
नक्सलवाद के विरूद्ध निर्णायक लड़ाई
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पिछले साल केंद्रीय गृहमंत्री ने घोषणा की थी कि मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद समाप्त कर दिया जाएगा। अभी भी 10 राज्यों के 38 जिले नक्सलवाद से प्रभावित हैं। विगत वर्ष में छत्तीसगढ़ में 220 नक्सली मारे गए। उनमें कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवाद) की सर्वोच्च केंद्रीय कमेटी का एक सदस्य भी था।
यद्यपि नक्सलवाद अब कम हो रहा है, लेकिन इसे पूर्णतया खत्म करने के लिए निम्न कुछ उपाय आवश्यक हैं –
केंद्र व राज्यों के मध्य समन्वय –
पुलिस और कानून व्यवस्था राज्य सूची के विषय हैं। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल राज्यों में भी तैनात रहते हैं। नक्सलवाद सिर्फ छत्तीसगढ़ की नहीं बल्कि अन्य राज्यों की भी समस्या है। इसीलिए केंद्र व राज्यों के मध्य समन्वय आवश्यक है।
राज्य के सुरक्षा बलों की जिम्मेदारियां –
छत्तीसगढ़ में राज्य बलों के अलावा जिला रिजर्व गार्ड, बस्तर फाइटर बल एवं स्पेशल टास्क फोर्स तैनात हैं। इनमें स्थानीय निवासी हैं, इनके द्वारा चलाए गए ‘नक्सल विरोधी आपरेशन‘ में 64 नक्सली मारे गए। केंद्र की भूमिका नक्सवाद को खत्म करने में अति महत्वपूर्ण है। लेकिन यह राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह नक्सल विरोधी अभियानों का नेतृत्व करे।
आत्मसमर्पित नक्सलियों का पुनर्वास –
सरकार द्वारा इन्हें एकमुश्त राशि, सरकारी नौकरी, एक कमरे का मकान दिया जाता है। लेकिन जो व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए उपयुक्त पाया जाए, इन्हें एक नहीं बल्कि दो कमरों का मकान दिया जाए, ताकि उनका परिवार भी वहाँ रह सके।
मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति –
छत्तीसगढ़ में ‘नियद-नेललागार‘ (आपका अच्छा गाँव) योजना शुरु की गई है। इसमें 200 गाँवों में 5 Km की परिधि में आंगनवाडी, PDS शॉप, पोस्ट ऑफिस, डिस्पेंसरी आदि की 25 सुविधाएँ, उपलब्ध कराई जाती हैं। प्रशासन को यह देखना चाहिए कि जहाँ नक्सलवाद कम हो रहा है, वहाँ विकास के कार्य तेजी से हों। वहाँ प्रशासकीय व राजनीतिक शून्यता तुरंत समाप्त की जाए।
दंडकारण्य के कई क्षेत्रों में नक्सलवाद कम हुआ है। लेकिन अभी भी महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद रुका नही है। अबूझमाड़ अभी भी इनकी शरणस्थली है। पार्टी फंड भी जारी है। इसीलिए सुरक्षा बलों को बिना रणनीतिक त्रुटि के इसके विरूद्ध निर्णायक लडाई को अंजाम देने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।
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