रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण
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हाल ही में भारत सरकार ने रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण को लेकर दीर्घकालिक रोडमैप की घोषणा की है। भारत को इसके लिए अपनी नीति और एक्शन को कैसे बदलना होगा। इस पर कुछ बिंदु –
- वैश्विक स्तर पर विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये की दैनिक हिस्सेदारी लगभग 1.6% है, जबकि वैश्विक माल व्यापार में भारत की हिस्सेदारी लगभग 2% है।
- रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने के लिए भारत ने बाहरी वाणिज्यिक उधार को रुपये में सक्षम करने की शुरूआत की है।
- भारतीय बैंकों को रूस, यूएई, श्रीलंका और मॉरीशस के लिए रुपया वोस्त्रो खाता खोलने के लिए कहा जा रहा है।
- लगभग 18 देशों के साथ रुपये में व्यापार के प्रयास किए जा रहे हैं।
- फिलहाल, भारतीय रुपये में व्यापार करने की अंतरराष्ट्रीय मांग बहुत कम है। किसी मुद्रा को आरक्षित या रिजर्व मुद्रा माने जाने के लिए उसका परिवर्तनीय होना, तुरंत प्रयोग में लाने लायक होना और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होना जरूरी है। जबकि भारत अभी रुपये की पूंजीगत खाता परिवर्तनीयता की पूरी अनुमति नहीं देता है। इसके लिए चीन का उदाहरण देखा जाना चाहिए कि कैसे उसने अपनी आरएमबी मुद्रा को 2008 के बाद अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य के लिए सक्षम बनाया।
- भारत ने पूंजीगत खाता परिवर्तनीयता से जुड़ी तारापोर समिति बनाई थी। इसका जोर राजकोषीय घाटे को 3.5% से कम करने, सकल मुद्रास्फीति दर को 3%.5% तक कम करने, और सकल बैंकिंग गैर-निष्पादित संपत्ति को 5% से कम करने पर था।
निःसंदेह, रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण के रोडमैप से भारतीय व्यापार और विदेशों में निवेश की राह आसान हो जाएगी, रुपये की तरलता बढ़ जाएगी और वित्तीय स्थिरता बढ़ेगी। इससे देश के नागरिकों और उद्यमों को लाभ होगा।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित वरूण गांधी के लेख पर आधारित। 07 जुलाई, 2023
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