29-06-2024 (Important News Clippings)

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29 Jun 2024
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Date: 29-06-24

How To Tackle Our Cities’ Monsoon Mess

● Restructure stormwater drains ● Remove encroachments from pavements, streets ● Make all agencies answerable to the urban local body ● Train more town planners

KK Pandey, [ The writer is professor, Indian Institute of Public Administration. ]

Monsoon arrived in Delhi yesterday – so did waterlogged streets, traffic chaos and massive disruption of regular life. This happens every year, and in every major Indian city. Why?

Because our approach to dealing with the problem is not preventive. Every year, we deal with it after the city has been brought to a grinding halt. Issues like regular repair, replacement of drainage/ sewerage system, keeping public spaces (roads, streets, footpaths) free of encroachments are put on the back burner while there is still time for planning and management.

India’s urban population of 461mn (2019) will go up by 416mn by 2047. This means, without timely and concerted action by all stakeholders, the problem will get worse in coming years.

What’s behind the mess? | Waterlogging in our cities is caused by expansion of planned and unplanned urban areas without regard for space for circulation; drying up and destruction of lakes, tanks and water bodies due to dumping of construction and demolition waste; and inclusion of areas occupied by lakes and other water bodies in habitation zones. For instance, half of the 519 water bodies in Gurugram have disappeared over 40 years. The story is quite similar for Bengaluru.

Who is responsible? | Water management is the responsibility of three stakeholders: planning agencies, urban local bodies and exclusive agencies for water and sewage. The three rarely work in tandem, with issues of jurisdiction marring their efforts. While solid wastes fall in the domain of urban local bodies, water and sewage quite often don’t.

This bits-and-pieces planning does not allow for holistic management of huge urban spaces like NCR. You cannot deal with water issues, sewage or drains by working in silos, which is what urban bodies like NDMC and MCD, or even satellite cities like Gurugram and Noida represent.

Town planners have a vital role to play in how urban systems are run. But we don’t have even one per lakh population. Compare that with 38 in UK and 23 in Australia. Even in our larger cities, the number is well below the norm for modern global cities.

If planning is bad, implementation is worse. It is quite common for our cities to not have stormwater drains in place. Most Indian cities do not even have an exclusive drainage plan. So, a spell of heavy rain is all it takes to disrupt the flow of existing drains and lead to waterlogging. Matters are made worse because of solid waste that municipal bodies are derelict in collecting. This waste chokes drains in our cities.

Urban planning is all about foreseeing the future. In India, on the other hand, planning starts when an area is already under habitation. Even when there is advance planning, things move so slowly that by the time action is taken, the planning is obsolete. To take one example, past Delhi Master Plans were notified after 8-10 years of preparation. While the 2041 one was prepared on time, it is being processed for the last four years.

But just as responsible are citizens, cutting across income groups. Is it not common to see educated people in high and middle-income colonies illegally occupying footpaths outside their houses? Or parking their vehicles on roads, leaving little space for traffic movement? As for low-income areas, they are totally choked with little space for circulation.

What’s the way forward? | One, how plans are implemented needs a complete relook. MPD-2041, for example, makes a provision for blue-green development and use of dhalaos for segregation of waste. That must be implemented rigorously. Two, we must prepare proper drainage plans, or revisit them in case they have proven inadequate. Take waterlogging at Delhi’s ITO. The only way it can be resolved is by detailed restructuring of the sewage network that aligns it with water level of Yamuna.

Three, water and sanitation plans must be prepared as per 15th finance commission’s devolution package for 44 urban agglomerations covering 1,115 urban local bodies. Four, safety audit of roads/streets and footpaths must be done regularly. Such an audit should identify barriers/encroachments for follow-up action to free up space for movement of water, goods and people.

Five, authorities need to engage with communities for removal of encroachments from footpaths and roads. At the same time, spaces occupied by govt departments for their use should be cleared. Six, agencies handling water and sanitation should be made accountable to ULBs. Most important, ULBs should have overarching authority over all agencies responsible for urban upkeep. Finally, there must be regular maintenance of drainage and sewage network to minimise the chances of an unforeseen event throwing urban life out of gear.


Date: 29-06-24

किसान खेती की बदलती हुई इकोनॉमी को समझें

संपादकीय

कृषि विज्ञान के अनुसार एक फसली खेती से उत्पादकता घटती है। मौसम विज्ञान बताता है कि तापमान वृद्धि से उत्पादन गिरता है। एनएसएसओ के घरेलू उपभोग व्यय सर्वे में सामने आया कि लोगों में भोजन के रूप में अनाज के प्रति कम, जबकि फल, सब्जी, अंडा, दूध और मांसाहार के प्रति ज्यादा रुझान है। 20 साल पहले एक व्यक्ति हर महीने औसतन 11.78 किलो खाद्यान्न खाता था जो 2022-23 में घटकर 8.97 किलो रह गया है। सर्वे के अनुसार साल 2022-23 में पहली बार भारत में खाद्यान से 15 हजार करोड़ रु. ज्यादा फल और सब्जी (4.34 लाख करोड़ की पैदावार हुई है। दूध, तीन साल पहले ही गेहूं-चावल के कुल उत्पादन मूल्य को पार कर चुका है। इन आंकड़ों से यह साफ है कि परंपरागत खेती करने वाले किसान अब घाटे में रहेंगे क्योंकि एक- फसली खेती के कारण उनके जमीन की उत्पादकता घट रही है और ज्यादा पानी का दोहन करने से मिट्टी की उर्वरता भी नीचे जा रही है। जहां यूपी सबसे ज्यादा मूल्य का अनाज पैदा कर रहा है, वहीं पश्चिम बंगाल यूपी के मात्र एक-तिहाई भू-भाग के बावजूद देश में सबसे ज्यादा फल और सब्जी पैदा कर रहा है। हालांकि आज भी देश की कृषि अर्थ-व्यवस्था में खेती की उपज का योगदान सर्वाधिक 54 प्रतिशत है लेकिन खाद्यान्न और खासकर चावल – गेहूं की जगह अन्य बहु- फसली खेती की जरूरत है।


Date: 29-06-24

महामारी जैसा बनता अकेलापन

क्षमा शर्मा, ( लेखिका साहित्यकार हैं )

काफी समय से यह माना जाता रहा है कि बुजुर्गों में अकेलापन बढ़ गया है। इसका कारण संयुक्त परिवार का न होना, बच्चों का विदेश या बाहर के शहरों में बस जाना, रिटायरमेंट, जीवनसाथी का न रहना और दोस्तों से संपर्क टूटना आदि हैं, मगर अब नए शोध के अनुसार अकेलापन युवाओं को भी बहुत परेशान कर रहा है। यह असमय ही उन्हें मृत्यु की ओर धकेल रहा है। इसका एक कारण हमउम्र लोगों से कम संपर्क और परिवार से दूरी है। नौकरियां भी अब ऐसी हो चली हैं, जहां युवा 24 घंटे के नौकर हैं। उन्हें हर हाल में टारगेट पूरे करने होते हैं। भले ही इसके लिए कितने ही घंटे काम क्यों न करना पड़े। इस अतिरिक्त व्यस्तता के कारण वे अपने आसपास और दोस्तों से कट रहे हैं। आपको अमेरिका में रहने वाले सर्वश्रेष्ठ गुप्ता का केस तो याद ही होगा। यह युवा बहुत तेजस्वी और मेधावी था। >अमेरिका के एक बड़े संस्थान में काम करता था। वह दफ्तर में 16-18 घंटे काम करता था, फिर भी अधिकारी कहते थे कि और करो। न उसके पास घर जाने का समय था और न ही सोने का। तब परिवार और दोस्तों के लिए समय कहां से आता। एक दिन इस युवा ने जिंदगी से हार मान ली। जिनके लिए 16-18 घंटे काम किया, उन्हें भला क्या फर्क पड़ा। उसकी जगह कोई और आ गया।

विशेषज्ञ कहते हैं कि अपनों से कट जाने का मतलब एक तरह की असामयिक मृत्यु है। अकेलापन धूमपान करने से भी अधिक खतरनाक है। कुछ दिन पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बढ़ते अकेलेपन पर चिंता प्रकट की। उसके अनुसार अकेलापन दुनिया में महामारी की तरह फैल रहा है। डाक्टरों का कहना है कि अकेलेपन के कारण लोगों को नींद नहीं आती। उन्हें तरह-तरह की समस्याएं होती हैं। अवसाद बढ़ता है। प्रतिरोधक प्रणाली कमजोर हो जाती है। मानसिक स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है। दिल की बीमारियों के खतरे बढ़ जाते हैं और तरह-तरह के रोग घेर लेते हैं।

अकेलापन किसी गंभीर बीमारी जैसा ही खतरनाक है। अकेलापन हमारी भावनाओं पर आघात करता है। यह हमें हमेशा दुखी रखता है। दुखी होने से चिंता और तनाव बढ़ता है। यह जीवन की कठिनाइयों को बढ़ाता है। रही-सही कसर इंटरनेट मीडिया ने पूरी कर दी है। युवाओं का दफ्तर के कामकाज से जो समय बचता है, उसे वे इंटरनेट मीडिया पर खर्च करते हैं। इंटरनेट मीडिया भी तरह-तरह की प्रतिस्पर्धा से भरा है। किसको कितनी रीच एवं लाइक्स मिले, यह एक चिंता का विषय बन जाता है। अकेलेपन के जो कारण बताए जाते हैं, उनमें बेरोजगारी और कम आय भी महत्वपूर्ण है। जो लोग नौकरी या अन्य किसी कारण अकेले रहते हैं, उनका अकेलापन भी बढ़ता है। गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोग भी अकेलेपन का शिकार होते हैं। बहुत से सामाजिक दबाव भी इसे बढ़ाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अकेलेपन की समस्या से समय रहते निपटा जाना चाहिए। इसके लिए ऐसी आदतें डाली जानी चाहिए, जो किसी को अकेला न रहने दें। अकेलेपन को दूर करने के लिए लोगों से मिलें-जुलें, दोस्ती बढ़ाएं। एक-दूसरे के सुख-दुख का हिस्सा बनें। सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने से भी जीवन सार्थक लगता है। इसलिए इनसे भी जुड़ना चाहिए। दोस्तों या परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बाजार जाएं। दूसरों के अनुभवों से सीखें। यदि समय हो तो किसी अभिरुचि को पूरा कर सकते हैं। बहुत से शौक अपनाए जा सकते हैं। बागवानी, पेंटिंग और संगीत भी अकेलेपन को दूर करने में बहुत मदद करते हैं। संगीत सुनना और संगीत सीखना, दोनों उपयोगी हैं। योग और व्यायाम से न केवल अकेलेपन को दूर किया जा सकता है, बल्कि स्वास्थ्य को भी अच्छा रखा जा सकता है।

इन दिनों कहा जाता है कि युवाओं में पढ़ने की आदत कम होती जा रही है, जबकि कोई अच्छी किताब हमारी सबसे अच्छी साथी होती है। मनपसंद किताबें कभी अकेला नहीं रहने देतीं। प्रकृति के साथ रहना भी हमारे अवसाद को कम करता है और हमें बहुत सी चिंताओं से मुक्ति दिलाता है। सबसे प्रमुख तो हमारा परिवार ही है। यदि परिवार के साथ रहते हैं तो स्वजनों के साथ समय बिताना एक अच्छा विकल्प है। दूर रहते हैं, तो मोबाइल ने यह सुविधा प्रदान की है कि हम कभी भी परिवार के सदस्यों से बात कर सकते हैं। आज की तकनीक भले ही हमें बहुत आकर्षित करती हो, लेकिन यह मानवीय संबंधों का रूप कभी नहीं ले सकती। वह पश्चिम जो तमाम तकनीकी उपकरणों और सुविधाओं से भरा पड़ा है, वहां न केवल युवा, बल्कि अधिकांश आबादी अकेलेपन की पीड़ा झेलने को मजबूर है। लंबे अर्से तक वहां अकेलेपन को आत्मनिर्भरता और ताकत के रूप में पेश किया गया। आज पश्चिम के लोग परिवार-परिवार चिल्ला रहे हैं। यह अफसोस की बात है कि भारत में अकेलेपन को किसी वरदान की तरह समझा जा रहा है। अकेलेपन की विशेषता के रूप में यह बताया जाता है कि हम जो चाहें, वह सब कर सकते हैं। पहले संयुक्त परिवार को तोड़कर एकल परिवार बने। अब बहुत से युवा जिनमें लड़के-लड़कियां दोनों शामिल हैं, परिवार नाम की संस्था से ही दूर भागते हैं। उन्हें लगता है कि अकेले हैं तो आजाद हैं। परिवार है तो जिम्मेदारियों का बोझ है और आजादी खतरे में है। थोड़े दिनों तक तो यह सोच बहुत अच्छा लग सकता है, मगर एक वक्त के बाद यह लगने लगता है कि हमारा कोई नहीं। जब तक यह बात समझ आती है कि शेयरिंग और केयरिंग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, तब तक कई बार देर हो चुकी होती है।


Date: 29-06-24

प्रगाढ़ होते रिश्ते

डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 21 एवं 22 जून की दो दिवसीय भारत यात्रा की। उनकी इस यात्रा का मकसद दोनों देशों के बीच पहले से ही बने घनिष्ठ संबंधों को और आगे बढ़ाना था। भारत में नई सरकार के गठन के बाद यह किसी विदेशी नेता की पहली द्विपक्षीय राजकीय यात्रा थी। प्रधानमंत्री हसीना की इसी माह में यह दूसरी भारत यात्रा थी। इससे पहले वे प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए भारत आई थीं। इसके बाद जुलाई महीने में चीन की यात्रा पर जाएंगी। चीन की यात्रा पर जाने से पहले उनका दो बार भारत आना दर्शाता है कि चीन यात्रा से उनके भारतीय संबंधों को कोई खतरा नहीं है। इधर भारत सरकार भी बांग्लादेश से अपने मधुर संबंधों को आगे जारी रखना चाहती है।

बांग्लादेश और भारत के प्रधानमंत्रियों ने 22 जून को बैठक करके व्यापक वार्ता की । इस वार्ता में नये क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए भविष्य की योजना पर सहमति जताई और समुद्री क्षेत्र सहित अनेक मुख्य क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ावा देने के लिए तकरीबन 10 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित प्रमुख समझौतों में डिजिटल, हरित और रक्षा क्षेत्रों में बढ़ावा देने के समझौते शामिल हैं। इनमें बांग्लादेश के रोगियों के लिए ई-वीजा प्रमुख है। उल्लेखनीय है कि बड़ी संख्या में बांग्लादेश के लोग इलाज कराने के लिए भारत आते हैं। वहां से भारत आने वाले ऐसे लोग 30 प्रतिशत के करीब हैं। ई- वीजा मिलने से ऐसे लोगों को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमने नये क्षेत्रों में सहयोग के लिए भविष्योन्मुखी विजन तैयार किया है, जिसमें हरित साझेदारी, डिजिटल साझेदारी, अंतरिक्ष एवं ब्लू इकॉनमी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भारत-बांग्लादेश की बनी सहमति से दोनों देशों के नवयुवकों को काफी लाभ मिलेगा। दोनों देशों की ‘मैत्री उपग्रह’ भारत-बांग्लादेश संबंधों को नई ऊंचाइयां प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि हम अपनी वरीयता में डिजिटल और ऊर्जा कनेक्टिविटी पर फोकस रखेंगे। हमने पिछले 10 वर्षों में कार्य करते हुए 1965 से पहले की कनेक्टिविटी को बहाल कर दिया है। इससे दोनों देशों की अर्थव्यव्स्था गतिशील होगी। उन्होंने दोहराया, ‘मैं बंगबंधु के स्थिर, समृद्ध और प्रगतिशील बांगलादेश के विजन को साकार रूप प्रदान करने के लिए प्रतिवद्ध हूँ।’ इन समझौतों में दूसरा समझौता बांग्लादेश के रंगपुर में भारत का नया सहायक उच्चायोग होगा। बांग्लादेश के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के लोगों के लिए रंगपुर में सहायक उच्चायोग खोलने का निर्णय लिया गया है। ढाका और कोलकाता के बीच नई रेल सेवा चालू की जाएगी। इसी तरह, चटगांव और कोलकाता के बीच नई बस सेवा चालू हो जाएगी। पांचवां समझौता मेदे-दरसाना और हल्दीबाड़ी- चिलाहाटी के बीच दलगांव तक मालगाड़ी सेवाओं की शुरुआत किए जाने का है।

इसके अलावा, अनुदान सहायता के तहत सिराजगंज में अंतर्देशीय कंटेनर डिपो का निर्माण किया जाएगा। भारतीय ग्रिड के माध्यम से नेपाल से बांग्लादेश को 40 मेगावाट बिजली के निर्यात की शुरुआत की जाएगी। 1996 की गंगा जल संधि के नवीनीकरण के लिए भी एक समिति बनाई जाएगी। रक्षा संबंधों को मजबूत बनाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री मोदी और शेख हसीना के बीच चर्चा हुई। इसमें दोनों देशों ने लंबी अवधि के हितों को ध्यान में रख कर रक्षा सहयोग की एक नीति बनाने का निर्णय लिया है।

उल्लेखनीय है कि भारत-बांग्लादेश के बीच सैनिक और रक्षा सहयोग की गति अभी तक काफी धीमी रही है, लेकिन अब किए गए नये समझौते के बाद से भारत जो सहयोग करेगा उससे बांग्लादेश की आर्मी काफी अत्याधुनिक बनेगी। बांग्लादेश की रक्षा जरूरतों के मुताबिक रक्षा उपकरणों का उत्पादन शुरू होगा। यह कार्य इस प्रकार का होगा कि बांग्लादेश की रक्षा और यौद्धिक क्षमता काफी बढ़ सके। अभी तक भारत ने इस तरह का रक्षा समझौता किसी पड़ोसी देश के साथ नहीं किया है। प्रधानमंत्री मोदी और शेख हसीना ने आतंकवाद, कट्टरवाद और सीमा पर शांतिपूर्ण प्रबंधन अपनी सहभागिता को मजबूत करने का भी निर्णय लिया है।

इसके अतिरिक्त, दोनों देशों के मध्य हिन्द महासागर क्षेत्र के लिए समान दृष्टिकोण अपनाए जाने की बात निश्चित हुई। दोनों प्रधानमंत्रियों की मुलाकात में भारत ने बांग्लादेश की पुरानी मांग मान ली और बांग्लादेश को भूटान तथा नेपाल के साथ भारतीय रेलवे के जरिए कारोबार करने की स्वीकृति प्रदान कर दी। इस स्वीकृति से बांग्लादेश को निर्यात बढ़ाने का बेहतर अवसर प्राप्त होगा। इस कदम से उत्साहित दोनों देश शीघ्र ही एक विशेष समझौता भी करने वाले हैं। अब दोनों देशों का प्रयास है। कि भूटान, नेपाल और बांग्लादेश के बीच एक साझा बाजार तैयार किया जा सके। यदि इस कार्य में सफलता मिल गई तो भविष्य में इस बाजार में अन्य पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका, म्यांमार आदि को शामिल किया जा सकेगा। इसीलिए दोनों देश रेल, सड़क, हवाई मार्ग और समुद्री मार्ग के जरिए आवागमन और माल ढुलाई के लिए कनेक्टिवटी को और ज्यादा मजबूत बनाएंगे।

प्रधानमंत्री मोदी और शेख हसीना के बीच बैठक में इस बात की भी सहमति बनी कि तीस्ता नदी जल प्रबंधन पर वार्ता के लिए भारत की एक तकनीकी टीम ढाका का दौरा करेगी। टीम तीस्ता नदी की गाद को साफ करने तथा नदी को पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए एक रोडमैप तैयार करेगी। बांग्लादेश में तीस्ता नदी के संरक्षण पर बातचीत के लिए एक भारतीय दल भेजने का निर्णय इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत की आपत्तियों के बावजूद एक अरब अमेरिकी डॉलर की इस परियोजना पर चीन की नजर थी। यह मुद्दा भारत के लिए अत्यंत संवेदनशील है क्योंकि चीन की कंपनियों को ठेका मिलने का मतलब है कि उन्हें तीस्ता नदी से संबंधित सारा डाटा हासिल हो जाएगा। इसलिए भारत का प्रयास था कि चीन का इसमें प्रवेश न हो। इस आश्वासन के बाद अपने देश पहुंच कर शेख हसीना ने कहा कि उनकी भारत यात्रा सार्थक रही। निश्चित है कि उपर्युक्त समझौतों के बाद भारत तथा बांग्लादेश के आपसी संबंध और अधिक मधुरता की ओर बढ़ेंगे


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