16-12-2023 (Important News Clippings)

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16 Dec 2023
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Date:16-12-23

To Win Back Malé, Leverage Diaspora

ET Editorials

Barely a month after asking New Delhi to withdraw military personnel from the Maldives, the government of President Mohamed Muizzu has decided not to renew an agreement with India on a hydrographic survey of the island nation’s waters. The deal, signed in 2019, allowed India to survey Maldivian territorial waters, and study and chart reefs, lagoons, coastlines, ocean currents and tidal levels. The termination of the agreement is not good news for India since Muizzu’s government is reportedly predisposed towards China.

India and the Maldives have been historically close. But thanks to the Maldives’ strategic location in the Indian Ocean, India and China compete for influence. Over the last decade, China has been investing in infrastructure projects. However, the investments made for upgrades have had costs for the Maldives. By 2018, Chinese loans had saddled Malé with nearly $1.5 billion in debt. However, India authorised $1.4 billion to help the Maldives with loan paybacks. The Maldives was also the first country to receive vaccines from New Delhi — a shipment of 100,000 doses of Covishield vaccine. Yet, today, India finds itself on the outside.

Despite this setback, India must step up its engagement with the Maldives. New Delhi must actively support deepening democracy in the island nation and engage in institutionand capacity-building. India must be seen as a partner with a deep understanding of the island’s culture and history. To build on this shared bond and commitment to democracy, India must put people, particularly its diaspora, at the heart of the effort. In creating such strong grassroots links, India can dispel concerns about ensuring closer ties between the two nations.


Date:16-12-23

कुपोषण को नकारने के बजाय समाधान खोजें

संपादकीय

यूएनओ के खाद्य एवं कृषि संगठन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत के 74% लोगों को पोषक भोजन मुहैया नहीं होता। यह रिपोर्ट एशिया और प्रशांत क्षेत्र की ‘खाद्य सुरक्षा व पोषण की स्थिति’ के बारे में है। यह स्थिति वर्ष 2021 तक की है जबकि वर्ष 2020 से उन्हें पांच किलो फ्री राशन मिल रहा था। रिपोर्ट में बताया गया कि वर्ष 2020 में यह प्रतिशत 76.2 था। इसके पहले भारत सरकार के एनएफएचएस-5 राउंड की रिपोर्ट में भी कुपोषण की भयावह स्थिति को विस्तार से बताया गया था। इस रिपोर्ट में भी यूएन के इस संगठन ने बताया कि भारत में कुपोषण – जनित स्वास्थ्य पैरामीटर्स काफी नीचे हैं और बच्चों में एनीमिया के मामले में हालत बुरी है। समुचित भोजन के अलावा अंडरनरिश्ड लोगों का प्रतिशत 16.6 है। देश के बच्चे कुपोषण की वजह से दुबले और नाटे हो रहे हैं। हालांकि भारत सरकार ग्लोबल हंगर इंडेक्स की ताजा रिपोर्ट में इन्हीं बातों को विदेशी साजिश बताकर खारिज कर चुकी है। पांच साल की आयु तक के 31% बच्चे नाटेपन के शिकार हैं। रिपोर्ट के अनुसार नाटापन जन्म के दौरान माता के कुपोषण और खराब स्वास्थ्य के अलावा जन्म के बाद बच्चे को समुचित फीडिंग और पोषण ना प्राप्त होने से होता है । सवाल है कि अगर चांद पर उतरना संभव है तो कुपोषण खत्म करना क्यों नहीं?


Date:16-12-23

आतंकी संगठनों के बेलगाम वित्तीय स्रोत

अनिल राजपूत, ( लेखक तस्करी और जालसाजी गतिविधियों के खिलाफ गठित फिक्की की समिति-कैस्केड के चेयरमैन हैं )

इजरायल-फलस्तीन संघर्ष दशकों पुराना है। इस संघर्ष की चिंगारी सात अक्टूबर को इजरायल पर हुए हमास के भयावह आतंकी हमले के बाद और भड़क उठी। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि कुछ लोग अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने के लिए किसी भी प्रकार के शैतानी तरीकों का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकते। इसके जरिये वे सभ्य समाज के लिए बड़ी समस्याएं और कठिनाइयां पैदा कर देते हैं। मास और हिजबुल्ला जैसे आतंकी संगठन ऐसे ही हैं। ये कई वर्षों से आतंक को बढ़ावा दे रहे हैं। इजरायल-हमास युद्ध के चलते दोनों ओर तमाम लोग हताहत हुए हैं। इसकी सबसे बड़ी कीमत निर्दोष लोगों को चुकानी पड़ी है, क्योंकि जान गंवाने वालों में बड़ी संख्या बच्चों, महिलाओं और युवाओं की है। ऐसे आतंकी समूह ऐसी विकट स्थितियां पैदा करते हैं, जो जवाबी प्रतिशोध और अस्थिरता का कारण बनती हैं। हमास का इजरायल पर हुआ हमला ऐसा ही एक उदाहरण है। इजरायल के जवाबी हमले से गाजा के लोगों की मुश्किलें ही बढ़ीं। वहां बड़ी संख्या में असहाय नागरिकों को भोजन, पानी, बिजली और दवाओं तक की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसके चलते तमाम लोग सुरक्षित आश्रय की तलाश में अपने घरों से भाग गए और दुर्भाग्य से कई मारे भी गए। ऐसी समस्या के मूल कारण की पड़ताल करेंगे तो अवैध व्यापार और विभिन्न स्रोतों से आतंकी संगठनों को मिलने वाली वित्तीय सहायता सामने आएगी। ऐसे में, आतंकियों के इस वित्तीय प्रवाह को अवरुद्ध करना बहुत आवश्यक है।

आतंकी संगठन तस्करी और जालसाजी को एक टिकाऊ बिजनेस माडल मानते हैं, जिस पर कई बार तो उनका एकाधिकार भी होता है। अंकटाड के अनुसार अवैध व्यापार दुनिया की लगभग तीन प्रतिशत अर्थव्यवस्था को लील जाता है। यदि इस बाजार को एक देश मान लें तो उसकी आर्थिकी का आकार ब्राजील, इटली और कनाडा से भी बड़ा होता। 2013 में नाइजर के अगाडेज में आतंकवादी हमले और 2015 में पेरिस में शार्ली आब्दो हमले को नकली नाइकी जूते बेचने और सिगरेट तस्करी से मिले धन से वित्तपोषित किया गया था। इसे ध्यान में रखते हुए 2019 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने चिंता व्यक्त की थी। परिषद के अनुसार आतंकवादी और आपराधिक संगठन हथियारों, दवाओं, कलाकृतियों और सांस्कृतिक धरोहरों की तस्करी के माध्यम से वित्तपोषण के स्रोत के रूप में अवैध व्यापार से लाभ उठा रहे हैं। उसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव जारी कर सदस्यों से नीतिगत उपायों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और संगठित अपराध के बीच संबंधों पर ध्यान देने का आग्रह किया था।

हमास के हालिया आतंकी हमले के संदर्भ में दो आतंकी संगठनों की कार्यप्रणाली और उनके डीएनए को भी समझने की जरूरत है। हमास का गठन 1987 में हुआ। 2007 में उसने गाजा पट्टी पर नियंत्रण कर लिया। हथियारों, ईंधन, ड्रग्स के अवैध व्यापार के अलावा मनी लांड्रिंग हमास के लिए धन के प्रमुख स्रोत रहे हैं। अमेरिकी सरकार द्वारा हमास से जुड़े कई क्रिप्टोकरेंसी खातों को जब्त कर लिया गया है। संगठन अपने क्रिप्टो वालेट पते पर चंदा मांगने के लिए फेसबुक और एक्स जैसे इंटरनेट मीडिया मंच का उपयोग करता है। इस कार्यप्रणाली को अमेरिकी आंतरिक सुरक्षा विभाग की एक रिपोर्ट में उजागर किया गया है। कई विश्लेषकों के अनुसार हमास से जुड़े इन क्रिप्टोकरेंसी खातों की कीमत करोड़ों डालर है। ये खाते आतंकी गतिविधियों के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी प्रकार के सामान की खरीद में सहायक हैं। हिजबुल्ला की स्थापना 1982 में हुई थी। वह वैश्विक सिगरेट तस्करी नेटवर्क और विश्वव्यापी कोकीन व्यापार में शामिल है। मनी लांड्रिंग में भी माहिर है। वैश्विक आतंकवाद और रुझान विश्लेषण केंद्र (जीटीटीएसी) डाटाबेस ने 2018 और 2022 के बीच इजरायल, लेबनान और सीरिया में हिजबुल्ला के 44 हमलों को दर्ज किया है। पिछले कुछ दशकों में अवैध गतिविधियों में हिजबुल्ला की भागीदारी काफी बढ़ी है। अमेरिका और यूरोप में नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए 2007 में शुरू की गई एक दशक तक चलने वाली कैसेंड्रा परियोजना के बाद से कोकीन नेटवर्क में इसकी भागीदारी का विस्तार हुआ है। पश्चिम अफ्रीका, यूरोप और दक्षिण अमेरिका में अपनी आपराधिक गतिविधियों के अलावा संगठन के पास पश्चिम एशिया में भी मजबूत ड्रग्स व्यापार नेटवर्क है। यह लेबनान और सीरिया की सीमाओं पर की जाने वाली तस्करी में शामिल है। अवैध व्यापार से हासिल होने वाले मोटे मुनाफे के बिना बड़ी संख्या में गोला-बारूद, जमीन, हवा और समुद्र के जरिये हमले करने वाली सटीक मिसाइलें, ड्रोन, पैराग्लाइडर, स्पीडबोट समेत अन्य वे आधुनिक एवं मारक हथियार हासिल नहीं किए जा सकते, जिनका इस्तेमाल सात अक्टूबर के आतंकी हमले में किया गया।

हिजबुल्ला और हमास ने अपने रणनीतिक और परिचालन फायदे के लिए इंटरनेट मीडिया जैसी नवीनतम सूचना प्रसार तकनीक का भी व्यापक रूप से इस्तेमाल किया है। इन माध्यमों ने उन्हें विभिन्न समूहों के विशिष्ट दृष्टिकोणों के अनुसार अपने प्रोपेगंडा को आगे बढ़ाने का अवसर दिया। ये संगठन इतने ताकतवर हो गए कि विश्व की दिग्गज खुफिया एजेंसियों की आंखों में धूल झोंकने में सफल हुए। तस्करी और जालसाजी जैसे आतंक और अवैध व्यापार तेजी से बढ़ रहे हैं। उनके वित्तपोषण के विभिन्न स्रोतों पर अंकुश लगाना समय की मांग हो गई है। ऐसा करके ही हम आतंकी घटनाओं की पुनरावृत्ति से बच सकते हैं। इस मामले में हमें भी सतर्क रहना होगा, क्योंकि भारत विरोधी कई आतंकी संगठन भी तस्करी और जालसाजी के जरिये अपना वित्तपोषण कर रहे हैं।


Date:16-12-23

AI की वास्तविकता को समझने के मायने

देवांशु दत्ता

Chatgpt की आधिकारिक रूप से शुरुआत 30 नवंबर, 2022 को हुई और यह काफी तेजी से लोकप्रिय हो गई। फिलहाल एक सप्ताह में 10 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ता इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। अन्य आधा दर्जन कंपनियों ने बाजार हिस्सेदारी हासिल करने के लिए इसी तरह के एआई चैटबॉट जारी किए हैं। कई विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं ने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस या एआई के खतरों पर चर्चा की है। इसमें यह प्रस्ताव रखा गया कि एआई की रफ्तार को धीमा किया जाए और इसमें छह महीने तक विकास को स्थगित करने की बात भी रखी गई। हालांकि इसे नजरअंदाज कर दिया गया। नवंबर 2023 में एआई सुरक्षा शीर्ष सम्मेलन के ब्लेचली घोषणापत्र को संयुक्त बयान के रूप में जारी किया गया।

इस शिखर सम्मेलन में भारत सहित कई देशों ने भाग लिया। तकनीकी रूप से उन्नत देशों में रूस ही अनुपस्थित था। इस सम्मेलन के घोषणापत्र में कहा गया, ‘हम सबको साथ लेकर काम करने का संकल्प जताते हैं ताकि एआई मानव-केंद्रित, भरोसेमंद और जिम्मेदार रहे और यह सुरक्षित होने के साथ मौजूदा अंतरराष्ट्रीय मंचों और अन्य प्रासंगिक पहलों के जरिये सभी की भलाई का समर्थन करे ताकि एआई द्वारा पैदा किए गए जोखिमों की व्यापक श्रृंखला का समाधान निकालने के लिए सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके।’ इस घोषणापत्र को विनम्र तरीके ‘आधुनिक तकनीकी मानकों के अनुरूप नहीं’ कहा जाएगा। इसे सटीक तरीके से एक कूटनीतिक बयान ही कहा जा सकता है। इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने वाले भी पूरी तरह से जानते हैं कि इन घोषणाओं को लागू नहीं किया जा सकता है। दिलचस्प बात यह भी है कि वे सभी एआई अनुसंधान और डिजाइन (आरऐंडडी) को तेजी से प्रोत्साहित कर रहे हैं।

भारत ने ‘सभी के लिए एआई’ का नारा दिया है और यह आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के लिए वैश्विक साझेदारी (जीपीएआई) योजना का हिस्सा है। सरकार के पास कई एआई कार्यसमूह हैं और आंकड़े की क्षमता 15 गुना बढ़ाने के लिए तीन-स्तरीय कंप्यूटर बुनियादी ढांचा स्थापित करने की सिफारिशें की जा रही हैं।

इसके अलावा कंपनी जगत और शैक्षणिक-कॉरपोरेट पहलों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। एनवीडिया का रिलायंस जियो और टाटा ग्रुप के साथ करार है। वहीं आईबीएम ने एआई नवाचार में तेजी लाने के लिए सरकारी संस्थाओं के साथ तीन समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके अलावा सेमीकंडक्टर मिशन का मकसद ही बेहतर गुणवत्ता वाली विनिर्माण क्षमता को तैयार करना है। आईआईटी मद्रास का सेंटर फॉर रिस्पॉन्सिबल एआई (सीईआरएआई) आरऐंडडी में एरिक्सन के साथ साझेदारी करेगा।

इन पहलों के आर्थिक पहलू भी आकर्षक हैं। नैसकॉम का अनुमान है कि एआई दो या तीन साल में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 12-13 प्रतिशत या लगभग 450-500 अरब डॉलर का योगदान दे सकता है। अन्य देशों के भी इसी तरह के अनुमान हैं। इस तरह की गणना वास्तव में एआई तक नागरिकों की पहुंच के आधार पर की जाती है।

अगर हम रक्षा से संबंधित ऐप्लिकेशन को देखते हैं, तब एआई का प्रभाव और भी अधिक होगा।

इस घोषणापत्र और सभी सार्वजनिक आशंकाओं के बावजूद कंपनी जगत की कोई भी इकाई और कोई भी देश इस सुनहरे अवसर से दूर नहीं हो सकता है या पीछे छूट जाने के डर से जानबूझकर आरऐंडडी की रफ्तार कम नहीं कर सकते है। अन्य क्षेत्रों के लिए जोखिम से जुड़े पहलुओं पर गौर किया जाता है, लेकिन वैश्विक मंदी के बावजूद एआई की फंडिंग में वृद्धि हुई है। वैश्विक स्तर पर, एआई स्टार्टअप ने जनवरी और सितंबर 2023 के बीच 2000 से अधिक करार के साथ 50 अरब डॉलर से अधिक राशि जुटाई है। सितंबर के अंत तक 120 एआई यूनिकॉर्न थीं।

हालांकि एआई क्षेत्र की क्रांति अब भी प्रारंभिक चरण में ही मानी जा सकती है। कई वर्षों तक इसमें काफी महत्त्वपूर्ण खोज होगी। अगर क्वांटम कंप्यूटिंग में समान स्तर पर सफलताएं देखी जा रही हैं तब प्रोसेसिंग की रफ्तार को और तेज करते हुए हमें संभावित फायदे का वर्णन करने के लिए नए जुमले गढ़ने की आवश्यकता होगी।

वर्ष 2030 तक और संभवतः इससे भी पहले ही सभी बुनियादी ढांचे और संबंधित ऐप्लिकेशंस एआई द्वारा संचालित होने लगेंगे। इसमें पावर ग्रिड, दूरसंचार नेटवर्क, राजमार्ग प्रणाली, बंदरगाह, मेट्रो, हवाई अड्डे, शहर की ट्रैफिक लाइट, उपग्रह नेटवर्क, नगरपालिका जल आपूर्ति भी शामिल हैं। एआई का इस्तेमाल स्वास्थ्य सेवा, दवा अनुसंधान, कानून प्रवर्तन, खुदरा, वित्तीय प्रणालियों, स्वचालित कारों में भी व्यापक तौर पर होगा।

एआई स्वायत्त हथियार प्रणालियों, रोबोटिक वाहनों, युद्ध सामग्री डिजाइन और इसी तरह की चीजों के साथ जुड़कर रक्षा से जुड़े ऐप्लिकेशन पर भी लगभग पूरी तरह दबदबा बना सकता है। इस क्षेत्र से मिलने वाली कीमत इतना ज्यादा हो सकती है कि मुमकिन है कि खतरों को अनदेखा कर दिया जाए।

हालांकि हम पहले से ही इसके कुछ नकारात्मक पहलुओं पर गौर कर सकते हैं। एआई, चेहरे की पहचान से लेकर व्यापक डेटा की तुलना करने की अपनी क्षमता के साथ-साथ, सरकारों को सभी नागरिकों का पूर्ण ब्योरा चौबीस घंटे दे सकता है, जिससे सत्तावादी शासन के खिलाफ असंतोष जाहिर करना और मुश्किल हो सकता है। ऐसा लगता है कि चीन और भारत दोनों ही इस पर दांव लगा रहे हैं।

यह ऐसे ड्रोन को ताकत दे सकता है जो मानव हस्तक्षेप के बिना लक्ष्य की पहचान कर सकता है और निशाना साध सकता है। आवाजों और चेहरे की क्लोनिंग कर यह बिल्कुल प्रामाणिक लगने वाली फर्जी खबरें देने के साथ ही लोगों को धोखा दे सकता है या सुरक्षा व्यवस्था को दरकिनार कर सकता है। यह पूर्वग्रहों को कायम रख सकता है और संभव है कि मौजूदा डेटा पर प्रशिक्षित एल्गोरिद्म यह सिफारिश करें कि केवल पुरुषों को एसटीईएम छात्रवृत्ति मिले और केवल उच्च जाति के लोगों को बैंक ऋण मिले। यदि एआई का इस्तेमाल परमाणु मिसाइल प्रणालियों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है (यह होगा ही या यह पहले से ही हो सकता है), तो यह विलुप्त होने के कगार पर पहुंचाने का कारण भी बन सकता है जैसी कि कुछ लोगों ने चेतावनी भी दी है।

एआई से जुड़े जोखिमों से बचने के उपायों एवं तरीकों पर उतनी तेजी से काम नहीं हो रहा, जितनी तेजी से इसका विकास हो रहा है। ऐसे में हम अब सिर्फ यह उम्मीद ही कर सकते हैं कि हमें बड़े नुकसान से बचाने के उपाय जल्दी ही किए जाएंगे। अगर ऐसा नहीं होता है तब विलियम गिब्सन और नील स्टीफेंसन जैसे लेखकों ने जो बुरी भविष्यवाणियों की बात की थी, उसे नकारा नहीं जा सकेगा।


Date:16-12-23

निधि और जनप्रतिनिधि

संपादकीय

जनप्रतिनिधियों के लिए अलग से विकास निधि की व्यवस्था स मकसद से की गई थी कि कुछ बुनियादी काम घोषित परियोजनाओं से अलग भी संपन्न कराए जा सकें। चूंकि सांसद, विधायक और पार्षद लगातार लोगों के संपर्क में रहते हैं और वे अपने मुहल्ले, इलाके की बुनियादी समस्याएं उन्हें बताते रहते हैं। ऐसी समस्याओं को परियोजनाएं बना कर निपटाने में काफी वक्त लग सकता है, क्योंकि उनकी एक प्रक्रिया होती है। विधायकों और सांसदों के लिए अलग से निधि की व्यवस्था करने से इसका लाभ भी नजर आया। मुहल्लों की टूटी सड़कों, नालियों, पुलिया, पार्कों में व्यायाम – विश्राम के लिए कुछ बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने आदि में आसानी हो गई। इन कार्यों से लोगों में उत्साह के मद्देनजर और वक्त की बदलती जरूरतों के मुताबिक समय-समय पर सांसद और विधायक निधि में बढ़ोतरी भी की जाती है। अभी दिल्ली सरकार ने विधायक निधि की रकम चार करोड़ से बढ़ा कर सात करोड़ रुपए करने का फैसला किया है। माना जा रहा है कि इससे विधायक अपने क्षेत्रों में विकास कार्यों का विस्तार कर सकेंगे। इस वित्तवर्ष में बढ़ी हुई राशि के केवल करीब आधे हिस्से यानी सौ करोड़ का आबंटन किया जाएगा। बाकी एक सौ बीस करोड़ रुपए अगले वित्तवर्ष में आबंटित किए जाएंगे।

निश्चय ही विधायक निधि बढ़ने से दिल्ली में कुछ बेहतर कामकाज की उम्मीद जगी है। मगर जबसे जन प्रतिनिधियों के लिए विकास निधि के आबंटन की व्यवस्था की गई, तभी से इसमें अनियमितताओं की शिकायतें भी मिलती रही हैं। सांसद, विधायक और पार्षद भी किन्हीं ठेकेदारों, एजंसियों, स्वयंसेवी संगठनों आदि की मदद से अपने इलाकों की समस्याओं, शिकायतों को दूर करने का प्रयास करते हैं। सब जानते हैं कि उनमें कमीशनखोरी चलती है। कई मामलों में अपने करीबी लोगों को उपकृत करने की कोशिशें भी देखी जा चुकी हैं। इसलिए लंबे समय से इस निधि के उपयोग में पारदर्शिता लाने की मांग की जाती रही है। आम आदमी पार्टी अपने कामकाज में ईमानदारी और पारदर्शिता का दावा करते नहीं थकती। मगर विधायक निधि के उपयोग में वह इस पैमाने पर कितनी खरी उतरती है, देखने की बात है ।

जनप्रतिनिधि अपने हिस्से की निधि का इस्तेमाल अक्सर अपना राजनीतिक जनाधार मजबूत करने के मकसद से भी करते देखे जाते हैं। वे अपने किए कामों पर अपने नाम की पट्टी चिपकाने और उनका ढिंढोरा पीटने से परहेज नहीं करते। आम आदमी पार्टी के विधायक भी इससे अलग नहीं माने जा सकते। कई मौकों पर देखा जा चुका है कि पार्कों में व्यायाम के लिए उपकरण लगाने का श्रेय लूटने को लेकर स्थानीय विधायक और सांसद में रस्साकशी हुई। पिछले कुछ समय से दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच तनातनी के चलते अनेक कामों में बाधा आ रही है। ऐसे में सरकार के लिए यह एक सही रास्ता नजर आया होगा कि विधायक निधि में बढ़ोतरी करके लोगों में अधिक से अधिक काम के जरिए अपनी साख मजबूत की जा सकती है। मगर इसके लिए इरादे नेक होने बहुत जरूरी हैं। पहले ही उसकी कई योजनाएं अनियमितता के आरोपों से घिरी हुई हैं। विज्ञापनों पर बेतहाशा खर्च और छात्रवृत्ति जैसी कुछ लोकलुभावन योजनाओं पर प्रश्नचिह्न लगे हुए हैं। नगर निगम के कर्मचारियों और तदर्थ कर्मियों के वेतन, पारिश्रमिक आदि के भुगतान में देरी को लेकर विवाद खड़े होते रहते हैं। ऐसे में विधायक निधि के तौर पर अतिरिक्त धन के प्रावधान को लेकर कुछ लोगों के सवाल बेवजह नहीं कहे जा सकते।


Date:16-12-23

ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ते कदम

अमित बैजनाथ गर्ग

भारत ने वर्ष 2030 तक ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए नई पंचवर्षीय योजना तैयार की है। इस योजना के बलबूते देश 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली का लक्ष्य हासिल कर पाएगा। इसी क्रम में केंद्र सरकार अगले पांच साल के लिए प्रति वर्ष 50 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता के लिए बोलियां आमंत्रित कर चुकी है। इतना ही नहीं, ‘इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन’ (आइएसटीएस) से जुड़ी अक्षय ऊर्जा क्षमता की इन वार्षिक बोलियों में प्रति वर्ष कम से कम 10 गीगावाट पवन ऊर्जा क्षमता की स्थापना भी शामिल होगी।

सरकार की ओर से अल्पकालिक और दीर्घकालिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि के लिहाज से और 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता के 500 गीगावाट के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में यह घोषणा महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है। दुनिया में भारत ऊर्जा ‘ट्रांजिशन’ में ‘ग्लोबल लीडर’ के रूप में उभर रहा है। यह उस विकास से स्पष्ट है, जो हमने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में हासिल किया है। अक्षय ऊर्जा क्षेत्र रोजगार की दृष्टि से भी उम्मीद भरा नजर आ रहा है। पूरी दुनिया जहां जलवायु परिवर्तन के खतरों को रोकने के लिए इस क्षेत्र को विकसित करने में जुटी है, वहीं भारत ने इस स्रोत के विकास में अच्छी सफलता हासिल की है। पिछले दस सालों में देश ने अक्षय ऊर्जा उत्पादन की अपनी क्षमता में पांच गुना बढ़ोतरी की है। इसके साथ ही 2030 तक के लिए ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में नए लक्ष्य भी तय किए गए हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, नए लक्ष्यों को पूरा करने में अगर सफलता मिलती है तो 2030 तक इस क्षेत्र में करीब 15 लाख नौकरियां पैदा होंगी। अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार पैदा करने के लिहाज से चीन, ब्राजील और अमेरिका के बाद भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है। पूरे विश्व में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में नियुक्त लोगों का 5.7 फीसद भारत में है। ‘इंटरनेशनल रिन्यूएबल ऊर्जा एजंसी’ (इरेना) की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 तक अक्षय ऊर्जा क्षेत्र ने भारत में चार लाख नौकरियां उत्पन्न की थीं। असल में भारत में ऊर्जा क्षेत्र में विकास की काफी संभावनाएं हैं और इस क्षेत्र में जाने के लिए छात्रों को कुछ खास पढ़ाई करने की जरूरत पड़ेगी। ऊर्जा क्षेत्र में बीटेक पावर, एमबीए आयल एंड गैस, एमए एनर्जी इकोनामिक्स, सौर ऊर्जा आदि से जुड़े कई पाठ्यक्रम होते हैं, लेकिन आने वाले समय में सबसे ज्यादा संभावनाएं सौर ऊर्जा में हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को पांच खरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए ऊर्जा क्षेत्र को पुनर्नवा करना बहुत जरूरी होगा।

निवेश की बात करें तो भारत के ऊर्जा क्षेत्र में 2000 से 2019 के बीच 14.32 अरब डालर का विदेशी निवेश आया है। सरकार इस क्षेत्र पर खासा ध्यान दे रही है, जिसके कारण आने वाले समय में इसमें निवेश और बढ़ेगा। इससे नौकरियों की संभावनाएं भी बढ़ेंगी। 2022 तक भारत सरकार नवीकरणीय ऊर्जा (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि) की क्षमता बढ़ाकर 175 गीगावाट कर चुकी है। इसमें 100 गीगावाट सौर ऊर्जा और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा शामिल है। वहीं भारत की कोयला आधारित क्षमता 2040 तक 191 गीगावाट से बढ़कर 400 गीगावाट होने की संभावना है। हालांकि भारत लंबे समय से ऊर्जा उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा भरोसा कोयले पर करता आया है, लेकिन पिछले दशक के मध्य से इसमें हरित ऊर्जा की भागीदारी महत्त्वपूर्ण रही है। 2017 के बाद से हरित ऊर्जा बिजली उत्पादन के नए तरीकों में सबसे आगे रही है, जिसमें सौर ऊर्जा का बड़ा हिस्सा है।

तकनीकों में सुधार और सौर पैनलों की कीमतों में लगातार गिरावट के कारण लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिल रही है। देश में जहां 2010 में सौर ऊर्जा की निविदा 12 रुपए प्रति किलोवाट थी, वह 2020 में गिरकर दो रुपए प्रति किलोवाट पर आ गई। मौजूदा समय में यह बिजली उत्पादन का सबसे सस्ता तरीका है। यही वजह है कि नई ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने में सौर ऊर्जा को सबसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है। 2022 में भारत में जोड़ी गई 92 फीसद नई ऊर्जा अकेले सौर और पवन आधारित थी। हरित ऊर्जा इस प्रकार देश में ऊर्जा का लगभग एकमात्र स्रोत बनता जा रहा है। भारत में बिजली की खपत बढ़ रही है और हरित ऊर्जा सबसे आकर्षक विकल्प है। निवेशक भी पैसा लगाने और लाभ पाने के लिए इस क्षेत्र की ओर देखने लगे हैं। केंद्र सरकार का अनुमान है कि पिछले सात सालों में नवीकरणीय ऊर्जा में 70 अरब डालर (लगभग 5.6 लाख करोड़ रुपए) से अधिक का निवेश किया गया है, हालांकि यह क्षेत्र अभी विस्तार की ओर बढ़ रहा है।

भारतीय हरित ऊर्जा से जुड़े कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां अभी निवेश की बेहद जरूरत है। हरित ऊर्जा का उत्पादन इसका एक पहलू है। सौर पैनलों और पवन टर्बाइनों के निर्माण के लिए आपूर्ति शृंखला स्थापित करने से लेकर इन्हें वितरित ऊर्जा परियोजनाओं में स्थापित करने और जरूरी आधुनिक ग्रिड स्थापित करने तक निवेश के लिए कई क्षेत्र हैं। इसमें साफ्टवेयर पर भी निर्भरता बढ़ी है। यहां भी निवेश की काफी संभावनाएं हैं। दरअसल, हरित ऊर्जा को यह सुनिश्चित करने के लिए साफ्टवेयर की जरूरत होती है कि पावर ग्रिड सुचारु रूप से कार्य कर रहा है या नहीं। यह इस क्षेत्र के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है।

दुनिया भर के देशों के कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन को पीछे छोड़ कर हरित ऊर्जा की ओर आने और इसे समर्थन देने की कई वजहें हैं। देशी और विदेशी कंपनियों की तरफ से हरित ऊर्जा क्षेत्र में निवेश की अपार संभावनाएं हैं। जिस तरह ऊर्जा संक्रमण की गति बढ़ रही है, उसे देखते हुए आने वाले समय में पूंजी प्रवाह में वृद्धि नजर आएगी। भारतीय हरित ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश 2014 से लगातार 4,100 करोड़ रुपए से ऊपर रहा, लेकिन 2017 के बाद हर साल एक अरब डालर (8,200 करोड़ रुपए) के आंकड़े को पार कर रहा है। दुनिया भर के पूंजी बाजार विनियामक कारणों के साथ-साथ लंबी अवधि के लाभ के चलते ज्यादा से ज्यादा हरित तकनीक में निवेश की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। इसका अर्थ है कि उपलब्ध पूंजी को हरित ऊर्जा में निवेश करने के जोखिमों में कमी आई है।

एक पहलू यह भी है कि मौजूदा समय में भारत की ऊर्जा पर निर्भरता दूसरे देशों पर काफी ज्यादा है। देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई पहलें की जा रही हैं। इसी क्रम में नवीकरणीय ऊर्जा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, जिसके लिए सौर ऊर्जा के क्षेत्र में सरकार की ओर से काफी काम किया जा रहा है। भारत ने वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए लगभग 50 फीसद ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित करना बड़ा लक्ष्य है। 2040 तक भारत की ओर से 15,820 टेरावाट-आवर बिजली का उत्पादन नवीकरणीय स्रोत से करने का भी लक्ष्य रखा गया है। ऐसे में सौर ऊर्जा इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न कंपनियां सौर ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से काम कर रही हैं। इस वजह से इस क्षेत्र की कंपनियों में अब भी अच्छा विकास देखने को मिल रहा है। आने वाले समय में इन कंपनियों का विकास और तेज होने के साथ भारत ऊर्जा क्षेत्र के सभी लक्ष्यों को सफलतापूर्वक हासिल कर लेगा।


Date:16-12-23

मथुरा की सुनवाई

संपादकीय

मथुरा धर्मस्थल विवाद में तेजी आ गई है। धर्मस्थल विशेष के सर्वे को उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने मंजूरी दी थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। मगर अब सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वे पर रोक लगाने से मना कर दिया है। अब लोगों की निगाह उच्च न्यायालय के आगामी फैसले पर है, जो अगले सप्ताह आएगा, जिसमें सर्वे के बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश संभावित हैं। जहां तक सर्वोच्च न्यायालय का प्रश्न है, तो जनवरी के मध्य में ही वहां इस मामले की सुनवाई होगी। सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला पहले से ही लंबित है और उच्च न्यायालय में भी सर्वे को लेकर सुनवाई चल रही है। याचिकाकर्ताओं की कोशिश है कि इस मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय ही करे और उच्च न्यायालय को किसी आदेश-निर्देश से रोका जाए। बहरहाल, ईदगाह पक्ष को निराशा हाथ लगी है, क्योंकि अब यह लगभग तय हो गया है कि मथुरा धर्मस्थल का सर्वे होगा। ध्यान रहे, काशी का ज्ञानवापी सर्वे मामला भी लगातार सुर्खियों में बना हुआ है और अब मथुरा ईदगाह मामला भी सुर्खियों में पहुंच गया है।

इसमें कोई दोराय नहीं कि ये मामले बेहद संवेदनशील हैं और इनमें अदालतों को अपना काम करने देना चाहिए। कानून के तहत अदालतों को जो उचित प्रतीत होगा, उसे सभी को स्वीकार करना चाहिए। वास्तव में, विवाद पुराना है और इसका सबसे दुखद पक्ष इस पर होने वाली राजनीति ही है। अदालतों में जो सुनवाई होती रही है, वह कागजों या साक्ष्यों के आधार पर अगर चलती रहे, तो किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। अंतत: यह देश किसी समुदाय के पक्ष या विपक्ष में नहीं, बल्कि संविधान की रोशनी में ही आगे बढ़ना चाहिए। जिन अदालतों में ऐसे मामले हैं, उन्हें विशेष सावधानी के साथ आगे बढ़ना चाहिए। राजनीति से प्रभावित होने के बजाय साक्ष्यों पर विश्वास करना ज्यादा सही है। धर्मस्थलों से जुड़े भावनात्मक ज्वार यह देश अनेक बार देख चुका है और कई ऐसे अप्रिय मंजर भी सामने आए हैं, जिनकी जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं होता है। अत: जब ऐसा कोई मामला जोर पकड़ता है, तो चिंता स्वाभाविक ही जाग जाती है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद जितनी जल्दी सुलझ जाए, उतना अच्छा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को मस्जिद परिसर के निरीक्षण के लिए एक आयोग की नियुक्ति की मांग करने वाले आवेदन को अनुमति दी है, तो आगे भी उच्च न्यायालय को ही यह भी सुनिश्चित करके चलना चाहिए कि आगे किसी तरह से अप्रिय स्थिति उत्पन्न न होने पाए। अदालतों में जो होगा, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि क्या अदालतें इस मुद्दे पर किसी तरह की सियासत पर रोक लगा सकती हैं? क्या हमारे सियासी दल इस मुद्दे पर जरूरी संयम बरत सकते हैं?

यह विवाद तो लगभग तीन सदी पुराना है और मथुरा की अदालतों में कम से कम एक दर्जन मामले दायर थे। इन सभी याचिकाओं में एक समान 13.77 एकड़ के परिसर से ईदगाह को हटाने की प्रार्थना है। खास बात यह है कि इस साल मई में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सभी याचिकाओं को उचित ही अपने यहां सुनवाई के लिए रख लिया। किसी एक जगह दोनों पक्ष अपने-अपने दस्तावेज और दलीलें पेश करें, तो सुनवाई में आसानी होगी। आस्था अपनी जगह है, लेकिन तर्क-तथ्य का दामन छूटना नहीं चाहिए। फैसला जो हो, तार्किक रूप से स्पष्ट होना चाहिए और दोनों पक्षों को लगना चाहिए कि न्याय हुआ।