महिलाओं के विरूद्ध अपराधों की धीमी जांच प्रक्रिया
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कोलकाता बलात्कार-हत्याकांड के बाद वहाँ के जूनियर डॉक्टरों ने काम करना बंद कर दिया। मुख्यमंत्री की बार-बार अपील के बाद बड़ी मुश्किल से वे बात करने को तैयार हुए थे। इसका कारण जांच में दिखाई दे रही विसंगतियों को बताया जा रहा था।
कुछ बिंदु –
जांच पर चल रही राजनीति – दुर्घटना के एक माह बाद भी दोषियों को पकड़ा नहीं गया था। पकड़ा गया एक अभियुक्त अपने को निर्दोष बता रहा था। सीबीआई का मानना है कि इस मामले में कई विसंगतियाँ हैं।
राज्य सरकार ने कहा कि उसके पास 88 फास्ट टैक कोर्ट हैं। लेकिन केंद्र का कहना है कि केंद्र की योजना के तहत राज्य को आवंटित 17 ऐसे कोर्ट में से कोई भी अस्तित्व में नहीं है। अब यह मामला राजनैतिक वैमनस्य और भ्रष्टाचार का अधिक हो गया है।
कानून –
इस बीच बंगाल ने अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक 2024 बनाया है। यह बलात्कार के मामलों की जांच एफआईआर दर्ज होने के 21 दिनों के भीतर पूरी करेगा। मुकदमा पूरा करने के लिए 30 दिन दिए जाएंगे।
फास्ट ट्रैक कोर्ट कितने सार्थक – महिलाओं के खिलाफ अपराधों की प्रक्रिया के लिए फास्ट ट्रैक विशेष कोर्ट मौजूद हैं। इस योजना को 2026 तक बढ़ा दिया गया है। इसके लिए निर्भया कोष से 1207 करोड़ दिए जाते हैं। पूरे भारत में ऐसे 851 फास्ट-ट्रैक कोर्ट हैं। दुर्भाग्यवश, ये कोर्ट भी 50% लंबित मामलों के साथ भरे पड़े हैं।
14वें वित्त आयोग ने 2015-20 के दौरान 4,144 करोड़ रुपये की कुल लागत से 1800 फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने की सिफारिश की थी। लेकिन पुलिस की जांच और फोरेंसिक की कमियों के कारण फास्ट-ट्रैक कोर्ट भी मामले का सही निपटारा नहीं कर पाते हैं। थीमी जांच प्रक्रिया से ही जनारोष व्याप्त हो रहा है। इसमें सुधार होना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 6 सितंबर, 2024