आखिर क्या ढूँढ़ता है यू.पी.एस.सी. आपमें-1

Afeias
31 May 2014
A+ A-

To Download Click Here.

मित्रो, आप पढ़ते हैं, जी-जान लगाकर पढ़ते हैं, और वह सब कुछ पढ़ और रट जाते हैं कि उसके बाद पढ़ने को कुछ भी बच नहीं जाता। लेकिन दुर्भाग्य से सफलता अब भी बची ही रहती है। हाथ नहीं आती। सवाल है कि ऐसा होता क्यों है
आपकी इसी समस्या के हल एवं प्रश्न का उत्तर देने के लिए मैंने यह एक लम्बा लेख लिखने का फैसला किया है कि ‘‘आखिर क्या ढूँढता है यूपीएससी आपमें।’’ यदि एक बार आप यह जान लेंगे कि आपको भर्ती करने वाला आपसे क्या-क्या अपेक्षाएं रखता है, तो आप अपनी सफलता को सुनिश्चत कर सकेंगे। आप अब भी पढे़ंगे वही, जो अब तक पढ़ रहे थे, लेकिन आपके पढ़ने का ढंग बदल जायेगा। बस, यही तो चाहिए। लम्बा होने के कारण मैंने इस अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक लेख को दो भागों में बाँटा है। इसका दूसरा तथा अंतिम भाग आप इसी पत्रिका के अगले अंक में पढ़ेंगे।

तो आइए, अब हम आय.ए.एस. में सफल होने के उन रहस्यों को जानते हैं, जो यू.पी.एस.सी. हममें ढूँढ़ता है। ढूँढ़ने के लिए अन्ततः कोई न कोई उपाय तो निकालना ही पड़ता है। यू.पी.एस.सी. ने ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी देशों ने अपने यहाँ प्रशासनिक सेवाओं में भर्ती के लिए अपने-अपने ढ़ंग से उपाय निकाले हैं, जिनमें से लगभग-लगभग सभी ने परीक्षा और साक्षात्कार की पद्धति को ही अपनाया है। यू.पी.एस.सी. ने भी अपनी जरूरतों के हिसाब से उन पद्धतियों में आवश्यकतानुसार संशोधन करके तीन स्तर की परीक्षा लेने की पद्धति को स्वीकार किया है। इसके बारे में आप जानते ही हैं।

आपके मन में यहाँ एक प्रश्न आना ही चाहिए कि आखिर इस परीक्षा से कैसे यू.पी.एस.सी. हमारे अन्दर उन तत्वों को ढूँढ़ सकेगी, जो किसी भी प्रशासनिक अधिकारी के लिए जरूरी होती है। यदि यह प्रश्न आ रहा है, तो मैं समझता हूँ कि यह इस बात का शुभ लक्षण है कि आपमें आय.ए.एस. बनने के बीज मौजूद हैं। जाहिर है कि आप यदि इतिहास विषय लेते हैं, तो किसी जिले का कलेक्टर बनने के बाद सरकार आपसे उस जिले का इतिहास लिखने को नहीं कहेगी। यदि आप भूगोल लेते हैं, तो डी.एम. के रूप में आप जिले का नक्शा तैयार नहीं करेंगे। सामान्य ज्ञान का आपका खजाना उस समय विशेष काम का नहीं रहेगा, जब आप नौकरी में आ जाएंगे। तो जब ये सब किसी काम के ही नहीं होंगे, तो इसके साथ यू.पी.एस.सी. हमारी इतनी माथा-पच्ची क्यों कराता है?

इसका उत्तर बहुत ही सीधा और सरल है और वह यह है कि इन तरीकों से ही वह आपके मस्तिष्क, आपके विचार और आपके चरित्र, इन तीनों की जाँच-परख करता है। यह ठीक वैसे ही है, जैसे कि आप नया घड़ा खरीदने से पहले ऊपर से उसे अपनी उंगलियों से ठनठना कर देखते हैं। यदि आपको यू.पी.एस.सी. का यह पैटर्न बेकार लगता है, तो आपसे अनुरोध है कि क्या मुझे इससे बेहतर कोई ऐसा पैटर्न सुझा सकते हैं, जो पूरी तरह से फुलप्रूफ हो और जिसमें किसी तरह की चूक होने की कोई आशंका न हो। यह कठिन ही नहीं, बल्कि असम्भव भी है। यू.पी.एस.सी. की भर्ती की इस पद्धति के बारे में आप जो भी सोच रहे हों, लेकिन फिलहाल तो आपको इसी बात पर फोकस करना चाहिए कि जो भी है, जैसा भी है, इसी पद्धति से जूझकर आपको स्वयं को सिद्ध करना है कि ‘मैंं आइ.ए.एस. बनने के काबिल हूँ।’

मुझे लगता है कि बेहतर होगा कि आप यह जानें कि यू.पी.एस.सी. इन तीनों स्तरों की परीक्षा में आपसे आखिर चाहता क्या है। इससे आपको फायदा यह होगा कि आप यह बहुत स्पष्ट तौर पर समझ सकेंगे कि प्रारम्भिक परीक्षा में वह आपसे क्या अपेक्षा करता है, मुख्य परीक्षा में वह आपसे क्या चाहता है और अंत में साक्षात्कार के दौरान आपमें कौन-कौन से गुण अपेक्षित होते हैं। इससे आपको परीक्षा की तैयारी करने में मदद मिलेगी, मेरी इस बात पर तनिक भी संदेह न करें।

प्रारम्भिक परीक्षा

अब हम देखते हैं कि आय.ए.एस. के इस एन्ट्रेस एक्जाम में यू.पी.एस.सी. प्रारम्भिक परीक्षा के दौरान आपमें किन-किन गुणों की पूछ-परख करता है। पहले हम लेते हैं इसके स्वरूप को। इसके स्वरूप के निम्न तथ्य हैं –

  • इसमें एक सामान्य ज्ञान का पेपर होता है।
  • इसमें एक सी-सेट का पेपर होता है।
  • दूसरा स्वरूप आब्जेक्टिव टाइप का होता है।
  • दिए गए विकल्प बहुत उलझे हुए होते हैं, जटिल होते हैं और लम्बे होते हैं।
  • 120 मिनट में लगभग 80 से 100 प्रश्न हल करने होते हैं।

मस्तिष्क की स्पष्टता

यदि आप एक बार भी यू.पी.एस.सी. की परीक्षा में बैठे होंगे, (और यदि नहीं बैठे हैं, तो मेरा अनुरोध है कि इस लेख को आगे पढ़ने से पहले प्रारम्भिक परीक्षा के अनसाल्ड पेपर्स को एक बार जरूर पढ़ लें) तो प्रश्नों को हल करने के दौरान आपको लगा होगा कि ‘मैंने इसे पढ़ा है। मैं इसके बारे में जानता हूँ। लेकिन उत्तर देने में गलती हो गई।’ सच पूछिए तो प्रारम्भिक परीक्षा की सबसे बड़ी चुनौती यही है। आप प्रश्न को पढ़ते हैं और आपको लगता है कि मैंने इसे पढ़ा है। आपका यह लगना सही होता है। लेकिन जब आप विकल्प पढ़ते हैं, तब आपको समझने में दिक्कत महसूस होने लगती है कि इनमें से सही कौन-सा है। अधिकांश मामलों में तो यही होता है कि चारों विकल्पों में सत्यता का थोड़ा-थोड़ा अंश दिखाई देता है। जैसे ही आप विकल्पों पर जाते हैं, विषय की स्पष्टता धूमिल पड़ने लगती है। विकल्प दिए ही इस तरीके से जाते हैं, ताकि वे आपके लिए भूल-भूलैया की रचना कर सके।

तो प्रश्न यह उठता है कि ऐसी स्थिति में आप करेंगे क्या? फिलहाल यहाँ मैं केवल इतना कहना चाहूँगा कि यदि विषय पर आपकी पकड़ बहुत अच्छी नहीं है, बहुत स्पष्ट नहीं है, तो आप सही विकल्प तक पहुँचने में काफी परेशानी महसूस करेंगे। जाहिर है कि आपका मस्तिष्क विषय के बारे में जितना स्पष्ट होगा आप उतनी ही जल्दी और उतने ही सही विकल्प पर निशान लगा सकेंगे। क्या आपको नहीं लगता कि उस प्रशासक के दिमाग के विचार बिल्कुल स्पष्ट होने चाहिए, जिसके हाथ में सरकार ने समाज की बागडोर दे रखी है। यदि उसी के दिमाग में उलझाव होंगे, तो वह सही और स्पष्ट निर्णय कैसे ले सकेगा।

इसी से जुड़ी हुई बात है-मस्तिष्क के ‘ठोसपन’ की। इसे आप मस्तिष्क की मजबूती भी कह सकते हैं। आप सामान्य ज्ञान या सी-सेट के जब कुछ प्रश्न हल करेंगे, तब शुरूआत में तो आप काफी कुछ ठीक-ठाक रहेंगे, लेकिन आधे प्रश्न हल करने के बाद आपको महसूस होगा कि दिमाग कहीं न कहीं घूम रहा है और उलझ भी रहा है। दिए गए विकल्प दिमाग में कुछ इस तरह से गुत्थम-गुत्था होने लगे हैं, जिस तरह कभी-कभी ऊन के गोले के धागे आपस में उलझ जाते हैं। दो घंटे की समय सीमा निश्चित है। उसका भी दबाव दिमाग पर है। आधे प्रश्न अभी हल करने से बचे हुए हैं, लेकिन समय आधे से कम बचा हुआ है। इसका भी दबाव दिमाग पर है। अगर आपका मस्तिष्क बहुत ठोस और मजबूत नहीं है, तो आप विचलित हो जाएंगे। और यदि ऐसा हो गया, तो निश्चित जानिए कि आपके द्वारा दिए गए उत्तरों के गलत होने की सम्भावना बढ़ जाएगी और इस पहली ही प्रतियोगिता में आप दौड़ से बाहर हो जाएंगे। आप प्रश्नों को सही-सही संतुलन के साथ हल कर सकें, इसके लिए बहुत जरूरी है कि आपका मस्तिष्क ठोस हो और मजबूत भी।

मस्तिष्क की गति

जैसा कि आपको मालूम ही है, 120 मिनट का समय होता है और उसमें सामान्यतया सामान्य अध्ययन के सौ प्रश्न तथा सी-सेट के अस्सी प्रश्न हल करने होते हैं। यानी कि एक प्रश्न के लिए सवा से डेढ़ मिनट का समय मिलता है। मुझे लगता है कि भले ही यह बात सामान्य अध्ययन के पेपर पर इतनी लागू न हो, लेकिन सी-सेट के पेपर पर तो पूरी तरह से लागू होती है। वह बात यह है कि यदि इस दो घंटे के समय को तीन से चार घंटे कर दिए जाएं, तो अधिकांश विद्यार्थी अपने स्कोर को पहले की तुलना में डेढ़ गुना तक पहुँचा देंगे। यदि उन्हें सोचने और केलकुलेट करने के लिए थोड़ा अधिक समय मिल जाए, तो वे काफी प्रश्नों के सही उत्तर तक पहुँच जाएंगे।

लेकिन यदि ऐसा कर दिया गया, तो फिर अच्छे मस्तिष्क का चयन कैसे हो सकेगा, क्योंकि समय की पर्याप्त उपलब्धता सारे मस्तिष्कों को लगभग-लगभग समान स्तर पर ला देगी। स्पष्ट है कि जो मस्तिष्क जितनी जल्दी उत्तर सोच सकता है, केलकुलेट कर सकता है, वह मस्तिष्क उतना ही श्रेष्ठ माना जाता है। ‘कौन बनेगा महा करोड़पति’ में प्रवेश के लिए जो प्रश्न पूछा जाता है, वह इतना सरल होता है कि औसतन दस में से नौ लोग तो सही जवाब दे ही देते हैं। लेकिन उनमें से चयन उस एक का किया जाता है, जिसने जवाब सबसे पहले दिया था।

एक प्रशासक को बड़े-बड़े निर्णय लेने होते हैं। कभी-कभी तो ऐसी स्थिति आती है कि बहुत गंभीर निर्णय लेने पड़ते हैं और वे भी तत्काल। उसे सोचने-समझने का वक्त नहीं होता। ऐसे में यदि सुस्त मस्तिष्क के हाथों बागडोर सौंप दी गई, तो बात वही हो जाएगी कि ‘फसल सूखने के बाद बरसात होने से क्या फायदा’।

सी-सेट के पेपर में गणित संबंधी कुछ प्रश्न होते हैं, कुछ प्रश्न रिश्तों के बारे में होते हैं, कुछ प्रश्न लोकेशन्स के बारे में तथा कुछ प्रश्न दिशाओं के बारे में होते हैं। इन प्रश्नों की बुनावट इस तरह की होती है कि पढ़ने के बाद दिमाग कुछ इस तरह घूम जाता है कि समझ में ही नहीं आता कि हमने पढ़ा क्या है और वह जो पूछ रहा है, उसके उत्तर ढूँढ़ने का छोर कहाँ से पकड़ा जाए। ऊपर से तुर्रा यह कि समय की बेहद कमी है। लेकिन ऐसे भी मस्तिष्क होते हैं, जो फटाक से इनके उत्तर ढूँढ़ लेते हैं। वे इस ट्रिक को जानते हैं। वे इसके फार्मूला को जानते हैं। वे अपने इस ट्रिक और फार्मूले को पूछे गए प्रश्नों पर लागू करके शीघ्र ही उत्तर तक पहुँच जाते हैं। यह माना जाता है कि जो मस्तिष्क जितनी जल्दी गणना कर सकता है, वह मस्तिष्क उतना ही श्रेष्ठ होता है। वस्तुतः सी-सेट को लागू करने के पीछे एक उद्देश्य यह भी था।

याददास्त

देश की स्मृति इतिहास में दर्ज होती है और व्यक्ति के अपने अतीत की स्मृति उसके मस्तिष्क में दर्ज रहती है। सामान्य अध्ययन के पेपर में इस बात का तो सबसे अधिक महत्व होता ही है कि आपकी अपने विषय पर कितनी अच्छी पकड़ है और आप कितनी गहराई तक उस विषय को समझ सके हैं। यानी कि विषय की सूचना और ज्ञान के स्तर से भी गहरे उतरकर आप उस विषय के बोध के स्तर तक कितना पहुँच पाए हैं। लेकिन उसमें स्मृति का भी बहुत बड़ा योगदान होता है। लगभग एक तिहाई प्रश्न तो ऐसे होते ही हैं कि यदि आपके मस्तिष्क में याद रखने की क्षमता नहीं है, तो आप उन्हें हल नहीं कर सकेंगे। समसामयिक घटनाओं से जुड़े हुए प्रश्नों के साथ यह बात विशेष रूप से लागू होती है।

यह स्मृति भी बहुत सामान्य स्तर की स्मृति नहीं होती। यह भी कुछ इस तरह की स्मृति होती है, जैसे कि फुटबॉल का कोई खिलाड़ी अपने पाँच प्रतिद्वंद्वियों से घिरा होने बावजूद फुटबॉल को उनसे बाहर निकालकर गोल दाग है। यानी कि यहाँ सपाट स्मृति से बात नहीं बनती। यहाँ तो ऐसी स्मृति चाहिए, जो धुंधलके में भी अपनी चीज़ को बहुत साफ-साफ देख सके।

फोकस

सी-सेट के पेपर में अपठित गद्यांश के प्रश्न शामिल किए गए हैं। सच पूछिए तो सिविल सेवा के स्तर को देखते हुए ये प्रश्न कुछ-कुछ हास्यास्पद से ही लगते हैं। अनेक विद्यार्थियों को मैंने इन प्रश्नों को बहुत हल्के-फुल्के तरीके से लेते हुए देखा है। लेकिन यदि आप इसे थोड़ी भी गंभीरता से लेगें, तब आपको पता चलेगा कि सचमुच ये अपठित गद्यांश आपके मस्तिष्क के सामने कितनी बड़ी चुनौती पैदा करते हैं। और इसमें सबसे बड़ी चुनौती होती है-फोकस की।

आप उस गद्यांश को पढ़ते हैं और आपसे उसी गद्यांश पर आधारित तीन-चार प्रश्न पूछे जाते हैं और उनके विकल्प दिए जाते हैं। जब आप विकल्पों को पढ़ते हैं, तो उनमें से सटीक विकल्प छाँटने में आपको सबसे बड़ी दो दिक्कतें आती हैं। पहली दिक्त तो यह आती है कि दिए गए सारे विकल्प ही सही मालूम पड़ते हैं। वे सही होते भी हैं। समस्या यह होती है कि इनमें से वह विकल्प कौन-सा है, जो आपने गद्यांश में पढ़ा है। आप सही विकल्प को तभी पकड़ पाएँगे, यदि गद्यांश को पढ़ते समय आप अधिक फोकस रहे हों। यदि ऐसा हुआ तो यह इस बात का प्रमाण है कि आपका मस्तिष्क केवल गद्यांश पर ही पूरी तरह केन्द्रित था।

दूसरी चुनौती होती है कि आपका आपके मस्तिष्क पर नियंत्रण कितना था। आप देखेंगे कि जो विकल्प दिए गए हैं, उनमें से बहुत से विकल्प सामान्य ज्ञान की दृष्टि से पूरी तरह सही होते हैं। यहाँ तक कि यदि गद्यांश में से ही देना अनिवार्य न हो, तो सामान्य ज्ञान पर आधारित उत्तर ज्यादा सटीक बैठेगा। ऐसे समय में, जबकि आप गद्यांश के आधार पर उत्तर ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं, सामान्य ज्ञान आपके दिमाग में घुसपैठ करने लगता है। आपके लिए यह चुनौती होती है कि कैसे आप इस घुसपैठ को परे ढ़केलकर अपने मस्तिष्क पर किस तरह नियंत्रण बनाए रख पाते हैं।

दिमाग का कंसरटेशन किसी भी बड़े अधिकारी के मस्तिष्क की एक बहुत बड़ी विशेषता होती है। यदि फाइल पर वह पढ़ेगा कुछ और समझेगा कुछ, तो निश्चित जानिए कि ऐसा मस्तिष्क करेगा फिर कुछ और ही। तो सोचकर देखिए कि एक कलेक्टर के रूप में आप फाइल पर लिखे गए दो पेज का नोट पढ़ते हैं। पढ़ने के बाद आपको इसकी जानकारी अपने उस वरिष्ठ अधिकारी कमिश्नर को या मंत्रीजी को या मुख्य सचिव को देनी है। केवल देनी ही नहीं है, बल्कि दो पेज की सारी जानकारी को एक छोटे-से पैरा में दिलना भी है। क्या आपको लगता है कि ऐसा मस्तिष्क इस काम को अंजाम दे सकता है, जो फोकस न हो।

निर्णयन की क्षमता

वैसे यदि हम प्रारम्भिक परीक्षा के उलझन भरे विकल्पों में से सही विकल्प दिए जाने की चुनौती को चरित्र के रूप में समझने की कोशिश करें, तो इसे एक प्रकार से सही निर्णय लेने की क्षमता से जोड़कर देखा जा सकता है। एक प्रशासक की सबसे बड़ी सफलता इसी बात पर निर्र्भर करती है कि वह अपने जीवन में कितने सही निर्णय लेता है। वैसे तो हर व्यक्ति की सफलता ही उसके द्वारा लिए गए निर्णयों पर निर्भर करती है। किन्तु प्रशासक द्वारा लिए गए निर्णय इस मायने में अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हंै, क्योंकि जहाँ निजी व्यक्ति के निर्णय का प्रभाव उसके स्वयं के जीवन पर पड़ता है, वहीं एक प्रशासक द्वारा लिए गए निर्णयों से समाज और देश प्रभावित होता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर सी-सेट में निर्णयन से संबंधित कुछ प्रश्न रखे गए हैं।

आप निर्णयन से संबंधित प्रश्नों के विकल्पों को देखिए, आपको कोई भी विकल्प गलत नजर नहीं आएगा लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं कि सारे विकल्प सही हैं। उनमें से एक विकल्प वह होता है, जो सबसे अधिक सही होता है और सच्चे अर्थों में वही सही उत्तर भी होता है। जाहिर है कि सर्वोत्तम निर्णय ही सर्वोत्तम परिणाम दे सकते हैं।

वैसे भी सिविल सेवा में निर्णयन संबंधी जो प्रश्न दिए जाते हैं, उनका संबंध कहीं न कहीं व्यक्ति के अपने चरित्र, उसके नैतिक मापदण्डों, जीवन-मूल्यों, उसकी समझ तथा उसके व्यक्तित्व की अन्य कई विशेषताओं से जुड़ी हुई होती है। कोई भी निर्णय इन सबका मिला-जुला परिणाम होती है। ऐसी स्थिति में आपका उत्तर एक प्रकार से आपके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करने वाला बन जाता है।

सजगता-सतर्कता

प्रारम्भिक परीक्षा में सामान्य ज्ञान के पेपर में काफी कुछ प्रश्न सम-सामयिक घटनाओं से होते हैं, जिनमें से अधिकांश की अवधि परीक्षा के लगभग एक साल पहले से लेकर परीक्षा की अवधि के एक महीने पहले की होती है। प्रश्न यह है कि आखिर इस सम-सामयिक ज्ञान की उपयोगिता क्या है, क्योंकि इससे प्रशासक का सीधे-सीधे कोई लेना-देना नहीं होता।

दरअसल, ऐसा सोचना अपने-आप में एक गलत सोच है। प्रशासक के लिए यह बहुत जरूरी होता है कि वह इन समस्त गतिविधियों से वाकिफ हो। आप सोचकर देखिए कि अपने समय के स्वरूप, अपने समय की आवश्यकता और उस समय विशेष में उपलब्ध संसाधनों को जाने बिना कैसे कोई भी प्रशासक कुछ भी निर्णय ले सकता है। यदि आपको कोई आर्थिक निर्णय लेना है, तो तात्कालिक अर्थव्यवस्था की जानकारी चाहिए। यदि विकास संबंधी कोई निर्णय लेना है, तो आपको उस समाज की जरूरतों के बारे में जानकारी चाहिए। साथ ही यह जानकारी भी चाहिए कि यह सब कैसे सम्भव होगा। यही कारण है कि न केवल प्रारम्भिक परीक्षा में ही, बल्कि मुख्य परीक्षा में तो चार प्रश्न-पत्र ही सामान्य ज्ञान से संबंधित रखे गए हैं। यह कहना तनिक भी गलत नहीं होगा कि सामान्य ज्ञान आय.ए.एस. बनने के लिए रीढ़ की हड्डी है। अपने समय के प्रति समस्त और गहरी सूझ-बूझ रखना न केवल प्रशासक का ही बल्कि किसी भी शिक्षित नागरिक का एक बहुत बड़ा दायित्व होता है। यदि वह ऐसा नहीं कर पा रहा है, तो वह न केवल आय.ए.एस. बनने के ही नाकाबिल है, बल्कि वह सही मायने में एक शिक्षित और जिम्मेदार नागरिक कहलाने का भी हकदार नहीं है।

यहीं एक दूसरी बात भी है। सामान्य ज्ञान की अच्छी जानकारी होना इस बात को प्रमाणित करता है कि आपका मस्तिष्क बहुत सतर्क है और बहुत सजग भी है। चारों तरफ होने वाली घटना को आप देखते-समझते हैं और आपका मस्तिष्क उन्हें ग्रहण करता है। निश्चित रूप से ऐसे मस्तिष्क के पास सूचना और ज्ञान का एक बहुत संग्रह हो जाएगा, जिसका इस्तेमाल वह निर्णय लेते समय कच्चे माल के रूप में कर सकेगा। ऐसे मस्तिष्क के पास निश्चित तौर पर एक अलग ही तरह की दृष्टि और शक्ति होगी। ऐसे मस्तिष्क के पास सही निर्णय लेने की क्षमता उनकी तुलना में बहुत अधिक होगी, जो अपने समय के प्रति सतर्क और सजग नहीं हैं।
अपने समय के प्रति सजगता एक प्रकार से कहीं न कहीं मस्तिष्क के निरन्तर सक्रिय और गतिशील होने का ही प्रमाण होता है। यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि जो जितना सक्रिय और गतिशील होगा, उसके पास घटनाओं को विश्लेषित करने की क्षमता भी उतनी ही अधिक होगी। इसी से जुड़ा हुआ एक धु्रव सत्य यह है कि ऐसा मस्तिष्क उतना ही अधिक तार्किक होगा और तार्किक होने के कारण उतना ही अधिक दूरदर्शी भी होगा। किसी भी अच्छे प्रशासक के लिए ऐसे मस्तिष्क का होना न केवल अनिवार्यता ही है, बल्कि उसकी सबसे बड़ी पूँजी भी है।

Continue Reading: भाग 2