30-10-2024 (Important News Clippings)
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बेरोजगारी कम करने के लिए दीर्घकालीन प्रयास हों
संपादकीय
एक सामान्य अर्थशास्त्रीय सिद्धांत है कि किसी सेक्टर में ज्यादा लोग काम करते हैं तो उस सेक्टर की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद ) बढ़ती है। लेकिन सरकारी आंकड़े के अनुसार पिछले तीन वर्षों में कृषि की ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) लगातार कम हुई है, जबकि हाल के चुनावी भाषणों में सत्ताधारी पार्टी के मंत्रियों ने बेरोजगारी घटने का दावा किया। सरकारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के अनुसार छह करोड़ नए जॉब्स, स्कॉच ग्रुप के अनुसार हर साल पांच करोड़ और सरकार के ही ईपीएफओ के अनुसार छह करोड़ ‘ज्यादा नए अवसर रजिस्टर हुए हैं। दरअसल ये दावे गलत नहीं हैं। सिर्फ रोजगार की परिभाषा में ही दोष है। सरकार के ही ताजा आंकड़े देखें, तो नियमित नौकरियां पिछले छह वर्षों ( 2017-18 और 2023-24 ) में 21 से घटकर 15.9 प्रतिशत रह गई हैं। यहां तक कि कैजुअल लेबर (दिहाड़ी मजदूर) को काम मिलने का प्रतिशत भी इस काल में 27 से घट कर 16.7 प्रतिशत रह गया है। ये तमाम बेरोजगार लोग मजबूरी में वापस गांव लौटे और पेट भरने के लिए घर के ही कामकाज में लग गए। नतीजतन तथाकथित ‘सेल्फ-एम्प्लॉयड’ (स्व-रोजगार) की संख्या में भारी इजाफा (करीब 6.6 करोड़) हुआ। बगैर पारिश्रमिक घरेलू मजदूरों की संख्या 5.9 करोड़ बढ़ गई। इसका परिणाम यह हुआ कि पहले से ही खस्ताहाल ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर एक नया बोझ आ गया, क्योंकि ये नए ‘कामकाजी’ उत्पादन श्रृंखला में कोई वृद्धि यानी परिवार की आय बढ़ाने जैसा कुछ भी नहीं कर रहे थे। देश के तमाम अर्थशास्त्री परेशान हैं कि बगैर जीडीपी में योगदान दिए क्या किसी क्षेत्र में जॉब्स पैदा की जा सकती हैं? सरकार को इस नए दृष्टिकोण से बचना होगा अन्यथा इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
Date: 30-10-24
उपयोगी योजना की अनदेखी
संपादकीय
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने धनतेरस एवं आयुर्वेद दिवस के अवसर पर 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी बुजुर्गों के लिए आयुष्मान भारत पीएम जन आरोग्य योजना का विस्तार कर जनकल्याण की दिशा में एक और बड़ी पहल की। इस योजना में यह जो विस्तार किया गया, उसमें 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी बुजुर्ग आएंगे, भले ही उनकी आमदनी कुछ भी हो। इससे करोड़ों बुजुर्ग लाभान्वित होंगे। उन्हें पांच लाख रुपये तक की मुफ्त उपचार की सुविधा मिलेगी। जो वरिष्ठ नागरिक पहले से आयुष्मान भारत योजना के दायरे में हैं, उन्हें पांच लाख रुपये का अतिरिक्त लाभ मिलेगा। यह एक बड़ी राहत है, क्योंकि बुजुर्गों को स्वास्थ्य समस्याओं से कहीं अधिक जूझना पड़ता है और एक बड़ी संख्या में ऐसे बुजुर्ग हैं, जिन्हें धनाभाव का सामना करना पड़ता है। आयुष्मान भारत योजना की उपयोगिता पहले ही सिद्ध हो चुकी है। इस योजना से कम आय वाले करोड़ों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। इसके बाद भी दिल्ली और बंगाल सरकार ने इस योजना से बाहर रहना सही समझा। इस पर प्रधानमंत्री ने खेद ही नहीं व्यक्त किया, बल्कि इन दोनों राज्यों के बुजुर्गों से माफी भी मांगी। उन्होंने यह कहने में भी संकोच नहीं किया कि राजनीतिक कारणों से दिल्ली और बंगाल इस योजना को लागू नहीं कर रहे हैं।
दिल्ली और बंगाल सरकार का दावा है कि उनकी अपनी स्वास्थ्य योजनाएं कहीं बेहतर हैं। एक तो इस दावे को चुनौती दी जाती रहती है और दूसरे, यदि यह मान भी लिया जाए कि इन राज्यों की स्वास्थ्य बीमा योजनाएं प्रभावी हैं तो वे आयुष्मान भारत योजना का भी लाभ उठाने से क्यों इन्कार कर रही हैं? वे इस योजना में शामिल होकर अपनी स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ अन्य जरूरतमंद लोगों तक पहुंचा सकती हैं। आयुष्मान भारत योजना के तहत पात्र लोगों के उपचार की 60 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार वहन करती है और 40 प्रतिशत राज्य सरकारें। यह एक विडंबना है कि एक ओर राज्य सरकारें और विशेष रूप से बंगाल सरकार धन की कमी का रोना रोती रहती है और दूसरी ओर एक ऐसी योजना को अपनाने से इन्कार कर रही है, जो उसके आर्थिक बोझ को कम कर सकती है या फिर उसे अपनी स्वास्थ्य सुविधाएं अन्य लोगों तक पहुंचाने में मददगार बन सकती है। दिल्ली सरकार के नेताओं की मानें तो वे इस योजना को इसलिए नहीं अपना रहे हैं, क्योंकि उसमें बहुत खामियां हैं। एक नेता ने उसे घपला तक करार दिया। यदि ऐसा ही है तो आखिर उनके ही दल की पंजाब सरकार इस कथित घपले वाली योजना में क्यों शामिल है? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी कई केंद्रीय योजनाएं हैं, जिन्हें कुछ राज्य सरकारें राजनीतिक कारणों से अपने यहां लागू नहीं कर रही हैं। यह जनकल्याण और विकास से अधिक महत्व राजनीतिक स्वार्थों को देने वाली मानसिकता का ही दुष्परिणाम है। राज्यों को इससे बचना चाहिए।
Date: 30-10-24
साइबर अपराधियों से सरकार ही निपटे
संपादकीय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने नवीनतम रेडियो संबोधन में साइबर ठगी के बढ़ते खतरे के बारे में बात की। हाल के दिनों में साइबर अपराधियों ने कई लोगों को निशाना बनाया है और उन्हें ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर धमकी दी है।वे साइबर ठगी करते समय पुलिस अधिकारी, प्रतिभूति बाजार नियामक या नारकोटिक्स आदि विभागों के सरकारी अधिकारी होने का दिखावा करते हैं। जिन लोगों को निशाना बनाया जाता है उनके बैंक खातों को खाली कर दिया जाता है और कुछ मामलों में उनके पैसे क्रिप्टोकरेंसी वॉलेट में स्थानांतरित कर दिए जाते हैं। जो लोग अपेक्षाकृत डिजिटली साक्षर हैं, वे भी इन अपराधियों के शिकार हो गए।ऐसे में यह बात स्वागतयोग्य है कि प्रधानमंत्री ने इन तौर तरीकों के बारे में जागरूकता पैदा करने का प्रयास किया। परंतु अभी इन खतरों से निपटने के लिए और कई कदम उठाने की आवश्यकता है।बैंकिंग नियामक आदि अपने स्तर पर ऐसे अपराध करने वाले अपराधियों को पकड़ पाने की क्षमता नहीं रखते। इनमें से कई तो भारत की सीमाओं से बाहर रहते हैं। दक्षिण पूर्वी एशिया के देश इनके खास अड्डे हैं। जरूरत इस बात की है कि राष्ट्रीय साइबर अपराध इकाइयों को क्षमतावान बनाया जा सके ताकि हर शिकायत पर ध्यान दिया जा सके। ऐसे अपराध रोकने और अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने की बुनियादी जिम्मेदारी सरकार की है और वह इस दायित्व से बच नहीं सकती।
आमतौर पर कुछ अधिकारियों के लिए विभिन्न प्रकार के डिजिटल जोखिमों के मामले में अपनी जवाबदेही से पल्ला झाड़ना बहुत आसान रहा है। इसका एक और उदाहरण है हाल ही में बम धमाकों की धमकी।दीवाली के पहले व्यस्त सीजन में इन धमकियों ने देश के विमानन क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया। महज चंद दिनों में विभिन्न उड़ानों के बारे में ऐसी 100 से अधिक धमकियां दी गईं। इससे हवाई अड्डों की सुरक्षा के जिम्मेदारों पर दबाव बढ़ा और कई हवाई अड्डों पर अफरातफरी की स्थिति बन गई।शिकागो के लिए उड़ान भर रही एयर इंडिया की एक उड़ान को आर्कटिक में अचानक उतरना पड़ा ताकि विमान की जांच की जा सके। सिंगापुर जा रही एक और उड़ान को वहां के एफ-16 विमानों की निगरानी में चांगी हवाई अड्डे पर उतारना पड़ा। गत सप्ताह इस सिलसिले में एक किशोर को गिरफ्तार किया गया था और जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र पुलिस 35 वर्षीय एक अन्य संदिग्ध की तलाश में है।परंतु अधिकारियों की शुरुआती प्रतिक्रिया सोशल मीडिया वेबसाइटों को दोष देने की रही जहां ऐसी धमकियां सामने आ रही थीं। उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नुकसानदेह इन पोस्टों को हटाने की मांग की। इन वेबसाइटों का जांचकर्ताओं के साथ सहयोग करने में नाकाम रहना और पुलिस की मांग पर इन पोस्ट से संबंधित आईपी एड्रेस मुहैया नहीं करा पाना तथा धमकियों को गंभीरता के आधार पर चिह्नित नहीं कर पाना एक अलग मसला है।
वित्तीय नियामकों तथा नागर विमानन के प्रभारियों तथा कुछ मामलों में स्थानीय पुलिस सहित अधिकारियों के लिए डिजिटल अपराध एक नया मोर्चा है। यह स्वाभाविक है कि उनके पास शायद इस काम के लिए जरूरी विशेषज्ञता और अनुभव नहीं हो। परंतु ऐसी क्षमता विकसित की जानी चाहिए।अगर साइबर ठगी करने वाले और डिजिटल अफवाह फैलाने वालों की क्षमता बढ़ रही है तो प्राधिकारियों को भी अपनी क्षमता उसी अनुपात में बढ़ानी चाहिए। जहां तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ के डर की बात है तो प्रधानमंत्री ने विशेष तौर पर उल्लेख किया कि सरकार को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि ऐसी धमकियों पर इतनी आसानी से विश्वास कैसे कर लिया जा रहा है।पुलिस और पुरातन कानूनों का डर इतना व्यापक क्यों है कि ठगी करने वाले आसानी से इसका लाभ लेकर मासूमों को भयभीत कर देते हैं? जांचकर्ताओं को अपराधियों को पकड़ना चाहिए और इस धारणा को समाप्त करने पर काम करना चाहिए कि वे निर्दोषों को सताने में सक्षम हैं।
Date: 30-10-24
अवैध निर्माण के नुकसान और तकनीकी इलाज
अमित कपूर, ( लेखक इंस्टीट्यूट फॉर कंपैटटिवनेस के अध्यक्ष हैं। इस आलेख में जेसिका दुग्गल ने भी योगदान किया है )
किसी भी शहर में आपको ऐसा हिस्सा जरूर दिख जाएगा, जो बुनियादी विकास की बाट जोह रहा होता है। ऐसे इलाकों में अक्सर पुराने मकान, फुटपाथ और सड़कों के किनारे एक के बाद एक दुकानें दिख जाते हैं जिनसे यातायात बाधित होता रहता है। बिजली के खंभों से झूलते तार और इमारतों के नीचे तहखाने आग लगने की घटनाओं को सीधा निमंत्रण देते रहते हैं।
अवैध निर्माण के लिए बदनाम ऐसे इलाके लोगों के रोजमर्रा के जीवन में खलल डालते रहते हैं। अनियंत्रित और अवैध निर्माण से शहरी इलाकों में होने वाली समस्याएं शहरी संसाधनों के प्रबंधन और प्रशासन में ही दिक्कत पैदा नहीं करतीं बल्कि शहरवासियों के जीवन की सुगमता और सामाजिक समरसता में भी व्यवधान डालती हैं।
इस वर्ष ही अवैध एवं अनधिकृत इमारतों से कई त्रासद दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। जुलाई में मुंबई में एक अवैध चार-मंजिला इमारत ढहने से तीन लोगों की मौत हो गई। मार्च में कोलकाता में अवैध इमारत ढहने से 12 लोगों की जान चली गई। राष्ट्रीय राजधानी में तीन युवा छात्र भारी वर्षा से एक अवैध तहखाने में भरे पानी में डूब गए। ये अवैध निर्माण पर्यावरण पर प्रतिकूल असर डालते हैं, जीवन की गुणवत्ता बिगाड़ते हैं और कुछ मामलों में तो ऐसा नुकसान कर देते हैं, जिसकी भरपाई ही नहीं हो सकती। यह संकट बहुत भयावह है, इसलिए अधिक समय तक इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अब यह अति आवश्यक हो गया है कि इन निर्माणों से जुड़े नियम सख्त बनाए जाएं।
इस तरह के अवैध निर्माण के बड़े आर्थिक एवं पर्यावरणीय दुष्परिणाम दिखते हैं। पहली बात, कर राजस्व का बड़ा नुकसान होता है क्योंकि इस तरह की संपत्तियों की रजिस्ट्री ही नहीं होती। बात, अवैध निर्माण से अनियोजित विस्तार होता है, जिससे सड़क, बिजली, पानी जैसी सुविधाओं एवं संसाधनों पर बोझ बढ़ता है। उनके लिए संसाधन और सुविधाएं देने पर अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है।
इन ढांचों को गिराने के भी नुकसान हैं। इनसे वित्तीय बोझ बढ़ता है और पर्यावरण को नुकसान भी होता है। ऐसी संपत्तियों का आम तौर पर बीमा भी नहीं होता, जिससे इनके मालिकों को भारी माली नुकसान होता है। जिस जमीन पर अवैध इमारतें होती हैं, उसका आर्थिक मूल्य भी कम हो जाता है।मूल्य तब और भी कम हो जाता है जब ये किसी कानूनी विवाद में फंसी होती हैं। इनसे शहरों में आवागमन भी बाधित होता है क्योंकि ये निर्माण सड़कों का अतिक्रमण करके किए जाते हैं। इनसे गलियां और सड़कें संकरी हो जाती हैं, वाहनों की आवाजाही ठीक से नहीं हो पाती और यातायात अवरुद्ध होने लगता है। इन अवैध बसावटों की संख्या बढ़ने के साथ ही कनेक्टिविटी एवं यातायात पर असर होने लगता है।
भारत में शहरीकरण की बढ़ती गति और शहरों में रहने वालों की भारी संख्या को देखते हुए स्थान, जमीन के इस्तेमाल एवं सार्वजनिक शहरी संसाधनों को कारगर तरीके से संभालना जरूरी हो जाता है। नियमित अंतराल पर भूमि सर्वेक्षण के जरिये लगातार नियमन एवं निगरानी, नगर निकायों द्वारा रिकॉर्ड को लगातार अपडेट किया जाना और सैटेलाइट इमेजिंग जैसी नूतन तकनीकों को मुख्यधारा में लाना जरूरी है।
वास्तव में भारत में कई शहरों जैसे मुंबई, नोएडा और भुवनेश्वर में भूमि के अवैध इस्तेमाल, निर्माण एवं अतिक्रमण पर नजर रखने के लिए सैटेलाइट इमेजनरी एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली का इस्तेमाल होने भी लगा है।ब्राजील में साओ पाउलो और तुर्किये में इस्तांबुल जैसे शहरों में दुर्गम क्षेत्रों पर नजर रखने एवं अवैध निर्माण रोकने के लिए ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।
हाल में लंदन और बार्सिलोना जैसे यूरोपीय शहरों में अवैध निर्माण के तरीकों का पता लगाने के लिए निर्माण के पुराने रिकॉर्ड और तस्वारों का विश्लेषण किया जा रहा है। यह विश्लेषण मशीन लर्निंग अल्गोरिद्म तथा आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की मदद से किया जा रहा है। दिलचस्प है कि बृहन्मुंबई महानगरपालिका ने एक मोबाइल ऐप्लिकेशन की शुरुआत की है, जिसका इस्तेमाल कर लोग अवैध निर्माण तथा दूसरी समस्याओं की शिकायत सीधे नगर निगम से कर सकते हैं।
अवैध निर्माण से पर्यावरण को होने वाले नुकसान की अनदेखी नहीं की जा सकती। ये इमारतें नियमों का उल्लंघन कर, अक्सर संरक्षित क्षेत्रों, हरित क्षेत्रों या बाढ़ की आशंका वाले इलाकों का अतिक्रमण कर खड़ी कर दी जाती हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है और प्राकृतिक आपदाओं के खतरे भी कई गुना बढ़ जाते हैं।उदाहरण के लिए अस्थिर भूमि या बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों में बनी इमारतें वहां रहने वाले सभी लोगों के लिए खतरा बन सकती हैं। इस पर नियंत्रण के लिए प्राधिकरणों को जोनिंग कानून (किसी भौगोलिक क्षेत्र में जमीन के इस्तेमाल से जुड़े कानून) सख्ती से लागू करने चाहिए और अवैध निर्माण पर नजर रखकर उसका पता लगाने के लिए सैटेलाइट इमेजरी और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए।
लोगों को अवैध निर्माण से पर्यावरण को होने वाले खतरों के बारे में समझाना और पर्यवारण के अनुकूल शहरी नियोजन के लिए प्रोत्साहन तैयार करना भी उतना ही जरूरी है। हरित भवन संहिता महंगी बहुमंजिला इमारतों के लिए ही नहीं बल्कि समूचे निर्माण क्षेत्र के लिए लागू होनी चाहिए ताकि हरेक नई इमारत पर्यावरण के अनुकूल तरीके से बनाई जाए।
हम पर्यावरण की अभूतपूर्व रफ्तार के लिए तैयार हो रहे हैं, इसलिए सुनिश्चित करना होगा कि भूमि पर अवैध निर्माण तथा उसके अवैध इस्तेमाल पर अंकुश लगे। हमारी रणनीति आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक रूप से टिकाऊ रहने के तीन स्तंभों पर आधारित होनी चाहिए। कानून सख्ती से लागू करने, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और अवैध निर्माण के खिलाफ त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करने में स्थानीय प्रशासन एवं सरकार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।शहरी स्थानीय निकायों को जोनिंग और भवन उपनियम अद्यतन करने चाहिए और उन्हें अधिक पारदर्शी बनाना चाहिए। मंजूरी, निरीक्षण और शिकायत निवारण के लिए ऑनलाइन प्रणाली अपना कर प्रशासन की जवाबदेह एवं सुगम व्यवस्था तैयार की जा सकती है।
नागरिकों में भी उत्तरदायित्व निभाने की संस्कृति विकसित करनी ही होगी ताकि वे समझ सकें कि कानून का पालन करना उनके ही हित में है। अवैध निर्माण की शिकायत करने एवं सूचना देने में नागरिक समाज सक्रिय भूमिका निभा सकता है मगर इसके लिए सरकारी तंत्र में विश्वास रहना चाहिए और यह भरोसा भी होना चाहिए कि शिकायत होने पर आवश्यक कार्रवाई जरूर होगी।
Date: 30-10-24
ब्रिक्स में साझेदारी के बढ़ते कदम
गिरीश चंद्र पांडे
यह पहला अवसर था, जब 2010 में दक्षिण अफ्रीका के पूर्ण सदस्य बनने के बाद, ईरान, मिस्र, इथियोपिया तथा संयुक्त अरब अमीरात के रूप में चार नए सदस्य यानी कुल नौ सदस्य ब्रिक्स के शिखर वार्ता में शामिल हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में आह्वान किया कि अब ब्रिक्स को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, बहुपक्षीय विकास बैंक और डब्लूटीओ जैसे वैश्विक संस्थानों में सुधारों के लिए एकजुट होना होगा। साइबर सुरक्षा, सुरक्षित एआइ, आतंकवाद जैसी विश्वव्यापी समस्याओं का समाधान खोजना होगा। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र में मिलकर काम करने की भी उन्होंने अपील की। आर्थिक सहयोग बढ़ाने में ब्रिक्स व्यापार परिषद और ब्रिक्स महिला व्यापार गठबंधन की सबसे बड़ी भूमिका का भी उन्होंने उल्लेख किया।
रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास युद्ध के संबंध में प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स नेताओं से कहा कि भारत युद्ध का नहीं, बल्कि बातचीत और कूटनीति का समर्थन करता है। जिस प्रकार हमने कोविड जैसी महामारी का मिलजुल कर मुकाबला किया, वैसे ही हम आपसी मेलजोल से भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित, मजबूत तथा समृद्ध भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। भारत ने स्पष्ट किया कि वह रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध खत्म करने में हर संभव मदद के लिए तैयार है। यह रुख भारत की व्यापक विदेश नीति के अनुरूप है, जो गुटनिरपेक्ष रहते हुए संवाद को बढ़ावा देने और मध्यस्थता करने का प्रयास करती है।
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हुई प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय वार्ताओं का अपना विशेष महत्त्व है। रूसी राष्ट्रपति से मोदी की मुलाकात ऐसे समय में हुई, जब अमेरिका और कनाडा भारतीय एकता और अखंडता को चुनौती देने वाले खालिस्तानी आतंकियों के प्रति सहानुभूति दिखा रहे हैं। मगर पुतिन ने यह कहकर कि ‘प्रधानमंत्री मोदी के साथ हमारे संबंधों में अनुवादक की जरूरत नहीं है’, एक बार फिर से भारत के साथ अपने अटूट विश्वास का स्पष्ट संदेश दिया और भारत के ‘सदाबहार मित्र’ के रूप में अपनी भूमिका को उजागर किया।
भारत और रूस के रिश्ते को ‘विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ के रूप में देखा जाता है। अभी यूक्रेन संघर्ष की वजह से रूस के पश्चिमी देशों से तनावपूर्ण रिश्ते हैं, मगर भारत ने आर्थिक और रणनीतिक मामलों में रूस के साथ व्यावहारिक दृष्टिकोण बनाए रखा है। विशेष रूप से, भारत रूसी तेल का एक महत्त्वपूर्ण खरीदार बनकर उभरा है और इससे रूस को अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत बनाने में मदद भी मिली है। मगर रूस के प्रति झुकाव रखने से भारत को पश्चिमी देशों की नाराजगी मिली है, क्योंकि वे रूस की व्यापारिक क्षमताओं को सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं। मगर भारत का रुख स्पष्ट है कि वह ऊर्जा की खरीद में अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगा। भारत के इस दृष्टिकोण से रूस भी खासा प्रभावित रहा है|
प्रधानमंत्री की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ की हुई द्विपक्षीय वार्ता के बारे में कहा जा रहा है कि इससे दोनों देशों के बीच पिछले पांच वर्ष के गिले-शिकवे दूर हो गए हैं। इससे पहले दोनों नेता अक्तूबर, 2019 में महाबलिपुरम में मिले थे। उसके बाद चीन की ओर से बेवजह पूर्वी लद्दाख में 2020 में पैदा किए सीमा विवाद के बाद दोनों देशों के बीच कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई। हालांकि, इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों पर कोई आंच नहीं आई। वित्तवर्ष 2023-24 के दौरान भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार चीन था। पिछले वित्तवर्ष में भारत और चीन के बीच दोतरफा व्यापार करीब 118.4 अरब डालर का था। यह भारत और अमेरिका के दरम्यान हुए व्यापार (118.3 अरब डालर) की तुलना में थोड़ा अधिक है। हालांकि, अमेरिका वित्तवर्ष 2021-22 और 2022-23 के भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था। भारत के निर्यात और आयात में बड़ा अंतर होने की वजह से चीन के साथ व्यापार घाटा भी बढ़ गया है।
इसमें दो राय नहीं कि भारत-चीन संबंधों का महत्त्व केवल दो देशों तक सीमित नहीं है। वैश्विक शांति, स्थिरता तथा प्रगति के लिए भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। इसलिए प्रधानमंत्री ने शी जिनपिंग से स्पष्ट कहा कि आपसी विश्वास, सम्मान तथा संवदेनशीलता ही दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों का आधार बन सकती है और जिनपिंग ने भी इसे स्वीकार किया। दोनों नेताओं ने एलएसी पर सैनिकों को पीछे करने को लेकर ताजा समझौते पर भी प्रसन्नता व्यक्त की। मगर सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में एक शंका अब भी बनी हुई है कि भारत ने तो गश्ती का जिक्र अपने आधिकारिक बयान में किया है, लेकिन चीन ने इस पर चुप्पी साध रखी है।
चीनी राष्ट्रपति ने अतीत में दोनों देशों के बीच 1993, 1996, 2005 और 2013 में परस्पर भरोसा पैदा करने वाले समझौतों को पूरी तरह नजरअंदाज किया है। उन्होंने अपनी सेना को भारतीय दावे वाले इलाकों में अतिक्रमण करने का आदेश दिया, जिसके फलस्वरूप जून, 2020 में गलवान घाटी जैसी घटना घटी। भारत ने चीनी हठधर्मिता और उसके विस्तारवादी मंसूबों के ऐसे कई मामले देखे हैं। अतीत में एक ओर चीन बातचीत से समस्या के समाधान की बात करता है, तो दूसरी ओर एलएसी के निकट बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण करता रहा है, जिससे भारत को भी, सतर्कता के चलते, बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण करने को बाध्य होना पड़ा। इसलिए भारत सरकार और रक्षा बलों को एलएसी की हर गतिविधि पर कड़ी नजर रखने की दरकार होगी।
कुल मिला कर भारत के लिए ब्रिक्स का महत्त्व क्वाड की भांति, चीन के विस्तारवादी रवैए को घटाने के लिए महत्त्वपूर्ण है। भारत अभी दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जिसकी रूस के साथ-साथ अमेरिका, यूरोपीय संघ से भी समान मैत्री है, जबकि चीन के संबंध में ऐसा नहीं है। इस वजह से भी चीन की भारत के प्रति एक चिढ़ या कहें कि शंका इस रूप में है कि वैश्विक पटल पर भारत सभी देशों को एक साथ लेकर अपनी नित नई पहचान गढ़ और अपनी धाक जमा रहा है। इसीलिए चीन, संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का बराबर विरोध करता आया है, जबकि वीटो प्राप्त अन्य देश अमेरिका, रूस, ब्रिटेन तथा फ्रांस भारत का बराबर समर्थन करते रहे हैं।
बहरहाल, ब्रिक्स में सदस्यों के विस्तार से निकट भविष्य में निस्संदेह इस समूह की राजनीति और कार्यशैली में अंतर पड़ेगा और ‘बहुपक्षवाद को मजबूत करने’ पर बल मिलेगा। कहना न होगा कि एक ओर जहां ब्रिक्स समूह का मजबूत होना और भारत-रूस साझेदारी का गहरा होना वैश्विक शक्तियों के बहुध्रुवीय दिशा में व्यापक बदलाव को इंगित करता है, वहीं भारत के ब्रिक्स के नए सदस्यों से मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। इसलिए आने वाले समय में भारत, ब्रिक्स को और बेहतर तरीके से नई दिशा और आकार देने के साथ उसके संचालन में सक्रिय भूमिका निभाएगा।
Date: 30-10-24
जनगणना और आम सहमति
संपादकीय
इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि देश में बहु प्रतीक्षित जनगणना का काम 2025 में शुरू होने जा रहा है। प्रत्येक एक दशक के बाद होने वाली यह जनगणना 2021 में निर्धारित थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण यह टल गया था। जनगणना का काम 2026 तक चलेगा और इसके बाद परिसीमन का काम शुरू होगा जो 1976 के बाद से राजनीतिक सहमति न बनने के कारण रुका हुआ है। हालांकि जनगणना और परिसीमन के बारे में अभी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। पर विडंबना देखिए की जनगणना की अटकलों के साथ देश की सियासत भी गर्म होने लगी है।
कांग्रेस ने जनगणना से जुड़े मामलों जैसे परिसीमन और जातिगत जनगणना परविचार-विमर्श करने के लिए केंद्र सरकार से सर्वदलीय बैठक बुलाई जाने की मांग की है। इस सामान्य जनगणना साथ तीन पहलू जुड़े हुए हैं- जातिगत जनगणना, संसदीय क्षेत्र का परिसीमन जो करीब 5 दशकों से रुका हुआ है और सांसद एवं विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसद सीटों का आरक्षण केंद्र सरकार की ओर से अभी यह फैसला नहीं किया गया है कि सामान्य जनगणना के साथ जाति की जनगणना की की जाएगी या नहीं। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल ने सामाजिक न्याय के नाम पर 2024 के आम चुनाव में जातिवाद की जनगणना का मुद्दा जोर-जोर से उठाया था। इस मांग के पीछे विपक्षी दलों का मकसद दिया है कि जातियों की संख्या के आधार पर सरकारी नौकरियों में आरक्षण और उन तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाना। यह इसका सकारात्मक पक्ष है, लेकिन दूसरी और अगर जाति के आधार पर सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित होगी तो कोई भी जाति अपनी संख्या बाल में कमतरी नहीं होने देगी। हर जातियां चाहेंगी कि उसकी संख्या में बढ़ोतरी हो। इससे न केवल जातियों के बीच टकराहट बढ़ेगी बल्कि ऐसी स्थिति में जनसंख्या नियंत्रण की नीतियां असफल हो जाएंगी। भाजपा जातिगत जनगणना के विरुद्ध है। इससे उसके हिंदुओं को ध्रुवीकृत करने के लक्ष्य पर चोट पहुंचेगी। वह चाहती है कि देश की सारी जातियां हिंदुत्व के छाते में आ जाएं। अब देखना है कि जातिगत जनगणना के मामले में केंद्र सरकार क्या फैसला करती है। जातिगत जनगणना और परिसीमन के मुद्दे पर केंद्र सरकार और विपक्षी दलों के बीच आम सहमति की राह में अनेक मुश्किलें दिखाई दे रही हैं?
Date: 30-10-24
विमानन क्षेत्र में ऊंची उड़ान
संपादकीय
टाटा एयरबस भारत में पहला ऐसा निजी केंद्र होगा जहां सैन्य विमानों के कलपुर्जों को जोड़ कर विमानों को फाइनल असेंबली का काम किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और स्पेन में उनके समकक्ष पेड्रो सांचेज ने वड़ोदरा में टाटा एडवांस सिस्टम लिमिटेड-एयरबस केंद्र का उद्घाटन किया। मोदी ने कहा यह सुविधा न केवल भारत-स्पेन संबंधों को मजबूत करेगी, बल्कि हमारे मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड मिशन को भी बढ़ावा देगी। इस संयंत्र में 40 विमान बनाए जाएंगे तथा स्पेन से सीधे 16 विमान उपलब्ध कराए जाने की भी योजना है। इसके अतिरिक्त अट्ठारह हजार से ज्यादा पुर्जों का निर्माण भी देश में ही होगा। इस सारी कार्य-प्रणाली में लाखों लोगों को रोजगार मिलने की संभावनाएं हैं। भारत ने एयरबस से 56 सी 295 विमानों की खरीद का सौदा 2.5 बिलियन डॉलर में 2021 में किया था। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमि. फ्रांसीसी कंपनी सफरान राफेल इंजिन के लिए एमआरो बनाने के ज्वॉइंट वेंचर पर भी काम कर रहा है जो इंडियन मल्टी रोल हेलीकॉप्टर के इंजन बनाएगा। मोदी सरकार के 2026 तक एयरोस्पेस क्षेत्र में 63 बिलियन डॉलर के बाजार में बदलने के लक्ष्य को सकारात्मक रूप से देखने का प्रयास किया जाना चाहिए जो देश की डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग क्षमता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। कांग्रे का दावा है कि यह यूनिट मूल रूप से नागपुर में स्थापित होनी थी परंतु इसका उद्घाटन वड़ोदरा में करके महाराष्ट्र की जनता के साथ विश्वासघात किया गया है, जिसका वह जल्द जवाब देगी। कहा है कि तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 2006 में मुंबई में स्थापित करने के प्रयास किए गए थे। चूंकि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों की सरगर्मी चालू है तो पड़ोसी राज्य की जनता की तरफ रोजगार शिफ्ट होने का यह बहाना भी हो सकता है। हालांकि विमानों के विनिर्माण, संयोजन, परीक्षण व डिलीवरी से लेकर रख-रखाव तक की व्यवस्था में तकनीक से लेकर विभिन्न वर्गों के नौजवानों को बेहतरीन रोजगार मिलेंगे जो उज्जवल भविष्य की बुनियाद डालने वाला साबित हो सकता है। ये नौजवान रोजगार के लिए देश के किसी भी कोने में जाने को राजी हैं। इसलिए इस प्रगति को बे-बुनियादी विवादों में खींचने का कोई कारण नहीं नजर आता। देश का रक्षा निर्यात पहले ही तीस गुना बढ़ चुका है। ऐसे में इस प्रगति को वैश्विक पटल पर बड़े स्वरूप में देखना चाहिए।
Date: 30-10-24
बुजुर्गों को सौगात
संपादकीय
देश में सत्तर साल से अधिक उम्र के सभी बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना की शुरुआत का धन्वंतरि दिवस से अच्छा और क्या अक्सर होता? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद (एआईआईए) से इसके शुभारंभ का निहितार्थ भी समझा जा सकता है। आरोग्य के देवता धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। निस्संदेह देश के करोड़ों वृद्ध लोगों के लिए वह एक बेशकीमती सौगात तो है ही, यह योजना लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा की कसौटी पर भी खरी उतरती है। इन बुजुगों को अब प्रति परिवार पांच लाख रुपये तक की निःशुल्क चिकित्सा सुविधा मिल सकेगी। उम्र के इस हिस्से में उन्हें जिस चीज को सर्वाधिक होती है, उसमें इलाज की सुविधा सबसे अहम है। वास्तविकता यही है कि यदि कोई बुजुर्ग पेंशनवापत न हो, तो परिवार के लिए अनुत्पादक इकाई होने के कारण वह अक्सर उपेक्षा का शिकार हो जाता है। ऐसे में,अब वे परिवार के लिए अर्थिक बोझ बनने की किसी कुंता से मुक्त होकर अपनी तकलीफों का उपचार करा सकेंगे।
वैसे तो कम आय वर्ग वाले परिवार के बुजुगों को आयुष्मान योजना के तहत पांच लाख रुपये तक के मुफ्त इलाज की सुविधा पहले से ही हासिल थी। मगर अब सभी आय वर्ग के वृद्धों तक इसका विस्तार दरअसल बुजुर्गों को गरिमामय अंतिम दिनों की गारंटी है। मगर योजना का उद्देश्य सभी पूरा होसकेगा, जब सभी बुजुर्गों की पहुंच में चिकित्सक और चिकि यह अच्छी बात है कि पिछले एक दशक में स्वास्थ्य क्षेत्र पर खाया ध्यान दिया गया है और आज आमादी व डॉक्टरों का अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों से बेहतर पाया गया है। पिछले दिनों ही स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल नेलोकसभा में दावा किया था कि डब्ल्यूएचओ जहां प्रति 1000 आबादी पर एक डॉक्टर की उपलब्धता को आदर्श अनुपात मानता है, वहीं भारत में 836 लोगोंपर अब एक चिकित्सक उपलब्ध है।
मगर सवाल सिर्फ आनुपातिक आंकड़े का नहीं है, इसका व्यावहारिक पक्ष भी बहुत महत्वपूर्ण है। हकीकत यही है कि आज भी महानगरों और राज्यों की राजधानियों में ही अच्छे अस्पतालों की संख्या अधिक है, जिला मुख्यालयों के सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों व तकनीशियनों की कमी का आलम यह है कि अनेक अस्पतालों के कीमती चिकित्सा उपकरणों में जंग तक लग जाता है। बिजली, सड़क, इंटरनेट जैसी सुविधाओं के पर्याप्त विस्तार के बावजूद ग्रामीण इलाकों में सेवा के प्रति वा चिकित्सकों की दिलचस्पी नहीं बन पा रही। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बीते मंगलवार को अपने एक संबोधन में इस समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा था, ‘सभी डॉक्टरों को अपने पेशेवर जीवन के कुछ वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों को समर्पित करने पर विचार करना चाहिए।’ निस्संदेह, सभी बुजुगों को स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराना एक सराहनीय पहल है, मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि बुजुन के लिए बहुत लंबी दूरी तय करना भी कम कठिन नहीं है। इसलिए इस योजना को सार्थकता तभी साबित होगी, जब इससे जुड़े दूसरे पहलुओं पर भी संजीदगी से काम होगा। बीमाधारक बुजुगों को निर्धारित अस्पतालों में किसी किस्म की प्रशासनिक परेशानी न झेलनी पड़े. इसकी निगरानी और उल्लंघन की स्थिति में कड़े दंड का प्रबंधन भी बहुत जरूरी है। बुजुर्गों के हक में इसकी सफलता बहुत जरूरी है।