विश्व व्यापार संगठन और विकासशील देश
Date:02-01-18
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हाल ही में ब्यूनस आयर्स में विश्व व्यापार संगठन की 11वीं मंत्रीस्तरीय बैठक संपन्न हुई है। इसमें वैश्विक व्यापार के बहुआयामी पक्षों के भविष्य पर चर्चा की गई। सम्मेलन में अमेरिका ने जिस प्रकार से कृषि-सब्सिडी के लिए नए नियम, अस्थिर मत्स्य-पालन को सहायता न देने एवं ई-कॉमर्स के नियमन की बात कही है, उससे अनेक देश असहमत हैं।
सम्मेलन की मुख्य चर्चाएं –
- भारत और उसके साथ खड़े देश चाहते हैं कि सार्वजनिक भंडारण, न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं खाद्य सुरक्षा पर उन प्रतिबद्धताओं का पालन किया जाए, जो 2013 में बाली में और 2015 में नैरोबी के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में व्यक्त की गई थीं। बाली सम्मेलन के तहत अगर सरकार सार्वजनिक खरीद के 10% के स्थापित मानक से ज्यादा जमा करती है, तो भी उस पर कार्रवाई नहीं की जाएगी। अमेरिका को इस पर कड़ी आपत्ति है। अफ्रीका के कई देश चावल और गेहूं के साथ अन्य खाद्य पदार्थों की खरीद की छूट की मांग कर रहे हैं।भारत का कहना है कि उसकी एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। इस आबादी को भोजन उपलब्ध कराने के लिए खाद्यान्न का बफर स्टॉक जरूरी है। समझौते के तहत बफर स्टॉक के अधिक होने की स्थिति में भारत इसका निर्यात नहीं कर सकता।
- विकासशील देशों की मांग है कि धनी देश खेती पर अपनी सब्सिडी घटाएं। जबकि अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान, कनाडा और आस्ट्रेलिया चाहते हैं कि ई-कामर्स और निवेश-सुविधा को बढ़ावा दिया जाए। विकासशील देश इसे छोटे विक्रेताओं के विरूद्ध बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित में उठाया गया कदम मानते हैं।
- विकसित देश अपने कृषि क्षेत्र को 70-80% तक सब्सिडी दे रहे हैं। विकसित देशों का कहना है कि भारत अगर उनसे कृषि-सब्सिडी कम करने की मांग करता है, तो एवज में उसे अपनी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की एक अधिकतम सीमा तय करनी होगी, और ऐसा नहीं करने पर उसे जुर्माना भरना पड़ सकता है। इस मुद्दे पर अन्य विकासशील देश भारत के साथ हैं। इस संबंध में भारत और चीन की अगुवाई में लगभग 100 देशों ने मिलकर प्रस्ताव पेश किया है। ये सभी देश विकसित देशों की थोपी गई 10% कृषि-सब्सिडी की सीमा को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
- भारत समेत विकासशील देशों द्वारा खाद्यान्न के सार्वजनिक भंडारण के अलावा किसानों को खाद, बीज, कीटनाशक और सिंचाई से जुड़ी सब्सिड़ी देने का मामला प्रमुख विषय है। अमेरिका, यूरोपीय संघ समेत सभी विकसित देशों का कहना है कि भारत और अन्य विकासशील देशों का यह रवैया मुक्त बाजार व्यवहार के सिद्धांतों के खिलाफ है। जबकि भारत का कहना है कि 2014 में हुए व्यापार सुगमता समझौते के तहत उसे तब तक बफर स्टॉक रखने का अधिकार है, जब तक कि इसका कोई स्थायी समाधान नहीं निकाल लिया जाता।
- विश्व व्यापार संगठन के अस्तित्व से जुड़े संकट को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति ने एक बहुपक्षीय संस्थागत ढांचे की बात कही। इस संगठन के सदस्य देशों के बीच व्यापार संबंधी विवादों को सुलझाने के लिए कोई दूसरा रास्ता ढूंढने पर भी चर्चा की गई। अमेरिका ने संगठन की अपीलीय पीठ में रिक्त हुए स्थानों को भरने पर भी रोक लगा दी है।
सम्मेलन में यह स्पष्ट हो गया कि अमेरिकी राष्ट्रपति की संरक्षणवादी नीति धरातल के स्तर पर उतरती दिखाई देने लगेगी।
अब विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों के लिए चुनौती है कि वे संरक्षणवाद की ओर बढ़ते देशों के सामने व्यापार के भूमंडलीकरण के फायदों को गिनाएं और इसके अस्थायी नकारात्मक पहलुओं को और कम करें।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित।
जेनेवा स्थित इस संगठन का गठन 1 जनवरी 1995 को किया गया था। 2016 तक 164 देश इसके सदस्य थे। इसका उद्देश्य अलग-अलग देशों के बीच मुक्त एवं सहज व्यापार का बढ़ावा देना है।