30-05-2025 (Important News Clippings)

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30 May 2025
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Date: 30-05-25

Getting Judged

Trump’s logic for tariffs was always shifty. Just how shifty became clear in a court case US govt lost

TOI Editorials

Govt work is hush-hush, but every few years declassified files spill old beans. So we now know that CIA trained pigeons to take photos inside USSR during the Cold War. That was Project Tacana. Now the curious term ‘Taco’ is floating around. Is it a secret US tariff strike aimed at Mexico? On Wall Street, it’s shorthand for ‘Trump always chickens out’. After all, the 47th prez lowered tariffs on China from 145% to 30% in a month. But Trump has a different take. “It’s called negotiation,” he told reporters on Wednesday.

Also on Wednesday, Trump’s aides tried convincing the US Court of International Trade that his tariffs had facilitated a different kind of negotiation – brokering the May 10 ceasefire between India and Pakistan. “This ceasefire was only achieved after President Trump interceded and offered both nations trading access with the United States to avert a full-scale war,” commerce secretary Lutnick said while opposing a plea to block Trump’s sweeping tariffs.

That’s either a slip or a file declassified too soon, for as far as we recall, Trump on May 11 wrote, “While not even discussed, I am going to increase trade, substantially, with both of these great nations.” Note: not even discussed. Forget a tariff threat, even trade was not on the table. And as far as India is concerned, US was not at the table either. Jaishankar made it clear again on Monday: “It was the Indian military action that made Pakistan say: We are ready to stop.”

Neither Lutnick nor secretary of state Rubio – who said a negative ruling could “lead to embarrassment of the United States on the global stage” – could persuade the court, which faulted Trump’s use of emergency powers to impose tariffs. It’s a setback, but the tariffs will remain for now. Trump’s admin has already filed an appeal.

This battle could continue for many months, and since only the basis for the tariffs – not the tariffs themselves – is legally flawed, Trump could find a workaround. But what he needs to settle urgently is the rationale for tariffs. They were meant to right America’s balance of trade, and bring back manufacturing. Then they became a tool to stop illegal immigration and drugs. Then, a diplomatic bargaining chip. A veritable Swiss army knife. Hardly the blade for a hegemon. It can rend global trade, but won’t make China cower.


Date: 30-05-25

Danger in the sea

India’s response to maritime disasters must be faster and better

Editorial

On the afternoon of May 24, MSC Elsa 3, carrying more than 640 containers, started tilting off the coast of Kochi, ap- parently due to an operational problem. The nearly three-decade-old ship was said to be struc- turally safe. The crew abandoned the ship after unsuccessfully trying to right her. Now, Elsa 3 is lying at the bottom of the seabed 50 metres be- low. As per the cargo manifest, officials say the ship had 13 containers with hazardous goods. Twelve had calcium carbide, a reactive com- pound, and one had “rubber solution”. Some 50 containers, many empty, were floating and get- ting tossed around by monsoon weather. Officials say the rubber solution has reacted with the sea- water and accounts for the plastic pellets being found on the Kerala coast. Five containers with calcium carbide, another pollution hazard, are lying on the seabed and need to be safely dis- posed of before they cause damage. Some oil pol- lution has also been reported. There is as yet no clarity on how to safely dispose of the plastic pel- lets.

Though containers have tremendously boost- ed world trade logistics, oversight and control of what each container that passes several hands, ships and yards has is a global problem. Besides the 600-odd containers still lodged inside Elsa 3’s cargo space, some 365 tonnes of heavy fuel oil and 60 tonnes of diesel lie inside the ship’s tanks. That much of the oil has not seeped out yet is for- tuitous but there is every possibility of it happen- ing if quick action is not taken. The Chennai coast was ravaged by 250 tonnes of heavy fuel oil from an oil tanker that collided with an LPG carrier in 2017. MSC Elsa 3 is a toxic dump that needs to be quickly disposed of. Salvers are being engaged and they will follow international insurance pro- tocols. The National Oil Spill Disaster Contingen- cy Plan (NOS-DCP) names the Coast Guard as the nodal agency for such responses. In Chennai, the response was delayed by several days and there was much confusion and a lack of coordination between agencies. In Kerala, however, there has been enough time to rig up an effective response. With ambitious plans for economic growth that will inevitably lead to a surge in ship traffic, the government has also planned to draw more na- tional and global transshipment traffic into In- dia’s waters. India is only set to see a great num. ber and variety of ships of varying cargoes on its coast in future. The Kerala response will show how well prepared India is to handle a major maritime disaster.


Date: 30-05-25

टैरिफ के लिए बेकार के कुतर्क ना दे ट्रम्प सरकार

संपादकीय

पश्चिमी तर्कशास्त्र में स्ट्रॉमैन कुतर्क का जिक्र है। इसमें जब व्यक्ति अपने कुकृत्यों का सही जवाब नहीं दे पाता तो एक काल्पनिक मुद्दा खड़ा करता है और उसमें प्रतिद्वंद्वी को हराकर अपने को विजयी घोषित मान लेता है। ट्रम्प सरकार ने विभिन्न देशों के लिए पिछले कई माह से मनमाने टैरिफ का ऐलान जिन शक्तियों का प्रयोग करके किया है, उनके कानून सम्मत न होने की याचिकाओं पर कोर्ट में सुनवाई थी। ट्रम्प के मंत्रियों का राष्ट्रपति के बचाव में कुतर्क यह है कि अगर टैरिफ कम करने और व्यापार बढ़ाने का लालच भारत और पाकिस्तान को न दिया गया होता तो परमाणु युद्ध आसन्न था। इस आधार पर कोर्ट से अपील की गई कि राष्ट्रपति की शक्तियों को बाधित करने वाला कोई आदेश न पारित किया जाए वरना विश्व शांति के लिए खतरा हो सकता है। लेकिन क्या ट्रम्प ने टैरिफ का खेल भारत-पाक युद्ध के बाद शुरू किया? क्या भारत ने कहा कि उसने अमेरिका द्वारा टैरिफ कम करने और ट्रेड बढ़ाने की लालसा में पाकिस्तान के आतंकी और सैन्य ठिकानों को मिसाइल से बर्बाद किया? टैरिफ तो ट्रम्प का चुनावी मुद्दा रहा था। क्या ट्रम्प को मालूम था कि पाक आतंकी पहलगाम में नरसंहार करेंगे और भारत पाकिस्तान को घुटनों पर ला देगा? अमेरिका आज अगर आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़ा है तो इसके लिए सबसे बढ़कर ट्रम्प ने मनमानी नीतियां ही जिम्मेदार हैं।


Date: 30-05-25

जिम्मेदारी के बजाय

संपादकीय

संसदीय समितियों की बैठकों में सांसदों की कम भागीदारी वास्तव में चिंता का विषय है। लोग इस उम्मीद के साथ अपने प्रतिनिधि संसद में भेजते हैं कि उनके बुनियादी हितों की बात वहां सही तरीके से रखी जाएगी। मगर लोकसभा की वेबसाइट पर जारी आंकड़ों से पता चलता है। कि निचले सदन की सोलह स्थायी समितियों की बैठकों में सदस्यों की उपस्थिति औसतन महज साठ फीसद रही है। संसदीय समितियों की बैठकों में कई अहम मुद्दों पर चर्चा की जाती है और जरूरी सुधारों का खाका तैयार किया जाता है। इसका मकसद सरकारी योजनाओं और नीतियों को बेहतर ढंग से लागू करना और सभी पात्र लोगों तक इनका लाभ पहुंचाना होता है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि कई सांसदों के भीतर जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास क्यों नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कई अवसरों पर संसदीय समिति और संसद की कार्यवाही में सांसदों की सहभागिता के महत्त्व को रेखांकित कर चुके हैं। मगर संसद की स्थायी समितियों में सांसदों के गैरहाजिर रहने का सिलसिला हैरान करने वाला है।

गौरतलब है कि संसद में विभिन्न मंत्रालयों से संबंधित अलग-अलग स्थायी समितियां होती हैं। कई बार सरकार की ओर से तैयार की गई योजनाओं और नई नीतियों व कानूनों का मसविदा इन समितियों के पास विचार के लिए आता है। आमतौर पर विपक्षी दलों की यह मांग रहती है कि कोई भी विधेयक सदन में पेश किए जाने से पहले विचार-विमर्श के लिए संबंधित स्थायी समिति के पास भेजा जाए। अफसोस की बात है कि इन समितियों की बैठकों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी का अहसास सांसदों में कम ही नजर आता है। अंदाजा इस बात से लगाया सकता है कि इस वर्ष बीस मई को विदेश मंत्रालय से संबद्ध स्थायी समिति की बैठक में केवल तेरह सदस्य उपस्थित थे, जबकि 16 मई को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना विषय पर ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्रालय से संबद्ध समिति की बैठक में केवल बारह सदस्य मौजूद थे। ऐसे में सांसदों से यह उम्मीद स्वाभाविक है कि वे संसद में तय किए जाने वाले नियम- कायदों या बनने वाली व्यवस्था में जनता के हित में संसदीय समितियों में होने वाले विमर्श के तहत सक्रिय भागीदारी करें।


Date: 30-05-25

टैरिफ गैर-कानूनी

संपादकीय

अमेरिका की डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने दुनिया में टैरिफ वार या शुल्क संग्राम छेड़ रखा है, पर वह अपनी अदालतों में ही यह संग्राम हारती दिख रही है। वहां एक संघीय अदालत ने अमेरिकी राष्ट्रपति को टैरिफ लगाने से रोक दिया है। इतना ही नहीं, कोर्ट ने टैरिफ लगाने के फैसले को गैर-कानूनी, लापरवाह और विनाशकारी करार दिया है। अदालत ने कहा है कि टैरिफ लगाने का अधिकार केवल कांग्रेस को है और ट्रंप आपातकालीन स्थिति के नाम पर मनमाने ढंग से टैरिफ नहीं लगा सकते हैं। ट्रंप ने अपने कानूनी अधिकार का उल्लंघन किया है। खुद अमेरिका में कई जगह टैरिफ के खिलाफ माहौल है। वहां आर्थिक मंदी के खतरे मंडरा रहे हैं। ऐसे में, अदालत के फैसले से वहां भी लोग राहत महसूस करेंगे। हालांकि, अदालत के फैसले के बाद भी ट्रंप झुकने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि यह ईश्वर का अभियान है और जो होने वाला है, उसे कोई रोक नहीं सकता । अफसोस, कोर्ट के फैसले और उस पर ट्रंप के तल्ख रुख से स्पष्ट है कि अमेरिका में आंतरिक स्तर पर भी शुल्क संग्राम तेज हो जाएगा। यह बहुत हास्यास्पद है कि कोर्ट में ट्रंप प्रशासन ने टैरिफ संबंधी अपने फैसले का बचाव करते हुए भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम का हवाला दिया है। ट्रंप प्रशासन का यह मानना है कि टैरिफ की वजह से ही दोनों देश विराम के लिए सहमत हुए। अदालत ने इस दलील को उचित ही नकार दिया। और तो और, अदालत में ट्रंप के पैरोकारों ने यहां तक दावा कर दिया कि यहयुद्ध विराम केवल राष्ट्रपति ट्रंप के हस्तक्षेप के बाद ही हासिल किया गया। उन्होंने यह तक चेतावनी दे डाली कि इस मामले में राष्ट्रपति की शक्ति को बाधित करने वाला कोई प्रतिकूल निर्णय भारत व पाकिस्तान को राष्ट्रपति ट्रंप की पेशकश की वैधता पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे पूरे क्षेत्र की सुरक्षा व लाखों लोगों के जीवन को खतरा हो सकता है। अमेरिकी प्रशासन की यह निहायत कमजोर दलील है कि टैरिफ वास्तव में अमेरिकी विदेश नीति का उपकरण है। यह साफ है कि ट्रंप प्रशासन के पास अपनी नई टैरिफ नीति का बचाव करने के लिए अकाट्य आधार नहीं हैं। ऐसे में, यह समझने में कोई हर्ज नहीं कि ट्रंप द्वारा थोपे गए टैरिफ मनमानी हैं। अमेरिकी अदालत ने तो फैसला सुना दिया, पर सवाल यह है कि क्या ट्रंप प्रशासन पारंपरिक अमेरिकी उदारता की राह पर लौटेगा ?

वैसे, यह कोई पहली बार नहीं है, जब ट्रंप के फैसले को वहां की अदालत ने नकारा है। वीजा संबंधी मामले के साथ ही विदेशियों को जबरन स्वदेश भेजने की उनकी नीति पर भी अमेरिकी अदालतों ने अपनी प्रतिकूल टिप्पणियां की हैं। वहां के सजग लोग और अदालतें सचेत हैं कि अमेरिका अपनी स्थापित परंपराओं से हटकर मनमानी की राह पर न बढ़े। ट्रंप के साथ समस्या यह भी है कि वह अपने किसी फैसले पर ज्यादा समय तक टिक नहीं पा रहे हैं। कभी चीन के घोर विरोधी बन जाते हैं, तो कभी उससे समझौता करते दिखते हैं। कभी | भारत को मित्र बताते हैं और एप्पल जैसी कंपनी को यह कहते हैं कि वह भारत में निर्माण न करे। यह भी उनकी अस्थिर मानसिकता का प्रमाण है कि दुनिया के सबसे अमीर उद्यमी एलन मस्क भी उनकी टीम से अलग हो गए हैं। मतलब, ट्रंपको पहले अपने विचारों को स्थिर करना चाहिए, उसके बाद ही उनकी नीतियां मजबूत होंगी, जिन पर किसी अदालत को आपत्ति करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।


Date: 30-05-25

करोड़ों भारतीयों की मेहनत से चौथे स्थान पर पहुंचा भारत

नवनीत सहगल, ( चेयरमैन, प्रसार भारती )

भारत ने आर्थिक इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय रच दिया है। खास बात यह है कि आर्थिक विकास का यह मॉडल केवल महानगरों या अमीर तबकों तक सीमित नहीं रहा । ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के सिद्धांत पर चलते हुए मोदी सरकार ने समाज के सबसे कमजोर वर्गों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा। यही वजह है कि दूरदर्शी नेतृत्व में भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। 4.186 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ भारत ने जापान जैसे विकसित देश को पीछे छोड़ते हुए एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। यह उपलब्धि आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि यह 140 करोड़ भारतीयों के संघर्ष, परिश्रम और सपनों की साकार तस्वीर है।

एक दशक पहले भारतकई आर्थिक औरराजनीतिक चुनौतियों से जूझ रहा था, पर आज दुनिया की आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर चुका है। जहां दुनिया के कई देश आज कई मोर्चों पर आशंकाओं से जूझ रहे हैं, वहीं भारत स्थिर नेतृत्व में कीर्तिमान बना रहा है। यह सफर आसान कतई नहीं था। नीतिगत फैसलों ने विकास को रफ्तार दी है। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, उस समय भारत दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। कई नीतिगत समस्याएं देश की गति को रोक रही थीं। अगले दस वर्ष में भारत ने आर्थिक सुधारों और नीतिगत फैसलों के जरिये अपने विकास की रफ्तार तेज कर दी। नतीजा यह कि साल 2019 में भारत ने ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवां स्थान प्राप्त किया और अब वह जापान को पीछे छोड़ते हुए चौथे स्थान पर पहुंच गया।

भारत की आर्थिक प्रगति के मूल में सुधारों की सशक्त नींव रही है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने देश को एकीकृत बाजार में बदला, कर प्रणाली को सरल बनाया और राजस्व बढ़ाया। बैंकिंग क्षेत्र को भी मजबूती मिली है और ऋण व्यवस्था में अनुशासन आया है। मेक इन इंडिया अभियान ने विनिर्माण पुनर्जीवित किया और निवेशकों का भरोसा बहाल किया। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत की रैंकिंग 2014 में 142 से 2020 में 63 पर आ गई। इन बदलावों ने भारत के शासनतंत्र की मानसिकता को भी बदला है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2015 में शुरू की गई। डिजिटल इंडिया मुहिम ने गांव से लेकर शहर तक, , देश के कोने-कोने को इंटरनेट और डिजिटल सेवाओं से जोड़ा है। इससे न सिर्फ सरकारी सेवाएं सुलभ हुई, बल्कि डिजिटल भुगतान, स्टार्ट अप और तकनीकी नवाचार को जबरदस्त बढ़ावा मिला है। यूपीआई जैसी प्रणालियों ने डिजिटल भुगतान को इतना आसान बना दिया है कि 2024 तक हर महीने 14 अरब रुपये से अधिक केलेन- देन होने लगे। जनधन योजना, आधार और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर ने करोड़ों लोगों को वित्तीय प्रणाली से जोड़ा व भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई है। बुनियादी ढांचे की मजबूती के लिए ऐतिहासिक कदम उठाए गए। भारतमाला, सागरमाला और स्मार्ट सिटी मिशन जैसे प्रोजेक्ट्स के तहत सड़कों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों और शहरी विकास पर अभूतपूर्व निवेश हुआ है। 2014 से 2024 तक भारत में 80,000 किलोमीटर से अधिक राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण हुआ । भारत ने ग्लोबल बिजनेस में भी अपनी पकड़ मजबूत की है। 2023- 24 में भारत का कुल निर्यात 824.9 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। यह आईटी सेवाओं, फार्मा, रत्न आभूषण, वस्त्र वइंजीनियरिंग उत्पादों में अभूतपूर्व वृद्धि का परिणाम है। दवाओं के सस्ते उत्पादन ने भारत को दुनिया की फार्मेसी बना दिया । कृषि उत्पादों के निर्यात और वैश्विक मांग में निरंतर इजाफा हुआ, जिससे भारत की छवि भरोसेमंद साझेदार के रूप में उभरी।

आज पूरी दुनिया भारत को स्थिरता, अवसर और नवाचार के केंद्र के रूप में देख रही है। भारत 2027 तक जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। यह यात्रा भारत के करोड़ों नागरिकों की सामूहिक आकांक्षाओं की जीत है, चाहे वह बेंगलुरु के स्टार्टअप हों, सूरत के बुनकर, पंजाब के किसान या हैदराबाद के इंजीनियर। हर एक भारतीय इस सफलता का सहभागी है।