क्या ‘एक उम्मीदवार कई निर्वाचन क्षेत्र’ की प्रथा को बदला जाना चाहिए?
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भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव संपन्न कराना आसान नहीं है। इसके चलते संविधान ने चुनाव आयोग और संसद को चुनाव कराने के तरीके को विनियमित करने का अधिकार दिया है। इसी के अंतर्गत ‘कई निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ना’ को जनप्रतिनिधत्व अधिनियम 1951 में शामिल किया गया है। 1996 तक उम्मीदवार कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ सकता था। इसके बाद संविधान संशोधन करके इस संख्या को दो तक सीमित कर दिया गया है। राज्य विधान सभा में यह संख्या और भी अधिक होती है। इसके कारण बार-बार उपचुनाव होते है। नवंबर 2024 में मौजूदा विधायकों के इस्तीफे के कारण 44 उपचुनाव हुए हैं।
उपचुनावों की चुनौतियां –
- चुनावों में करदाता का धन लगता है। लोकसभा चुनाव का खर्च केंद्र और विधानसभा चुनाव का खर्च राज्य सरकारें वहन करती हैं।
- राजनीतिक दल अपने स्तर पर भारी खर्च करते हैं। इसका बोझ अंततः जनता पर ही पड़ता है।
- दलों की अधिकांश फंडिंग काले धन से की जाती है। यह वित्तीय पारदर्शिता को कमजोर करती है।
- उपचुनाव का वित्तीय बोझ पराजित उम्मीदवार और उनकी पार्टी पर असंगत रूप से पड़ता है। उन्हें एक बार फिर संसाधन खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
- कई सीटों से चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार अनिश्चितताओं के खिलाफ बचाव तंत्र के रूप में कार्य करता है। वह राजनीति को जनता से ऊपर रखता है। यह लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करता है।
- कई सीटों से चुनाव लड़ने का उद्देश्य कभी-कभी नेता की लोकप्रियता को दिखाना भी होता है। यह परिवारवाद और नेता केंद्रित राजनीति को बढ़ावा देता है।
- कई निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ना, उन्हें जीतना और उपचुनाव के लिए सीट खाली करना, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में दिए मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
‘एक प्रत्याशी, कई निर्वाचन क्षेत्र’ के लाभ-केवल नेताओं को –
- यह उम्मीदवारों को कड़े निर्वाचन वाले क्षेत्रों में सुरक्षा जाल देता है।
- परिवार और नेता-केंद्रित भारतीय राजनीति में यह शक्तिशाली नेतृत्व की निरंतरता को बनाए रखने में सहायक है।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव –
- पाकिस्तान और बांग्लादेश में उम्मीदवार को कई निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति है।
- यूनाइटेंड किंगडम में कभी यह प्रथा आम थी। लेकिन 1983 से इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
- अधिकांश यूरोपीय लोकतंत्रों ने स्पष्ट प्रतिनिधित्व और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए इसे चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया है।
एक उम्मीदवार का एक ही निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मुद्दा राजनीतिक है। उम्मीदवार पर कई निर्वाचन क्षेत्र से नामांकन पर प्रतिबंध लगाने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 33 (7) में संशोधन की आवश्यकता होगी। ऐसा बदलाव लाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रमुख दलों के समर्थन की आवश्यकता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संतोष कुमार दास और संतोष कुमार पंडा के लेख पर आधारित। 16 दिसंबर, 2024