आई.ए.एस. की तैयारी के तरीके की तलाश-3
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जहां तक तैयारी करने के संसाधनों का सवाल है, मुझे तो यह तैयारी कुछ फकीराना अंदाज कीतैयारी लगती है, जहां चीजों की ज्यादा जरूरत नहीं होती, बल्कि थोड़ी सी ही चीजों की ज्यादा जरूरत होती है। यानी कि चीजें थोड़ी हों और उनके साथ मेहनत ज्यादा हो। यहां ‘मेहनत ज्यादा हो‘ का संबंध पढ़ाई करने के घंटे से नहीं है, बल्कि पढ़ाई करने के तरीके से है। इसके लिए आपको क्या-क्या चाहिए-
- रोजाना दो अखबार।
- एनसीईआरटी की किताबों के सेट।
- “योजना” और “कुरूक्षेत्र” नाम की पत्रिकाएं, जो बहुत सस्ती होती हैं।
- वैकल्पिक विषय की कुछ किताबें, तथा
- कुछ अन्य थोड़ी-बहुत किताबें, जिनकी संख्या दहाई के अन्दर ही होती है।मुझे नहीं लगता कि किसी विद्यार्थी में इतने भी संसाधन जुटाने की क्षमता नहीं होती होगी। क्या ऐसा ही नहीं है ?
क्या आवश्यक है ?
दरअसल, सिविल सर्विस परीक्षा की सफलता आपकी मेहनत पर उतना निर्भर नहीं करती, जितनी कि वह आपके मेहनत करने के तरीके पर निर्भर करती है। मित्रो, मेरे इस लेख का उद्देश्य उन तरीकों की चर्चा करना नहीं है। मेरा उद्देश्य तो केवल आपके हाथ में एक ऐसा आइना थमाना है, जिसमें आप अपने सच को देख सकें। इसलिए यहां तैयारी के बारे में मैं केवल उन तीन महत्वपूर्ण बिन्दुओं का संकेत मात्र देना चाहूंगा, जो आपके अपने सच को जानने के लिए कसौटी का काम करेंगे। ये तीन महत्वपूर्ण बिन्दु हैं –
- आपको अपने पढ़ने के उस पुराने तौर-तरीकों को छोड़ना होगा, जो चीजों को रटने पर आधारित था। यह सिविल सर्विसेज की तैयारी की सबसे बड़ी चुनौती है।
- तो फिर आपको करना क्या होगा ? यहां आपको छोटे से छोटे विषय तक को भी समझना होगा; उसी तरह समझना होगा, जैसे कि आप विज्ञान को समझते हैं। इसका कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि समझने के बाद ही आप उस विषय की विश्लेष्ण करने की उस क्षमता को प्राप्त कर सकेंगे, जो सिविल सर्विस परीक्षा के लिए एकमात्र संजीवनी बूटी है। यदि आप ऐसा करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं, तो आपको सिविल सर्विस की परीक्षा की तैयारी करने के बारे में एक बार फिर से विचार करना चाहिए।
- आपको अपनी पढ़़ाई की निरन्तरता को बनाए रखनी होगी, क्योंकि करेन्ट अफेयर अब सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी का ब्लड सर्कुलेशन बन चुका है। 80 प्रतिशत से कम प्रश्न करेन्ट अफेयर से जुड़े हुए नहीं होते हैं।
कुछ अजूबे प्रश्न
हाँ, मैं इन प्रश्नों को ‘अजूबे‘ ही करना पसन्द करूंगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये अक्सर और अधिकांश स्टूडेन्टस द्वारा पूछे जाने वाले सामान्य कोटि के ऐसे प्रश्न हैं, जो दरअसल पूछे ही नही जाने चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि मैं आपसे एक यह प्रश्न करूं कि “क्या मुझे भूख लगी है ?”, तो मेरे द्वारा किए गये इस प्रश्न के बारे में आप क्या सोचेंगे। यही न कि इसके बारे में भला मैं कैसे बता सकता हूँ।” क्या आपको मेरा यह प्रश्न अटपटा और कुछ-कुछ अजूबा नहीं लगेगा।
सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले मेरे नौजवानों दोस्तों के द्वारा इस तरह के कई-कई सवाल पूछे जाते हैं। और हद तो तब हो जाती है, जब ऐसा समझाने और मना किये जाने के बाद भी किया जाता है। आइये, यहाँ कुछ ऐसे प्रश्नों की फेहरिस्त पर एक नज़र मार लेते हैं –
– सर, मुझे कौन सा आप्शनल लेना चाहिए ?
– सर, मैं हिन्दी मीडियम लूं या इंग्लिश। या कि मराठी ठीक रहेगी ?
– सर, आई.ए.एस. की तैयारी के लिए सुबह पढ़ाई करनी चाहिए या रात में ?
– सर, कितने घण्टे की पढ़ाई करके आई.ए.एस. बना जा सकता है ?
– सर, मैं कोचिंग करूं या नहीं ?
प्लीज, आप अभी न तो मुझ पर नाराज हों, और न ही मेरी इस चिंता को “दो कौड़ी की फालतू की बात” कहकर तुरंत निरस्त कर दें। बल्कि ‘अजूबे प्रश्न’ की इस बात पर थोड़ी देर के लिए पूरे सदभाव के साथ विचार करें। और विचार करने के लिए मेरी ‘भूख‘ वाली कसौटी का यहाँ इस्तेमाल करें। तब शायद आपको यह लगेगा कि इन सभी प्रश्नों के सही-सही उत्तर यदि कोई देने की क्षमता और योग्यता रखता है, तो वह केवल “मैं ही हूँ।” हाँ, यदि आप ‘कामचलाऊ और टालू उत्तर’ चाहते है, तो उसके लिए मैं और मेरी ही तरह के अन्य बहुत से लोग उपलब्ध हैं।
कमजोर व्यक्तित्व का प्रमाण
मुझे यह कहने के लिए माफ कीजिएगा कि मैं उस तरह के प्रश्नों को प्रश्नकर्ता के लचर और अत्यंत कमज़ोर व्यक्तित्व के साक्ष्य के रूप में देखता हूँ। इसके कुछ कारण हैं।
पहला यह कि ये सब सामान्य और निहायत ही निजी फैसले होते है। हाँ, महत्वपूर्ण जरुर होते है। मुझे लगता है कि जो युवा अपने निजी फैसलों को भी लेने में सक्षम नहीं है, वह सिविल सर्र्वेन्ट बनने के बाद करेगा क्या, क्योंकि वहाँ तो दूसरो के बारे में फैसले करने पड़ेंगे। समाज के लिए निर्णय लेने पडे़ंगे। यह हमारे अंदर के इस भय का प्रगटीकरण है कि कही पासा गलत न पड़ जाये।
दूसरी बात यह भी कि वह भले ही सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी करने में लग गया है, लेकिन उसे तैयारी करने का रास्ता मालूम नहीं है। इसकी तैयारी इतने मशीनी तरीके से नहीं होती है, जैसा कि सोच लिया जाता है। निःसंदेह रूप से उसकी एक प्रणाली है। किन्तु वह विषयों और घंटों की मुहताज नहीं है। इसे तो अपना सिस्टम चाहिए। और आपको चाहिए यह कि आप अपनी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उस सिस्टम को पूरा करें। बस उतना ही। तभी तो आप जितने भी सफल प्रतिभागियों की बातें सुनते हैं, उन सबका आपको अलग-अलग सिस्टम सुनने को मिलता है।
हाँ, यह जरूर है कि आप अंतिम निर्णय तक पहुँचने के लिए लोगों से कान्टेन्ट ले सकते हैं । लेकिन उनसे फाइनल निर्णय न पूछें। वे बतायेंगे। वे तर्क एवं तथ्यपूर्ण तरीके से बतायेंगे। लेकिन आवश्यक नहीं कि उनका बताया हुआ आपके लिए सही होगा। ऐसा करके आप अपना नियंत्रण दूसरों के हाथ में दे रहे हैं, जो आगे चलकर सही नहीं होगा। यदि वह सही हुआ भी, तो उसे एक इत्तफाक ही मानें।
इस मायने में यह परीक्षा बहुत खुली और उदार किस्म की परीक्षा है, जिसमें न तो प्रश्न बंधे हुए होते है, और न ही उत्तर । हाँ, इसका एक पाठ्यक्रम जरुर है, लेकिन उसमें भी खुलेपन की नीति का पर्याप्त इस्तेमाल किया गया है। आपने महसूस किया होगा कि पाठ्यक्रम के तहत अलग-अलग अध्यायों का उल्लेख न करके एक प्रकार की सांकेतिक भाषा का उपयोग किया गया है। इसके कारण पाठ्यक्रम को समझने और उसे पूरा करने में निश्चित रूप से आपको दिक्कत आती होगी। लेकिन मुझे लगता है कि उसका यही धुंधलापन उसकी सबसे बड़ी ताकत है और आपके लिए चुनौती भी। यदि आप शुरू से ही स्वयं खुलेपन का आश्रय लेकर चल रहे हैं, तो निःसंदेह रूप से आपके लिए यही चुनौती आपकी शक्ति और आपकी विशिष्टता बन जायेगी। यहीं आप दूसरों से बाज़ी मार ले जायेंगे। और यही वह स्पेस है, वह अंतराल है, जो परीक्षा की सम्पूर्ण तैयारी के लिए आप सबको अपनी-अपनी तैयारी के लिए अपना-अपना तरीका तलाश करने का अवसर उपलब्ध कराती है।
दोस्तो, आपके पास अब बस केवल एक ही काम बचता है, वह यह कि आपके पास अब तीन चीजें हो चुकी हैं। पहला यह कि आप क्या हैं यानी कि आपकी पृष्ठभूमि क्या है। दूसरा यह कि सिविल सर्विस को क्या-क्या चाहिए और तीसरा यह कि यू-ट्यूब में सफल प्रतियोगियों के द्वारा सफलता के लिए बताए गए टिप्स। अब आपको चाहिए यह कि आप इन तीनों को एक साथ मिलाकर इन्हें दही की तरह मथें और फिर उसमें से अपने सच का मक्खन निकालें। अब आप यह निर्धारित करें कि आपके लिए क्या-क्या जरूरी है। मुझे लगता है कि यही वह टोपी होगी, जो आपके सिर पर बिल्कुल फिट बैठेगी और यही वह तरीका होगा, जो आपको कुछ समय बाद उस स्थिति में ला देगा कि आप दूसरों को बता सकेंगे कि “मैंने ऐसे-ऐसे तैयारी की थी।”
मेरी बहुत-बहुत शुभकामनायें आपके साथ हैं।
NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.