संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का मुद्दा
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हाल ही में इलेक्ट्रिक वाहन टेस्ला के बड़े व्यवसायी एलन मस्क ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत को स्थायी सदस्य न बनाए जाने की कड़ी आलोचना की है। इससे भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी को बहुत बल मिला है।
कुछ बिंदु –
पुरानी विश्व व्यवस्था – संयुक्त राष्ट्र का जन्म द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ था। यह 80 वर्षों पहले की वैश्विक शक्ति सरंचना का प्रतिनिधित्व कर रहा है। उदाहरण के लिए, यूके अपने पुराने स्वरूप की छाया मात्र रह गया है, और अगर स्कॉटलैण्ड इससे अलग हो गया, तो इसके स्थायी सदस्य रहने का कोई आधार नहीं रह जाता है।
सोवियत संघ के विलय के बाद रूस की स्थायी सदस्यता बेमानी है।
फ्रांस का कोई महत्व नहीं रह गया है।
अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र को धता बताकर कई बार एकतरफा सैन्य कार्रवाइयां की है।
कुल मिलाकर, पांच वीटो अधिकार वाले स्थायी सदस्यों वाली संरचना पूरी तरह से आज की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं से बाहर है।
भौगोलिक पूर्वाग्रह – अफ्रीका के पास स्थायी प्रतिनिधित्व नहीं है। दक्षिण अमेरिका के पास भी स्थायी सदस्यता नहीं है। यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी भी अभी बाहर है। दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था जापान को भी स्थायी सदस्यता नहीं दी गई है।
अप्रभावी निकाय – पांच स्थायी सदस्यों ने बार-बार अपने वीटो का इस्तेमाल स्वार्थी हितों के लिए किया है। हाल ही में अमेरिका ने इजरायल-हमास युद्ध पर लगभग सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित करा लिया है। उधर, भारत की स्थायी सदस्यता के लिए चीन बहुत बड़ी बाधा है।
भारत की राह – आज विश्व 80 वर्ष पहले की तुलना में कहीं अधिक बहुध्रुवीय है। और भारत का महत्व बढ़ रहा है। भारत आज जी-20, इंडो पैसिफिक क्वाड, आईटूयूटू और अन्य महत्वपूर्ण प्लेटफार्मों में प्रतिनिधत्व कर रहा है। भारत के बढ़ते महत्व के साथ इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकशित संपादकीय पर आधारित। 24 जनवरी, 2024