उच्च शिक्षा पर नीतियों की मार

Afeias
25 Oct 2018
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Date:25-10-18

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हाल ही में, दो ऐसी नीतियां बनाई गई हैं, जिन्हें उच्च शिक्षा की राह में एक गलत कदम कहा जा सकता है। इनमें से पहला तो सरकार का नई शिक्षा नीति बनाना है, और दूसरा ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमीनेंस’ है। शिक्षा नीति का विचार साम्यवादी और समाजवादी नजर आ रहा है, और वर्तमान सरकार की दक्षिणपंथी विचारधारा के साथ उसका कोई तालमेल बन सकना मुश्किल है। दूसरे, इंस्टीट्यूट ऑफ इमीनेंस का विचार न जाने किस प्रेरणा से जन्मा है, जिसने अधिकांश बड़े शिक्षण संस्थानों को होड़ में शामिल होने के लिए नौकरशाही के नियंत्रण में चलने के लिए मजबूर कर दिया है। इस विचार या नीति को खारिज करने के लिए अनेक तथ्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं।

  • देश में आई आई टी का निर्माण उत्कृष्टता के उद्देश्य को लेकर किया गया था। परन्तु उनका प्रदर्शन कसौटी पर खरा नहीं उतरा। इसके पीछे तीन मुख्य कारण नजर आते हैं-(1) सरकार का अत्यधिक नियंत्रण, (2) मध्यम दर्जे का संकाय और (3) भारत की वास्तविक समस्याओं से जुड़ने के लिए ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं बनाना, जिससे विद्यार्थियों को प्रेरणा मिल सके।
  • आई आई टी जैसे संस्थानों को सुपर इंस्टीट्यूशन की श्रेणी में रखा जाता है। इसमें आने वाले विद्यार्थी भी आला दर्जे के होते हैं। परन्तु न तो इन्हें उत्कृष्ट शिक्षक मिलते हैं, और न ही अपने आपको प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त समय मिलता है।
  • पहले पाँच आई आई टी को पश्चिम के जाने-माने संस्थानों के आधार पर विकसित करने का प्रयत्न भी किया गया। परन्तु इसे बहुत सोचे-समझे तरीके से लागू नहीं किया गया। दरअसल, विदेशी पैटर्न के साथ उसके फलने-फूलने के लिए भारतीयकरण किया जाना था। अमेरिकन मॉडल से प्राप्त किया गया सेमेस्टर कार्यक्रम ही अभी तक सफल रहा है।
  • आई आई टी और सरकार दोनों ही विश्वस्तरीय शिक्षकों को आकृष्ट नहीं कर पाए हैं। अभी तक किसी उत्कृष्ट शिक्षक ने भारतीय संस्थान में पढ़ाने के लिए अपनी ओर से इच्छा प्रकट नहीं की है।
  • आई आई टी में चयन की प्रक्रिया एक संयुक्त परीक्षा के द्वारा सम्पन्न की जाती है। इससे विद्यार्थियों की किसी विशेष क्षेत्र की प्रतिभा का उपयोग नहीं किया जाता है। विभागों का आवंटन प्रतिभा के आधार पर नहीं, बल्कि अंकों के आधार पर किया जा रहा है। दूसरी ओर एम आई टी, हार्वर्ड आदि ऐसे संस्थान हैं, जो विद्यार्थियों का चयन सैट के अलावा विशेष इंजीनियरिंग कार्यक्रमों को ध्यान में रखते हुए करते हैं।
  • हमारे संस्थान अनुसंधान के स्तर पर शून्य जैसे हैं। इसके लिए संस्थानों ने निधि जुटाने का भी कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किया है।

भारतीय उच्च शिक्षण की कमियों पर ध्यान देते हुए हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों की शिक्षा पद्धति भी अनेक कमियों से जूझ रही है। अतः भारत को चाहिए कि वह अपना एक मौलिक तंत्र विकसित करे, जो उसके परिवेश के अनुकूल हो।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित दिनेश सिंह के लेख पर आधारित। 14 सितम्बर, 2018