भारत की संप्रभुता पर कोई समझौता नहीं
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हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारतीय उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने की घोषणा की है। इस मुद्दे पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने अमेरिका और यूरोपीय संघ पर जो पलटवार किया है, वह समय की मांग है। हमारे विदेश मंत्री ने रूस की यात्रा करते हुए दो टूक शब्दों में कहा है कि रूस से तेल खरीदने का फैसला भारत का अपना है, और इसके बारे में वह स्वतंत्र निर्णय लेना जारी रखेगा। यह बयान भारतीय दृष्टिकोण की दमदार अभिव्यक्ति है।
इस मुद्दे पर भारत की आलोचना करने वाले यूरोपीय देशों को भी अब यह साफ हो जाना चाहिए कि भारत किसी के दबाव में आए बिना राष्ट्रीय और आर्थिक हितों की रक्षा करेगा।
दरअसल, ट्रंप प्रशासन भारतीय बाजार तक पहुँच की खुली छूट चाहता है। भारत की मजबूरी यह है कि इससे यहां के किसानों और छोटे कारोबारियों को बहुत हानि हो सकती है। व्यापार वार्ता में सीमाएं तय कर दी है। कि सरकार अपने किसानों और छोटे कारोबारियों के हितों से कोई समझौता नहीं करेगी। ट्रंप के प्रयासों की आलोचना स्वयं उनकी पार्टी के लोग ही कर रहे हैं।
जहाँ तक यूरोपीय संघ का प्रश्न है, वहाँ भारत उसे पहले ही आईना दिखा चुका है। भारत बता चुका है कि यूरोप के केवल दस देश रूस से कहीं अधिक तेल खरीद रहे हैं। यहां तक की चीन भारत की अपेक्षा कहीं ज्यादा तेल खरीदता है। फिर किस नैतिक आधार पर पश्चिम भारत से त्याग की आशा रखता है?
इन सबके बीच आशा है कि केंद्र सरकार अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ व्यापार-वार्ताओं को पूरा करने के लिए बातचीत जारी रखेगी। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि देश की विदेश नीति के विकल्पों में अन्य देशों को हेरफेर करने नहीं दिया जाएगा।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 6 अगस्त, 2025