मनरेगा की सफलता

Afeias
23 Dec 2019
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Date:23-12-19

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भारत में महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी स्कीम यानी मनरेगा की शुरूआत 2005 में हुई थी। तब से योजना में जन्में भ्रष्टाचार को दूर करने के प्रयास किए जा रहे थे। पिछले पाँच वर्षों में इस प्रयास में सफलता मिली है। ग्रामीण रोजगार से संबंधित इस महत्वपूर्ण योजना में आखिर ऐसे कौन से सुधार या परिवर्तन किए गए, जिसने इसकी कमियों को दूर कर दिया है।

1. खेतों में तलैया और कुओं की खुदाई पर जोर दिया गया। हाशिए पर जीने वाले छोटे किसानों को 90/95 दिनों    का काम दिया गया। इसके साथ ही भूमिहीन श्रमिकों को प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में घर दिए गए। मिशन  जल संरक्षण के अंतर्गत संरक्षण के पर्याप्त कार्य हुए। स्पष्ट किया गया कि मनरेगा कोई पेंशन योजना नहीं  है, बल्कि आजीविका सुरक्षा योजना है।

2. 2014-15 में 21.4 प्रतिशत के स्तर पर रहने वाली व्यक्तिगत लाभार्थी योजना, वर्तमान में 67.29 प्रतिशत पर है। इस हेतु खेतों में तलैया, पशुओं के लिए झोपड़े, कुएं, वर्मी पिट आदि का निर्माण वृहद् स्तर पर किया गया। इसके तहत 1.5 करोड़ हेक्टेयर भूमि को जल संरक्षण से लाभ हुआ।

3. लगभग 100 प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक फंड मैनेजमेन्ट सिस्टम के द्वारा पूर्ण पारदर्शिता लाई गई। सम्पत्ति की जियो-टैगिंग एवं सार्वजनिक रिकार्ड सिस्टम को लागू करने के साथ ही सोशल ऑडिट योजना पर काम किया गया। 97 प्रतिशत मजदूरी 15 दिनों के भीतर दी गई। इसमें से लगभग 75 प्रतिशत तो सीधे श्रमिकों के खातों में डाला गया।

4. 60:40 वेतन और सामग्री वाली योजना को ग्राम पंचायत की जगह जिला स्तर पर लाया गया। इसने कार्यों के साक्ष्य-आधारित चयन को सुनिश्चित किया। कृषि और संबंद्ध क्षेत्रों के लिए 60 प्रतिशत काम किए गए। राज्यों को जल संरक्षण एवं वनीकरण के प्रयासों के साथ आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

जिला स्तर पर काम शुरू होने से आंगनवाड़ी जैसी योजनाओं के लिए ढांचे खड़े करने में सफलता मिली।

5. राज्यों का श्रम बजट मैनुअल कैजुअल लेबर और वंचित गणना के आधार पर तय किया गया। इससे इन राज्यों को मनरेगा का अधिक लाभ दिया जा सका। सन् 2015 की सामाजिक-आर्थिक एवं जातिगत जनगणना के द्वारा देश के सबसे निर्धन क्षेत्रों तक मनरेगा फंड पहुँचाया गया।

ग्रामीण आवास योजना के साथ 90/95 दिनों के काम में भी सामाजिक-आर्थिक जनगणना को आधार बनाया गया। इससे निर्धन क्षेत्रों में श्रम-बजट बढ़ाने में काफी हद तक मदद मिली।

6. जलवायु परिवर्तन से ग्रसित क्षेत्रों में 150 दिन के श्रम-कार्य सुनिश्चित किए गए।

7. आजीविका मिशन के अंतर्गत महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों, पंचायत नेताओं एवं अन्य समूहों के बीच सामुदायिक संपर्क बढ़ाने का प्रयास किया गया। 2018-19 के दौरान ग्राम स्वराज अभियान के अंतर्गत 65,000 घरों के बीच सभी कार्यक्रम चलाये गये।

मनरेगा के इस कार्यक्रम ने उस दौरान ग्रामीणों की वास्तविक सहायता की, जब कृषि-उत्पादों के दामों में कोई खास वृद्धि नहीं हुई थी, और मजदूरी में भी मामूली वृद्धि की गई थी। इस योजना ने ग्रामीणों की आजीविका के आधार को मजबूत करके उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमरजीत सिन्हा के लेख पर आधारित। 22 नवम्बर, 2019