विशेष पैकेज से कमजोर होता राजकोषीय संघवाद

Afeias
08 Aug 2024
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देश के स्वरूप संघीय ढांचे को पोषित करने के लिए राजकोषीय सीमाएं, करों के आवंटन के सिद्धांत और अनुदानों के आधार को पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ होना चाहिए। लेकिन अब यह सब कुछ केंद्र में आने वाली सरकार पर निर्भर करता है कि वह एकपक्षीय बहुमत वाली है या गठबंधन की है। हाल ही में प्रस्तुत बजट में सहयोगी दलों के राज्यों बिहार और आंध्रप्रदेश को विशेष पैकेज देने का आरोप लगाया जा रहा है। यह संविधान में वर्णित संघवाद की अवधारणा के विरूद्ध है।

  • भारत जैसे विविधता वाले देश में किसी राज्य को आवश्यकता आधारित विशेष पैकेज दिया जा सकता है। यह अनुच्छेद 282 के तहत एक अतिरिक्त अनुदान होता है। यह वित्तीय प्रावधानों के अंतर्गत आता है, लेकिन इसका चुनाव केंद्र के विवेकाधीन है।
  • कायदे से यह आवंटन वित्त आयोग के माध्यम से होना चाहिए। आयोग का काम संघ द्वारा एकत्र किए गए करों के हिस्से के वितरण के संबंध में सिफारिश करने, और अनुच्छेद 280 के अनुसार राज्यों के बीच इसके वितरण की सिफारिश करना है। अनुच्छेद 275 के अनुसार सहायता की आवश्यकता वाले राज्यों को अनुदान वितरित करना है।
  • समस्या यह है कि देश में संघीय प्रवृत्ति उभयचर है। यानि कि आपातकाल की स्थिति में देश पूरे संघीय चरित्र में होता है, अन्यथा यह अर्ध-संघीय रूप में रहता है। सामान्यतः यह प्रचलित राजनीतिक वातावरण पर निर्भर करता है।
  • साथ ही संघवाद की मजबूती राजकोषीय वितरण से भी नापी जाती है। हाल के दिनों में, कुछ राज्यों ने संघ के करों के विभाज्य पूल में अपने हिस्से में कमी आने के बारे में चिंता जताई है। इसमें संतुलन बनाना 16वें वित्त आयोग का काम है।
  • जहां तक अनुदानों की बात है, यह वित्त आयोगों द्वारा की गई अनुशंसा से लगभग चार गुना अधिक हो गया है।

अपने सहयोगी राज्यों को विशेष पैकेज देकर सरकार राजकोषीय संघवाद की नींव को कमजोर कर रही है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित आर मोहन के लेख पर आधारित। 8 जुलाई, 2024