30-11-2024 (Important News Clippings)

Afeias
30 Nov 2024
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Date: 30-11-24

ONOS bitten

Bringing down cost of access to research papers is only one of many issues

Editorial

While generally undesirable, centralisation promised to be a boon vis-à-vis public access to research through India’s ‘One Nation, One Subscription’ (ONOS) plan. ONOS was first proposed in the country’s fifth draft National Science, Technology, and Innovation Policy (2020) in response to the hefty fees research journals charged — and still do — for scholars and the people at large to access the papers they published. In this revenue model, journals accept and publish papers submitted by scholars and charge those who want to read them a fee. Research institutes also subscribe to these journals, so scholars can avail all the papers through their libraries. As these fees climbed over time, librarians banded up in consortia to increase their bargaining power at negotiations. ONOS, which the Union Cabinet approved on November 25, replaces these consortia with the national government and obliges journals to provide a single fee to access them. The upshot is expensive journals will now become available at underfunded government institutes as well.

However, ONOS will be limited to publicly funded institutes; and it allows the stranglehold of commercial publishers on scholarly publishing to continue. Many journals subsist on publicly funded research while also charging people money to access it. ONOS may reduce these sums but the government’s willingness to allocate ₹6,000 crore for three calendar years for 30 major publishers must be seen against the backdrop of the gross expenditure on research and development as a fraction of the GDP having become stagnant. The government could have promoted the adoption of ‘green’ and/or ‘diamond’ open-access models that guarantee public access by default or have supported, as a matter of policy, home-grown journals sensitive to Indian scholars’ circumstances while enhancing the discoverability of their research. The decision to instead channel a large sum of money to publishers abroad does not factor in India’s potential to influence research access modalities in the developing world. The lack of transparency is also perturbing, including over whether the list of journals will be monitored to cull titles that have become irrelevant or predatory, or to add those that have gained currency in recent years. Most of all, at a time when many journals have switched to ‘gold’ open-access — where researchers pay to have a paper published that is then available for free — and preprint papers are gaining in popularity as a means of communicating research, the government’s justification for adopting the ONOS strategy in its present form is weak. Add to this the absence of consultation with the institutes on their specific needs, and any celebration of ONOS will have to be deemed premature.


Date: 30-11-24

कुपोषण दूर करने में हम असफल साबित हो रहे हैं

संपादकीय

डब्ल्यूएचओ के अनुसार समुचित पोषण के अभाव में बच्चों की शारीरिक क्षमता पर तो असर पड़ता ही है, मानसिक पैरामीटर्स जैसे स्थितियों को समझने, ज्ञान हासिल करने और याददाश्त की क्षमता कम होने का भी खतरा रहता है। भारत सरकार के एनएफएचएस-5 में माना गया कि देश में हर तीन बच्चों में एक कम वजनी या नाटा है, जबकि पांच में एक दुबला है और इसका कारण कुपोषण या समुचित पोषण का अभाव है। एम्स द्वारा प्रकाशित एक ताजा अध्ययन में बताया गया कि देश के 77% नवजात (छह से 23 माह ) समुचित पोषण नहीं पाते । अध्ययन के अनुसार इन शिशुओं को आठ किस्म के भोज्य पदार्थों (मां का दूध, अनाज व जड़ें और कंद, दाल और सूखे मेवे, दुग्ध उत्पाद, मांसाहार, अंडे, विटामिन वाले फल व सब्जियां और सामान्य फल-सब्जियां ) में से कम से कम पांच जरूर दिए जाने चाहिए। नए अध्ययन में पाया गया कि यूपी, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और एमपी अपने बच्चों को उपरोक्त तत्वों में से पांच भी बदल-बदलकर देने में सबसे असफल रहे। इसे मिनिमम डाइटरी डाइवर्सिटी फेल्योर (एमडीडीएफ) कहा जाता है । सोचने की बात यह है कि अगर कुपोषण या अल्प पोषण की स्थिति बदलने की रफ्तार यही रही तो इस समस्या से छुटकारा पाने में सौ साल लगेंगे।


Date: 30-11-24

असली संकट नौकरियों का नहीं बल्कि स्किल्स का है

नीरज कौशल, ( कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर )

भारत ने आजादी की सदी पूरी होने यानी 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य सामने रखा है। यह एक कठिन चुनौती है। बहुत कुछ वैश्विक परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। यदि विश्व-अर्थव्यवस्था लड़खड़ाती है या धीमी हो जाती है तो भारत अपने दम पर बहुत अधिक विकास नहीं कर पाएगा। फिर भी, पिछले तीन दशकों में भारत के विकास की गति को देखते हुए यह लक्ष्य उसकी पहुंच के बाहर नहीं है। अगर बहुत आशावादी दृष्टिकोण से देखें तब भी मेरी गणना बताती है कि हमें लक्ष्य को प्राप्त करने में निर्धारित समय से संभवतः 10 से 15 वर्ष और लगेंगे। लेकिन यह एक सराहनीय उपलब्धि होगी- जिसे भारत के आकार का कोई भी देश इतनी तेजी से हासिल नहीं कर पाया होगा!

2047 तक विकसित राष्ट्र का दर्जा हासिल करने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग एक चौथाई सदी तक लगभग 10% की वार्षिक वृद्धि की आवश्यकता होगी। हम किसी चमत्कार से कम की उम्मीद नहीं कर रहे हैं, जो विश्व-इतिहास में केवल एक बार हुआ है- चीनी अर्थव्यवस्था ने 1990 और 2000 के दशक में दोहरे अंकों की वार्षिक जीडीपी वृद्धि हासिल की थी। इसके बाद 2010 के दशक में उसकी विकास दर 6% से 7% और 2020 के दशक में इससे भी कम रह गई। अगर भारत 2060 के दशक तक विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होता है- जैसा कि मेरा अनुमान है- तो उसके लिए 7% की सालाना जीडीपी वृद्धि की दरकार होगी, और यह लक्ष्य भी आसान नहीं है।

भारत की उम्मीदें उसके युवाओं द्वारा शिक्षा और कौशल में निवेश पर टिकी हैं। भारत में शीर्ष प्रतिभाओं की एक पतली-सी परत है, जो भारत और विदेशों में मुट्ठी भर आईआईटी और शीर्ष विश्वविद्यालयों से प्रशिक्षित हैं। यह पतली परत दुनिया के बाकी हिस्सों से प्रतिस्पर्धा करती है और वैश्विक स्तर पर इसकी काफी मांग है। इसी में से कई लोग फॉर्च्यून 500 कंपनियों में शामिल हो गए हैं और कुछ तो उन्हें चला भी रहे हैं। यह 2000 से औसतन 7% प्रति वर्ष की दीर्घकालिक जीडीपी वृद्धि के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए पर्याप्त रही है। लेकिन इस श्रेणी से नीचे कौशल का स्तर गिर जाता है। विकास की गति को जारी रखने के लिए हमें दूसरी, तीसरी और चौथी परत बनाने की भी जरूरत है। हमने अब तक शीर्ष श्रेणी से नीचे के श्रमिकों के कौशल-स्तर को बढ़ाने के लिए जो कुछ किया है, वह नाकाफी है। पिछले दो दशकों में, इंजीनियरों, डॉक्टरों, नर्सों, प्रबंधकों और अन्य क्षेत्रों के पेशेवरों को प्रशिक्षित करने के लिए बड़ी संख्या में पेशेवर विश्वविद्यालय सामने आए हैं। भारत के विश्वविद्यालयों से हर साल एक करोड़ से अधिक युवा ग्रेजुएट होते हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर के पास ऐसी स्किल्स नहीं होतीं कि उन्हें नौकरी पर रखा जा सके।

राजनीतिक दल और विश्लेषक इस बात पर चिंताएं जताते हैं कि भारत में नौकरियों का संकट है। उनका तर्क यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था रिकॉर्ड उच्च दरों पर बढ़ने के बावजूद लाखों महत्वाकांक्षी युवाओं के लिए नौकरियां पैदा करने में विफल रही है। जबकि यह नौकरियों के साथ-साथ कौशल का भी संकट है। आज हमारे पास इंजीनियरिंग, प्रबंधन, नर्सिंग में डिग्री रखने वाले लाखों युवा हैं, लेकिन उनके पास पर्याप्त स्किल्स नहीं हैं, इसलिए उन्हें वह नौकरी नहीं मिलती, जो वे चाहते हैं। उद्योगपति कुशल श्रमिकों की कमी के बारे में शिकायत करते रहते हैं। भारतीय इंजीनियरिंग कॉलेज हर साल 15 लाख इंजीनियर तैयार करते हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। इंजीनियरों के लिए अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए यह पर्याप्त होना चाहिए। लेकिन अफसोस कि नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस (नैसकॉम) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से केवल 10% स्नातकों में ही इंजीनियर के रूप में काम पर रखे जाने योग्य स्किल्स हैं।

नैसकॉम का अनुमान है कि अगले दो से तीन वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था को एआई और अन्य उन्नत इंजीनियरिंग क्षेत्रों में दस लाख से अधिक इंजीनियरों की आवश्यकता होगी। जब तक इंजीनियरिंग कॉलेज अपने कार्यक्रमों में उद्योग-विशिष्ट कौशल प्रदान करने के लिए बदलाव नहीं करते- जिनकी भविष्य में आवश्यकता है- तब तक लाखों इंजीनियर बेरोजगार रहेंगे और दूसरी तरफ इंजीनियरिंग के लाखों पद भी खाली रहेंगे। एक तरफ नर्सों की भारी कमी है, दूसरी ओर नर्सिंग स्कूलों से स्नातक होने वाले हजारों लोगों के पास नर्सिंग होम या अस्पतालों में देखभाल प्रदान करने के लिए बुनियादी कौशल नहीं हैं। आने वाले दशक में चुनौती यह होगी कि शिक्षा की गुणवत्ता कैसे सुधारी जाए।


Date: 30-11-24

ये 10 टिप्स आपको साइबर फ्रॉड से बचाएंगे

सुझाव और युक्ति

1. दस अंक के सामान्य नंबर से नहीं आते बैंक के कॉल

जब भी डराने-धमकाने वाला कोई कॉल आए तो देखिए कॉल किस नंबर से आया है। बैंक 10 अंक के सामान्य मोबाइल नंबर से कॉल नहीं करता। ऐसे किसी कॉल पर बैंक / कार्ड की निजी जानकारी ना दें। कोई बैंक, सरकारी या गैर सरकारी संस्था किसी तरह का नोटिस व्हाट्सएप या टेलीग्राम जैसे प्लेटफॉर्म से नहीं भेजती। बैंकों से आने वाले आधिकारिक कॉल में नंबर 160 से शुरू होता है।

2. सार्वजनिक स्थानों पर बैंक आईडी या पासवर्ड टाइप न करें

यदि मेल, मैसेज या फोन आता है तो उसकी जांच के लिए आधिकारिक वेबसाइट या नंबर पर संपर्क करें। एयरपोर्ट, शॉपिंग मॉल जैसे स्थानों के पब्लिक वाईफाई का उपयोग करते हुए इंटरनेट बैंकिंग फोन या लैपटॉप में लॉगइन ना करें। ऐसे स्थानों पर यूजरनेम और पासवर्ड टाइप ना करें। ऐसे में बैंक अकाउंट हैक हो सकता है। आप फेस आइडी या फिंगरप्रिंट से लॉग इन कर सकते हैं।

3. सोशल मीडिया प्रोफाइल को ‘प्राइवेट’ मोड पर रखें

अपनी सोशल नेटवर्किंग प्रोफाइल को MUST BE SET TO PRIVATE पर सेट करें। इस तरह हर कोई प्रोफाइल नहीं देख पाएगा। सोशल मीडिया पर संवेदनशील जानकारी जैसे अपना पूरा नाम, जन्म तिथि, लिंग, शहर, ईमेल आईडी, स्कूल का नाम, कार्य स्थल और व्यक्तिगत तस्वीरें शेयर करने में सतर्क रहें। इन जानकारियों को जुटाकर आपके साथ ठगी की जा सकती है।

4. पासवर्ड में वैरिएशन रखें… बायो मेट्रिक का उपयोग करें

स्कैमर्स आपके ईमेल यूजरनेम और पासवर्ड का पता लगाने की कोशिश करते हैं। आपके हर ईमेल अकाउंट, सोशल मीडिया अकाउंट, बैंक अकाउंट के लिए अलग-अलग पासवर्ड होना चाहिए। पासवर्ड में जन्म की तारीख, परिवार के लोगों के नाम नहीं होने चाहिए। जहां संभव हो बायो मेट्रिक लॉक लगाएं। सिस्टम और एप में टु फैक्टर ऑथेंटिकेशन लगाएं, ताकि अकाउंट सुरक्षित रहे।

5. जिप और क्यूआर कोड से भी हो सकता है सिस्टम हैक

आपको कभी ईमेल, व्हाट्सएप, मैसेज या कहीं से भी अनजान व्यक्ति द्वारा भेजे गए लिंक पर क्लिक नहीं करना है । क्यूआर कोड स्कैन करने से पहले भी सतर्क रहें। यह आपको फिशिंग लिंक पर ले जा सकता है। अनजान ईमेल से मिली जिप फाइल को भी नहीं ओपन करना है। इसके जरिए आपका फोन या लैपटॉप हैक हो सकता है।

6. स्पैम फॉरवर्ड न करें … स्कैमर इससे भी जुटाते हैं जानकारी

यदि ईमेल, व्हाट्सएप या मैसेज भेजने वाले को आप व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते हैं, तो इस तरह के स्पैम ईमेल फॉरवर्ड न करें। फिर चाहे यह सुविचार हो, कोई फनी जोक, फोटो, रेसिपी या कुछ और रोचक जानकारी। यह ईमेल फ्रॉड हो सकता है। इसके जरिए स्कैमर उन सभी लोगों के ईमेल या जानकारी जुटा सकता है, जिनके साथ आप इसे शेयर करते हैं।

7. कंपनी डोमेन नेम या ब्लूटिक करें ईमेल वैधता की पुष्टि

कोई स्वयं को किसी बड़ी कंपनी का प्रतिनिधि बताकर आपको ईमेल करे तो उसके आईडी की जांच करें। पर्सनल ईमेल से अनजान मेल कंपनी के नहीं होते। बड़ी कंपनियों के प्रतिनिधि कंपनी के डोमेन नाम से ईमेल करते हैं। जिसमें @ चिह्न के बाद कंपनी का नाम होता है। जीमेल पर ब्लूटिक से भी पहचान की पुष्टि होती है। ईमेल आईडी के साथ ब्लूटिक होना वैधता सुनिश्चित करता है ।

8. क्विज में शामिल होने से पहले करवाने वाले की जानकारी जांचें

सर्वे या क्विज में शामिल होने से पहले भी सतर्क रहें। कुछ सर्वे या क्विज इसलिए डिजाइन किए जाते हैं ताकि आपसे अधिक से अधिक पर्सनल जानकारी ली जा सके। बाद में यह जानकारी बेची जा सकती है। इसके माध्यम से आपके मोबाइल में सॉफ्टवेयर या ट्रैकिंग कुकीज डाउनलोड की जा सकती है। सत्यापित करें कि सर्वेक्षण कौन कर रहा है और आपकी जानकारी क्यों मांग रहा है।

9. डेबिट या क्रेडिट कार्ड में अनुपयोगी फीचर बंद रखें

क्रेडिट या डेबिट कार्ड के डेली लिमिट सेट कर सकते हैं। कार्ड के कुछ आपके लिए अनुपयोगी ट्रांजेक्शन बंद कर सकते हैं- जैसे इंटरनेशनल ट्रांजेक्शन, टैप टु पे, ऑनलाइन ट्रांजेक्शन भी बंद कर सकते हैं। इस तरह की सेटिंग डिटेल्स चोरी होने पर भी आपको नुकसान से बचा सकती है। आपके साथ किसी तरह का स्कैम हो तो बैंक में रिपोर्ट करें, ताकि ट्रांजेक्शन रोके जा सकें।

10. बच्चों को भी साइबर सिक्योरिटी के लिए सतर्क रखें

13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, आईट्यून्स और कई अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अनुमति नहीं है। बच्चों की डिवाइस में कंटेंट फिल्टर करें। अपने बच्चों को स्नैपचैट जैसे एप्स का उपयोग करने की अनुमति न दें। ये एप पोस्ट को तुरंत हटा देते हैं। यहां आप बच्चों की ऑनलाइन गतिविधि की निगरानी नहीं कर सकते।


Date: 30-11-24

नशे का कारोबार

संपादकीय

पिछले कुछ समय से ऐसे समाचार लगातार आ रहे हैं कि ड्रग्स की बड़ी खेप बरामद की गई। गत दिवस भारतीय नौसेना ने अरब सागर में 500 किलो ड्रग्स जब्त की। इसे श्रीलंका के झंडे वाली दो नौकाओं से बरामद किया गया। इसके कुछ दिन पहले भारतीय कोस्ट गार्ड ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह के पास से मछली पकड़ने वाली नौका से 5500 किलो ड्रग्स पकड़ी थी। इसे हाल के समय की सबसे बड़ी खेप बताया गया था। रह-रहकर ड्रग्स की बड़ी खेप पकड़े जाने से एक ओर जहां यह स्पष्ट होता है कि भारतीय एजेंसियां नशे के कारोबारियों के खिलाफ सजग और सक्रिय हैं, वहीं दूसरी ओर यह भी रेखांकित होता है कि ड्रग्स के सौदागर भारत को मादक पदार्थ खपाने का जरिया बना रहे हैं या फिर उसे यहां लाकर अन्यत्र भेजना आसान पा रहे हैं। दोनों ही स्थितियां चिंता बढ़ाने वाली हैं। भारत में न तो ड्रग्स की खपत होने देनी चाहिए और न ही यह होना चाहिए कि उसे यहां लाकर अन्य देशों को भेजा जाए। भारत सरकार को उन कारणों की तह तक जाना चाहिए, जिनके चलते ड्रग्स के कारोबारियों ने भारत को आसान ठिकाना समझ लिया है और जिसके चलते आए दिन ड्रग्स की बड़ी खेप देश के विभिन्न हिस्सों से बरामद की जा रही है। भारत में एक ओर अफगानिस्तान, पाकिस्तान एवं ईरान से ड्रग्स आ रही है तो दूसरी ओर थाइलैंड, लाओस तथा म्यांमार के रास्ते से।

चूंकि समुद्री मार्ग के साथ जमीनी रास्तों से भी ड्रग्स आ रही है, इसलिए भारत को कहीं अधिक सतर्कता बरतनी होगी। चिंता की बात केवल यह नहीं कि नशे के कारोबारी ड्रग्स की खेप भारत लाकर उसकी आपूर्ति अन्य देशों में कर रहे हैं, बल्कि यह भी है कि उनके बीच कुछ तत्व ऐसे भी हैं, जो उसे भारत में ही खपा रहे हैं। यह एक तथ्य है कि पिछले कुछ समय से देश के अनेक छोटे शहरों में भी ड्रग्स की वह खेप पकड़ी गई है, जिसे स्थानीय स्तर पर खपाने के लिए लाया गया था। इस कारोबार में जो भी लिप्त हैं, उन पर कहीं अधिक सख्ती दिखाई जानी चाहिए, क्योंकि वे केवल युवा पीढ़ी को बर्बाद ही नहीं कर रहे, बल्कि ड्रग्स माफिया के रूप में उभरकर कानून एवं व्यवस्था और कई बार तो आंतरिक सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा बन रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि आम तौर पर माफिया समूह और आतंकी संगठन ड्रग्स से होने वाली काली कमाई के जरिये ही फलते-फूलते हैं। साफ है कि ड्रग्स का कारोबार आंतरिक सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा है। निःसंदेह भारतीय एजेंसियां नशे के कारोबारियों की कमर तोड़ने के लिए कहीं अधिक ताकत से सक्रिय हैं और इसमें उन्हें कामयाबी भी मिली है, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि नशा मुक्त भारत का लक्ष्य आसान नजर आ रहा है।


Date: 30-11-24

ज्ञान के दरवाजे खोलने की पहल

डा. ब्रजेश कुमार तिवारी, ( लेखक जेएनयू के अटल स्कूल आफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं )

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले दिनों देश भर के छात्रों को विद्वानों के शोध लेखों और जर्नल प्रकाशन तक आसान पहुंच प्रदान करने के उद्देश्य से वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन (ओएनओएस) नामक एक नई योजना को मंजूरी दी। इस योजना के माध्यम से देश के लगभग 1.8 करोड़ छात्र, शिक्षक और शोधकर्ता विश्व स्तर पर प्रकाशित हो रहे 13,000 से अधिक ई-जर्नल तक आसान पहुंच हासिल कर सकेंगे। ओएनओएस योजना केवल प्रमुख महानगरीय क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि टियर 2 और टियर 3 शहरों में भी रहने वाले छात्रों, शोधकर्ताओं और शिक्षकों को भी वैश्विक स्तर पर सृजित हो रहे ज्ञान का लाभ उठाने का अवसर प्रदान करेगी। इससे पहले जर्मनी और उरुग्वे सरकारों ने अनुसंधान सामग्री तक समान राष्ट्रीय पहुंच की शुरुआत की थी। वास्तव में वैज्ञानिक और शैक्षणिक प्रगति तभी प्राप्त की जा सकती है, जब वैश्विक ज्ञान तक पहुंच सुलभ हो। अनुसंधान एवं विकास ही हम सभी के लिए बेहतर जीवन का द्वार खोलती है। भारत पिछले कुछ वर्षों में श्रम-आधारित अर्थव्यवस्था को कौशल-आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने में काम कर रहा। 15 अगस्त, 2022 को अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की प्रगति में अनुसंधान और विकास की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बात की थी और जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान के बाद जय अनुसंधान जोड़ा था।

सरकार की यह पहल गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा एवं शोध तक शहरी और साथ ही ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं की पहुंच को आसान बनाएगी। यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, विकसित भारत और नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के लक्ष्यों के अनुरूप है, जो भारतीय शिक्षा जगत और युवा सशक्तीकरण के लिए गेम-चेंजर साबित होगी। इस योजना का लक्ष्य उन संस्थानों के लिए शोध पत्रिकाओं तक पहुंच का विस्तार करना है, जिनके पास पर्याप्त संसाधनों की कमी है। यह प्लेटफार्म एक जनवरी, 2025 को शुरू होने वाला है। इस मंच पर एल्सेवियर साइंस डायरेक्ट (लैंसेट सहित), स्प्रिंगर नेचर, विली ब्लैकवेल पब्लिशिंग, टेलर एंड फ्रांसिस, आइईईई, सेज पब्लिशिंग, अमेरिकन केमिकल सोसायटी, अमेरिकन मैथमेटिकल सोसायटी, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस और बीएमजे जर्नल्स सहित 30 अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित 13,000 पत्रिकाएं उपलब्ध होंगी। वर्तमान में विभिन्न मंत्रालयों के अंतर्गत दस अलग-अलग पुस्तकालय संघ हैं, जो अपने प्रशासनिक दायरे में उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए पत्रिकाओं तक पहुंच प्रदान करते हैं। इसके अलावा अलग-अलग संस्थान अलग-अलग पत्रिकाओं की सदस्यता लेते हैं। वैज्ञानिक पत्रिकाओं की सदस्यता एक महंगा मामला है। ओएनओएस के आरंभ होने से यह बहुत सस्ता हो जाएगा। एक ही मंच पर सारी पत्रिकाएं उपलब्ध होने से शोधार्थियों को भटकना भी नहीं पड़ेगा।

शोध अंतर्दृष्टि डाटाबेस स्किवल के अनुसार 2017 और 2022 के बीच भारत के शोध प्रकाशन में लगभग 54 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो वैश्विक औसत (22 प्रतिशत) के दोगुने से भी अधिक है। भारत का शोध पत्रिकाओं के प्रकाशन में चौथा स्थान (13 लाख अकादमिक पेपर) रखता है, जो चीन (45 लाख), अमेरिका (44 लाख) और ब्रिटेन (14 लाख) के ठीक बाद है, परंतु जब उत्पादित शोध के प्रभाव की बात आती है, तो उद्धरणों (साइटेशन) की संख्या में भारत पीछे रह जाता है और दुनिया में नौवें स्थान पर आता है। सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग और इंस्टीट्यूट फार कांपिटिटिवनेस द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार भारत का अनुसंधान एवं विकास पर यह खर्च दुनिया में सबसे कम है। देश की नवाचार सफलता में एक और बाधा अनुसंधान एवं विकास कर्मियों की कम संख्या है। यूनेस्को इंस्टीट्यूट आफ स्टैटिस्टिक्स के अनुसार प्रति दस लाख आबादी पर केवल 253 विज्ञानी या शोधकर्ता हैं, जो विकसित राष्ट्रों की तुलना में काफी कम है। निजी क्षेत्र का योगदान अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय का 40 प्रतिशत से कम है, जबकि उन्नत देशों में यह 70 प्रतिशत से अधिक है। दुनिया में अनुसंधान एवं विकास पर खर्च करने के मामले में शीर्ष 2,500 वैश्विक कंपनियों की सूची में केवल 26 भारतीय कंपनियां हैं। जबकि चीनी कंपनियों की संख्या 301 है। इस अंतर को प्राथमिकता के आधार पर पाटने की आवश्यकता है। चीन का मुकाबला करने के लिए उससे सीख लेने में हर्ज नहीं। इजरायल से भी सीख ली जानी चाहिए, जिसने यह दिखा दिया है कि एक छोटा राष्ट्र होने के बावजूद अनुसंधान एवं विकास में निवेश को प्राथमिकता देकर सतत विकास हासिल किया जा सकता है। भारत में निजी कंपनियां मुख्य रूप से बिक्री और विपणन में निवेश करती हैं और अनुसंधान एवं विकास में पर्याप्त संसाधनों का निवेश नहीं करती हैं। यही कारण है कि भारतीय ब्रांड नवाचार नहीं कर रहे हैं, जिसके चलते भारतीय निर्माता विश्व स्तर पर अनुकरणीय उत्पाद नहीं बना रहे हैं और विश्व बाजार में चीनी कंपनियों की चुनौती का सामना नहीं कर पा रहे हैं। अब समय आ गया है कि मेक इन इंडिया के लिए अनुसंधान एवं विकास पर फिर से ध्यान केंद्रित किया जाए।

भारत के पास नवाचार का वैश्विक चालक बनने के लिए आवश्यक सभी सामग्रियां, एक मजबूत बाजार क्षमता, असाधारण प्रतिभावान आबादी और मितव्ययी नवाचार की एक संपन्न संस्कृति हैं। जरूरत है तो कच्ची प्रतिभाओं की खान को सही मार्गदर्शन की। वास्तव में एक मजबूत अर्थव्यवस्था होने के लिए देश के पास दीर्घकालिक और सार्थक स्तर पर ज्ञान प्रणाली की आवश्यकता है, जो अर्थव्यवस्था को शक्ति प्रदान करती है। जितनी बौद्धिक संपदा सृजित होगी उतने बड़े पैमाने पर रोजगार भी सृजित होंगे।


 Date: 30-11-24

कलात्मक का चरम

गजेंद्र सिंह शेखावत, ( लेखक केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री हैं )

पांच हजार से अधिक वर्षों की सभ्यता के इतिहास को दस्तावेज, जो देश की स्वतंत्रता के समय एक नये स्वतंत्र हुए राष्ट्र के भाग्य का मार्गदर्शन करने वाला हो, के रूप में व्यक्त करना कठिन है। लेकिन आचार्य नंदलाल बोस के लिए भारत के संविधान पर चित्रण कार्य भर नहीं था। उनकी दृष्टि हड़प्पा सभ्यता के समय से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति के समय तक भारत की यात्रा का वर्णन करती है। ये सभी चित्रण संविधान के अंतिम पृष्ठ पर सूचीबद्ध हैं, और उन्हें बारह ऐतिहासिक काल में वर्गीकृत किया गया है: मोहनजोदड़ो काल, वैदिक काल महाकाव्य काल, महाजनपद और नंद काल, मौर्य काल, गुप्त काल, मध्यकालीन काल, मुस्लिम काल, ब्रिटिश काल भारत का स्वतंत्रता आंदोलन स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी आंदोलन और प्राकृतिक विशेषताएं। संविधान की शुरुआत हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के चित्रण से होती है। बोस इस बात को लेकर स्पष्ट थे कि प्रतीक में शेर बिल्कुल असली शेरों की तरह दिखें, उनकी चाल और चेहरे के हाव-भाव सही हों और आयु के हिसाब से उनमें बदलाव हो।

राष्ट्रीय प्रतीक के डिजाइनर दीनानाथ भार्गव, जो उस समय कला भवन में युवा छात्र थे, इस कलाकृति को चित्रित करने से पहले शेरों के हाव-भाव, शारीरिक भाषा और तौर-तरीकों का अध्ययन करने के लिए महीनों कलकत्ता चिड़ियाघर गए। प्रस्तावना पृष्ठ और कई अन्य पृष्ठों को बेहर राममनोहर सिन्हा ने डिजाइन किया था बोस ने बिना किसी बदलाव के प्रस्तावना हेतु सिन्हा की बनाई कलाकृति का समर्थन किया। इस पृष्ठ पर निचले दाएं कोने में देवनागरी में सिन्हा का संक्षिप्त हस्ताक्षर राम है। संविधान की प्रस्तावना एक हाथ से लिखा हुआ लेख है जो आयताकार बॉर्डर से घिरा हुआ है। बॉर्डर के चार कोनों में चार पशुओं को दर्शाय गया है। दर्शाए गए चार जानवर भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के आधार से लिए गए हैं। बॉर्डर की कलाकृति में कमल की आकृति प्रमुखता से दिखाई देती है कमल की आकृति बॉर्डर कलाकृति में प्रमुखता से दिखाई देती है। संविधान का प्रत्येक भाग एक चित्र से आरंभ होता है, और अलग-अलग पृष्ठों पर अलग-अलग बॉर्डर डिजाइन दर्शाए गए हैं। कलाकारों के हस्ताक्षर चित्र पर और बॉर्डर के गजेंद्र सिंह शेखावत पास दिखाई देते हैं जो इस प्रोजेक्ट में सभी के सहयोग को दर्शाता है। अनेक पृष्ठों पर कई हस्ताक्षर हैं जो बंगाली, हिन्दी, तमिल और अंग्रेजी में हैं। संविधान के भाग 19 में विविध विषयों से संबंधित चित्र है जिसमें नेता जी सैन्य पोशाक में अपने सैनिकों से घिरे हुए सलामी दे रहे हैं।

बोस के हस्ताक्षर चित्रण पर दिखाई देते हैं और ए. पेरूमल के हस्ताक्षर पृष्ठ के बाएं निचले कोने पर दिखाई देते हैं। वे कला को लोगों तक ले जाने वाले कलाकार के रूप में प्रसिद्ध हुए। शांतिनिकेतन के गांवों में जाते और संथाल घरों की दीवारों को जानवरों, पक्षियों और पेड़ों वाली प्रकृति की थीम से सजाते । शांतिनिकेतन के कला भवन में चार दशकों से अधिक समय तक बोस जैसे महान कलाकारों के साथ काम किया। उन्हें स्नेह से पेरुमलदा’ कहा जाता था। संविधान का भाग, जो प्रथम अनुसूची के भाग में राज्यों से संबंधित है, ध्यानमग्न भगवान महावीर के समृद्ध रंगीन चित्र से शुरू होता है, जिसमें वे आंखें बंद किए हथेलियां एक दूसरे पर टिका कर बैठे हैं। भगवान महावीर के दोनों ओर एक-एक पेड़ हैं और फ्रेम में एक मोर भी दिखता है जो प्रकृति में सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व दर्शाता है। यह मूल संविधान के कुछ रंगीन चित्रों में से एक है। रंगीन चित्रों में जमुना सेन और नंदलाल बोस के हस्ताक्षर हैं। इस पृष्ठ पर बॉर्डर डिजाइन में राजनीति नामक कलाकार के हस्ताक्षर भी हैं।

भारतीय संविधान का भाग 15 चुनावों पर केंद्रित है इस पृष्ठ पर दिए गए चित्रों में भारत के दो वीर सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज और गुरु गोविंद सिंह दिखाए गए हैं। इस पृष्ठ चित्र धीरेंद्र कृष्ण देव बर्मन द्वारा बनाए गए हैं, जो त्रिपुरा राजघराने से थे और रवींद्रनाथ टैगोर और बोस के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे बॅर्डर डिजाइन पर कृपाल सिंह शेखावत के हस्ताक्षर हैं जो भारत के प्रसिद्ध कलाकार और मिट्टी के बर्तन बनाने वाले थे जिन्हें जयपुर की प्रतिष्ठित ब्ल्यू पॉटरी की कला को पुनर्जीवित करने के लिए जाना जाता है। शांतिनिकेतन में ललित कला संस्थान कला भवन ने भारत और दुनिया के सभी कोनों से छात्रों और कलाकारों को आकर्षित किया। इस प्रकार विभिन्न प्रभावों को समाहित करते हुए उत्कृष्ठता की निरंतर खोज करते हुए एक इकोसिस्टम निर्मित किया और अनूठी भारतीय शैली और कला निर्मित की।

इस पर काम करने वाले कई कलाकारों ने अपने कॅरिअर में महान ऊंचाइयां हासिल की लेकिन इस परियोजना के समय शांतिनिकेतन के मशाद बेस के सपने को जीवंत करने के लिए छात्र और सहयोगी ही थे जो अपने श्रद्धेय मास्टर प्रयत्नशील थे। संविधान में चित्रों की प्रेरणा भारत के विशाल इतिहास, भौतिक परिदृश्य, पौराणिक चित्र और स्वतंत्रता संग्राम में निहित है। संविधान का भाग 13 भारतीय क्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य और उनके परस्पर संबंधों से संबंधित है। इस पृष्ठ पर चित्रण में महाविलापुरम में स्मारकों के समूह का हिस्सा है जो यूनेस्को द्वारा अंकित विश्व धरोहर स्थल स्थित है ‘गंगा का अवतरण’ बड़ी, खुली हवा में बनी चट्टान की नक्काशी वाली मूर्ति है जो स्वर्ग से धरती पर गंगा अवतरण की कथा को पत्थर में दर्शाती है। बोस के हस्ताक्षर चित्र पर हैं, और जमुना सेन का नाम बॉर्डर के बाएं निचले कोने पर दिखता है। भाग 3, जो मौलिक अधिकारों से संबंधित है, में रामायण का दृश्य है इस पृष्ठ के बॉर्डर पर जमुना सेन के हस्ताक्षर हैं। भाग 4. जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित है, में महाभारत का दृश्य है बानी पटेल और बोस के नाम दाईं ओर नीचे दिए गए चित्रण पर दिखते हैं और विनायक शिवराम मसोजी का नाम बॉर्डर के बाएं कोने पर दिखाई देता है।

संविधान का भाग 7 ‘पहली अनुसूची के भाग वी में शामिल राज्यों से संबंधित है। इस खंड की शुरुआत में दिए गए चित्रण में सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रसार को दर्शाया गया है। वे सने हाथी पर सवार हैं, जो बौद्ध भिक्षुओं से घिरा है। यह चित्रण अजंता की शैली में है, जिसमें भिक्षुओं को शरीर के ऊपरी हिस्से को बिना वस्त्रों और आभूषणों के साथ दिखाया गया है। यह चित्रण बोस ने किया था, जिनका काम अजंता के भित्तिचित्रों की कलात्मक परंपराओं से प्रभावित था। चित्रण के निचले बाएं भाग पर पेरुमल का नाम भी दिखाता है। बॉर्डर डिजाइन में ब्योहर राममनोहर सिन्हा के हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने प्रस्तावना और कई अन्य पृष्ठों को भी डिजाइन किया था। यहां उन्होंने हिन्दी में राममनोहर के रूप में हस्ताक्षर किए हैं। यह संविधान के उन कुछ पन्नों में से एक है, जिस पर बोस और उनके सबसे वरिष्ठ छात्र व्योहर राममनोहर सिन्हा, दोनों के नाम हैं।

भारत का संविधान इस मायने में अनूठा है कि यह मूल रूप से हस्तलिखित दस्तावेज था। इसे अंग्रेजी में प्रेम बिहारी रायजादा और हिन्दी में वसंत के वैद्य ने सुलेखित किया था। रायजादा ने प्रवाहपूर्ण इटैलिक शैली का इस्तेमाल किया और सुलेख की कला अपने दादा से सीखी। संविधान हॉल (जिसे अब कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाता है) के एक कमरे में काम करते हुए उन्होंने छह महीने के दौरान दस्तावेज तैयार किया। इसे लिखते समय सैकड़ों पेन निब का इस्तेमाल किया। भारत के संविधान के अंग्रेजी संस्करण के सुलेखक प्रेम बिहारी नारायण रावजावा (प्रेम) के हस्ताक्षर दस्तावेज के हर पृष्ठ पर दिखाई देते हैं। राष्ट्रीय महत्त्व की इस परियोजना को शुरू करने के लिए उन्होंने यही एकमात्र अनुरोध किया था।

भारत का संविधान एक मौलिक कला ग्रंथ है, जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है। भारतीय संविधान में कलात्मकता भारत के बहुस्तरीय इतिहास को दर्शाती है और सामाजिक, भौतिक परिदृश्य तथा अन्य कारकों के प्रति सांस्कृतिक, पौराणिक, क्षेत्रीय आध्यात्मिक, श्रद्धांजलि है जो भारत को अद्वितीय और जीवंत अनुभव बनाते हैं। यह एक ऐसे राष्ट्र की वास्तविकता को दर्शाता है जो अपने प्राचीन अतीत को स्वीकार करता है, विविधता में एकता का उत्सव मनाता है और भविष्य की ओर देखता है।


Date: 30-11-24

संभलकर चलें

संपादकीय

संभल धर्मस्थल विवाद में सर्वोच्च न्यायालय के सराहनीय हस्तक्षेप से हम सही समाधान की ओर बढ़ते दिख रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को जहां संभल में शांति व सद्भाव बनाए रखने का निर्देश दिया है, वहीं संभल की जामा मस्जिद में सर्वेक्षण को रुकवा दिया है। सर्वेक्षण का आदेश देने वाली स्थानीय अदालत को 8 जनवरी तक सर्वेक्षण के संबंध में कोई और कदम उठाने से रोक दिया गया है। अब निचली अदालत को कोई भी फैसला सुनाने से पहले उच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करना होगा। इसके साथ ही मस्जिद समिति को भी उच्च न्यायालय में अपील करने का रास्ता दिखाया गया है। वास्तव में, उच्च न्यायालय में जल्दी सुनवाई शुरू करते हुए इस विवाद को सुलझाना चाहिए। न्यायालय के निर्देशों को अक्षरशः मानते हुए सभी पक्षों को संयम बरतना होगा। भूलना नहीं चाहिए कि उपद्रव और पत्थरबाजी की वजह से संभल में चार लोगों की मौत हुई है। एक परिवार के बीच भी मतभेद होते हैं, किंतु मतभेद के चलते पत्थरबाजी या गोलीबारी होना अक्षम्य और अशोभनीय है।

संभल में क्या हुआ और कैसे हुआ, इसका दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए। इस विवाद को सियासी या सांप्रदायिक पाले में नहीं छोड़ा जा सकता। अच्छी बात है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने गुरुवार देर रात इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश देवेंद्र कुमार अरोड़ा को हिंसा की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का प्रमुख नियुक्त किया है। यह जांच यथोचित मुकाम पर पहुंचनी चाहिए, ताकि सांप्रदायिकता की चिनगारी को न्याय की शीतल छाया में बुझाया जा सके। जिस तरह का अविश्वास संभल में दिख रहा है, उसे देखते हुए कार्यपालिका और न्यायपालिका को पूरी तरह सचेत रहना होगा। फैसले बिल्कुल कानून के अनुरूप करने होंगे। अभी देश अपने संविधान की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है और संविधान की बुनियाद भी सामाजिक सद्भाव पर टिकी है। आज सरकार की जिम्मेदारी तो है ही, आम लोगों पर भी बड़ी जिम्मेदारी है। किसी को भी यह इजाजत नहीं है कि वह कानून को अपने हाथ में ले। साथ ही, जन-प्रतिनिधियों को भी निष्पक्ष भाव से जनसेवा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अगर वोट बैंक के आधार पर देखा जाएगा, स्थानीय संख्या बल के आधार पर देखा जाएगा, तो हम आसानी से समाधान तक नहीं पहुंच पाएंगे। सद्भाव का मार्ग खुले, सहज मन से ही यह तय होता है। सामाजिक नेताओं को भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी उपद्रव के समय स्वार्थवश पक्षपाती या अधूरा सच बोलना परोक्ष पत्थरबाजी से कम नहीं है।

काशी, मथुरा, भोजशाला, संभल, अजमेर और ऐसे ही न जाने कितने विवाद के मोर्चे सुलग रहे हैं। अतः यह संभलकर चलने का समय है। न्याय के मंदिरों को ज्यादा सजग रहना होगा। ऐसे मामलों में पूरी तरह से तार्किक और तथ्य आधारित बने रहने में ही सबका ह है। भावनाओं में बहकर फैसला लेने या घातक टिप्पणी करने की इजाजत संविधान भी नहीं देता । अदालतों की राई समान दलील भी बाहर समाज में पहाड़ बनकर खड़ी हो सकती है। गौर करने की जरूरत है कि इन दिनों बांग्लादेश में क्या हो रहा है? कोलकाता में भी प्रदर्शन हुए हैं। हम अगर बेहतर व्यवहार करेंगे, तभी तो किसी पड़ोसी देश को नसीहत देने की स्थिति में रहेंगे। अनेकता में एकता भारत की बड़ी खूबी है, जिसे बनाए रखने की जिम्मेदारी हम सभी पर है।