शामिल है, इसलिए मुझे उससे कुछ अतिरिक्त मोहब्बत हो जाएगी। और मैं यह मानता हूं कि जिससे हमारा जुड़ाव हो जाता है, वह हमारे अधिक निकट आ जाता है। आप ऐसा बिल्कुल भी मत समझियेगा कि किसी नोट्स के साथ ऐसा कैसे हो सकता है। पत्थर के साथ हो जाता है, मिट्टी के साथ हो जाता है, पेड़ के साथ हो जाता है। और ये मिट्टी, ये पत्थर, ये पेड़ वे हैं, जिनके लिए हमने कुछ नहीं किया है। केवल यही कि हम उनके साथ रह रहे हैं, बस। लेकिन नोट्स के साथ तो हम जूझे हैं। इसमें तो हमारी रचनात्मकता शामिल है। इसके लिए हमने वक्त दिया है। तो ऐसे के साथ जुड़ जाना तो एक बहुत ही स्वाभाविक बात है। फिर सीधी-सी बात है कि यदि आप किसी से जुड़ जाते हैं, तो वह आपको अपना लगने लगता है और जब अपना लगने लगता है, तो उसकी दुरूहता, उसकी कठिनता, उसकी जटिलताएं सब गायब हो जाती हैं। वह चीज हमारे लिए आसान हो जाती है। नोट्स के साथ यह बहुत बड़ी बात होती है।

5.  शायद आपका यह अनुभव रहा हो कि आपने किसी एक टॉपिक पर नोट्स तैयार किये थे। उसी टॉपिक पर परीक्षा में प्रश्न पूछ लिया गया है। अब, जबकि आप उस प्रश्न का उत्तर लिख रहे हैं, तो आप पायेंगे कि आपने जो नोट्स तैयार किये थे, उसके बिम्ब आपके दिमाग में उभरने लगे हैं। यहां तक कि जब आप अपने नोट्स के एक पूरे पृष्ठ को कापी में लिख चुके हैं, तो आपका दिमाग आपकी सुविधा के लिए धीरे से आपके नोट्स के पन्ने को पलट देता है और आप परीक्षा की कापी में उत्तर लिखना शुरू कर देते हैं। इससे उसी उत्तर को लिखने में अपेक्षाकृत कम समय लगता है। चूंकि आपके दिमाग की गति को आपके नोट्स ने सहारा देकर तेज कर दिया है, आप बहुत तेजी के साथ लिखेंगे, बशर्ते कि नोट्स से प्रश्न पूछ लिया गया हो।

6. नोट्स बनाते समय जब हमें लिखना पड़ता है, तो यह हमारा केवल वैचारिक अभ्यास ही नहीं होता, बल्कि साथ ही साथ हैंडराइटिंग का भी अभ्यास हो जाता है। हैडराइटिंग का यह अभ्यास दोनों स्तरों पर होता है-अक्षर सुन्दर बनें इस स्तर पर तथा हमारे लिखने की स्पीड तेज हो सके, इस स्तर पर भी। और सिविल सेवा परीक्षा में इन दोनों की अपनी-अपनी अहमियत है। यह ठीक है कि सुन्दर अक्षर उतनी बड़ी भूमिका नहीं निभाते। लेकिन स्पीड़ की तो बहुत बड़ी भूमिका होती है। आपको 180 मिनट में कम से कम चार हजार शब्द लिखने होते हैं, और वे भी 20 प्रश्नों के उत्तर देने के रूप में। यदि यहां आपकी स्पीड कम है, तो मानकर चलिए कि कुछ न कुछ प्रश्न छूट जायेंगे और प्रश्नों का यह छूटना आपके लिए बहुत घातक हो सकता है।

7. अंतिम बात यह कि क्या अब आपको नहीं लगता कि जब आप नोटस् बना रहे होते हैं, तो बनाने की उसी प्रक्रिया के दौरान आप एक प्रकार से उस विषय की, विषय के उन टॉपिक्स की तैयारी भी कर रहे होते हैं? इस बारे में मेरा जो भी थोड़ा सा अनुभव रहा है, उसके आधार पर मुझे यह कहने में कोई सकोच नहीं है कि नोट्स बनाने का मतलब है उस टॉपिक पर तैयारी का पूरा हो जाना, न केवल पूरा ही हो जाना, बल्कि बहुत अच्छी तरह पूरा हो जाना। इस प्रकार मुझे नोट्स बनाना एक प्रकार से तैयारी करने की लिखित पद्धति भी मालूम पड़ती है।

दोस्तो, यदि आप मेरी ऊपर की बातों से सहमत हैं, तो अब यह फैसला मैं आपके ऊपर छोड़ता हूं कि आपको नोट्स खुद के बनाने चाहिए या बने बनाये नोट्स खरीदने चाहिए। यह बात मैं इस रूप में कह रहा हूं, बशर्ते कि आपने यह फैसला कर लिया है कि आपको नोट्स की जरूरत है।

नोट्स बनाएँ या नहीं?

मित्रो, इससे पहले मैंने ‘‘नोट्स का अर्थ’’ प्वाइंट के अंतर्गत इस बात की चर्चा नहीं की है कि इनके बनाने से क्या लाभ होते हैं। निश्चित रूप से मैंने इस बात की चिन्ता नहीं की है कि नुकसान क्या होते हैं। सच यह भी है कि भले ही हम उसका फायदा नहीं उठा पाएं, लेकिन कम से कम नुकसान तो नहीं ही होता है। हाँ, यह बात अलग है कि हम उतना फायदा ले पा रहे हैं या नहीं, जितना लिया जाना चाहिए।

साथ ही मैंने उसमें इस बात की भी चर्चा नहीं की है कि क्या उसका कोई विकल्प भी हो सकता है। विकल्पों के बारे में सोचना इसलिए भी जरूरी है कि नोट्स बनाना कोई आसान काम नहीं है। यदि सही में अच्छे नोट्स बनाने हों, तो वह काफी समय और श्रम की मांग करते हैं। अपने अंतिम एवं अगले लेख में मैं इसके विकल्पों के बारे में चर्चा करूंगा।

फिलहाल मैं उन दो मुख्य आधारों की तरफ आपका ध्यान ले जाना चाहूँगा, जो इस निर्णय में आपकी सहायता करेंगे कि आपको नोट्स बनाने चाहिए या नहीं। ये मुख्य आधार हैं-(1) आदत एवं (2) प्रश्नों का स्वरूप।

(1) आदत
मुझे यह लिखने के लिए क्षमा करेंगे कि मुझे ऐसा मालूम पड़ता है कि नोट्स बनाने की मांग मूलतः मनोवैज्ञानिक मांग अधिक है। बचपन से ही शिक्षक हमें नोट्स बनाने को कहते हैं और हम बनाते हैं। जरूरत से कुछ ज्यादा ही बनाते हैं। यहाँ तक कि क्लास में शिक्षक भी नोट्स लिखवाते हैं। नोट्स बनाना एक प्रकार से मेहनत करने का पैमाना बन गया है। यदि आप नोट्स नहीं बनाते, तो मन में इसकी एक कुण्ठा बन जाती है और बेमतलब ही एक अधूरेपन का एहसास होने लगता है। जाहिर है कि यह सब केवल इसलिए होता है, क्योंकि हमें लगता है कि हमें नोट्स बनाने चाहिए। इससे हमें कोई अतिरिक्त लाभ होगा या नहीं, हमने कभी इस बारे में तार्किक रूप से सोचा ही नहीं है। हम मानकर चलते हैं कि इससे फायदा ही होगा। यह बात तब से लेकर आज तक, जबकि हम सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, ज्यों की त्यों हमारे दिमाग में बैठी हुई है।

(2) प्रश्नों का स्वरूप
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम जो भी कर रहे हैं, वे हमारे उद्देश्य को पाने में किस प्रकार और कितनी मदद करेंगे? परीक्षा के प्रश्नों को उठाकर देखें और मेरे इस बिन्दु पर गंभीरता से विचार करें। विचार इस बिन्दु पर करें कि हम जिस तरह से नोट्स बनाते हैं, क्या उस तरह से नोट्स बनाकर हम परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दे सकेंगे? क्या परीक्षा में जो प्रश्न पूछे जाते हैं, उन प्रश्नों का अनुमान लगाकर उन पर नोट्स बनाया जाना संभव है? साथ ही यह भी कि यदि नोट्स बनाने ही हैं, तो उसका स्वरूप परम्परागत तरीके का हो या फिर कुछ और। आप इस पर अपनी ओर से विचार करें।

NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.

Subscribe Our Newsletter