प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर बदलता भारत का दृष्टिकोण

Afeias
06 May 2020
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Date:06-05-20

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हाल ही में सरकार ने भारत में चीन के प्रत्यक्ष निवेश पर रोक लगा दी है। सरकार ने इस हेतु प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के ऑटोमेटिक तरीके पर पाबंदी लगाई है। भारत की लगभग 30 यूनिकॉर्न कंपनियों में चीनी निवेश है। लगभग 1000 चीनी कंपनियों का भारत में दखल है। इसके अलावा, लगभग 100 छोटी-बड़ी कंपनियां ऐसी हैं, जिनमें चीन निवेश कर चुका है या आगामी वर्ष में निवेश करने वाला है।

अगर सरकार के इस कदम को अमल में लाया गया, तो कई भारतीय कंपनियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका है। इससे कई भारतीय टैक कंपनियों को भारी नुकसान पहुंचेगा।

भारत का दृष्टिकोण

  • हाल ही में चीन के पीपल्स बैंक ने कर्ज में डूबे एच डी एफ सी के शेयर में 1.01 प्रतिशत का निवेश किया है। इस निवेश को सरकार ने एक चेतावनी की तरह लिया है।
  • भारत सरकार शायद इस कदम के माध्यम से चीनी निवेश को अस्वीकार करने या चीनी निवेश कंपनियों को अपने प्रस्ताव में बदलाव के लिए बाध्य करना चाहती है।
  • चीन ने अन्य देशों में अपने हाल के निवेशों में पश्चिमी और जापानी फर्मों को अपनी तकनीक और प्रबंधन की गोपनीय बातों को साझा करने पर मजबूर किया है। भारत ऐसी स्थिति में बचना चाहता है।

चीनी कूटनीतिज्ञों को अपनी हुवावे और टेसेंट जैसी प्रमुख कंपनियों को विश्व स्तर पर आगे बढ़ाने के लिए आक्रामक नीति अपनाने वाला माना जाता है।

अभी तक भारत ने विदेशी निवेश के लिए अपनी आतुरता दिखाई है। परन्तु देशों से कोई सौदेबाजी नहीं की थी। इससे भारत को विेदेशी अधिग्रहण का भय बना रहता था। आज का वैश्विक परिदृश्य बदल गया है। सभी देश एक ही नाव पर सवार हैं। अतः भारत के लिए यह अच्छा अवसर है, जब वह विनिर्माण क्षेत्र के लिए तुरंत जरूरी विदेशी निवेश पर सौदेबाजी कर सके।

फिलहाल चीन ने इस मुद्दे को विश्व स्तर पर नहीं उठाया है। भारत स्थित चीनी दूतावास के माध्यम से इस मुद्दे पर यह कहकर आपत्ति दर्ज की गई है कि भारत का यह कदम विश्व व्यापार संगठन के नियमों के विरूद्ध है। चीन को भारतीय सरकार के ठोस जन-समर्थन का पता है, और वह कोई भी आक्रामक कदम उठाने से पहले विचार करेगा। परन्तु कहीं ऐसा न हो कि वह हमारे देश में निवेश से विमुख हो जाए, और हम कोविड-19 के बाद की अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति में विदेशी निवेश का बड़ा अवसर प्राप्त करने से वंचित रह जाएं।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित सैवल दासगुप्ता के लेख पर आधारित। 25 अप्रैल, 2020