राज्यों का राजकोषीय घाटा
Date:30-03-21 To Download Click Here.
केंद्र सरकार के आम बजट के बाद देश के राज्यों का घाटे का बजट आने लगता है। राज्यों का खजाना भले ही खाली हो, लेकिन मुफ्त की रेवडियां बांटने से वे पीछे नहीं हटते हैं। अगले कुछ माहों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कुछ राज्य खुलकर ऋण माफी जैसी योजनाओं की बरसात करने में लगे हुए हैं। इतना ही नहीं, सामान्य दिनों में भी गैर उत्पादक खर्चों पर राज्यों का बजट तेजी से बढ़ा है। लोगों को तुरंत राहत दिलाने की उनकी मानसिकता राज्य के आर्थिक विकास के लिए अभिशाप बनती जा रही है।
बड़ा सवाल यह है कि प्राकृतिक संसाधनों के धनी हमारे राज्य तमाम जरूरतों के लिए केंद्र पर इतने आश्रित क्यों हैं ? इनकी खुद की कमाई कैसे बढ़े, कैसे ये वित्त मामलों में आत्मनिर्भर बनें, यह समझना जरूरी है।
- केंद्र पर राज्यों की अतिनिर्भरता उनकी अपनी आत्मनिर्भरता की राह में बड़ी बाधा बनी हुई है। आरबीआई के एक अध्ययन से पता चलता है कि हाल के वर्षों में राज्यों का खुद का राजस्व कम होता गया है।
- राज्यों के राजस्व का मुख्य हिस्सा जीएसटीए बिक्री कर और केंद्रीय करों में हिस्सेदारी से आता है। राज्यों के खुद के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा जीएसटी के साथ मिला दिया गया, जिसे अब जीएसटी परिषद् नियंत्रित करती है। ज्यादातर बिक्री कर से मिलाकर बने स्टेट जीएसटी में 2019-20 में 11 फीसदी की कमी दिखी। बिक्री कर में धीमी वृद्धि हुई, क्योंकि इस टैक्स में बड़ी हिस्सेदारी वाले पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स वृद्धि की राजनीतिक विवशता है। सेस और सरचार्ज पर केंद्र की निर्भरता बढ़ी। इस मद में आया राजस्व, राज्यों से बांटा नहीं गया।
- कई बड़े राज्य भी राजस्व घाटे से त्रस्त हैं। उनके कर्ज का बड़ा हिस्सा उत्पादक आवंटन की जगह अकुशल खर्च की भेंट चढ़ जाता है। नतीजन सामाजिक क्षेत्र के लिए राज्य का खर्च बढ़ जाता है।
- कृषि पर आश्रित 11 राज्यों के एक अध्ययन में बताया गया है कि कैसे 75 फीसदी से अधिक भूस्वामियों को संस्थागत क्रेडिट उपलब्ध कराया जा रहा है। ऋण के रूप में पूंजीगत निवेश का अनुपात कृषि के लिए जारी कुल क्रेडिट का बहुत छोटा सा हिस्सा है, और यह लगातार क्षीण भी हो रहा है। पूंजी निर्माण की जगह निजी तौर पर किसानों को दिया जाने वाला लाभ उनकी उत्पादकता को कम करता है।
- राज्य सरकारें स्वास्थ क्षेत्र में भी बड़ी भूल कर रही हैं। वे अस्पताल तो बनाती हैं, लेकिन बीमारी से रोकथाम के उपायों को प्रभावी तरीके से लागू करने में हिचक दिखाती हैं। अक्सर देखा जाता है कि केंद्र से इतर दलों की राज्य सरकारें ‘स्वच्छ भारत’ जैसे जनकल्याणकारी कार्यक्रमों को वजन नहीं देती।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि राज्यों का राजस्व संग्रह बहुत अच्छा नहीं है। अनेक करों की ताकत मिली होने के बावजूद वे सबसे टैक्स संग्रह सुनिश्चित नहीं कर पाते हैं। वे कर चोरी रोक नहीं पा रहे हैं। उनका संपत्ति कर भी बहुत कम है। इसे बढ़ाना चाहिए। उन्हें गारमेंट उद्योग, चमड़ा उद्योग, कोल्ड स्टोरेज आदि को बढ़ावा देना चाहिए। बजट में किसी एक वर्ग को खुश करने के बजाय पूंजीगत खर्च के तहत इनसे जुड़े संसाधनों का विकास करना चाहिए।
राज्यों को राजस्व खर्च में कमी करके उसे व्यवस्थित करने की भी जरूरत है।
समाचार पत्रों पर आधारित।