खपत में वृद्धि न होना चिंताजनक है
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- जनवरी-मार्च तिमाही और 2023-24 के लिए भारत की जीडीपी दर अधिकांश अर्थशास्त्रियों और यहाँ तक कि भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के पूर्वानुमान से भी अधिक थी।
- 2023-24 के लिए जीडीपी 8.2% बढ़कर 1738 लाख करोड़ रुपये हो गई है।
- सार्वजनिक निवेश आज आर्थिक विकास के लिए सबसे बड़ा उत्प्रेरक है। इसके कारण 2023-24 में कुल निवेश 9% बढ़कर 58.3 लाख करोड़ हो गया।
- इसके साथ ही विनिर्माण में भी तेजी आई है। 2023-24 में यह 9.9% बढ़कर 27.5 लाख करोड़ हो गया।
- दूसरी ओर, सकल मूल्यवर्धित वृद्धि है, जो आपूर्ति पक्ष को मापती है। यह 2023-24 की दो तिमाहियों में जीडीपी वृद्धि से एक प्रतिशत से भी अधिक पिछड़ गई है। साथ ही डिफ्लेटर और खुदरा मुद्रास्फीति के बीच भी बड़ा अंतर है।
- जीडीपी डेटा का नकारात्मक पक्ष निजी खपत की कमजोर वृद्धि दर है। यह घटक 2023-24 में 4% बढ़ा था, लेकिन यह उत्पादन की गति की तुलना में आधी से भी कम गति से बढ़ा। इसका कारण रोजगार की गुणवत्ता में गिरावट हो सकता है। उदाहरण के लिए जनवरी-मार्च के सरकारी शहरी नौकरी डेटा से पता चलता है कि 2022 में इसी अवधि के बाद से स्वरोजगार का अनुपात एक प्रतिशत से अधिक बढ़ गया है। इसका अर्थ है कि रोजागार की गुणवत्ता अच्छी नहीं रही है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 1 जून, 2024
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