उत्तर लिखने का अभ्यास-2
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हर काम को करने का अपना एक विज्ञान होता है। अभ्यास का भी। वैसे यदि देखा जाए तो अभ्यास करने का तो विज्ञान होता ही है। यदि हमारा अभ्यास एक सुव्यवस्थित तरीके से नहीं हो रहा है, तो फिर वह अभ्यास होगा ही नहीं। शुरुआत में तो वह एक जबर्दस्त विज्ञान ही होता है। बाद में धीरे-धीरे वह कला के रूप में परिवर्तित होता जाता है। इसलिए मैं यहाँ अभ्यास करने के तरीके के रूप में आपसे अभ्यास करने के तीन चरणों की बात करने जा रहा हूँ। ये तीनो चरण क्रमशः नौसीखिया से प्रौढ़ता के बिन्दु तक पहुँचने के चरण हैं।
पहले चरण में हम शुरुआत करना सीखते हैं। दूसरे चरण में हम थोड़ा सीख चुके होते है। तीसरे चरण में हम इसमें पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं।
यहाँ मैं यह बात स्पष्ट कर दूँ कि आपको हर प्रश्न के साथ हमेशा ही इन तीन चरणों का इस्तेमाल नहीं करना है। आप खुद इस बात का फैसला करने की स्थिति में पहुँच जाएंगे कि अभ्यास करते-करते कब आपने उस स्थिति को प्राप्त कर लिया है, जब आपके लिए पहले चरण का कोई मतलब नहीं रह गया है। अब दूसरा चरण ही पहला चरण बन चुका है। या फिर हो सकता है कि एक स्थिति वह भी आए, जब आपके लिए केवल एक ही चरण रह जाए और वह होगा तीसरा अथवा अंतिम चरण। वैसे आपको अन्ततः पहुँचना तो इस अंतिम चरण पर ही है और वह भी एक बार में ही। अभ्यास के समय तो आपको एक प्रश्न का उत्तर तीन बार लिखने की छूट है। लेकिन यह परीक्षा में नहीं मिलने वाली। दरअसल, इन तीन चरणों को मिलाकर अन्ततः एक करना होता है और ऐसा आप कर सकते हैं। लेकिन शुरुआत आपको इन तीनों चरणों से करनी होगी। इसके लिए थोड़ा समय देना होगा। उससे भी कहीं अधिक धैर्य रखना होगा। अन्यथा जितना लाभ मिलना चाहिए था, शायद उतना लाभ नहीं मिल पाएगा।
तो अब मैं आता हूँ इसके पहले चरण पर।
प्रथम चरण
यह शुरुआत करने का चरण है, जिसे आप पूरी तरह प्र्रवेश द्वार मान सकते हैं। इसमें आपको किसी तरह की कोई हड़बड़ी नहीं दिखानी है। दिमाग में किसी तरह के द्वन्द्व को भी स्थान नहीं देना है। समय के दबाव से अपने-आपको मुक्त रखना है। साथ ही इस बात की भी परवाह नहीं करनी है कि कौन-कौन से तथ्य याद आ रहे हैं और कौन-कौन से छूट रहे हैं। चूंकि अभी आप अपने दिमाग को ट्रेनिंग दे रहे हैं, इसलिए आपको इससे इस तरह की कोई अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए। यदि आप अपेक्षा करेंगे, तो आपको अधिकांशतः निराशा ही मिलेगी। फिर यह निराशा बेवजह आपके अंदर चिड़चिड़ापन पैदा करेगी। हो सकता है कि इस चिड़चिड़ेपन के कारण बाद में आप लिखने के अभ्यास से मुक्ति पा लेने कीघोषणा ही कर दें।
इन बातों को ध्यान रखने के बाद अब आपको इस चरण में निम्न कदम उठाने चाहिए।
- उत्तर लिखने के लिए पर्याप्त समय लें। ‘समय लें’ का संबंध हर मामले में समय लेने से है। जैसे कि तथ्यों के बारे में सोचने के लिए समय लेना, सोचने के बाद उनको व्यवस्थित करने के लिए समय लेना, तथा उत्तर लिखने के ढाँचे का निर्धारण करने के बारे में समय लेना। इसके बाद इत्मीनान के साथ उत्तर लिखने के लिए समय लेना। अभी आप इस बात को बिल्कुल भूल जाएं कि परीक्षा में तो दो सौ शब्दों का एक उत्तर लिखने के लिए केवल नौ मिनट ही मिलते हैं, जबकि मुझे यहाँ लिखने में नब्बे मिनट लग रहे हैं। लग रहे हैं, तो लगने दीजिए। बल्कि लगाइए ही। अभी आपका मस्तिष्क उत्तर लिखने के सांचे में इस तरह नहीं ढला है कि वह नौ मिनट में एक उत्तर तैयार कर देगा। लेकिन वह ढलेगा। आगे चलकर वह ऐसा करेगा। इस चरण में फिलहाल आपको मुख्यतः अपने दिमाग को इस सांचे में ढालने का ही काम करना है, जो जल्दबाजी करने से नहीं होगा। बल्कि उससे तो सब गड़बड़ हो जाएगा।
- जब लिखने के बारे में आपकी तैयारी पूरी हो जाए, तब ही लिखना शुरू करें। यदि आप चाहें तो इस तैयारी के लिए पूरा एक दिन ले लें। दो दिन भी लग रहे हैं, तो लगने दें, बशर्ते कि आप समय-समय पर उसके बारे में विचार करते रहें। यदि आपको लगता है कि तैयारी पूरी नहीं हुई है, तो लिखने न बैठे। ऐसे में आप जो कुछ भी लिखेंगे, वह आधा-अधूरा ही होगा। और यदि परीक्षा में आधा-अधूरा ही लिखकर आना हो, तो फिर उसके लिए अभ्यास की कोई जरूरत नहीं है। वह तो अपने-आप ही हो जाएगा।
- अब आप लिखें। यहाँ भी समय की कोई सीमा न रखें। एक-एक वाक्य सोचकर लिखें। भाषा पर भी ध्यान दें। कोशिश करें कि आपका उत्तर अच्छे से अच्छा बने। जहाँ भी आपको लगता है कि आप स्वयं को दुहरा रहे हैं, वहाँ खुद को रोकें। एक-एक शब्द पर ध्यान दें। यदि आपको लगता है कि आप किसी एक शब्द के बदले दूसरा शब्द रख सकते हैं, तो ऐसा करें। यदि आपको लगता है कि आप इसी बात को दूसरे तरीके से बेहतर रूप में कह सकते हैं, तो वाक्य को भी बदल दें। यदि आपको ऐसा लगता है कि यह तथ्य या यह वाक्य यहाँ न आकर वहाँ आना चाहिए, तो ऐसा भी करें। कुल-मिलाकर यह कि उत्तर लिखने का आपका यह चरण बहुत ही अधिक इत्मीनान का चरण होना चाहिए। यदि परीक्षा में दस मिनट के अन्दर लिखे जाने वाला उत्तर एक सौ दस मिनट की मांग कर रहा है, तो आप उसकी मांग को पूरा करने में कोई कंजूसी न दिखाएं। महादानी कर्ण की तरह मांग को पूरी करें। इस बात को क्षण भर के लिए भी न भूलें कि अभी आप सिर्फ प्रेक्टिस कर रहे हैं और इस उद्देश्य से प्रेक्टिस कर रहे हैं कि यह आपको एक अच्छा खिलाड़ी बनाये।
- उत्तर लिख लेने के बाद अब उसका मूल्यांकन करने की बारी है। बेहतर होगा कि आप इस काम को उत्तर लिखने के तुरन्त बाद न करके कुछ समय के गैप के बाद करें। यह गैप एक-दो घंटे का भी हो सकता है। हाँ, यह कोशिश जरूर करें कि लिखने और उसे जाँचने में बहुत अधिक अंतराल न होने पाए। इसका संबंध उस उत्तर की ताजगी का आपके दिमाग में बने रहने से है। चूंकि अभी सारे तथ्य आपके दिमाग में ताजे हैं, इसलिए उत्तर लिखने के दौरान जिस मानसिक प्रक्रिया से आप गुजरे हैं, उन सब के बारे में आपकी स्मृति ताजी है। इससे आपको बहुत लाभ मिलेगा।
- उत्तर का मूल्यांकन आपको विशुद्ध रूप से अपने ही स्तर पर नहीं करना है। आपको अपने इस उत्तर को आपके पास उपलब्ध सामग्री से जाँचना है। तभी तो आप इस बात को अच्छी तरह समझ पाएंगे कि लिखने के दौरान कौन-कौन सी महत्वपूर्ण बातें छूट गई हैं। यहाँ केवल इन छूटी हुई बातों को ही जानना जरूरी नहीं है, बल्कि इससे भी कहीं अधिक इस सत्य को भी जानना है कि ये छूटी क्यों। आपको तुरन्त समझ में आ जाएगा कि ऐसा क्यों हुआ।
हो सकता है कि आपने कुछ ऐसा लिख दिया हो, जो तथ्यों से मेल न खा रहा हो। कुछ गलत तथ्य भी लिखे जा सकते हैं। भ्रम के कारण अक्सर ऐसा हो जाता है। जैसे ही आपको कुछ इस तरह के गलत तथ्यों की जानकारी मिले। अब यहाँ फिर से यह जानने की कोशिश करें कि ऐसा क्यों हुआ। यह एक प्रकार से स्वयं को मथने की ही प्रक्रिया है। - जब आप अपने उत्तर का मूल्यांकन कर रहे हों, तब कोई भी काम मौखिक स्तर पर नहीं होना चाहिए। जरूरी है कि आप उसके एक-एक प्वाइंट को कागज पर लिखें। ऐसा इसलिए, क्योंकि अभी आपको फिर से एक सही उत्तर लिखना है, जो पहले वाले उत्तर से बेहतर होगा। सही उत्तर लिखने में ये प्वाइंट आपकी मदद करेंगे। इन्हीं की सहायता से अपने इस उत्तर को अपेक्षाकृत बेहतर और सम्पूर्ण बना सकेंगे।
- अब आपको फिर से उसी प्रश्न का उत्तर लिखना है। यह स्वभाविक ही है कि अब ऐसा करना आपके लिए पहले की तुलना में काफी आसान हो जाएगा। अब दिमाग को वह जद्दोजहद नहीं करनी पड़ेगी। उत्तर भी अपने-आप ही पहले से बेहतर बन जाएगा। आपका अब का यह अनुभव ही इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि एक बार अभ्यास किए गए उत्तर को यदि परीक्षा में ही लिखना पड़ा, तो क्या वहाँ भी आपका अनुभव कुछ इसी तरह का नहीं होगा?
- अब आप इसे फिर से पढ़ें और पहले वाले उत्तर से इसकी तुलना करें। तुलना करने के दौरान अब आपको जो भी अन्तर मालूम पड़ रहा है, उन्हें फिर से नोट कर लें।
इस प्रकार आपका पहला चरण पूरा हो जाएगा। यदि आप अब उत्तर लिखकर संतुष्टि का भाव महसूस कर रहे हैं, तो यह मान लें कि अभी तक आपने जो कुछ भी किया है उसकी दिशा सही रही है और उसका तरीका भी सही रहा है। आप सही रास्ते पर हैं और यह रास्ता आपको आपके उद्देश्य की मंजिल तक पहुँचा देगा।
द्वितीय चरण
जैसा कि मैंने कहा प्रथम चरण अपने-आपमें एक स्वतंत्र चरण है। आपको इसी से शुरुआत करनी चाहिए। फिर चाहे इसमें कितना भी वक्त क्यों न लगे और आपको कितनी भी अधिक ऊब क्यों न हो। इसे आप अपने इस अभ्यास की नींव मानकर चलें। लिखने में आप कितने सिद्धस्त होंगे, इसका निर्धारण आपका यह पहला चरण ही करेगा। इसलिए कम से कम यहाँ तो आपको किसी भी तरह की कोताही बरतनी नहीं चाहिए। इसमें पूरा समय दें। यदि इसके लिए तीन-चार-पांच महीने भी लगते हैं, तो लगने दें। जब आपको लगे कि पहले चरण पर आपकी पकड़ हो गई है, तभी आप द्वितीय चरण में प्रवेश करें।
आप कैसे समझेंगे कि पहले चरण पर आपकी पकड़ हो गई है? इसके कुछ सरल मापदण्ड हैं, जैसे कि –
- तथ्य दिमाग में तुरन्त आने लगे हैं। प्रश्नों के शेड्स पकड़ में आ रहे हैं।
- यह तुरन्त समझ में आ जाता है कि इसमें क्या-क्या लिखना है।
- लिखने की शुरूआत करने में कोई दिक्कत नहीं होती।
- दिमाग में उत्तर लिखने की रचना उभरने लगती है।
- अब दिमाग में द्वंद्व और तनाव कम रहता है, तथा
- भाषा भी पहले से बेहतर हो गई है और वह एक लय में कागज पर उतरती चली जाती है, आदि-आदि।
प्रथम चरण में आप इन सारे मानकों को हासिल कर लेंगे। अब आपको दो अन्य चरणों से गुजरना है। द्वितीय चरण में भी आपको लगभग-लगभग यही प्रक्रिया अपनानी है, बस थोड़े से अन्तर के साथ। यह प्रक्रिया क्या होगी, अब मैं इसके बारे में चर्चा करना चाहूँगा
- सबसे बड़ा फर्क समय का है। वैसे भी आपको लिखने में समय के उस स्तर को प्राप्त करना है, जब आप अपना उत्तर सात से आठ मिनट के अन्दर (दो सौ शब्द) लिख लें। यहाँ आप अपनी तुलना एक धावक से कर सकते हैं। दौड़ने वाला खिलाड़ी रोज अभ्यास करता है। इस अभ्यास के दौरान उसका केवल एक ही उद्देश्य होता है कि वह किस प्रकार तय करने वाली दूरी में लगने वाले समय को कम से कम कर सके। हर अभ्यास में आप पायेंगे कि वह समय को जरूर देखता है। यदि उसे लगता है कि इस बार उसने एक सैकेण्ड के दसवें भाग से कम समय में दूरी तय कर ली है, तो वह खुश होकर अपनी पीठ थपथपा लेता है। एक समय के बाद समय में यह कमी आनी बन्द हो जाती है। यह उसकी क्षमता का उच्चतम स्तर होता है। इसे ही आप उस खिलाड़ी की पहचान कह सकते हैं।लगभग-लगभग यही स्थिति आपके साथ भी है कि आपको एक प्रश्न का उत्तर एक निर्धारित समय में देने की क्षमता हासिल करनी है और इस क्षमता में प्रश्न के उत्तर की गुणवत्ता के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए। ज्यादातर विद्यार्थी समय की इस क्षमता को तो हासिल कर लेते हैं, लेकिन गुणवत्ता की कीमत पर। इससे तो बेहतर होगा कि और किसी दूसरे तरीके के बारे में सोचा जाए। लेकिन मुश्किल यह है कि और कोई दूसरा तरीका है नहीं। एकमात्र तरीका यही है, जिसकी चर्चा हम यहाँ कर रहे हैं।
गुणवत्ता का कमाल वस्तुतः दिमाग और हाथ के कमाल के बीच के तालमेल से जुड़ा हुआ है। यह दोनों ही है। कुछ विद्यार्थी सोचते हैं कि यदि उनके लिखने की गति बढ़ जाए, तो उत्तर अपने-आप ही कम समय में लिखा जा सकेगा। कुछ सीमा तक तो यह बात सही है, लेकिन पूरी तरह नहीं। यह एकतरफा सोच है। इससे उत्तर लिखने में समय तो निश्चित रूप से पहले से कम लगेगा। लेकिन यह न भूलें कि हो सकता है कि आपका उत्तर उतना अच्छा न बन सके, जितना आप तब लिख लेते, यदि आपको आठ मिनट की जगह दस मिनट दे दिए जाते। यहाँ मैंने केवल दो मिनट अधिक दिए जाने की बात कही है। लेकिन यदि आप इसे प्रतिशत में परिवर्तित करेंगे, तो यह पच्चीस प्रतिशत होगा। यदि आप इस पच्चीस प्रतिशत अधिक समय की जरूरत को तीन घंटे में लिखे जाने वाले कुल बीस प्रश्नों पर लागू कर दें, तो दो तरह के परिणाम देखने में आएंगे। या तो पेपर का समय तीन घंटे से बढ़ाकर पौने चार घंटे करना होगा या फिर बीस प्रश्नों की संख्या घटाकर पन्द्रह करनी होगी। लेकिन शब्दों की संख्या उतनी ही रहेगी। आप जानते ही हैं कि इनमें से कुछ भी किया जाना संभव नहीं है। यह तो जैसा है, वैसा ही रहेगा।
यहीं पर आकर लिखने का अभ्यास आपकी मदद करता है। अभ्यास के इस द्वितीय चरण में आपका सबसे अधिक फोकस इसी बात पर होना चाहिए कि ‘‘मैं कैसे लिखने वाले समय को कम से कम कर सकूं।’’ यह समय आपके पहले चरण के समय से काफी कम होगा, लेकिन तीसरे चरण जैसा नहीं। मान लीजिए कि पहले चरण में आप एक प्रश्न के लिए आधा घंटा ले रहे थे। आप उसे यहाँ घटाकर पन्द्रह मिनट कर सकते हैं। यानी कि शुरू में लगने वाले समय से आर्धा तथा परफेक्ट टाइमिंग से लगभग दुगुना। जब मैंने इस द्वितीय चरण पर प्रयोग किए, तो समय की यह गणना मुझे सही लगी। ऐसा होता है और इस स्तर पर इतना ही किया जाना पर्याप्त होता है।
आप इसे अंजाम कैसे देंगे? आप अपने दिमाग में, अपने दिमाग के स्टाप वाच में पन्द्रह मिनट का वक्त फिक्स कर लें। यानी कि उत्तर लिखने से पहले ही आपको यह सोचना होगा कि मुझे इस प्रश्न का उत्तर पन्द्रह मिनट के दायरे में लिखना है। जैसे ही पन्द्रह मिनट पूरे होते हैं, मान लें कि आपकी कापी परीक्षक ने छीन ली है। आप लिखना बन्द कर दें। यह आपका फायनल उत्तर हो गया। - अब आप अपने इस उत्तर की जाँच करेंगे। निश्चित रूप से इस उत्तर को जाँचने के भी वही पैमाने होंगे, जिन पैमानों का इस्तेमाल आपने अपने प्रथम चरण के उत्तरों को जाँचने के लिए किया था। जब आप ऐसा करेंगे, तो यहाँ आपको थोड़ी अलग अनुभूति होगी। यहाँ आपको इस बात पर विशेष ध्यान देना है कि समय के इस दबाव में आने के बाद आपके दिमाग ने किन-किन कंटेन्टस् को छोड़ दिया। साथ ही यह भी कि क्यों छोड़ दिया। आपको इन बातों की ही विशेष रूप से जांच करनी है। इनके जो भी निष्कर्ष मिलें, उन्हें आप एक कागज पर नोट कर लें।
- अब आपको इन लिखे हुए प्वाइंटस् से जो प्रष्न उत्पन्न हो रहे हैं, उन्हें हल करने के उपाय सोचने हैं। उपाय के रूप में कुछ इस तरह के कदम हो सकते हैं –
- क्या मेरी लिखने की गति कम थी? यदि हाँ तो क्या मैं इस गति को बढ़ा सकता हूँ? यदि आपको लगता है कि ऐसा किया जा सकता है, तो फिर आपको अपने इस चरण के अभ्यास में उस पर विशेष फोकस करना चाहिए।
- क्या ऐसा इसलिए हुआ कि मेरी तैयारी अच्छी नहीं थी, जिसके कारण तथ्य दिमाग में उतनी तेजी से नहीं आए, जितनी तेजी से आने चाहिए थे? यदि इसका उत्तर भी ‘हाँ’ में है, तो आपको अपनी तैयारी करने के तरीके पर ध्यान देना होगा। जहाँ तक तैयारी करने के इन तरीकों का प्रश्न है, मैं कई स्थानों पर इनकी चर्चा कर चुका हूँ। फिर भी यहाँ कुछ बिन्दुओं को दुहरा रहा हूँ- 1- कहीं ऐसा तो नहीं कि दिमाग में फालतू की चीजें कुछ ज्यादा ही भरी हुई हैं। 2- कहीं ऐसा तो नहीं कि दिमाग में स्पष्टता नहीं है। 3- विषय पर पकड़ का न होना भी धीमी गति का कारण होता है। पकड़ इसलिए नहीं बन पाती, क्योंकि विषय को उस तरीके से समझने की कोशिश नहीं की गई है। आदि-आदि।
यहाँ आपको जो भी तथ्य मिलते हैं, आगे के अभ्यास में उन्हें शामिल करना है। आगे के अभ्यास तभी आपको लाभ पहुँचा सकेंगे, जब आप अपनी तैयारी के स्वरूप में परिवर्तन लाएंगे। अन्यथा आप लिखने के अभ्यास के रूप में अपने-आपको दुहराते ही रहेंगे।
- यहाँ मैं यह बात भी कहना चाहूँगा कि कोशिश कीजिए कि आप लिखने के लिए जो प्रश्न ले रहे हैं, उस पर आपकी तैयारी अच्छी हो। कम से कम इस चरण में आप ऐसा न करें कि कोई भी प्रश्न उठा लें और लिखना शुरू कर दें। आप उन्हीं प्रश्नों को लें,जिन पर आपकी अच्छी तैयारी है।
- प्रश्नों को जाँचने के बाद अब आप उन्हें ही फिर से लिखें। सोच-समझकर लिखें। लेकिन समय का ध्यान रखें। आपका यह समय अधिकतम उससे अधिक नहीं होना चाहिए, जितना समय इस प्रश्न को आपने पहली बार लिखने में लगाया था। वेसे भी आप स्वाभाविक रूप से पाएंगे कि अब लगने वाला समय कम हो गया है। और यही आपकी सफलता का प्रमाण है। यदि आप चाहें तो अब खुद की तारीफ कर सकते हैं।
इस प्रकार इस द्वितीय चरण को आप पहले चरण का परिष्कृत रूप कह सकते हैं। वैसे भी जिन तीन चरणों की यहाँ परिकल्पना की गई है, ये तीनों चरण धीरे-धीरे रीफाइनमेंट करते चले जाने के ही चरण हैं। हमें धीरे-धीरे खुद में सुधार लाते चले जाना है। इसलिए मैं एक बार फिर से कहना चाहूंगा और कोई ताज्जुब नहीं कि आगे भी फिर से कहूं कि आपको हड़बड़ी से बचना है। ऊब से भी। समय लगता है, तो लगने दीजिए। ऊब होती है, तो होने दीजिए। छोड़िए मत। मानकर चलिए कि यही इस परीक्षा की वह सबसे बड़ी चुनौती है, जिससे घबड़ाकर अधिकांश विद्यार्थी इसे छोड़ देते हैं। यदि आप अन्त तक मैदान में डटे रहे, तो किले को फतह करना सुनिश्चित हो सकता है।
हाँ, आप यह अवश्य कर सकते हैं कि इस तरह का अभ्यास सप्ताह में एक या दो दिन करें। एक दिन भी करेंगे तो चलेगा। लेकिन जो करना है वह ‘करना है’ ही होना चाहिए। इसलिए यदि आपका अभी करने का मन नहीं कर रहा है, तो मत कीजिए। जब मन करने लगेगा, तब कर लीजिएगा। लेकिन मन को भी इतनी अधिक छूट न दे दें कि वह आपसे वैसा ही कराने लगे, जैसा कि वह कराना चाह रहा है। फिर तो हो सकता है कि उसका कभी मन करे ही न। ज्यादातर मामलों में ऐसा ही होता है, क्योंकि कहीं न कहीं एक यह तकलीफदेह मामला तो है ही। यदि तकलीफदेह न भी हो, तो इसे आप इन्टरटेनमेंट तो नहीं ही मान सकतेे हैं। इसलिए यदि मन बार-बार आपके खिलाफ जा रहा हो, तो आप उसे नियंत्रित करें। इसके बारे में मैंने विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर ‘‘स्टूडेन्ट और मन की शक्ति’’ नाम से एक किताब लिखी है। यदि आप मन की इस आदत से परेशान हैं, तो मैं आपको इस किताब को पढ़ने की सलाह दूँगा।
तृतीय चरण
दो चरणों को पार करने के बाद अब आप तीसरे चरण में प्रवेश कर गए हैं। यह केवल तीसरा चरण ही नहीं है, बल्कि अंतिम चरण भी है। यानी कि यहाँ आपको उत्तर लिखने की अपनी क्षमता के अधिकतम बिन्दु तक पहुँचना है। परफेक्शन को प्राप्त करना है। इसकी शुरूआत आपने मूलतः द्वितीय चरण से ही कर दी थी। इसलिए हम इस चरण को यदि द्वितीय चरण का ही एक्सटेंशन मान लें, तो गलत नहीं होगा। फिर भी मैंने ऐसा इसलिए नहीं किया है, क्योंकि हमेशा एक ऐसा अंतिम स्तर होता ही है, जहाँ पर चीजें अपने उच्चतम बिन्दु पर पहुँच जाती हैं। इसलिए इसे अलग स्तर के रूप में देखना बेहतर है।
यह इस मायने में द्वितीय चरण का विस्तार होगा कि अब आपको मुख्यतः दो पक्षों पर काम करना है। पहला यह कि समय कम होते-होते उस स्थिति तक पहुँच जाए, जितना समय किसी भी प्रश्न के लिए परीक्षा में निर्धारित किया जाता है। दूसरा यह कि उत्तर लिखते समय तथ्यों के छूटने की संख्या न्यूनतम रह जाए। मैं जानबूझकर ‘शून्य हो जाए’ की बात नहीं कह रहा हूँ। उसके चक्कर में आप बिल्कुल न पडं।़े अन्यथा बेवजह तनाव में आ जाएंगे, क्योंकि ऐसा होना लगभग-लगभग असंभव ही होता है। हाँ, यह वहाँ जरूर संभव हो जाता है, जहाँ आपको रटारटाया उत्तर लिखन को मिल जाए, जिसकी कोई गुंजाइश कम से कम इस परीक्षा में तो नहीं होती है।
यहाँ आप इस आदर्शतम स्थिति को अचानक प्राप्त करने के बारे में न सोचें। आप लिखने की शुरूआत लगभग ग्यारह-बारह मिनट के समय के दायरे को लेकर चलें। द्वितीय चरण में आपने पन्द्रह मिनट का समय लिया था। यहाँ वह स्टाप वॉच अधिकतम बारह मिनट की होगी। वैसे आपको लग रहा होगा कि तीन मिनट कम करना कौन सी बड़ी बात है। लेकिन यह बड़ी बात है। जैसे-जैसे आप ऊपर उठते जाते हैं, साँस लेने में दिक्कत होती जाती है। वही सिद्धान्त यहाँ भी काम करता है। थोड़ा-थोड़ा समय कम करना आपसे बहुत अधिक-अधिक जद्दोजहद की मांग करेगा। अब आप ग्यारह-बारह मिनट का टारगेट लेकर प्रश्न लिखने की शुरूआत करें और जैसे ही यह समय पूरा होता है, लिखना बन्द कर दें।
अब आप उस काम को अंजाम दें जैसा कि आपने द्वितीय चरण के उत्तर को जाँचने में दिया था। देखें कि समय की स्थिति क्या रही। देखें कि तथ्यों की स्थिति क्या रही। फिर इन दोनों के संदर्भ में स्वयं के लिखने की गति और दिमाग में तथ्यों के उभरने के बारे सोचें। फिर उन्हें फोकस करते हुए आगे के अभ्यास को अंजाम दें।
धीरे-धीरे आपको अपने अभ्यास के दौरान लिखने में लगने वाले इस समय को घटाते जाना है। औैर घटाते-घटाते उस सीमा तक पहुँचना है, जो सीमा परीक्षा में आपके लिए निर्धारित है। लेकिन यहाँ ध्यान इस बात का रखेंगे कि समय के साथ तथ्यों का तालमेल भी बैठना चाहिए।
यहाँ मैं एक बात तो बताना भूल ही गया। अब आपके सामने जो अंतिम चुनौती है, वह चुनौती पहले के दो चरणों से भिन्न है। लिखने के अभ्यास को वहाँ विराम दे दें, जहाँ आपका अभ्यास उस स्तर पर पहुँच जाएं कि आप परीक्षा हॉल में ही बैठकर उत्तर लिख रहे हैं। इसलिए तीसरे चरण के उत्तरार्द्ध में आपको ये दो तरीके विशेष रूप से शामिल करने होंगे –
- पहला तरीका जुड़ा है-प्रश्नों के चयन से। अब आप कोई भी प्रश्न उठाएं और उस पर लिखना शुरू कर दें। इस प्रश्न की तैयारी तो आपकी है, लेकिन बिल्कुल उसी रूप में नहीं है, जिस रूप में यहाँ आपने उत्तर लिखा है। परीक्षा में वही प्रश्न नहीं आने वाले जो आपने तैयार किए हैं। हाँ, टॉपिक वही हो सकते हैं।यहाँ आपको यही मानकर चलना है कि आप परीक्षा हॉल में बैठकर परीक्षा दे रहे हैं। यही आपका मनोविज्ञान होना चाहिए और इसी मनोविज्ञान के अनुकूल आपके अभ्यास भी होने चाहिए। इसलिए अब आप जो उत्तर लिखेंगे, उनके प्रश्न पहले से ही निर्धारित नहीं होंगे।
- अभी तक आप एक-एक प्रश्नों को लिखने का अभ्यास कर रहे थे। यहाँ पहुँचकर आपके पास एक साथ ही लिखने के लिए कई प्रश्न होंगे। आप समझ गए होंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि परीक्षा में आपको एक साथ बीस प्रश्नों के (सामान्य अध्ययन के अंतर्गत दो सौ-दो सौ शब्दों का एक प्रश्न) उत्तर देने होते हैं। आपने अनुभव किया होगा कि परीक्षा की शुरूआत में हमारा दिमाग अपेक्षाकृत अधिक सतर्क और ताजा होता है। ऊंगलियाँ भी कुछ ज्यादा ही चुस्त-दुरूस्त होती हैं। वैसे भी सामान्य रूप में हम उत्तर देने की शुरुआत उन्हीं प्रश्नों से करते हैं, जिन्हें हम दूसरे प्रश्नों की तुलना में बेहतर जानते हैं। जिन्हें हम बेहतर जानते हैं, उनके उत्तर लिखने में दिमाग को भी ज्यादा परेशानी नहीं होती।
यदि हम अपने तीन घंटे के समय को दो भागों में बांट देे, तो उसका पहला आधा भाग सर्वोत्तम होता है, जो हर दृष्टि से हमारे अनुकूल होता है। लेकिन उत्तरार्द्ध के आधे भाग में हमारी क्षमताएं शिथिल पड़ने लगती हैं। अब दिमाग थोड़ा थक गया है। कलाई भी उतना साथ नहीं दे रही है। ऊपर से मुश्किल यह कि अब लिखने केे लिए प्रश्न भी वे सामने आ रहे हैं, जो पहले से अधिक जुझारू दिमाग की मांग कर रहे हैं।
अब आप इन सभी स्थितियों का मुकाबला कैसे करेंगे? यह केवल अभ्यास से ही संभव है। इसलिए तृतीय चरण का अंतिम अभ्यास बिल्कुल उसी तरह का अभ्यास होगा, जो परीक्षा के लिए जरूरी होता है। यदि आप चाहें तो इसे ‘पायलट प्रोजेक्ट’ कह सकते हैं। या फिर बिल्कुल उसका प्रतिरूप (डुप्लीकेट)। यह अभ्यास आपको बहुत अधिक मजबूत बना देगा। हाँ, यह अवश्य है कि इसे बहुत ज्यादा करने की जरूरत नहीं है। फिर भी आप जितना ज्यादा से ज्यादा कर सकेंगे, यह अभ्यास आपको उतना अधिक मजबूत बनायेगा, आत्मविश्वासी बनाएगा और उस माहौल के साथ सहज भी बनाएगा।
इसके लिए आपको करना यह चाहिए कि प्रश्नपत्र के रूप में एक मॉक टेस्ट पेपर या तो खुद तैयार कर लें या फिर किसी से तैयार करवा लें। यदि दोनों ही उपलब्ध हों, तो किसी अन्य के द्वारा तैयार किए गए मॉक टेस्ट को ही चुनें। हाँ, इस बात का ध्यान जरूर रखें कि उन प्रश्नों केे स्तर सिविल सेवा परीक्षा के उत्तर से मेल खाते हों। यदि इस टेस्ट पेपर के प्रश्नों का स्तर कमजोर होगा, तो वह आपको गलतफहमी में डाल देगा।
अब आप इत्मीनान से तीन घंटे का समय निकालें और अपनी मानसिकता को उस स्थिति में ले जाएं, मानो कि आप परीक्षा हॉल में बैठे हुए हैं। चाहे समय की बात हो, चाहे कंटेन्ट लाने की बात हो और यहाँ तक कि चाहे इसके परिणाम की बात हो, अपनी चेतना को आप बिल्कुल परीक्षा वाले परिवेश में ढाल दें। यहाँ आप यह बिल्कुल न सोचें कि यह सब फालतू की बात है।
तीन घंटे का यह अभ्यास करने वाले विद्यार्थियों की कुल संख्या नहीं के बराबर होती है। विद्यार्थी अधिकतम एक-डेढ़ घंटे का ही अभ्यास करते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि कुछ टेस्ट तो इस तरह के अभ्यास के दिए जाने चाहिए।
यह सिद्धांत मैंने कुछ खिलाड़ियों से बातचीत करने के आधार पर निकाला है। मैं क्रिकेट के महान खिलाड़ी सचिन तेन्दुलकर का यह वक्तव्य पढ़कर रोमांचित हो उठा था कि ‘‘मैं किसी भी पिच पर मैच खेलने के पहले उस खेल को अपने दिमाग में खेल चुका होता हूँ’’। उन्होंने बताया था कि वे मैच से पहले ग्राउण्ड पर जाकर उसका मुआयना करते थे और फिर अपने दिमाग में वे सारी परिकल्पनाएं लाते थे, जो अगले दिन के खेल के दौरान हो सकती थीं कि दर्शक बैठे हुए हैं, कि बॉलिंग हो रही है, कि खिलाड़ी आउट हो रहे हैं, कि दर्शक चिल्ला रहे हैं आदि-आदि सब कुछ। मुझे यह बड़ी जोरदार बात लगी। काश! कि मुझे यह तब पता चला होता, जब मैं विद्यार्थी था। मुझे इस बात को स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं है कि इस तरह का अभ्यास मैंने नहीं किया था। हाँ लिखने का अभ्यास करता था, लेकिन छोटे-छोटे उत्तरों के रूप में। अब जरूर ऐसा करता हूँ, यदि मुझे कहीं जाकर बहुत महत्वपूर्ण संबोधन देना हो, तो। मैं इस बात को पूरी ईमानदारी के साथ स्वीकार भी करता हूँ कि इससे बहुत लाभ मिलता है।
जैसा कि मैंने कहा, तीन घंटे लिखने का अभ्यास करने के बाद अभ्यास करने के सारे चरण पूरे हो जाते हैं, बावजूद इसके कि अभी अभ्यास करने की एक चुनौती बाकी है। क्या आप उस चुनौती का अनुमान लगा पा रहे हैं? शायद आपने लगा लिया होगा। यह चुनौती है-तीन घंटे लिखने के बाद बीच में दो घंटे का रेस्ट और फिर इन दो घंटे के विश्राम के बाद फिर से तीन घंटे लिखने की चुनौती। मैं इस बारे में अलग से कुछ नहीं कहना चाहूँगा। इसे आपके ऊपर छोड़ता हूँ। लेकिन यदि आप इसका जवाब मुझसे ही पाना चाह रहे हैं, तो मेरा जवाब यह होगा कि ‘‘ऐसा करना बहुत जरूरी नहीं है, बशर्ते कि आप तीन घंटे का अभ्यास कर लेते हैं’’।
साथ ही मैं यहाँ यह भी कहना चाहूँगा कि यदि आप तीन घंटे का अभ्यास नहीं कर पा रहे हैं, तो अपने दिमाग में यह बिल्कुल भी न लाएं कि आप कोई बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं, कि आपसे कोई ऐसी महत्वपूर्ण चीज छूट रही है, जो सिविल सेवा परीक्षा में सफलता दिलाने के लिए अनिवार्य होती है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
लेकिन जहाँ तक एक-एक दो-दो प्रश्नों को लिखने के अभ्यास करने की बात है, मैं चाहूँगा कि उसके बारे में आप कोई विशेष छूट न लें। चाहे जैसे भी हो, खुद को कितना भी ठेलना-ठालना क्यों न पड़े, आप इसके लिए कहीं से भी समय क्यों न निकालें, लेकिन इसे करें जरूर। मैं यह नहीं कहता कि रोज करें। लेकिन एक सप्ताह या दस दिन में एक बार किया ही जाना चाहिए। यदि दो अभ्यासों के बीच में इससे अधिक अन्तराल होगा, तो आप पाएंगे कि आपकी इस क्षमता में जो वृद्धि होनी चाहिए थी, वह काफी कुछ बेअसर हो गई है। यह कुछ वैसा ही है, जैसे कि माँस पेषियां बनाने के लिए आपके पास जिम जाने के कई विकल्प हैं- रोज-रोज जिम जाना, एक-एक दिन छोड़कर जिम जाना, सप्ताह में दो दिन जिम जाना, सप्ताह में एक दिन जिम जाना या फिर जब भी समय मिले या मन करे तब जिम जाना। इनके प्रभाव और परिणाम के बारे में आप सोच लें और फिर इसी तरह के प्रभाव और परिणाम को आप उत्तर लिखने की अपनी क्षमता के ऊपर आरोपित कर दें।
अब आप खुद फैसला कर लें कि आपको क्या करना चाहिए।
NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.