अति गरीबी से केरल की मुक्ति का राज
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भारत के दक्षिणी राज्य केरल ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि अपने नाम की है। वह पहला राज्य है, जिसने अति गरीबी से मुक्ति पा ली है। राज्य विधानसभा में केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन द्वारा इसकी घोषणा की गई।
केरल द्वारा यह उपलब्धि हासिल करने के कारण –
- एक लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में केरल का इतिहास बहुत अच्छा रहा है। वहाँ 1957 में ही कम्यूनिस्ट सरकार बन गई थी, जो ज्यादातर गरीबोन्मुख योजनाएँ बनाती है। गरीब लोग ही कम्यूनिस्टों का वोट बैंक होते हैं।
- साढ़े तीन दशक पहले केरल में साक्षरता अभियान शुरू हुआ, जो बहुत सफल रहा। साक्षरता के कारण लोगों में जागरूकता आई। लोग सरकारी योजनाओं और अपने अधिकारों को लेकर अधिक सजग हुए।
- केरल में गरीबी दूर करने के लिए गंभीर चिंतन हुआ तथा कारगर योजनाएँ भी बनी, जिनका बेहतर क्रियान्वयन भी किया गया। ऐसी ही एक योजना है ‘कुटुम्ब श्री योजना‘, जिसे 1998 में शुरू किया गया था। वहाँ सरकारें बदलीं, पर इस योजना की सफलता के सारे प्रयास तब भी किए गए। यह एक ‘क्लस्टर स्कीम‘ थी, जिसके तहत 25-30 महिलाएँ एक समूह गठित कर कर्ज ले सकती थी। ग्रामीण केरल में यह योजना काफी सफल रही तथा अति-गरीबी के अंत का ठोस आधार बनी।
- इस सदी की शुरूआत में जब गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों की संख्या 36% थी, तब केरल में यह दर सिर्फ 11% थी। नीति आयोग ने 2021 के बहुआयामी गरीबी सूचकांक पर आधारित एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बिहार में 52%, उत्तर प्रदेश में 38% जबकि केरल में महज 71% ही अति गरीब रह गए थे।
- केरल के पंचायती राज संस्थानों का अति गरीबी उन्मूलन में उल्लेखनीय योगदान रहा है। 73वां व 74वां संविधान संशोधन के आधार पर सबसे ज्यादा जोर स्थानीय निकायों को विधायकों और सांसदों के चंगुल से आजादी पर दिया गया। उनकी स्वायत्तता के लिए ‘फंड, फंक्शन, फंक्शनरीज‘ को काफी महत्व दिया गया केरल में स्थानीय निकायों को संविधान द्वारा दिए गए। सभी विषय दिए साथ ही बजट की 40% राशि का निर्धारण भी किया गया। सरकारी अधिकारियों का कैडर भी बनाया गया।
- केरल में प्रत्येक पंचायत के पास दो-दो इंजीनियर होते हैं, जो तकनीकी जरूरत वाली योजनाएँ बनाते हैं। इनको ‘स्थानीय विकास योजना‘ कहते हैं। ग्रामसभा द्वारा प्राथमिकता के आधार पर धन मंजूर किया जाता है। इस कारण प्रतिनिधियों को सांसद या विधायक विकास निधि के पीछे-पीछे नहीं भागना पड़ता।
- केरल में पंचायत कर्मियों के लिए निरंतर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलते रहते हैं। वहाँ स्थानीय सहभागिता सबसे महत्वपूर्ण कारक है। वहाँ पंचायतें अवकाश प्राप्त स्थानीय पेशेवरों व कुशल लोगों का एक ‘रिसोर्स ग्रुप‘ बनाती है। स्थानीय विकास योजना की तैयारी में इनकी मदद ली जाती है। यहाँ भ्रष्टाचार भी न्यूनतम है।
केंद्र सरकार द्वारा नीति आयोग की देख-रेख में 2018 से 112 जिलों में आकांक्षी जिला कार्यक्रम शुरू किया गया।
अतिगरीबी खत्म करने के लिए आवश्यक है कि स्वतंत्र संगठन द्वारा मूल्यांकन कराया जाए। सरकारी अधिकारी द्वारा दी गई रिपोर्ट की विश्वसनीयता संदिग्ध रहती है। इसे ‘क्रिटीकल अप्रेजल‘ कहा जाता है। दूसरे राज्यों को भी केरल जैसा बनने के लिए कार्य-क्षमता-निर्माण, प्रशिक्षण व नियम कानूनों के महत्व को समझना होगा।