09-12-2022 (Important News Clippings)
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जिला अदालतों की स्थिति सुधारने की जरूरत है
संपादकीय
हाल के दिनों में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने तीन खास मुद्दों पर चिंता व्यक्त की- जिला जजों को अधीनस्थ जज मानना, इन कोर्ट्स द्वारा भय के कारण जमानत न देना और जिला न्यायालयों में सुविधाओं का अभाव। उन्होंने कहा कि कई जिला अदालतों में महिला न्यायाधीश तक के लिए वॉशरूम न होने से वे सुबह 8.30 बजे से शाम 6 बजे तक बगैर इस सुविधा के काम करती हैं। सीजेआई का मानना था कि टॉयलेट जैसी सुविधा का अभाव फंड्स की कमी के कारण नहीं बल्कि उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण के कारण है। अगर गांव-गलियों में सरकार टॉयलेट बनवा रही है तो कोर्ट्स में टॉयलेट न होना प्रशासनिक उदासीनता ही कही जा सकती है। लेकिन शायद सीजेआई भूल रहे हैं कि निचली कोर्ट्स में जमानत एक व्यापार के रूप में वटवृक्ष बन चुका है। वकीलों की एक बड़ी संख्या केस लड़ने की जगह जमानत में लगी रहती है और उनके और निचली कोर्ट्स के बड़े भाग का गठजोड़ न्याय प्रशासन को दीमक की तरह खा रहा है। लिहाजा न्यायप्रिय जज भी जमानत देने और आलोचना से बचना चाहते हैं। अगर इस स्थिति को सुधारना है तो निच कोर्ट्स में भ्रष्टाचार- जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब और अनपढ़ वर्ग होता है- खत्म करना होगा और इसके लिए हाई कोर्ट्स के प्रशासनिक जजों को अपने-अपने क्षेत्र के जिला कोर्ट्स पर सख्ती करनी होगी।
Date:09-12-22
वैकल्पिक राजनीति की संभावना
संपादकीय
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गुजरात में 27 वर्षों से लगातार सत्ता में होने के बावजूद गुरुवार को घोषित हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों में जबरदस्त जीत हासिल की। पार्टी ने विधानसभा में अपनी सीट की तादाद 2017 के 99 से बढ़ाकर इस वर्ष 156 तक पहुंचा दी। जाहिर है मौजूदा राजनीतिक चर्चाओं में सबसे अधिक तवज्जो इसी बात को दी जाएगी। बहरहाल, यदि हम व्यापक तस्वीर पर नजर डालें तो एक अलग परिदृश्य उभरता दिखाई देता है। वह यह कि हाल में जो तीन बड़े चुनाव हुए उनमें से दो में सत्ताधारी दल यानी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। आम आदमी पार्टी (आप) ने दिल्ली नगर निगम चुनावों में भाजपा का 15 वर्षों का दबदबा तोड़ दिया। ऐसा तब हुआ जब भाजपा के कई बड़े नेताओं ने इन चुनावों में प्रचार किया। दिल्ली में आप को 250 वार्डों में से 134 में जीत मिली। भाजपा को 104 वार्ड में जीत हासिल हुई। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने 40 सीट पर जीत हासिल की। यह एक ऐसा राज्य है जहां सत्ताधारी दल की प्राय: वापसी नहीं होती है। सत्ताधारी दल के कमजोर शासन और राज्य इकाई में आपसी फूट ने भी उसकी संभावनाओं को कमजोर किया है। लेकिन यह बात ध्यान देने लायक है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों की मत हिस्सेदारी लगभग बराबर है। यकीनन कांग्रेस ने हिमाचल में जूझने का माद्दा दिखाया, हालांकि उसकी जीत का आंशिक श्रेय इस बात को भी दिया जा सकता है कि पार्टी ने राज्य में पुरानी पेंशन योजना वापस लाने का वादा किया। हिमाचल में यह एक अहम मसला है।
कुल मिलाकर तीनों प्रमुख दलों भाजपा, कांग्रेस और आप के पास खुश होने की वजह है। भाजपा ने गुजरात का अपना गढ़ बरकरार रखा है। हिमाचल के नतीजे बताते हैं कि गुजरात में खराब प्रदर्शन के बावजूद कांग्रेस को चुका हुआ मानना ठीक नहीं। हालांकि गुजरात में भाजपा की जीत पर कोई संदेह नहीं था, खासकर इसलिए भी कि प्रधानमंत्री स्वयं चुनाव प्रचार अभियान में थे लेकिन जीत के इतने बड़े अंतर का अनुमान शायद ही किसी ने लगाया हो। यह संभव है कि प्रदेश में कांग्रेस और आप की मौजूदगी भाजपा के लिए लाभदायक साबित हुई हो क्योंकि विपक्ष के मत भाजपा और कांग्रेस के बीच बंट गए। भाजपा भी दिल्ली नगर निगम के चुनाव नतीजों से पूरी तरह निराश नहीं हुई होगी क्योंकि उसने अपना मत प्रतिशत बरकरार रखा है और वह अब भी मजबूत बनी हुई है।
परंतु इस सप्ताह की बड़ी खबर है आप का राष्ट्रीय मंच पर पदार्पण। गुजरात चुनावों में अपने अच्छे प्रदर्शन की बदौलत आप अब राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए किसी दल को कुछ अन्य शर्तों के अलावा कम से कम चार राज्यों में अच्छी उपस्थिति दर्शानी होती है तथा वहां के विधानसभा चुनाव में कम से कम दो सीट और छह फीसदी मत हासिल करने होते हैं। पार्टी दिल्ली और पंजाब में सत्ता में है और गोवा विधानसभा में उसे दो सीट पर जीत मिली थी। गुजरात विधानसभा में पार्टी को पांच सीट पर जीत मिली है और उसे 12.9 फीसदी से अधिक मत हासिल हुए हैं। आप ने स्थापना के महज 10 वर्ष के भीतर यह मुकाम हासिल किया है। 2024 के लोकसभा चुनाव शायद आप के अहम विपक्षी दल बनने की दृष्टि से कुछ ज्यादा करीब हैं लेकिन उसका अब तक का प्रदर्शन बताता है कि देश में वैकल्पिक राजनीति की जगह बची हुई है।
Date:09-12-22
नियुक्ति का न्याय
संपादकीय
ऊपरी अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय और सरकार के बीच तनातनी खत्म होने का नाम नहीं ले रही। कुछ दिनों पहले केंद्रीय कानून मंत्री ने न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली कालेजियम प्रणाली को प्रश्नांकित करते हुए कहा था कि संविधान में कहीं भी यह शब्द नहीं मिलता। अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस मुद्दे को संसदीय लोकतंत्र के लिए चिंताजनक स्थिति माना है। उनका कहना है कि संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय न्यायिक आयोग कानून को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया जाना संप्रभुता के खिलाफ है। अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह बात राज्यसभा में कही। जाहिर है, सरकार ने कालेजियम प्रणाली को समाप्त करने को लेकर एक बार फिर कमर कस ली है। हालांकि पिछले कार्यकाल से ही वर्तमान केंद्र सरकार इस प्रणाली के खिलाफ रही है। उसका तर्क है कि कालेजियम प्रणाली के तहत ऊपरी अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में पक्षपात होता और भाई-भतीजावाद चलता है। सरकार चाहती है कि जिस तरह तमाम विभागों और संस्थानों में सर्वोच्च पदों पर नियुक्तियां वह खुद करती है, उसी तरह न्यायाधीशों की नियुक्ति भी उसी की मर्जी से हो। मगर सर्वोच्च न्यायालय इसे राजनीतिक दखलअंदाजी के रूप में देखता है।
वर्षों तक ऊपरी अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति केंद्र के फैसले से होती रही, मगर देखा गया कि उसमें सरकार अपने करीबी लोगों को तरजीह देती है, इसलिए कालेजियम प्रणाली लागू की गई। तब तर्क दिया गया कि चूंकि न्यायाधीश निचली अदालतों के न्यायाधीशों और वकालत कर रहे लोगों की प्रतिभा और क्षमता को बहुत नजदीक से जानते हैं, इसलिए उनमें से जज के रूप में चुनाव करने में उन्हें अधिक आसानी होगी। उसमें भी अंतिम निर्णय सरकार को ही लेना होता है, मगर वह एक तरह से चुने गए नामों पर अपनी स्वीकृति देने का होता है। हालांकि कुछ वर्षों बाद कालेजियम प्रणाली पर भी सवाल उठने शुरू हो गए कि वह अपने करीबी लोगों को ही उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में भेजती है। इस आधार पर सरकार ने कालेजियम प्रणाली को समाप्त कर राष्ट्रीय न्यायिक आयोग गठित करने संबंधी विधेयक संसद में पेश किया, जिसे सभी दलों ने आम सहमति से पारित कर दिया था। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने उसे संविधान की मंशा के खिलाफ मानते हुए रद्द कर दिया। तभी से यह तनातनी बनी हुई है और रह-रह कर सार्वजनिक रूप से उभर आती है।
निस्संदेह ऊपरी अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति का मामला न्याय-व्यवस्था की साख से जुड़ा है। उच्च और उच्चतम न्यायालय के प्रति देश के लोग इंसाफ के लिए बड़े भरोसे के साथ देखते हैं। हालांकि अधिकांश मामलों में ऊपरी अदालतों ने अपनी साख कायम रखी है और संविधान के प्रति उसकी निष्ठा प्रकट होती है। मगर कुछेक मामलों में अगर उदाहरण दिए जाते हैं कि जज का बेटा ही सर्वोच्च न्यायालय का जज बनता है, तो इस तरह के आरोप से मुक्त होने की जवाबदेही भी खुद सर्वोच्च न्यायालय पर आ जाती है। मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि न्यायालयों में राजनीतिक दखलअंदाजी से नियुक्तियां होंगी, तो उनके निष्पक्ष होने को लेकर सवाल उठते रहेंगे। किसी भी न्याय-व्यवस्था को इस तरह संदेह और सवालों के घेरे में डाले रखना उचित नहीं माना जा सकता। मगर जिस तरह सरकार और न्यायालय के बीच तनातनी चल रही है, वह भी ठीक नहीं। इसमें जल्दी ही बीच का कोई सर्वमान्य रास्ता निकलना चाहिए।
Date:09-12-22
एआई की है अहम भूमिका
गिरीश चंद्र मुर्मू, ( लेखक भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक हैं )
जी 20 विश्व की प्रमुख विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ने वाला बहुपक्षीय रणनीतिक मंच है। भविष्य में विश्व के आर्थिक विकास और समृद्धि को सुरक्षित रखने में जी20 की महत्वपूर्ण भूमिका है। एक साथ मिलकर जी 20 के सदस्य दुनिया की जीडीपी का 80 प्रतिशत से अधिक‚ अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 75 प्रतिशत और दुनिया की आबादी के 67 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
जी20 सदस्य देशों के सर्वोच्च लेखा परीक्षण संस्थानों का एक समूह एसएआई20 (सुप्रीम ऑडिट इंस्टीट्यूशन) कार्य समूह शासन से जुड़ी संस्थाओं को मौजूदा समय में सामने आ रही समस्याओं का बेहतर‚ तेज और विश्वसनीय तरीके से हल निकालने में समर्थ बनाने के साथ ही नागरिकों को उच्च कोटि का जीवन प्रदान करने के लिए सरकारों को सक्षम बनाने की दिशा में काम करता है। 1 दिसम्बर‚ 2022 को भारत द्वारा जी20 की अध्यक्षता ग्रहण करने के साथ भारत का सीएजी यानी एसएआई इंडिया एसएआई 20 की अध्यक्षता करेगा। जी20 में भारत की अध्यक्षता के मार्गदर्शक सिद्धांत यानी वसुधैव कुटुम्बकम‚ जिसमें पूरे विश्व को ‘एक पृथ्वी‚ एक परिवार‚ एक भविष्य’ के रूप में देखा जाता है‚ के तहत भारत के नियंत्रक एवं महा लेखापरीक्षक प्राथमिकता वाले दो क्षेत्रों–ब्लू इकोनॉमी और जिम्मेदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस–पर जी20 एसएआई के सहयोग का प्रस्ताव रख रहे हैं।
ब्लू इकोनॉमी ऐसी आर्थिक प्रणाली है‚ जिसमें समुद्री और ताजे पानी के पर्यावरण के संरक्षण‚ उनके सतत उपयोग को बढ़ावा देने‚ खाद्य और ऊर्जा का उत्पादन करने‚ आजीविका में मदद करने और आर्थिक उन्नति में सहायक के रूप में कार्य करने के उद्देश्य से नीति और परिचालन–संबंधी आयामों की विस्तृत श्रेणी शामिल हैं। कॉप26 में भारत द्वारा प्रस्तुत लाइफ यानी लाइफस्टाइल ऑफ इन्वायरमेंट की अवधारणा को ब्लू इकोनॉमी आगे ले जाती है। प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में‚ यह यूएन 2030 एजेंडा‚ विशेष रूप से (लेकिन अनन्य रूप में नहीं)‚ लक्ष्य 14 अर्थात जलीय जीवन की उपलब्धिओं पर एसएआई का ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। इसका उद्देश्य लेखा परीक्षण नीतियों और कार्यक्रमों पर इस तरह से सहयोग करना है‚ जो ब्लू इकोनॉमी पर प्रभावशाली तरीके और प्रगतिशाली रूप में असर डाले और समुदायों‚ क्षेत्रों के साथ–साथ राष्ट्रों तक फैले मजबूत अंतर्संबंधों में और वृद्धि करे। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मत्स्य पालन व्यवसाय से जुड़ा अधिकांश वर्ग आर्थिक रूप से कमजोर है‚ एसएआई को समाज में अधिक समावेशिता और लोगों के प्रति उनकी तत्काल प्रासंगिकता के हित में अधिक प्रभावी ढंग से अपने निरीक्षण का प्रयोग करने के लिए मजबूर करता है। भारत के नियंत्रक एवं महा लेखापरीक्षक सर्वसम्मत और व्यापक रूप से लागू मानकों या दिशा–निर्देशों को तैयार करने का प्रयास करेंगे जो सभी एसएआई को उनके संबंधित अधिदेशों के भीतर नीतियों और कार्यक्रमों के विकास और प्रभावी कार्यान्वयन का मूल्यांकन और मार्गदर्शन करने में सक्षम बनाएंगे जो निरंतरता और आर्थिक प्रगति के साथ संतुलन बनाता है।
दूसरी प्राथमिकता वाला क्षेत्र यानी जिम्मेदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की नागरिकों के जीवन पर असर डालने वाली उस भूमिका के अनुसार है‚ जिसमें छोटे कदम के बड़े असर देखने को मिल रहे हैं। ब्लू इकोनॉमी की तरह‚ उत्तरदायी एआई से संबंधित समस्याएं सामयिक‚ बहुआयामी और अन्योन्याश्रित हैं। चिंताएं वैधता‚ नैतिकता के साथ–साथ मानव बनाम गैर–मानवीय एजेंसी को लेकर दार्शनिक विकल्पों के मुद्दों पर फैली हुई हैं। सरकारों‚ व्यवसायों और नागरिक समाज संगठनों में जिम्मेदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग पर जागरूकता पैदा करने को लेकर व्यापक मान्यता और मजबूत सिफारिश की गई है। जून‚ 2019 में व्यापार और डिजिटल अर्थव्यवस्था पर जी20 मंत्रीस्तरीय वक्तव्य के दौरान और नवम्बर‚ 2021 में यूनेस्को द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की नैतिकता पर सिफारिशों के अनुसार यह स्पष्ट करने की दिशा में शुरुआत की गई है कि सभी हितधारकों के बीच विश्वास पर ही डिजिटल समाज का निर्माण किया जाना चाहिए जबकि एआई के एप्लीकेशन हमारे जीवन के अधिक से अधिक क्षेत्रों में शामिल हो रहे हैं‚ यह एआई के जिम्मेदारी भरे उपयोग को सुनिश्चित करने में सरकारों के साथ–साथ एसएआई‚ दोनों की समझ‚ विनियमन और लेखा परीक्षा से जुड़ी जटिल चुनौतियों को सामने रख रहा है।
एसएआई के लिए महत्वपूर्ण है कि वे एआई सिस्टम के इस्तेमाल से जुड़े मूल प्रश्नों को हल करने के लिए कारगर क्षमताओं को विकसित करें ताकि प्रभावी निरीक्षण के प्रतिनिधि के रूप में खुद को अनिवार्य रूप से स्थापित किया जा सके। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का प्रयास उठाए जाने वाले कदमों की प्रकृति और उनकी सीमा पर व्यापक सहमति बनाना होगा जो सभी एसएआएई अपने संबंधित शासनादेशों के भीतर रहते हुए उत्तरदायी एआई के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए उठा सकते हैं।
हम संयुक्त रूप से लेखा परीक्षण में मदद के लिए रचनाएं विकसित करने का प्रयास करेंगे और उन तरीकों का भी पता लगाएंगे जिनमें जी20 एसएआई आपसी क्षमता निर्माण और अनुभवों को साझा कर एक दूसरे की मदद कर सकते हैं। एक सामान्य सिद्धांत‚ जो हमारी दिशा का मार्गदर्शन करेगा‚ एआई सिस्टम के विकास और उपयोग को इस तरह से विनियमित करने की आवश्यकता होगा जो इसके जीवन को बदलने वाले फायदों को पूरी तरह से हासिल करने में सक्षम बनाता है जबकि उसी समय में जान बूझकर होने वाले दुरु पयोग या यहां तक गलतियों पर नजर रखता है। अत्यधिक प्रासंगिकता वाले प्राथमिकता के क्षेत्रों को आगे बढ़ाते हुए एसएआई20 के अध्यक्ष के रूप में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक एक प्रभावशाली और बेजोड़ जी20 अध्यक्षता के लिए जी20 एसएआई के मजबूत‚ सफल और व्यापक रूप से भागीदारी वाले सहयोग का इरादा रखते हैं।