03-07-2021 (Important News Clippings)

Afeias
03 Jul 2021
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Date:03-07-21

Juveniles and Justice

Should the below-16 face full trial if offences are heinous ?

TOI Editorial

A Madhya Pradesh HC judge has rued the Juvenile Justice Act’s inability to punish delinquents aged below 16 while rejecting bail for a 15-year-old juvenile accused of raping a 10-year-old girl. The judge observed that the legislature hasn’t “learnt lessons” from the Nirbhaya case, where one rapist was just under 18. This had triggered JJA 2015 amendments that allowed trial of juveniles over 16, when accused of heinous offences, as adults in children’s courts. But first a Juvenile Justice Board evaluates them for mental and physical capacity and ability to understand consequences of the crime. If found guilty, jail terms for the remainder of the sentence commences only on turning 21.

Interestingly, during the parliamentary debate at least one MP had wondered if a future 15-year-old offender accused of a heinous crime would prompt further lowering of age. Victims of rape or other heinous offences will understandably feel let down if violators get just three-year spells in a special home.

The issue here is of balance – if a juvenile less than 16 is credibly accused of an extremely heinous offence, he can be in the same halfway house system as those in the 16-18 group are now. Determining whether someone less than 16 can indeed be tried in such a fashion must be a thorough process. So, were Parliament to consider making exceptions for JJA’s age of criminality for extremely heinous offences, the amendment must be written with care. Heinous offences must be well defined to minimise subjectivity.

There’s another tragic problem: whether designated homes where juvenile offenders, including those who may face further trial, are placed are actually “places of safety” are in doubt. Any change in the juvenile justice system must consider that, too.


Date:03-07-21

Military Withdrawal Not Abandoning Afghans

ET Editorial

On Friday, US and Nato troops completely withdrew from the Bagram Air Base, the linchpin of the US-led operations. The move fast-forwards the withdrawal of foreign forces, scheduled to be completed by September 11. It marks the beginning of the winding down of the two-decade long war, but the war on terror is far from over. Over the next couple of months, the US, other members of the international community with active involvement of the UN Secretary General and his office must work with the Ashraf Ghani government in Kabul to defend Afghan’s polity from takeover by medieval ideology.

This change of guard comes as the Taliban gains ground and as ordinary people come together and take up arms to fend off the Taliban. The Afghan government in Kabul needs the support necessary to formulate and implement a central strategy to restrict the Taliban. The international community must commit to give direct and indirect support to the Taliban. A recent UN report documents the involvement of Pakistan-based terror groups such as Jaish-e-Mohammed (JeM) and Lashkar-e-Taiba (LeT) in fighting alongside Taliban groups against Afghan national forces. An unstable Afghanistan will be leveraged by an increasingly aggressive China, acting through Pakistan, to force the US and other western powers to refocus their engagement in Asia away from the Indo-Pacific. A move that will give China the free run it wants to give shape to its geopolitical ambitions.

The military withdrawal should not mean the US walking away. The US and allies must enlarge financial assistance to Afghan security forces, protecting the gains of the last 20 years, particularly with regards to women and children. India has a stake in peace, stability and economic growth in Afghanistan, and must extend support.


Date:03-07-21

सऊदी अरब में वैश्विक महत्व वाला बदलाव

शंकर शरण, ( राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )

हाल में सऊदी शासक प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान का एक इंटरव्यू अल-अरबिया चैनल पर आया। इंटरव्यू लेने वाले प्रसिद्ध पत्रकार अब्दुल्ला अल-मुदैफर थे। कुछ अवलोकनकर्ता इसकी अनेक बातों को धरती हिलने जैसी घटना बता रहे हैं। विदित हो कि इधर तीन दशकों से भी अधिक समय से सऊदी अरब पूरे विश्व में बहावी इस्लाम का प्रेरक रहा है। कई मुस्लिम भी मानते हैं कि सऊदी धन से ही भारत के उदारवादी मदरसों में उग्रवादी पाठ भरे गए। यह पूरी प्रक्रिया विश्व में आतंकवाद के फलने-फूलने का बड़ा कारण रही। इस पृष्ठभूमि में नए सऊदी शासक की नीतियां एक बड़ा बदलाव हैं। उक्त इंटरव्यू में एक बार भी इस्लाम शब्द नहीं आया। हालांकि सात बार अल्लाह का नाम और 17 बार प्रोफेट का। कुल दो बार इस्लामी विरासत का उल्लेख हुआ, किंतु अन्य ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासतों के साथ। इसी में शरीयत का प्रश्न भी उठा। मुदैफर ने सऊदी प्रशासन, संविधान, सार्वजनिक जीवन में शरीयत और वैयक्तिक स्वतंत्रता पर सवाल पूछे।

पूरे विश्व में आधुनिक मुसलमान महसूस करते हैं कि जो स्वतंत्रता दुनिया भर में गैर-मुसलमानों को सहज उपलब्ध है, उससे मुसलमान शरीयत के दबाव से वंचित रहते हैं। प्रिंस सलमान ने कहा कि सऊदी अरब का संविधान कुरान है। उसका पालन होता रहेगा, किंतु कुरान में स्पष्ट निर्देशों के अलावा बाकी कायदों पर बाध्यता अनुचित है। प्रोफेट मुहम्मद के उदाहरण (सुन्ना) की भी वही बातें स्वीकार्य होंगी, जो असंदिग्ध हैं। यहां प्रिंस सलमान ने एक नई बात कही। उनके अनुसार, हदीसों में केवल उन्हीं हदीसों को सही माना जाएगा, जिसे कई स्रोतों ने दोहराया हो। इसकी तुलना में अदद व्यक्तियों से मिली हदीसें, जिन्हेंं अहद हदीस कहते हैं, उसे कुरान से स्पष्ट मेल खाने, साथ ही दुनिया की भलाई से भी जुड़े होने पर ही माना जाएगा। यह बात शरीयत के साथ मानवीय विवेक को भी महत्व देती है।

प्रिंस सलमान के अनुसार अधिकांश हदीसें ऐसी हैं, जिन्हेंं कदापि बाध्यकारी नहीं रखा जा सकता। प्रोफेट मुहम्मद की जीवनी उद्धृत करते हुए वह कहते हैं कि प्रोफेट ने ही कई हदीसों के रिकार्ड जला देने का हुक्म दिया था और उन्हेंं लिखने से मना किया था। इस प्रकार शरीयत के अधिकांश निर्देश निष्प्रभावी हो जाएंगे, क्योंकि वे इक्के-दुक्के व्यक्तियों के कहे होने के बल पर बने थे और जिनसे कोई भला नहीं होता। इस प्रकार शरीयत को विवेक-विचार से भी तौलने की बात दूरगामी महत्व रखती है।

अब तक दुनिया भर के उलमा केवल मुस्लिम-हितों की बात करते रहे हैं, पर प्रिंस सलमान मानवता के हित का उल्लेख करते हुए यह भी कह रहे हैं कि मजहबी मामलों में कुरान के स्पष्ट निर्देशों के सिवाय किसी बिंदु पर दंड नहीं दिया जाएगा और वह भी उसी तरह जैसे प्रोफेट ने उसे लागू किया था। उदाहरण के लिए व्यभिचार पर प्रोफेट मुहम्मद द्वारा दी गई व्यवस्था। इस्लामी कायदे के मुताबिक कुंवारे व्यभिचारी को कोड़े मारने की सजा है, जबकि शादी-शुदा व्यभिचारी को मृत्युदंड, किंतु जब प्रोफेट मुहम्मद के सामने एक स्त्री ने अपना अपराध कबूल किया तो उसे सजा देने के बजाय वे लंबे समय तक टालते रहे। यानी प्रोफेट दंड नहीं देना चाहते थे। यह प्रसंग बताकर प्रिंस सलमान कहते हैं कि प्रोफेट द्वारा किए गए व्यवहार के अलावा कोई व्यवस्था देना गलत है। उनके विचार से, कई कामों का दंड देना अल्लाह ने केवल अपने हाथ में रखा, जो अपराधी को मरने के बाद मिलेगा। अल्लाह ने नहीं कहा कि लोग खुद दंड देने लगें। इसी को प्रिंस सलमान सही नजरिया बताते हैं। यह नि:संदेह क्रांतिकारी है, क्योंकि यह चालू शरीयत कायदों की तीन चौथाई बातें खारिज करता है।

प्रिंस सलमान कुरान और सुन्नी की व्याख्या करते हुए सऊदी नागरिकों के हित, सुरक्षा, देश की उन्नति और अंतरराष्ट्रीय नियमों का ध्यान रखना जरूरी मानते हैं। पर्यटन उद्योग का उदाहरण देकर कहते हैं कि यदि किसी देश में अंतरराष्ट्रीय व्यवहारों से अलग विचित्र कानून होंगे तो बाहरी पर्यटक नहीं आएंगे। इससे उस देश की ही हानि होगी। इसी तरह आर्थिक-व्यापारिक नियम भी अंतरराष्ट्रीय चलन के अनुरूप होने चाहिए, वरना बाहरी निवेश का अभाव होगा। शिक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में बाहरी प्रतिभाओं, विशेषज्ञों के आने के बारे में भी यही सच है। इस प्रकार प्रिंस सलमान आम मानवीय लोकतांत्रिक देशों के कानूनों के साथ तालमेल रखते हुए सऊदी कानून बनाना चाहते हैं। यह नि:संदेह असंख्य इस्लामी कायदों को छोड़ने की ही हिमायत है। वह सऊदी पहचान को भी नया अर्थ देते हैं, जिसमें इस्लाम के साथ-साथ अपनी अरबी, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत को भी जोड़ते हैं। चाहे वह इस्लाम से पहले की या भिन्न ही क्यों न हो। वह प्रोफेट मुहम्मद की सीखों के साथ-साथ जीवन और इतिहास के अनुभवों को भी महत्व देने की अपील करते हैं।

नि:संदेह प्रिंस सलमान सऊदी अरब की आतंक या इस्लाम-प्रसारक छवि बदलना चाहते हैं। विदेश नीति में भी वह सऊदी नागरिकों के आर्थिक विकास, रोजगार के नए अवसर और अंतरराष्ट्रीय मैत्री संबंध के हामी हैं। इसके लिए हर प्रकार के उग्रवाद और उसे मदद देने को अपराध मानकर यह सब खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने अमेरिका और यूरोप के साथ-साथ रूस, भारत और चीन का नाम लेकर सबके साथ सहभागिता की जरूरत बताई। इन बातों का महत्व इसलिए भी है, क्योंकि वे इस्लाम के केंद्र सऊदी अरब में हो रही है, जो सारी दुनिया के मुसलमानों का श्रद्धास्थल है। यहां किसी अच्छे परिवर्तन का असर स्वभाविक रूप से पूरी दुनिया के मुसलमानों पर होगा।

एक ओर अफ्रीका से एशिया तक कई देशों में उग्रवादी इस्लाम बढ़ रहा है तो दूसरी ओर अरब देशों में विपरीत प्रक्रिया चल रही है। अब स्वयं सऊदी लोग इस्लाम से पहले और इस्लाम से भिन्न अपने इतिहास और संस्कृति को महत्व दे रहे हैं। यह बुनियादी परिवर्तन का संकेत है, जिसे भारतीय मुसलमानों को भी नोट करना चाहिए। वैश्विक इस्लाम स्पष्टत: एक गंभीर मोड़ पर है। चूंकि भारत ऐतिहासिक रूप से इस्लाम का एक महत्वपूर्ण केंद्र एवं क्षेत्र रहा है, इसलिए सारी स्थिति से पूरी तरह अवगत होकर अपना कर्तव्य करना चाहिए-हिंदू और मुसलमान, दोनों को।


Date:03-07-21

चुनौती बनते ड्रोन हमले 

अभिषेक कुमार सिंह

सुरक्षा के संबंध में एक प्रचलित मुहावरा है कि सुरक्षा ऐसी हो कि परिंदा भी पर न मार सके। लेकिन जम्मू के वायु सेना स्टेशन पर हाल में हुए ड्रोन हमले ने इस धारणा को खारिज कर दिया है कि हमारे सैन्य प्रतिष्ठान आसमान के रास्ते की जाने वाली आतंकी हमलों की कोशिशों से पूरी तरह महफूज हैं। सुरक्षा के संबंध में एक धारणा और है। वह यह कि संसाधन जितनी उच्च तकनीक से युक्त होंगे, सुरक्षा उतनी ही पुख्ता होगी। मानवरहित बेहद हल्के और सस्ते विमानों (ड्रोन) से किए गए इस आतंकी हमले ने सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की नींद इसीलिए भी उड़ा दी है कि सुरक्षा में सेंध लगाने के लिए अब अत्यधिक उन्नत तकनीक जरूरी नहीं रह गई है। आतंकियों ने सेना की महंगी लागत वाले उपायों को बेहद कम लागत वाले हल्के ड्रोनों से विस्फोटक गिरा कर साबित कर दिया कि सुरक्षा में सेंध लगाने के लिए ऊंची लागत के इंतजामों की जरूरत नहीं है। देश में पहली बार ड्रोन को हथियार बना कर किए गए इस आतंकी हमले से सरकार और सेना का चौकन्ना हो जाना स्वाभाविक है। पर अहम सवाल यह है कि क्या हमारे पास इस किस्म की आतंकी घुसपैठ का कोई तोड़ है?

अगर आतंकी ड्रोन का इस्तेमाल कर पाने में कामयाब हो रहे हैं तो यह उनके हाथों में परमाणु बम पड़ जाने से कम नहीं है। दशकों से पूरी दुनिया डर्टी बम नामक जुमले का इस्तेमाल करती आई है। कहा जाता रहा है कि अगर आतंकी संगठन जोड़-तोड़ करके कहीं से खराब किस्म का यूरेनियम और तकनीक चुरा कर कम ताकत वाला बम बना लेते हैं, तो इससे पूरी दुनिया की सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है। हालांकि डर्टी बम बनाना भी आसान नहीं है और शायद यही वजह है कि कोई आतंकी संगठन अभी तक ऐसा दावा नहीं कर पाया है कि उसने कम क्षमता वाला परमाणु बम बना लिया है। लेकिन ड्रोन के मामले में हालात बदल चुके हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा कि बाजी हाथ से निकल चुकी है। ड्रोन का इस्तेमाल कर सुरक्षा में सेंध लगाई जा सकती है। यह अब हमारे देश में भी साबित हो चुका है।

यह सही है कि कोई भी जंग सबसे पहले मनोवैज्ञानिक और कूटनीतिक स्तर पर लड़ी जाती है। जब किसी युद्ध से पूर्व आजमाए जाने वाली रणनीतियां कारगर नहीं होती हैं और किसी मसले पर वास्तविक जंग की नौबत आ जाती है तो उसमें जंगी जहाजों, युद्धपोतों, तोप, बम, मिसाइलों आदि का इस्तेमाल होता है। लेकिन इधर कुछ समय से हथियारों की इस सूची में ड्रोन एक अनिवार्यता बन गए हैं। जरूरी नहीं कि युद्ध दुश्मन देशों की सेनाओं के बीच हों, आतंकवाद से लोहा लेने के लिए भी ऐसी ही युद्धक तैयारियों की जरूरत पड़ती है। लेकिन यहां अहम सवाल यह है कि क्या ड्रोन वास्तव में किसी जंग में इतने मददगार साबित हो सकते हैं कि वे युद्ध का स्वरूप ही बदल डालें। और क्या इनकी मदद से सैनिकों की क्षति कम की जा सकती है और जीत का वह उद्देश्य हासिल किया जा सकता है, जिसके लिए युद्ध लड़ा जाता है। अभी यह तो कहा जा सकता है कि जम्मू वायु सेना स्टेशन पर ड्रोन से किया गया आतंकी हमला नुकसान भले ज्यादा न कर पाया हो, लेकिन यह बेहद गंभीर घटना है। इसे सिर्फ एक और आतंकी वारदात के रूप में नहीं लिया जा सकता। इसे आतंकी हमलों के तरीकों में महत्त्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत माना जाना चाहिए। ध्यान रखना होगा कि भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा से जम्मू वायु सेना स्टेशन की दूरी करीब पंद्रह किलोमीटर है। इससे पहले भी दर्जनों बार ड्रोन सरहद पार कर हमारे देश में आते रहे हैं।

यह विचार करना होगा कि अस्थिरता पैदा करने के लिए आतंकी ड्रोन का इस्तेमाल करने को क्यों प्रेरित हुए। यह निश्चय ही सेना की ओर बरती जा रही सावधानी और आतंकवाद के सफाए के ठोस प्रयासों का नतीजा है कि आतंकवादी अब किसी जगह पर कोई वारदात खुद सामने आकर करने से पहले सौ बार सोचते हैं। आतंकियों के लिए किसी सार्वजनिक स्थान या राष्ट्रीय महत्त्व के सरकारी अथवा सैन्य प्रतिष्ठान की सुरक्षा में सेंध लगाना आसान नहीं रह गया है। ऐसा करने में उन्हें भारी जोखिम उठाना पड़ता है और आतंकवादियों के मारे जाने की संभावना भी रहती है। लेकिन ड्रोन ने उन्हें वे हाथ-पांव दे दिए हैं, जिनके सहारे वे ज्यादा कोई जोखिम लिए बिना देश की सुरक्षा में सेंध लगा सकते हैं। नई स्थितियों के मुताबिक अब किसी स्थान को आतंकियों के दायरे से बाहर नहीं माना जा सकता। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि ड्रोन भारतीय सीमा के अंदर से ही संचालित किए जा रहे हों। आतंकी संगठनों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कई मायनों में सुविधाजनक हो गया है। ड्रोन के जरिए देश के अंदर छोटे-छोटे आतंकी समूहों के जरिए भी हमले करवाए जा सकते हैं। इसमें वारदात को अंजाम देने वाले आतंकियों के मारे या पकड़े जाने का डर नहीं होता है।

आतंकी संगठन अब से करीब ढाई दशक पहले से मानवरहित विमानों से दहशत फैलाने के बारे में सोचते रहे हैं। एक तथ्य के मुताबिक एक जापानी आतंकी समूह ने पच्चीस साल पहले ड्रोन के जरिए सरीन गैस फैलाने की योजना बनाई थी। मध्यपूर्व देशों में मौजूद आतंकी समूह भी ड्रोन के जरिए हमलों को अंजाम दे चुके हैं। दावा है कि ड्रोन से ऐसा पहला सफल आतंकी हमला 2013 में किया गया था। तब शिया आतंकी समूह- हिजबुल्लो ने ईरान के दिए ड्रोन का इस्तेकमाल करते हुए सीरिया के ठिकानों पर विस्फो टक गिराए थे। वर्ष 2018 में सीरिया के कहामिम वायु सेना अड्डे पर ड्रोन हमले किए गए थे। उसी वर्ष अगस्त् में वेनेजुएला के राष्ट्रजपति को ड्रोन से निशाना बनाया गया। दो ड्रोन की मदद से उस जगह पर विस्फोेटक गिराए गए जहां राष्ट्ररपति भाषण दे रहे थे। बीते दस वर्षों में सीरिया में ड्रोन से कई हमले किए गए। आतंकी संगठन इस्लांमिक स्टेरट ने इराक और सीरिया में छोटे ड्रोन का जम कर इस्तेनमाल किया। मोसुल की लड़ाई के दौरान कई ड्रोन के जरिए इराकी सैनिकों पर इस्लामिक स्टेट ने हथगोलों की वर्षा की थी। सऊदी अरब पर हूती विद्रोहियों ने ड्रोन से अनगिनत हमले कर उसकी नाक में दम कर रखा है।

जहां तक आतंकियों के भेजे ड्रोन से मुकाबले का सवाल है तो इस मामले में भारतीय सेना छोटे आकार के कुछ इजरायली ड्रोन (स्मैश-200 प्लस) का आयात कर रही है। इन्हों बंदूकों या राइफलों पर लगाया जा सकता है। इनसे हमलावर छोटे ड्रोन को दिन या रात में निशाना बनाया जा सकता है। मगर फिलहाल भारत ऐसे खतरों से निपटने में पूरी तरह सक्षम नहीं है। कहने को तो हमारी सेना के पास बेहद आधुनिक राडार और मिसाइलों वाली रक्षा प्रणालियां हैं, लेकिन इन प्रबंधों से सिर्फ बड़े ड्रोन का ही मुकाबला किया जा सकता है। फिलहाल जो कुछ किया जाएगा, वह इस मामले में मिली हार की हताशा से बाहर आने का उपक्रम होगा। लेकिन इस घटना से सबक लेकर यदि बेहद कड़े प्रबंध किए जाते हैं और आतंकी मनसूबों को धराशायी किया जाता है, तो भी यह राहत की बात होगी। यह कैसे होगा, इसे लेकर अभी खुद सेना और सरकार में चिंतन हो रहा है। लेकिन इतना तय है कि ऐसी आतंकी कोशिशों की रोकथाम के लिए जितने उपाय हो सकें, वे करने होंगे और इस बारे में विशेषज्ञों की राय को महत्त्व देना होगा।


Date:03-07-21

दुश्मन ड्रोन

संपादकीय

पाकिस्तान के हाथों में जैसे एक नया हथियार लग गया है, जिसका इस्तेमाल वह धड़ल्ले से कर रहा है। यह बड़े खतरे की बात है कि इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग में भी ड्रोन की घुसपैठ सामने आई है। और तो और, जब भारत में जम्मू एयरबेस क्षेत्र में ड्रोन से हमला हुआ था, तभी इस्लामाबाद स्थित उच्चायोग पर ड्रोन मंडरा रहा था। तो क्या सुनियोजित रूप से पाकिस्तान की ओर से ड्रोन का इस्तेमाल जासूसी और सैन्य हमले के लिए किया जा रहा है? बीते शनिवार की रात इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग के रिहाइशी खंड में ड्रोन के उड़ने का क्या मतलब है? भारत ने उचित ही आधिकारिक रूप से पाकिस्तान के सामने आपत्ति जताई है। अपनी सुरक्षा के प्रति यथोचित मंचों पर चिंता का इजहार जरूरी है। पाकिस्तान को ऐसी हरकत से बाज आना चाहिए। ड्रोन अब कोई खिलौना नहीं है, इसका विशेष सामरिक महत्व है। यह न केवल घातक सिद्ध हो सकता है, बल्कि इसके जरिए कूटनीतिक-सामरिक जासूसी संभव हो सकती है।

हालांकि, जब भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर संघर्ष-विराम की स्थिति है, तब ड्रोन का इस्तेमाल तनाव को जान-बूझकर बढ़ाए रखने की साजिश के अलावा और कुछ नहीं। क्या संघर्ष-विराम इसीलिए किया गया है, ताकि सीमा के आर-पार ड्रोन का इस्तेमाल आसानी से किया जा सके? जिस तरह से जम्मू में ड्रोन की मदद से हमला हुआ, जिसमें दो वायु सेना कर्मी घायल हुए, क्या उसे हल्के में उड़ा देना चाहिए? क्या यह संघर्ष-विराम तोड़ने की कोशिश नहीं है? क्या पाकिस्तान हमारे धैर्य की नई परीक्षा नहीं ले रहा है? ड्रोन से हो रहे हमले और जासूसी ने हमें नए सिरे से सोचने पर विवश कर दिया है। ड्रोन अटैक को लेकर खुद आर्मी चीफ एम एम नरवणे ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि ड्रोन का खुलेआम और आसानी से मिलना चिंता का विषय है। हमारी तैयारी चल रही है, पर इसके लिहाज से और सतर्क होने की जरूरत है। क्या ड्रोन के इस्तेमाल से हमारे सैन्य खर्च में बढ़ोतरी नहीं होगी? हम जगह-जगह चौकसी बढ़ाएंगे और ऐसा हो भी रहा है। अनेक सैन्य ठिकानों पर ड्रोन देखे गए हैं, ड्रोन से हमले की आशंका देखते हुए सभी सैन्य ठिकानों पर अलर्ट जारी कर दिया गया है। इसके अलावा, जम्मू में एंटी ड्रोन सिस्टम से लेकर अन्य तमाम तकनीकी व्यवस्थाएं कर दी गई हैं, ताकि किसी भी संदिग्ध ड्रोन को मार गिराया जा सके। अत: यह आशंका निर्मूल नहीं है कि पाकिस्तान हमें परेशान करने और हमारे सैन्य खर्च को बढ़ाने की दृष्टि से ही ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है। सीमा पर सैनिकों का जमावड़ा बढ़ाकर चीन की भी ऐसी ही साजिश रही है। अत: उचित मंच पर भारत को अपनी बात गंभीरता से रखनी चाहिए।

ऐसा पहली बार है, जब पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग में ड्रोन देखा गया। यह कूटनीतिक सभ्यता के विरुद्ध है। बताते हैं, उच्चायोग परिसर में जब ड्रोन देखा गया, तब वहां एक कार्यक्रम चल रहा था। यदि भारत में भी पाकिस्तानी दूतावास की ड्रोन से निगरानी की जाए, तो सीमा पार कैसा एहसास होगा? कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय व्यवहार की एक गरिमा होती है, जिसे बनाए रखने से राष्ट्र का सम्मान बढ़ता है, लेकिन ड्रोन से जासूसी और हमले से किसी देश का सम्मान कतई नहीं बढ़ेगा। बेशक, ये ड्रोन अगर उड़ते रहे, तो दुश्मनी की दरारों को और बढ़ाएंगे।


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