कुछ महत्वपूर्ण परंतु विवादास्पद विधेयक
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12 अप्रैल 2017 को समाप्त हुआ संसद का बजट सत्र काफी घटनाओं से भरा हुआ रहा। अपनी निर्धारित समयावधि में से लोकसभा 108% और राज्यसभा 86% चली। इस दौरान बजट प्रस्तुत करने की तारीख को अग्रिम किया गया, जिससे बजट पर विचार-विमर्श के लिए पर्याप्त समय मिल सके। इस दौरान कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए गए। इनमें से कुछ विधेयक विवादास्पद रहे। ये विधेयक ऐसे हैं, जो संवैधानिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- निर्दिष्ट बैंक नोट (देनदारियों की समाप्ति) विधेयक {Specified bank Notes(Cessation of Liabilities) Bills} – इसके अनुसार नोटबंदी के दौरान विदेश गए हुए भारतीयों को नोट बदलने के लिए 30 मार्च और अप्रवासी भारतीयों को 30 जून 2017 तक का समय दिया गया।
- विधेयक में 10 से ज़्यादा पुराने नोट रखने को जुर्म करार दिया गया है। इस विधेयक में संवैधानिक रूप से दो असंगतियां है। पहली, 8 नवम्बर को नोटबंदी की घोषणा के दौरान कहा गया था कि 30 दिसम्बर तक नोट बदले जाएंगे और इस अवधि में जो नोट बदलने में असमर्थ रहा हो, उसको आरबीआई की शाखाओं से 30 मार्च तक नोट बदलने की छूट होगी। 30 दिसम्बर को एक अध्यादेश के द्वारा सरकार ने आरबीआई से 31 मार्च तक नोट बदलने की छूट केवल विदेश गए हुए भारतीयों के लिए सीमित कर दी। यह संपत्ति के स्वामित्वहरण के सदृश्य है और संविधान के अनुच्छेद 300 ए का उल्लंघन करता है। अगर 30 दिसम्बर को ही कोई व्यक्ति नोट नहीं जमा करा पाता है, तो अध्यादेश के अनुसार उसे कानूनी अपराधी करार दिया जाना मौलिक अधिकारों के विरूद्ध है।
- वित्त-विधेयक – कर की दरों में सुधार के साथ ही इस विधेयक के द्वारा अपीलीय ट्रिब्यूनल के सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया, सेवामुक्ति, निष्कासन और सेवाशर्तों को नियमों के अनुसार संशोधित किया गया। अर्ध न्यायिक निकायों की नियुक्ति की अवधि का अधिकार केंद्र सरकार को दे दिया गया। इस प्रावधान से संविधान में उल्लिखित न्यायपालिका की स्वतंत्रता के अधिकार पर सीधे चोट पहुँचती है। विधेयक में आयकर विभाग को कहीं भी छापा मारने के पीछे के कारणों की जानकारी देने या न देने के लिए स्वतंत्र कर दिया गया। इससे न्यायालय या ट्रिब्यूनल के किसी के शासनात्मक कदम के बारे में न्यायिक समीक्षा करने के अधिकार में बाधा पड़ेगी।
- शत्रु-संपत्ति विधेयक – यह विधेयक शत्रु संपत्तियों से जुड़ा अधिकार केंद्र सरकार को देता है। यह संशोधन पूर्वप्रभावी होगा। चार साल पूर्व से लेकर अब तक की अवधि में बेची और खरीदी गई शत्रु संपत्ति इस विधेयक के दायरे में आएगीं। विधेयक ने शत्रु संपत्ति मामले की किसी न्यायालय में सुनवाई पर प्रतिबंध लगा दिया है। इन प्रावधानों से हमारी न्यायिक प्रणाली और न्यायिक समीक्षा के पूर्व निर्धारित तंत्र का तिरस्कार होता है।
- कराधान कानून (संशोधन) विधेयक – इस विधेयक में वस्तु एवं सेवा कर से संबंधित अनेक संशोधन किए गए हैं। साथ ही सीमा-शुल्क अधिनियम में एक नया भाग जोड़ दिया गया। इसके अनुसार सीमा-शुल्क अधिकारी द्वारा किसी भी प्रकार की जानकारी मांगे जाने पर विभिन्न विभागों के अधिकारियों को यह उपलब्ध करानी होगी। क्या लोकसभा ने सीमाशुल्क अधिकारियों को ऐसे अधिकार दिए जाने से पूर्व कुछ जाँच पड़ताल की?
इन चारों विधेयकों में शत्रु संपत्ति विधेयक के अलावा किसी को भी समिति के पास नहीं भेजा गया और धन-विधेयक के रूप में इन्हें पारित कर दिया गया। शत्रु संपत्ति विधेयक को राज्यसभा की एक समिति को जाँच-पड़ताल के लिए सौंपा गया। इसके 23 सदस्यों में से छः ने कुछ संवैधानिक मुद्दे उठाए। लेकिन इन मुद्दों की अनदेखी कर इसे पारित कर दिया गया।संसद को हर विधेयक की गहरी जाँच-पड़ताल करनी चाहिए। ब्रिटिश संसद में कोई भी विधेयक प्रत्येक सदन में समिति से सहमति लिए बिना पारित नहीं किया जाता है। इस प्रक्रिया में भले ही समय ज़्यादा लग सकता है, परंतु इस बात की सुनिश्चितता हो जाती है कि हमारे सांसद विधेयक पारित करके एक सोचा-समझा कदम उठा रहे हैं।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित एम.आर. माधवन के लेख पर आधारित।