जलवायु न्याय पर ठोस सलाह
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हाल ही में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने जलवायु परिवर्तन पर ऐतिहासिक परामर्श जारी किया है। इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने में देशों की भूमिका के लिए उन्हें कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
कुछ बिंदु –
- अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की यह सलाह बाध्यकारी नहीं है। फिर भी इससे न्यायालयों को उन देशों को जवाबदेह ठहराने का अवसर मिलता है, जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे रहे हैं। दूसरे, इससे उन विकासशील देशों व कमजोर समुदायों को न्याय और वित्तीय सहायता दी जा सकेगी, जिन पर जलवायु परिवर्तन की मार अधिक पड़ रही है।
- जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कार्रवाई को एक कानूनी कर्तव्य माना गया है। इन्हें ठोस रखने के लिए मौजूदा संधियां; जैसे संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन, मरूस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, मानवाधिकार कानून और दीर्घकालिक कानूनी सिद्धांत हैं। यह पेरिस समझौते से भी बड़ा है। इसके तहत सरकारों पर पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने, ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए मिलकर काम करने तथा लोगों को जलवायु प्रभावों से बचाने के लिए सार्थक कार्रवाई करने का दायित्व है।
- आईसीजे की यह सलाह 2023 के संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्ताव के आधार पर दी गई है। इससे पहले 2021 में प्रशांत महासागर के एक छोटे से द्वीपीय देश वानअतु ने जलवायु कार्रवाई और अधूरे वादों के समाधान खोजने के लिए आईसीजे से सलाह मांगी थी।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 28 जुलाई, 2025