विश्व के लिए प्रेरणा बनता स्वच्छ भारत मिशन

Afeias
31 Oct 2018
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Date:31-10-18

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आधुनिक विश्व के इतिहास में कई बार सर्वोच्च नेताओं ने ऐसी घोषणाएं की हैं, जो असंभव सी प्रतीत होती रहीं, परन्तु अंततः साकार हुईं। 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री की भारत को 2019 तक खुले में शौचमुक्त करने की घोषणा भी असंभव प्रतीत होने वाला कार्य लगती थी। 60 करोड़ भारतीयों की आदत को सुधारकर उन्हें शौचालयों के निर्माण के लिए तैयार करना, कोई आसान कार्य नहीं था। आज, इस घोषणा के चार वर्ष बाद ही भारत, खुले में शौच से मुक्त होने के कगार पर है।

कभी-कभी किसी शक्तिशाली द्वारा दिखाई गई प्रतिबद्धता से, सुप्त लोगों और संस्थाओं को पहले भी जाग्रत होते देखा गया है। स्वच्छ भारत मिशन में भी यही हुआ है। भारत की स्वतंत्रता के 67 वर्षों बाद, यानी 2014 तक भी शौचालय को एक आवश्यकता नहीं माना गया था। महिलाओं को इसकी जरूरत लगती थी, परन्तु उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं था।

विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में अपना स्थान बना लेने के बाद भारत के लिए अपनी जनता, विशेष रूप से ग्रामीण जनता के जीवन-स्तर को ऊपर उठाना जरूरी है। इस यात्रा में बुनियादी ढांचों के विकास के साथ ही स्वच्छता भी बहुत मायने रखती है। शौचालयों के अभाव में महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा तो दांव पर लगी ही थी, हमारे शिशुओं और बच्चों के लिए यह प्राणघातक भी था। इससे फैलने वाली अनेक बिमारियों ने बच्चों के विकास को अवरुद्ध कर दिया था। इससे देश की उत्पादकता प्रभावित हो रही थी, और हम अपने प्रजातांत्रिक लाभांश को भुना नहीं पा रहे थे।

  • इस विशाल अभियान के लिए भारत ने 20 अरब डॉलर का बजट रखा था।
  • अनुसूचित जाति, जनजाति, महिला की प्रधानता वाले घरों, छोटे एवं भूमिहीन किसानों को शौचालयों के निर्माण के लिए 12,000 रु. की धनराशि का सहयोग देते हुए, कुल 8.5 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
  • पिछले चार वर्षों में 50 करोड़ से अधिक लोगों ने खुले में शौच की अपनी आदत को छोड़ा।
  • 2014 में ग्रामीण क्षेत्रों की स्वच्छता का प्रतिशत 39 था, जो स्वच्छ भारत मिशन के चलते 2018 में 93 प्रतिशत हो गया।
  • भारत में स्वच्छता में निवेश के चलते, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि 2019 तक भारत खुले में शौच से पूर्ण रूप से मुक्त होने तक 3 लाख जीवन बचाने में सफलता पा लेगा।

इस दिशा में भारत, विश्व में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। भारत के अनुभवों एवं कार्यान्वयन नीति के गुर, अनेक देश सीखना चाहते हैं। 29 सितम्बर से 2 अक्टूबर के बीच विभिन्न देशों से आए 50 स्वास्थ्य मंत्रियों ने महात्मा गांधी इंटरनेशनल सैनीटेशन कन्वेशन में भाग लिया। इस सम्मेलन के माध्यम से भारत ने भी स्वच्छता के प्राप्त लक्ष्य को लंबे समय तक बनाए रखने के बारे में अन्य देशों से सीखा है। यही इस मिशन की उपलब्धि है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अरुण जेटली के लेख पर आधारित। 19 सितम्बर, 2018

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