उच्चतम न्यायालय के दो महत्वपूर्ण आदेश
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हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने दो ऐसे आदेश दिए हैं, जिनसे यह बात तय हो जानी चाहिए कि जमानत ही आदर्श प्रावधान है, जेल नहीं।
सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट संकेत –
दिल्ली के एक मंत्री सिसोदिया के मनी लांड्रिंग मामले में न्यायालय ने कहा कि मुकदमे में देरी और जेल में बिताई लंबी अवधि जमानत देने के लिए पर्याप्त कारण हैं। यूएपीए या आतंकवाद विरोधी मामले में न्यायालय ने कहा कि “नियम के रूप में जमानत; और अपवाद के रूप में जेल सभी कानूनों के लिए स्थापित कानून है।” ये दोनों ही निर्णय सबसे कड़े कानूनों के तहत जमानत देने के लिए स्पष्ट दिशा देते हैं। पहले भी न्यायालय ने कह चुका है कि जमानत पर वैधानिक प्रतिबंध ऐसा न हो कि वह संवैधानिक अधिकारों पर हावी हो जाए।
न्यायालय का विरोधाभासी रवैया –
कुछ समय पहले ही न्यायालय की एक अन्य पीठ ने आतंकवाद विरोधी कानून में जेल की सजा को ही आदर्श माना था। शीर्ष अदालत के ऐसे विरोधाभासी आदेश कानून की व्याख्या में भ्रम पैदा करते हैं।
दोनों ही कानूनों से संबंधित प्रावधानों की संवैधानिकता पर याचिकाएं विचाराधीन हैं। इन कानूनों के अंतर्गत कई विचाराधीन लोग कैद हैं। अतः जितना जल्दी हो सके, ऐसे कानूनों की चुनौतियों का निपटारा किया जाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 16 अगस्त, 2024