चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाएं
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पिछले सात वर्षों से चुनाव आयोग पर सत्ताधारी दल का पक्ष लेने का आरोप लगाया जा रहा है। कुछ समय पहले ऐसी खबर मिली थी कि मुख्य चुनाव आयुक्त ने प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई एक अनौपचारिक बैठक में भी भाग लिया था। इन घटनाओं ने भारत के चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित कर दिया है।
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सवाल –
- चुनाव आयोग, संवैधानिक रूप से एक अनिवार्य निकाय है, जिसे धारणा और वास्तविकता में कार्यपालिका से दूरी बनाए रखनी चाहिए।
इस दृष्टि से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव किया जाना चाहिए। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 324 (2) के दायरे में आती है। इसमें एक खंड है, जो प्रावधान देता है कि चुनाव आयुक्तों की संख्या और कार्यकाल, “संसद द्वारा उस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के अधीन होंगे, जो राष्ट्रपति द्वारा बनाया जाएगा।’’ इस खंड का उद्देश्य ही यह था कि चुनाव आयुक्तों को कार्यकारीणी के प्रभाव से निष्पक्ष रखा जा सके। जहाँ तक इस पर कानून बनाने का प्रश्न है, तो 1991 में आयुक्तों की संख्या एक से तीन किए जाने के बाद से संसद ने नियुक्ति प्रक्रिया पर कोई कानून बनाने का प्रयास नहीं किया है।
- संसद की निष्क्रियता के बाद अब न्यायपालिका से उम्मीद की जा रही है कि वह इस प्रक्रिया में कुछ सुधार करे। न्यायपालिका में दायर तीन रिट याचिकाएं ये दलील देती हैं कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 324 (2) का उल्लंघन करती हैं। इन याचिकाओं में पिछले विधि आयोगों और विभिन्न समितियों की रिपोर्टों द्वारा अनुशंसित नियुक्ति प्रक्रिया को लागू करने की मांग की जा रही है। अर्धन्यायिक संस्था में अकेले कार्यकारिणी द्वारा की जाने वाली नियुक्तियों के विरोध का एक मामला रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड है।
- चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए एक बहु-संस्थागत एवं द्विदलीय समिति बनाई जानी चाहिए। मुख्य सूचना आयुक्त, लोकपाल, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त एवं केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक जैसे अन्य संवैधानिक और वैधानिक प्राधिकरणों के संबंध में इस तरह की प्रक्रिया का पहले से ही पालन किया जा रहा है।
चुनाव आयोग के कार्यों की अर्ध-न्यायिक प्रकृति उसकी नियुक्ति प्रक्रिया को सख्त लोकतांत्रिक सिद्वांतों के अनुरूप बनाने की ओर इंगित करती है।
अनूप बरनवाल बनाम कानून एवं न्याय मंत्रालय भारत सरकार के मामले में बैठी संवैधानिक पीठ का भी मानना था कि चुनाव आयोग के लिए कोलेजियम सिस्टम हो। केंद्र सरकार से उम्मीद की जा सकती है कि वह इस पर शीघ्र ही ध्यान देगी।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित एम. वी. राजीव गौडा एवं आईमन हाशमी के लेख पर आधारित। 13 जनवरी, 2022