भारतीय स्टार्टअप्स को विस्तार की जरूरत है
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भारतीय स्टार्टअप ने घरेलू बाजार में बड़ी उपलब्धि प्राप्त की है। यूपीआई और रूपे जैसे दो ऑनलाइन भुगतान विकल्प तो श्रीलंका, मॉरीशस और यूएई में भी जम रहे हैं। भले ही इनकी अंतरराष्ट्रीयता सरकार की कूटनीतिक ताकत का परिणाम है, लेकिन यह जगह इन्होंने अच्छी तकनीक के कारण पाई है। इन स्टार्टअप्स के लिए अभी मंजिलें बहुत दूर है।
वैश्विक उपस्थिति मायने रखती है- एक अध्ययन से पता चलता है कि जब स्टार्टअप शुरूआती चरण से ही घरेलू बाजार से परे ग्राहक को लक्ष्य करके चलते हैं, तो इसके चौतरफा लाभ मिलते हैं। इससे विकास में तेजी आती है।
फिलहाल भारत इस श्रेणी में नहीं आता है। अध्ययन में पाया गया है कि भारत में घरेलू बाजार को ही लक्ष्य करके स्टार्टअप में यूनिकॉर्न [एक करोड़ डॉलर से अधिक मूल्य वाले] बनने की क्षमता है। अन्य देशों के स्टार्टअप्स की तुलना में यहाँ के स्टार्टअप्स के लिए रास्ता आसान है। लेकिन वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।
तकनीकी विकास का बोलबाला- भारत के विशाल आकार का लाभ तो फिर भी स्टार्टअप उठा सकते है, लेकिन विश्व में अपने पैर जमाने के लिए जिस नवाचार की जरूरत है, उसकी बहुत कमी है।
चीन से सीखे- भारत की तुलना में आज चीन के स्टार्टअप विदेशों में बड़ी सफलता पा रहे हैं। अध्ययन में चीनी स्टार्टअप्स को इजरायलए जर्मनी और सिंगापुर के स्टार्टअप्स के बराबर स्थान दिया गया है।
कुछ अपवाद- कुछ भारतीय कंपनियां वैश्विक ग्राहक को आधार बनाकर चल रही हैं। सॉफ्टवेयर क्षेत्र में सेवा देने वाली कंपनियां इसी श्रेणी की हैं। लेकिन ये बहुत कम हैं।
भारतीय कंपनियों को लगातार कुछ नया करने की जरूरत है। इस प्रतिस्पर्धात्मक युग में भारत की कंपनियां आगे बढ़ने की पूरी क्षमता रखती हैं। उन्हें प्रयासरत रहना होगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 15 फरवरी, 2024