प्रारम्भिक परीक्षा: सीसैट की तैयारी

Afeias
21 Jul 2014
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सीसैट क्यों?

पूरी दुनिया में धीरे-धीरे लोकतांत्रिक व्यवस्था का विस्तार होते जा रहा है। यहाँ तक कि कम्यूनिस्ट देश भी लोकतांत्रिक उदारवाद की ओर बढ़ रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि अर्थव्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था एक-दूसरे के काफी नजदीक आने लगे हैं। इसके कारण निश्चित रूप से प्रशासनिक अधिकारियों के दायित्व में मूलभूत बदलाव आए हैं। अब उनका काम देश की केवल कानून और व्यवस्था की स्थिति को ही बनाए रखना नहीं है, बल्कि अब उन्हें देश और समाज के चौतरफा विकास की जिम्मेदारी भी पूरी करनी है। इस जिम्मेदारी को पूरा करने की प्रक्रिया में प्रशासन की अफसरशाही के पुराने नियम टूट हैं और उसकी जगह अर्थशास्त्र के प्रबंधन के नियम आते जा रहे हैं।

अब अफसर अपने को एक विशिष्ट व्यक्ति समझकर गाड़ी और ऑफिस तक सीमित नहीं रख सकता। उसे लोगों के बीच जाना है। उनकी समस्याओं से जूझना है और उनकी समस्याओं का समाधान भी निकालना है। उसे विकास संबंधी नीतियाँ बनानी हैं, निर्णय लेने हैं और सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उन लिए गए निर्णयों के परिणाम भी दिखाने हैं। हमारे देश में अब जो सोशल आडिट की बात की जाने लगी है, उसमें इसी बात की जाँच-परख की जाती है कि किसी योजना का सही मायने में लोगों को कितना लाभ मिला। जाहिर है कि इन बदले हुए दायित्वों को निभाने के लिए एक अलग ही तरह के माइंड सेट की जरूरत है। अब शासक नहीं बल्कि सेवक चाहिए। अब प्रशासक नहीं प्रबंधक चाहिए। सच पूछिए तो सीसैट के पेपर को शामिल करने के पीछे मुख्य उद्देश्य इसी तरह के मस्तिष्क और व्यक्ति की तलाश करना है।

तीन साल पहले जब यह पेपर लागू किया गया था, तब परीक्षार्थियों के साफ-साफ दो वर्ग दिखाई देने लगे थे। पहले वर्ग में इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के स्टूडेन्ट्स थे। इन्होंने सीसैट के पेपर का तहे दिल से स्वागत किया, क्योंकि इसे उन्होंने अपने हित में पाया। ऐसा नहीं था कि यह कोई ऐसा पेपर था, जिसकी परिकल्पना अभी-अभी की गई थी। इसी तरह के कुछ प्रश्न इससे पहले के सामान्य अध्ययन के पेपर में भी पूछे जाते थे, लेकिन उनकी संख्या दस प्रतिशत से ज्यादा नहीं थी। बैंकों में, मैनेजमेंट की प्रवेश-परीक्षाओं में यह पहले से ही मौजूद था। हाँ, यह बात अलग है कि उनका स्तर इससे थोड़ा कम था। यही कारण रहा कि इस वर्ग के स्टूडेन्ट्स ने इसे पसन्द किया। पिछले दो-तीन साल से प्री के जो रिजल्ट आ रहे हैं, वे भी इस बात को प्रमाणित कर रहे हैं कि इंजीनियरिंग के स्टूडेण्ड्स को इससे लाभ मिल रहा है। इससे पहले चूँकि अधिकतम दस प्रतिशत प्रश्न ही सीसैट के पैटर्न के होते थे, इसलिए कोई भी विद्यार्थी उसे मैनेज कर लेता था। लेकिन अब, जबकि पूरा एक पेपर ही इसका आ गया है, मैनेज करने की बात कम हो गई है।

निश्चित रूप से दूसरा वर्ग आर्टस् के विद्यार्थियों का था, जिनका नाता गणित से बहुत पहले ही छूट चुका था, उनमें घबराहट फैली, जो स्वाभाविक भी थी। लेकिन सवाल यह था कि क्या उनकी घबराहट वास्तव में जायज थी? जब भी कोई नए बदलाव होते हैं, घबराहट होती ही है। धीरे-धीरे चीज़ें ठीक होने लगती हैं, जैसे कि अब हो गई हैं। वैसे मैं यहाँ यह बात विशेष रूप से बताना चाहूंगा कि लाभ और हानि का यह मामला एकतरफा बिल्कुल नहीं है। यदि साइंस के स्टूडेंट्स को गणित के प्रश्नों का लाभ मिलेगा, तो निश्चित रूप से आर्ट्स एवं कामर्स के स्टूडेंट्स को बोधगम्यता तथा निर्णयन का। इसमें साइंस पृष्ठभूमि के लड़के थोड़े कमजोर सिद्ध होंगे। इस प्रकार टोटल सच्चाई तो यही है कि यह पेपर 60 प्रतिशत आर्ट्स वालों के पक्ष में है, तो 40 प्रतिशत साइंस वालों के पक्ष में।

सीसैट में ‘ए’ अक्षर सबसे महत्वपूर्ण अक्षर है। यही इस पूरी परीक्षा की आत्मा है। ‘ए’ का अर्थ है-एप्टीट्यूट। सामान्य तौर पर एप्टीट्यूट का मतलब होता है- उपयुक्तता, रुझान, सहज- योग्यता, प्रवृत्ति तथा सीखने की तत्परता आदि। न तो गणित एप्टीट्यूट है और न ही ज्ञान एप्टीट्यूट है। सामान्य अध्ययन का पेपर ज्ञान से जुड़ा हुआ है। अधिकांश विद्यार्थी सीसैट के पेपर को गणित से जोड़कर देखते हैं। यहाँ वे गलत करते हैं। दरअसल सीसैट के पेपर में जो भी अलग-अलग तरीकों के प्रश्न शामिल किए गए हैं, वे एक प्रकार से व्यक्ति की मानसिक क्षमता की जाँच करने का तरीका भर है।

आमतौर पर यह माना जाता है और आज से ही नहीं बल्कि यूनान के दार्शनिक प्लेटो के समय से ही यह मान्यता चली आ रही है कि गणित जानने वाला मस्तिष्क अपेक्षाकृत एक बेहतर मस्तिष्क होता है। इसे आप ब्रेन की बेस्ट क्वालिटी कह सकते हैं। यहाँ गणित से मेरा मतलब गणना करने से है, केलकुलेशन करने से है, फटाफट सोचकर नतीजा निकालने से है न कि मैथेमेटिक्स के सवालों को हल करने से। गणित के सवाल तो केवल टूल्स का काम करते हैं। आखिर जाँच करने के लिए कोई न कोई उपकरण तो चााहिए ही।
आप यह मानकर चलें कि सीसैट के पेपर में जिन छः-सात तरीके के सवाल पूछे जाते हैं, वे मूलतः आपके मस्तिष्क के रुझान को जाँचने के टूल्स हैं। आपको इसे अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। मैं यहाँ आपका ध्यान इस तथ्य की ओर इसलिए दिला रहा हूँ, क्योंकि मुझसे यह प्रश्न पूछने वाले लड़कों की संख्या कम नहीं होती, जो जानना चाहते हैं कि ‘‘सर, हम सीसैट के लिए कौन-सी किताब पढ़ें।’’ उनका यह प्रश्न स्पष्ट कर देता है कि उन्हें सीसैट के पेपर के पीछे निहित उद्देश्य की जानकारी ही नहीं है। वे इस तथ्य को समझ नहीं पाए हैं कि सीसैट की किताब पढ़ने की नहीं होती, समझने की होती है और समझने के बाद उसे करने की होती है। किताब तो आपको सिर्फ सीसैट की तैयारी के लिए एक लैब उपलब्ध कराती है, वर्कशॉप उपलब्ध कराती है। यह एक प्रकार से जिम की तरह होता है। आप जब जिम में जाते हैं, तो वहाँ रखे गए मशीनों के बारे में जानकारी हासिल नहीं करते। आप उनका उपयोग करते हैं और अपनी जरूरत के अनुसार इस तरह उपयोग करते हैं कि आपके मसल्स मजबूत हो सकें। यह काम करने से पूरा होता है, देखने और जानने से नहीं। जब आप सीसैट की किताब खोलकर उनके सवालों को हल करते हैं, हल करते ही जाते हैं, तब इस प्रक्रिया में आपका दिमाग सक्रिय हो जाता है। इसे आप यूं कह सकते हैं कि अब आप पहली बार अपने दिमाग को कसरत करा रहे हैं। आप रटकर सीसैट की वैतरणी को कभी भी पार नहीं कर सकते, फिर चाहे आप कितने ही अद्भुत फोटोग्राफिक मेमोरी के मालिक क्यों न हों। यहाँ तो आपको सूत्रों को समझना पड़ेगा और इससे भी बड़ी बात यह कि समझकर उन्हें एप्लाई करना पड़ेगा। हर प्रश्न के साथ आंकड़े बदल जाते हैं। हर प्रश्न के साथ दिए गए आंकड़ों के आपसी संबंध बदल जाते हैं। सूत्र तो आपको याद हैं, लेकिन हर प्रश्न के साथ उन सूत्रों को लागू करने का तरीका बदल जाता है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे कि संगीत के सात स्वर होते हैं, लेकिन जब किसी गीत का संगीत तैयार किया जाता है, तो सभी गीतों के संगीत अलग-अलग होते हैं, बावजूद इसके कि सुर सभी में वे सात ही होते हैं।

इसे ही कहा जाता है- ‘क्रिएटिवीटी’ यानी रचनात्मक क्षमता। यह क्षमता जानने से नहीं आती, करने से आती है। न तो पढ़ने से आती है और न ही रटने से। यदि आपको तैरने के सारे नियम रट जाएं, तो क्या आप तैराक बन जाएंगे? यह तो हो सकता है कि तैरने के नियम मालूम न हो और नियमों को जाने बिना ही यदि तैरना शुरू कर दें, तो तैराक बन जाएंगे, लेकिन ऐसा कतई नहीं हो सकता कि तालाब में तैरे बिना ही केवल इस आधार पर आप तैराक बन जाएं कि ‘‘मैंने तैराकी में पीएचडी कर रखी है।’’
क्रिएटिव माइंड सबसे अच्छा माइड होता है और सीसैट के पेपर के पीछे इसी तरह के माइंड की तलाश करने की फिलासफी छिपी हुई है। आप किसी भी अन्य किताब को 4-5 घंटे तक पढ़ सकते हैं, लेकिन सीसेट की किताब को लगातार इतने घंटे नहीं पढ़ सकते है। आप ट्राई करके देख लीजिए। यदि मैं कह रहा हूँ कि नहीं पढ़ सकते, तो मेरा मतलब किताब को खोलकर उसे बांचते हुए उसके पन्ने उलटने से नहीं है। मेरा मतलब उसे समझने से हैं, इस तरह पढ़ने से है कि वह आपके दिमाग का हिस्सा बने। आप थोड़ी ही देर में थक जाएंगे, पजल्ड होने लगेंगे। आपको महसूस होने लगेगा कि ‘मैं भ्रमित हो रहा हूँ।’ ऊब होने लगेगी और काफी कुछ झुंझलाहट भी। आपको सोचना चाहिए कि सीसैट की किताबों के साथ ऐसा क्यों होता है? उत्तर बहुत सरल है। यहाँ दिमाग को जद्दोजहद करनी पड़ती है।

बहुत कम लोग मेहनत करना चाहते हैं। बहुत कम लोग दिमाग की इस तकलीफ को बर्दाश्त कर पाते हैं। इसीलिए तो बहुत कम लोग गणित से दोस्ती निभा पाते हैं। लेकिन इसमें दोष गणित का नहीं है। वह तो बहुत प्यारा दोस्त है और सबसे अधिक विश्वसनीय भी। यदि आप उसे साध लेते हैं, तो वह बहुत प्यारा लगने लगता है। यदि आप साध नहीं पा रहे हैं, तो इस बात को पूरी ईमानदारी के साथ स्वीकार कीजिए कि इसके लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार आप ही हैं न कि वह आपका दोस्त, जिसका नाम गणित है, तर्क क्षमता है, मानसिक योग्यता है। आप ऐसे लोगों से मिले होंगे, जो इसे अपना दोस्त मानते हैं। इसीलिए तो इंजीनियरिंग वालों को इसका फायदा मिल जाता है।

सीसैट के मूल तत्व

आप जानते हैं कि सीसैट के सिलेबस को मुख्यतः सात बिन्दुओं में बांटा गया है। हालांकि हैं तो ये सात बिन्दु, लेकिन मुख्यतः मैं इन्हें तीन श्रेणियों में ही बांटकर देखता हूँ। इसकी एक श्रेणी गणित की है। दूसरी श्रेणी तर्कशक्ति से जुड़ी हुई है तथा तीसरी श्रेणी परिच्छेद वाली है, जो भाषा ज्ञान के साथ-साथ तत्काल सही-सही सोचने की क्षमता से जुड़ी हुई है। सीसैट को मैंने गहराई से समझने की कोशिश की है। मैंने पिछले तीन साल के पेपर्स का भी इस दृष्टि से गहन अध्ययन किया है कि आखिर इसके मूल तत्व है क्या? आखिर यह पेपर अपने अलग-अलग तरीके के अलग-अलग सवालों के द्वारा मस्तिष्क के किन विशेष गुणों की जांच करना चाहता है? इस बारे में मुझे जो तीन मुख्य तत्व मिले हैं, उन्हें मैं आपको बताना चाहूंगा। आपको इसे जानना इसलिए जरूरी है, ताकि आप सीसैट की तैयारी के साथ अपना आन्तरिक एवं मानसिक संतुलन बैठा सकें। इसे कभी न भूलें कि सीसैट की तैयारी मूलतः मानसिक तैयारी है, ज्ञान का अर्जन बिल्कुल नहीं। यदि आप इसे नहीं समझेंगे, तो मुझे आशंका है कि आपको इसका पूरा लाभ मिल पाएगा।

सीसैट के ये तीन मुख्य तत्व हैं –

  • गणना,
  • गति, तथा
  • फोकस।

गणना से मेरा मतलब मस्तिष्क की इस क्षमता से है कि वह किसी चीज़ के बारे में कितनी जल्दी निष्कर्ष निकाल सकता है। आपको गणित के सवाल दिए जाते हैं, जिसमें औसत से संबंधित प्रश्न होते हैं, प्रतिशत से संबंधित होते हैं, ब्याज तथा अन्य कई तरह के सवाल होते हैं। रक्त संबंधों की बात होती है, पजल्स दिए जाते हैं, अंकों की श्रृंखलाएं दी जाती हैं, अंग्रेजी के अक्षरों की व्यवस्थाएं दी जाती हैं और आपसे सही उत्तर की मांग की जाती है। आप ऐसा करेंगे कैसे? जाहिर है कि केलकुलेशन के द्वारा। यहाँ गणना करने की आपकी क्षमता ही आपकी उद्धारक हो सकती है। यहाँ अन्य कोई उपाय काम नहीं आएगा। अनुमान के चक्कर में तो पड़िएगा ही मत। जनरल स्टडीज के पेपर में तो अनुमान थोड़ा-बहुत चल भी जाता है, क्योंकि आपको लगता है कि यह कहीं सुना था, कहीं पढ़ा था, कहीं देखा था और ऐसा-ऐसा हो सकता है। लेकिन यहाँ इसकी कोई गुंजाइश नहीं है। यहाँ तो आप तभी सही मंजिल तक पहुँच पाएंगे, जब आपका दिमाग गणना करेगा। निश्चित तौर पर गणना करने की क्षमता रखने वाला दिमाग श्रेष्ठ दिमाग होता है।

अब बात आती है गति की, स्पीड़ की। सीसैट के पेपर में आपको 120 मिनट में 80 प्रश्न हल करने होते हैं। यहाँ जनरल स्टडीज की तुलना में आपके साथ रियायत बरती गई है, क्योंकि वहाँ इतने ही समय में 100 प्रश्न हल करने होते हैं। जबकि ऐसा नहीं है कि जनरल स्टडीज के प्रश्न इतने आसान होते हैं कि ऐसा किया जा सकता है। वहाँ विकल्पों का ऐसा जाल बुना जाता है कि स्टूडेण्ड्स की समझ में ही नहीं आता कि इससे ठीक पहले के विकल्प में मैंने क्या पढ़ा था। फिर भी यदि जनरल स्टडीज में इतने ही समय में 20 अधिक प्रश्न हल करने को कहा गया है, तो उसके पीछे धारणा यही है कि इन प्रश्नों के साथ ‘अनुमान लगाने की क्षमता’ का उपयोग किया जा सकता है। लेकिन सीसैट के साथ नहीं।

यहाँ एक बात और है। मैं आपको एक वैकल्पिक उपाय सुझा रहा हूँ। आप सीसैट के पेपर के 80 प्रश्न ले लीजिए। पहले इन्हें 120 मिनट में हल कीजिए। आप देखिए कि आपके कितने स्कोर हुए हैं। अब आप इन्हीं 80 प्रश्नों को ढाई घंटे में हल कीजिए। देखिए कि अब स्कोर कितना हो गया है। बेहतर होगा कि एक तीसरा चांस भी लें और इसके लिए तीन घंटे लगाएं। आपको यह देखकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आपके स्कोर लगातार बढ़ते चले गए हैं। ऐसा क्यों हुआ? उत्तर साफ है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि आपको समय अधिक मिल गया। इन्हीं 80 प्रश्नों को 120 मिनट में हल करने के लिए निश्चित तौर पर आपको अपने गणना करने की स्पीड़ को तेज करना होगा। अधिक समय देने का मतलब है स्पीड़ का कम होना। क्या दिमाग के स्पीड़ का कम होना कहीं न कहीं दिमाग के सुस्त होने का प्रमाण नहीं है? क्या आप अपने जिले में सुस्त दिमाग वाले कलेक्टर और एस.पी. की पोस्टिंग चाहेंगे? सुस्त दिमाग का मतलब होता है- आलसी दिमाग यानी कि आलसी आदमी, आलसी अफसर।

अब अंतिम बात है- फोकस की। इसका मतलब है ‘कंसनट्रेशन आफ माइंड’। सीसैट के पेपर में परिच्छेद दिए जाते हैं। मैं समझता हूँ कि वे सबसे अधिक सरल होते हैं और सबसे अधिक स्कोरिंग भी। किसी भी स्टूण्डेड को इसमें 100 में से 100 स्कोर करने का लक्ष्य रखना चाहिए। आप ऐसा कर सकते हैं। अपठित गद्यांश वाले अंश आपके पढ़ने की तकनीक से जुड़ा हुआ अंश है। पढ़ने की यह तकनीक मुख्यतः आपके मस्तिष्क की केन्द्रीयता से जुड़ी हुई है। यह इस बात की जांच करती है कि आप किसी भी तथ्य को कितने फोकस तरीके से देख सकते हैं, समझ सकते हैं और उस पर कितनी देर तक टिके रह सकते हैं। यह अप्रत्यक्ष रूप से कम्यूनिकेशन स्कील का बहुत महत्वपूर्ण एवं गहरा मनोवैज्ञानिक पक्ष है। अपठित गद्यांश तथा उसके आधार पर पूछे जाने वाले प्रश्न आपके संवाद को समझने की क्षमता की जांच करते हैं। आप यह कभी न भूलें कि जो मस्तिष्क संवाद को अच्छी तरीके से समझ नहीं सकता, वह मस्तिष्क कभी भी दूसरों के साथ अच्छा संवाद कर भी नहीं सकता। प्रशासक के पास एक बहुत ही सटीक और सारगर्भित संवाद-कौशल होना चाहिए और यह कुशलता इस बात पर निर्भर करती है कि उस व्यक्ति में किसी तथ्य पर फोकस्ड रहने का गुण कितना अधिक है।

सी-सेट की तैयारी

तो मित्रो, सी-सेट की तैयारी के लिए सबसे पहले तो मैं आपको यह सलाह देना चाहूँगा कि आप अपनी मानसिक जड़ता से मुक्त हों। इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि आप ह्यूमेनीटी पृष्ठभूमि के विद्यार्थी रहे हैं और आपके पास अंग्रेजी का सामान्य सा ही ज्ञान है, तो सी-सेट का पेपर देखने में आपको डरावना और अनुभव में आपको बहुत उलझाने वाला जरूर लगेगा। लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि ऐसा तभी तक है, जब तक कि आप इसे ऐसा समझ रहे हैं। यदि एक बार आपने साहस जुटाकर इससे टकराने का फैसला कर लिया और अपना कुछ समय इसकी व्यवस्थित तरीके से तैयारी करने में लगा दिया, तो निश्चित रूप से यही पेपर आपका सबसे प्रिय पेपर बन जाएगा।

मैं आपकी इस स्थिति को अच्छी तरह समझ रहा हूँ कि एक लम्बे समय से इससे आपका नाता टूट चुका है। इस संबंध को टूटे हुए कम से कम सातल साल तो हो ही गए हैं। लेकिन यह न भूलें कि उसके बीज अभी भी आपके अन्दर हैं। जरूरत केवल उन बीजों पर पानी छिड़ककर उन्हें अंकुरित करने की है। मजबूत मानसिकता की थोड़ी सी गर्मी और मेहनत के थोड़े से छिड़काव से सुस्त पड़े वे बीज अंकुरित होने लगेंगे। आपकी इसी मानसिकता की पृष्ठीभूमि में मैं इस पेपर की तैयारी के बारे में आपसे कुछ बातें करने जा रहा हूँ।

(i) तार्किक कौशल

इसके अंतर्गत ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं, जिनसे यह जाना जा सके कि आप किसी भी जटिल विषय को आसानी के साथ कैसे सुलझा सकते हैं। जैसे कि ‘’अ’ ‘ब’ से बड़ा है और ‘ब’ ‘स’ से छोटा है’ जैसे प्रश्न। दरअसल ऐसे प्रश्न होते तो सरल हैं, लेकिन आपको शब्दों की भूलभूलैया में उलझाकर भ्रमित किया जाता है। इन्हें हल करने के लिए एकाग्रता की जरूरत होती है। इनके सही उत्तर तक पहुँचने का एक आसान सा तरीका यह होता है कि इसकी प्रत्येक स्थिति के अनुसार आप अलग से बिन्दुवार चार्ट बना लें। चार्ट बनाते ही आप पाएंगे कि सही उत्तर तक पहुँचने का रास्ता कितना आसान हो गया है।

इसके अंतर्गत अभी तक अन्य तीन तरह के प्रश्न भी पूछे गए हैं, जैसे रक्त संबंध वाले प्रश्न, जिसमें पारिवारिक रिश्ते दिए जाते हैं, पहेली वाले प्रश्न, जिसे अंग्रेजी में पझल कहा जाता है। यह भी एक प्रकार से एक सरल सी बात को कहने का जटिल तरीका होता है। इन दोनों ही तरह के सवालों को आप चार्ट बनाकर बहुत आसानी से हल कर सकते हैं। हाँ, यह जरूर है कि इसके लिए आप जितनी प्रेक्टिस करेंगे, आपकी गति उतनी ही बढ़ती जाएगी। तीसरे तरह के प्रश्न दिशा-ज्ञान वाले होते हैं, जिसमें पूछा जाता है कि कोई व्यक्ति विशेष किसी दिशा में चला और कुछ दूरी तक चलने के बाद फलाँ-फलाँ दिशा में मुड़ गया, तो अब वह किस स्थान पर होगा। ऐसे प्रश्नों को रेखागणित के माध्यम से हल करना उपयुक्त होता है। आपको रेखा के माध्यम से एक चित्र तैयार करना चाहिए और लम्बाई का अनुमान लगाकर रेखाओं को उसी दिशा में मोड़ते चले जाएं, आप उत्तर तक पहुँच जाएंगे।

(ii) मानसिक क्षमता

ऐसे प्रश्नों की विशेषता यह होती है कि ऊपर से तो ये बिखरे हुए गड्डमगड्ड से दिखाई देते हैं, लेकिन इनमें एक निश्चित पेटर्न का नियम काम करता है। इसके अंतर्गत या तो कुछ अंक दे दिए जाते हैं, जैसे-15, 55, 59, 99, 103,305, 507 ? या फिर अक्षरों की श्रृंखला भी दी जा सकती है; जैसे-जे़ड़, यू, क्यू ? एल।

इनको हल करने का एक वैज्ञानिक तरीका यह होता है कि दो या तीन संख्याओं एवं अक्षरों के बीच के अन्तर को लिख लें और फिर उसके आधार पर पेटर्न को पकड़ने की कोशिश करें। लेकिन ध्यान रखें कि यह बहुत आसान भी नहीं है। थोड़ी अधिक माथापच्ची तो करनी ही पड़ेगी।
इसी के अंतर्गत स्थिति-ज्ञान वाले प्रश्न पूछे जाते हैं; जैसे ‘‘राजेश का कक्षा में आरम्भ से 15वां स्थान है तथा अंत से 13वां स्थान। तो कक्षा में छात्रों की कुल कितनी संख्या है।’’ यह बहुत ही सरल है। थोड़ा सा दिमाग लगाइए तो उत्तर पकड़ में आ जाएगा।

(iii) आधारभूत संख्यन

इसका अर्थ गणित से है। अच्छी बात यह है कि इसका स्तर आठवीं से अधिक का नहीं होता। ह्यूमिनिटी से आए अधिकांश विद्यार्थी गणित वाले अंश से ही अधिक घबड़ाते हैं। जबकि इसकी जरूरत होती नहीं है। जोड़-घटाव, गुणा-भाग आप जानते ही हैं। नहीं क्या? यदि उत्तर ‘हाँ’ में है, तो आप मानकर चलिए कि आपकी इसकी एक तिहाई तैयारी हो चुकी है। अब शेष दो तिहाई तैयारी इसके फार्मूलों को समझकर याद रखने और फिर उन फार्मूलों को आधार बनाकर गणित को हल करने में होगी। और यही इसकी चुनौती है, जो बहुत बड़ी नहीं है।
आधारभूत संख्यन के अंतर्गत गणित के इस तरह के फार्मूलों से सबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं –
1. साधारण भिन्न
2. सरलीकरण
3. महत्तम समावर्तक एवं लघुत्तम समाप्यवर्तन
4. औसत
5. आयु वाले प्रश्न
6. प्रतिशत
7. लाभ और हानि
8. साधारण ब्याज एवं चक्रवृद्धि ब्याज
9. मिश्रण एवं साझेदारी
10. अनुपात एवं समानुपात
11. कार्य, दूरी एवं समय
12. रेलगाड़ी से संबंधित प्रश्न
13. नाव और धारा तथा
14. कुछ ट्रिक्स वाले ऐसे प्रश्न; जिन पर सामान्यतया गणित के फार्मूलें लागू नहीं होते।

ये सारे प्रश्न बहुत ही प्राथमिक स्तर के होते हैं। इसका उपाय यही है कि आप गणित की कोई भी एक सामान्य सी किताब ले लें और इनके फार्मूलों को समझकर उनसे संबंधित प्रश्नों को हल करने की प्रेक्टिस करें। यदि आप यह काम खुद नहीं कर पा रहे हैं, तो बेहतर होगा कि एक-दो महीने के लिए गणित के किसी जानकार से मदद ले लें। लेकिन घबराएं बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि आखिर आपने आठवीं कक्षा पास की ही है और उसमें गणित के ये सारे प्रश्न शामिल थे।

(iv) ज्यामितीय आकृतियाँ

इसका अर्थ है-रेखा, त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत्त तथा कोण आदि। अनसाल्ड पेपर में आपको रेखाओं से बनी आकृतियां दिखाई देंगी, जो आपके दिमाग में तनाव पैदा करने के लिए पर्याप्त होंगी। क्या सचमुच में ये तनाव वाले प्रश्न होते हैं? बिल्कुल भी नहीं। यदि आप एक बार इनके बारे में पढ़ लेते हैं, इन्हें समझ लेते हैं, तो पाएंगे कि ये प्रश्न आपके लिए कितने आसान हो गए है। हाँ, समझे और पढ़े बिना बात बनेगी नहीं।

(v) आँकड़ों का विश्लेषण

इसे आप नया बिल्कुल न समझें। सन् 2011 से पहले की मुख्य परीक्षा के सामान्य ज्ञान के द्वितीय प्रश्न-पत्र में यह शामिल था। एक प्रकार से अब उसे ही सी-सेट में रख दिया गया है। इस तरह के प्रश्नों में मुख्यतः कुछ आँकड़ों को एक टेबिल के रूप में, दण्ड आलेख के रूप में, वृत्त-चित्र के रूप में तथा रेखा-आरेख के रूप में पेश किया जाता है। फिर एक ही तालिका पर आधारित 3-4 प्रश्न पूछ लिए जाते हैं। यहाँ केवल अभ्यास काम आता है। इस तरह के अभ्यास के लिए काफी पुस्तकें उपलब्ध हैं। जब आप उन्हें पढ़ेंगे, तो आपको अभ्यास करने का तरीका पता लग जाएगा।

(vi) बोधगम्यता

इस अंश का संबंध सीधे-सीधे आपकी इस समझदारी से है कि आप तय अंश को कितने अच्छे तरीके से आत्मसात कर पाते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सी-सेट के कुल प्रश्नों में से लगभग 40 से 50 प्रतिशत प्रश्न सिर्फ इसी अध्याय से पूछे जाते हैं। इसी से आप इनकी गंभीरता और साथ ही कठिनता का भी अनुमान लगा सकते हैं।

बोधगम्यता की जाँच के लिए दिया गया गद्यांश आपके सामने किस तरह की चुनौतियाँ पेश करता है, इसके बारे में मैं आपको पहले बता चुका हूँ। अब मैं इसी के आगे कुछ अन्य बातें आपके सामने रखना चाहूँगा –

  • गद्यांश को पढ़ने के मैंने दो तरीकों के प्रयोग किए। पहला यह कि पहले गद्यांश को पूरा पढ़ लें और फिर इस पर आधारित पूछे गए प्रश्नों को पढ़ें। दूसरा तरीका यह कि पहले इससे जुड़े प्रश्नों को पढ़ लें। फिर गद्यांश को पढ़ें। मुझे दूसरे तरीके के परिणाम अधिक अच्छे मिले। इस तरीके से सटीक उत्तर पाने में मदद मिल जाती है।
  • आपको दिए गए गद्यांश को दो बार पढ़ना ही चाहिए और पूरे ध्यान के साथ। जब दूसरी बार पढ़ें, तो उन शब्दों या स्थानों पर पेन्सिल से हल्का सा निशान लगा दें, जिनका संबंध आपके उत्तरों से है।
  • कभी-कभी पूरे गद्यांश का भाव भी पूछ लिया जाता है। जब ऐसा हो, तो पढ़ते समय गद्यांश के भाव को पकड़ने का ध्यान रखें।
  • जहाँ तक अंग्रेजी के गद्यांश के बोधगम्यता का सवाल है, इसका स्तर दसवीं कक्षा के स्तर का ही है। इसके वाक्यों की बनावट और प्रयुक्त शब्द ऐसे होते हैं, जिन्हें जरा भी अंग्रेजी जानने वाला समझ सकता है। जाहिर है कि इतनी अंग्रेजी तो आनी ही होगी। इसके लिए अभी से रेडियो पर अंग्रेजी के समाचार सुनना शुरू कर दें तथा कोशिश करें कि कुछ समय रोजाना अंग्रेजी को दें। अंग्रेजी के अखबार और पत्रिका पढ़ने से भी मदद मिलेगी।

यहाँ मेरी व्यावहारिक सलाह यह भी है कि यदि आपको अंग्रेजी का गद्यांश समझ में नहीं आ रहा हो, तो इसमें अधिक न उलझें। इसे सबसे आखिरी में करें, ताकि बचे हुए पूरे समय का उपयोग इसमें निष्चिमतता के साथ कर सकें। हो सकता है कि इससे आपको कुछ लाभ मिल जाए। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं लगता कि जिसकी भी अंग्रेजी थोड़ी-बहुत भी ठीक-ठाक है, वह इसके आठ नम्बरों में से तीन-चार नम्बर तो ला ही सकता है। आपकी रणनीति यह होनी चाहिए कि ‘‘मैं इसके नुकसान की भरपाई दूसरे प्रश्नों से कर लूँगा।’’

(vii) निर्णयन एवं समस्या

जिस प्रकार बोधगम्यता वाले प्रश्नों में एक परिच्छेद दिया जाता है, उसी प्रकार निर्णयन वाले प्रश्नों में एक समस्या। जब भी आप इस समस्या को पढ़ें, उससे दो तथ्य हासिल करें। पहला यह कि उस समस्या में आपकी हैसियत क्या है। यानी कि समस्या का समाधान आपको किस रूप में करने के लिए कहा गया है। दूसरे यह कि मूलतः वह समस्या किस तरह के समाधान की मांग कर रही है। फिर आप इन दोनों का आपस में संबंध स्थापित करें। अब आपको अपनी हैसियत के अनुसार निर्णय लेना है और इस आधार पर निर्णय लेना है कि इसका सर्वोत्तम समाधान कौन-सा होगा। मुझे लगता है कि इन तथ्यों को जान लेने के बाद निर्णय वाले प्रश्नों के उत्तर देना आपके लिए काफी आसान हो जाएगा।
अंत में यह कि इस पेपर की तैयारी का सारा दारोमदार आपकी प्रेक्ट्सि करने पर निर्भर करता है, इसे कभी न भूलें। इस हेतु मेरी शुभकामनाओं को स्वीकार करें।