पुराने होते बुनियादी ढाँचे और हादसों की बढ़ती संख्या
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भारत में बुनियादी ढांचों के ढहने या टूटकर गिरने की घटनाएं आम हो गई हैं। हाल ही में, गुजरात के बडोदरा में एक 40 साल पुराने पुल का एक हिस्सा ढह गया। इसमें 18 लोग मारे गए हैं। पुणे जिले में इंद्राणी नदी पर बने पुल की भी यही हालत हुई है। ऐसी कितनी ही दुर्घटनाएं देश के कई हिस्सों में होती रहती हैं।
इनसे जुड़े कारणों और समाधान पर कुछ बिंदु –
- ये भारत के पुराने होते बुनियादी ढाँचे के लक्षण हैं।
- पुल, सड़कें और अस्पताल जैसी सुविधाओं को वर्षों पहले कम आबादी के लिए डिजाइन किया गया था। बढ़ती आबादी के बोझ को ये सहन करने लायक नहीं हैं।
- यही हाल इनके रखरखाव के लिए जिम्मेदार विभागों का भी है। इनमें से कई के पास धन की कमी, कर्मचारियों की कमी और लापरवाही है।
क्या किया जाना चाहिए –
- शहरी अवसंरचना विकास कोष जैसा परिसंपत्ति बनाने वाली पहल में संशोधन किया जाना चाहिए।
- अटल कायाकल्प (रेजुनवेशन) और शहरी परिवर्तन मिशन जैसी पुनर्वास योजनाओं के धन को समायोजित किया जाना चाहिए। ताकि इससे 10 लाख या उससे अधिक की आबादी वाले केंद्रों में पुरानी शहरी परिसंपत्तियों का रखरखाव किया जा सके।
- नगरपालिका के पुलों के लिए बेसिक ऑडिट फ्रेमवर्क मौजूद है। इन्हें अधिक समान और पारदर्शी तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
- दुर्घटनाओं की जाँच वैधानिक संस्था से करवाई जानी चाहिए। जाँच की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। पारदर्शिता से बुनियादी ढाँचों के बेहतर रखरखाव में सहायता मिलेगी।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 11 जुलाई 2025