बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थक ब्रिक्स

Afeias
26 Sep 2023
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ब्रिक्स का उदय – ब्रिक्स या ब्रिटेन, रशिया, इंडिया, चायना, साउथ अफ्रीका जैसे बहुपक्षीय आर्थिक संगठन का विचार 2000 के दशक के अंत में आया था। 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अमेरिका वैश्वीकरण पर अगला अध्याय लिखने की क्षमता खो रहा है। अतः यह संगठन अमेरिका की डिजाइन की गई पुरानी व्यवस्था के लिए एक स्थिरता और संभावित चुनौती के रूप में उभरा। इसका पहला शिखर सम्मेलन 2009 में आयोजित किया गया था।

अनेक देश ब्रिक्स से क्यों जुड़ना चाहते हैं?

आज पूरे विश्व में ऐसे उत्तरदायी शासन संस्थानों की स्पष्ट मांग है, जो किसी एक प्रमुख शक्ति या गुट के गुलाम न हों। इसके सदस्य किसी समान सुरक्षा संधि या विशेष सभ्यता या समुदाय का हिस्सा नहीं हैं। समानता के मानदंड को ब्रेटन वुड्स (1940 से 1970 तक चलाई जाने वाली अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था) प्रारूप के विरोध में स्थापित किया गया है। दूसरे शब्दों में, यह लोकतांत्रिक शासन संरचनाओं पर आधारित है।

दुनिया के लिए ब्रिक्स के तीन योगदान –

  • ब्रिक्स सदस्यों सहित दुनिया की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं वैश्वीकरण और पश्चिम के साथ अपनी भागीदारी तो बढ़ाना चाहती हैं, लेकिन अपनी राजनीतिक, सांस्कृतिक, विदेशी और घरेलू नीतियों को बदले बिना। ब्रिक्स ऐसे समावेशी वैश्वीकरण मॉडल को संभव बनाता है। यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में संप्रभुता और स्वतंत्र इच्छा की अवधारणा को बढ़ावा देना चाहता है।
  • आर्थिक स्तर पर ब्रिक्स की सबसे बड़ी सफलता, 2014 में न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) की स्थापना रही है। इस बैंक ने 34 अरब डॉलर के साथ लगभग 100 परियोजनाओं को निधि दी है। बैंक की सदस्यता और इसके पूंजी आधार के विस्तार से ब्रिक्स की वित्तीय भूमिका व्यापक बनेगी।
  • इसके अलावा, ब्रिक्स एक ऐसी स्थायी वैश्विक वित्तीय व्यवस्था की सिफारिश करता है, जो एक व्यापार और निवेश प्रणाली का समर्थन कर सके। यह किसी एक मुद्रा पर निर्भर न हो।

यूक्रेन युद्ध ने अनेक देशों को बहुत बड़े सबक दिए हैं। युद्ध पर होने वाली पश्चिमी प्रतिक्रिया से संपूर्ण आर्थिक प्रणाली की स्थिरता खतरे में पड़ रही है। इतना ही नहीं, अमेरिका ने अमेरिकी ट्रेजरी बांड में रखे रूसी विदेशी मुद्रा भंडार में से एक बड़ी राशि को अवैध रूप से फ्रीज करने का प्रयास किया है। इससे दर्जनों अन्य देशय जो अमेरिकी सरकारी बांडों में भारी निवेश करते है, उन्हें भविष्य में संकट आने पर अपनी संप्रभु संपत्ति के जब्त होने की संभावना पर विचार करने का अवसर मिल गया है। ब्रिक्स में ऐसे वित्तीय तंत्र को विकसित किया जा सकता है, जो उन्हें किसी बाहरी शक्ति की मनमानी से सुरक्षित रखे।

यदि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने ब्रिक्स के गठन की प्रारंभिक प्रेरणा दी थी, तो यूक्रेन युद्ध के प्रभाव उसे एक महत्वपूर्ण मोड़ दे रहे हैं। यही कारण है कि अर्जेंटीना, मिस्र, इथोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात इस समूह के सदस्य बन चुके हैं। इनके अलावा सदस्यता के इच्छुक देशों की सूची बहुत लंबी है। इसके अधिकांश देश इसे एक पश्चिम-विरोधी समूह का चेहरा नहीं देना चाहते हैं, बल्कि वे भारत की तरह ही एक बहुध्रुवीय व्यवस्था बनाना चाहते हैं, जिसका संचालन सबके हित में हो।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित जोरावर दौलत सिंह के लेख पर आधारित। 20 अगस्त, 2023