25-11-2024 (Important News Clippings)
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सहकार से समृद्धि का भारतीय दर्शन
अमित शाह, ( लेखक केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री हैं )
सहकारिता आंदोलन को मजबूती प्रदान करने की दिशा में प्रधानमंत्री मोदी जी के मार्गदर्शन में सरकार ने 60 से अधिक पहलों पर काम शुरू किया है। दशकों की उपेक्षा और प्रशासनिक कुरीतियों के परिणामस्वरूप अधिकांश प्राथमिक कृषि ऋण समिति (पैक्स) आर्थिक रूप से कमजोर और निष्क्रिय हो गई थीं। सरकार ने पैक्स के कार्यक्षेत्र में विस्तार के साथ-साथ उन्हें आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने का काम शुरू किया।
सहकारिता एक ऐसी व्यवस्था है, जो समाज में आर्थिक रूप से आकांक्षी लोगों को न सिर्फ समृद्ध बनाती है, बल्कि उन्हें अर्थव्यवस्था की व्यापक मुख्यधारा का हिस्सा भी बनाती है। सहकारिता बिना पूंजी या कम पूंजी वाले लोगों को समृद्ध बनाने का एक बहुत बड़ा साधन है। सहकारिता के माध्यम से भारत इन लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रहा है।हमारे देश में सहकारिता की एक विस्तृत परंपरा तो रही है, लेकिन आजादी से पहले सहकारिता जिस प्रकार आर्थिक आंदोलन का माध्यम बनी, उसे और भी अधिक ऊर्जा और शक्ति के साथ आगे बढ़ाने का कार्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के कार्यकाल में शुरू हुआ। वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री जी ने सहकारिता का स्वायत्त मंत्रालय स्थापित कर सहकारिता के लिए अवसरों के सारे बंद दरवाजे खोल दिए।महज तीन वर्षों में देश में सहकारिता को तेज गति मिली है। इसी कड़ी में, भारत का सहकारिता आंदोलन एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने जा रहा है। राजधानी दिल्ली 25-30 नवंबर के बीच में ‘अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (आईसीए) महासभा’ और वैश्विक सम्मेलन की मेजबानी को तैयार है।आईसीए के 130 वर्ष के इतिहास में यह पहला मौका है, जब भारत इसका आयोजक होगा। इस सम्मेलन से संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 का भी शुभारंभ होगा। आईसीए महासभा और वैश्विक सम्मेलन की मेजबानी वैश्विक सहकारी आंदोलन में भारत के नेतृत्व की स्वीकार्यता का प्रतीक है।
मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनने के बाद से समाज के पिछड़े, अति पिछड़े, गरीब और विकास की दौड़ में पीछे छूट चुके लोगों के उत्थान की दिशा में निरंतर कदम उठाए जा रहे हैं। मोदी सरकार मानती है कि यह परिवर्तन सहकारिता आंदोलन को मजबूत किए बिना नहीं हो सकता। यह आयोजन ऐसे समय में हो रहा है जब भारत ने सहकारी आंदोलन के पुनरुत्थान की दिशा में बड़े कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री जी ने ‘सहकार से समृद्धि’ का मंत्र दिया है, जिसका उद्देश्य देश की सहकारी संस्थाओं को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाना है। देश में सहकारी तंत्र का विस्तार कर एक नया आर्थिक मॉडल खड़ा किया जा रहा है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर तक पहुंचाने के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक सिद्ध होगा। दुनिया के अन्य देशों के लिए यह एक विकास मॉडल के रूप में सामने आएगा।
भारत में प्राचीन काल से सहकारिता का समृद्ध इतिहास रहा है, जिसके संकेत कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी मिलते हैं। दक्षिण भारत में भी ‘निधियों’ का प्रचलन सहकारी वित्तीय व्यवस्था को दर्शाता है। पाश्चात्य विचारों से प्रभावित कई अर्थशास्त्रियों ने 21वीं सदी की शुरुआत में ही यह चर्चा प्रारंभ की दी थी कि सहकारिता का विचार आधुनिक युग में कालबाह्य हो गया है। मेरा मानना है कि भारत जैसे 140 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में छोटी जनसंख्या वाले देशों का आर्थिक मॉडल उपयुक्त नहीं हो सकता। आर्थिक विकास के सभी मानकों में वृद्धि के साथ यह जरूरी है कि 140 करोड़ लोगों की समग्र समृद्धि हो जो सहकारिता के माध्यम से ही संभव है। इसके कई उदाहरण हैं। जैसे अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव बैंक ने गत 100 वर्षों में 100 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित किया। बैंक न केवल एनपीए को शून्य बनाए रखने में सफल रहा, बल्कि उसके पास 6,500 करोड़ से अधिक जमाराशि भी है। अमूल भी सहकारी आंदोलन का उल्लेखनीय उदाहरण है। वर्तमान में इससे 35 लाख परिवार सम्मान और रोजगार प्राप्त कर रहे हैं और इन परिवारों की महिलाएं अग्रिम पंक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। परिणामस्वरूप, आज अमूल का वार्षिक कारोबार 80,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। दिलचस्प बात यह है कि इन महिलाओं में से किसी ने भी 100 रुपये से अधिक का प्रारंभिक निवेश नहीं किया था।
सहकारिता आंदोलन को मजबूती प्रदान करने की दिशा में प्रधानमंत्री मोदी जी के मार्गदर्शन में सरकार ने 60 से अधिक पहलों पर काम शुरू किया है। दशकों की उपेक्षा और प्रशासनिक कुरीतियों के परिणामस्वरूप अधिकांश प्राथमिक कृषि ऋण समिति (पैक्स) आर्थिक रूप से कमजोर और निष्क्रिय हो गई थीं। सरकार ने पैक्स के कार्यक्षेत्र में विस्तार के साथ-साथ उन्हें आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने का काम शुरू किया।
इनके लिए नए बाय-ला अपनाने से अब पैक्स डेरी, मत्स्य पालन, अन्न भंडारण, जन औषधि केंद्र आदि जैसे 30 से अधिक विविध क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियां संचालित करने में सक्षम हुए हैं। तीन नई राष्ट्रीय स्तर की बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के गठन से सहकारिता का क्षितिज और व्यापक हुआ है।राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड ने विदेशी बाजारों तक सहकारी उत्पादों की पहुंच को सुगम बनाया तो राष्ट्रीय सहकारी जैविक लिमिटेड ने जैविक प्रमाणीकरण और बाजार का मंच तैयार किया।भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड ने उन्नत बीजों की सुलभता सुनिश्चित की है। वित्तीय सहायता, कर राहत और इथेनाल मिश्रण कार्यक्रम से सहकारी चीनी मिलें समृद्ध हो रही हैं। सहकारी बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के लिए सहकारी संस्थाओं के पैसे को सहकारी बैंकों में ही जमा करने पर बल दिया गया है।राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के जरिये सहकारी समितियों को पारदर्शी बनाने और प्रक्रिया को आसान बनाने से देश के सहकारी रूप से कम विकसित क्षेत्रों में सहकारी समितियों की पहुंच बनी है। इसके अतिरिक्त सरकार एक समग्र और व्यापक नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति पर भी काम कर रही है।
आईसीए महासभा एवं वैश्विक सम्मेलन का मंच भारत के सहकारी आंदोलन द्वारा वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने, आर्थिक सशक्तीकरण, लैंगिक समानता सुनिश्चित करने और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्राप्ति हेतु भारत के अभूतपूर्व प्रयासों को रेखांकित करेगा। सम्मेलन का मुख्य एजेंडा ऐसे तंत्र का निर्माण है, जो सहकारी समितियों को उभरती चुनौतियों का सामना करने और अवसरों के उपयोग के लिए सशक्त बनाए।इस ऐतिहासिक आयोजन की मेजबानी के अवसर पर मैं विश्व के सहकारी नेताओं, नीति निर्माताओं और मानव विकास के पक्षधरों का आह्वान करता हूं कि हम सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए सीखने, साझा करने और सहकार की भावना के साथ एकजुट हों। ‘सहकार से समृद्धि’ को लेकर भारत की प्रतिबद्धता सामूहिक समृद्धि-साझा प्रगति जैसे मूल्यों पर आधारित उज्ज्वल भविष्य का संकल्प है।
Date: 25-11-24
महंगाई और विकास में संतुलन आवश्यक
डॉ. जयंतीलाल भंडारी, ( लेखक अर्थशास्त्री हैं )
वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत में महंगाई और विकास के बीच संतुलन बनाए रखने की सराहना की है। उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि महंगाई में कम अवधि की तेजी के बावजूद आने वाले महीनों में महंगाई दर रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित दायरे में आ जाएगी, क्योंकि ज्यादा कृषि बोआई और पर्याप्त अनाज भंडार के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी आएगी।चूंकि भू राजनीतिक तनावों और मौसम की स्थिति खराब होने पर महंगाई दर बढ़ने का अभी जोखिम भी बना हुआ है, इसी कारण नीतिगत ब्याज दरों में ढील को लेकर रिजर्व बैंक सावधानी बरत रहा है। रिपोर्ट की मानें तो भारत में महंगाई के बीच भी इसकी अर्थव्यवस्था अच्छे दौर में है।मूडीज ने चालू वर्ष वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की विकास दर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। इसी तरह वैश्विक साख निर्धारित करने वाली एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में खाद्य पदार्थों की बढ़ती हुई कीमतों से महंगाई बढ़ी है, लेकिन जिस तरह भारत में आपूर्ति क्षमता तेजी से बढ़ रही है, उससे आने वाले दिनों में महंगाई के दबाव को कम करने में मदद मिलेगी।मूडीज और एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स की रिपोर्ट ऐसे समय प्रस्तुत हुई हैं, जब एक ओर देश के उद्योग और कारोबार से जुड़े संगठनों द्वारा तेज विकास के लिए नीतिगत ब्याज दरें घटाने की जरूरत बताई जा रही है, वहीं दूसरी ओर देश के उपभोक्ता वर्ग द्वारा महंगाई के नियंत्रण के लिए और कठोर कदम उठाने की जरूरत बताई जा रही है। इस परिप्रेक्ष्य में यह भी उल्लेखनीय है कि हाल में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने एक टीवी चैनल पर कार्यक्रम में कहा कि देश में आरबीआई द्वारा अर्थव्यवस्था और विकास को बढ़ावा देने के लिए ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए।ब्याज दर घटाने या बढ़ाने का फैसला खाद्य महंगाई के हिसाब से लेने का सिद्धांत सही नहीं है।’ वहीं आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि ‘वैश्विक चुनौतियों के बावजूद उपयुक्त मौद्रिक नीति से महंगाई नियंत्रण के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था सुचारु तरीके से आगे बढ़ रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अभी बांड प्रतिफल में वृद्धि, खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव और बढ़ते भू राजनीतिक जोखिम जैसी कई तरह की बाधाएं हैं।’
इसमें दो मत नहीं है कि इस समय देश में खाद्य पदार्थों की तेजी से बढ़ती महंगाई के नियंत्रण और विकास की जरूरतों के बीच उपयुक्त तालमेल जरूरी है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों के अनुसार बीते अक्टूबर में देश में थोक महंगाई दर बढ़कर 2.36 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो गत चार महीने का उच्चतम स्तर है। सितंबर में यह आंकड़ा 1.84 प्रतिशत था। अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर भी बढ़कर 6.21 प्रतिशत हो गई, जो गत 14 महीने का उच्चतम स्तर है।
सितंबर में यह आंकड़ा 5.49 प्रतिशत था। आलू तथा प्याज सहित सभी प्रकार की सब्जियों की कीमतों में तेज वृद्धि तथा महंगे हुए अनाज एवं फलों के कारण अक्टूबर में खाद्य वस्तुओं की खुदरा महंगाई दर भी बढ़कर 10.87 प्रतिशत हो गई। जबकि सितंबर में यह 9.24 प्रतिशत तथा अगस्त में 5.66 प्रतिशत थी। जिन राज्यों में महंगाई सबसे ज्यादा बढ़ी है, उनमें छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश प्रमुख हैं।यह बात महत्वपूर्ण है कि ब्याज दरों की यथास्थिति के साथ आरबीआई और अच्छे मानसून एवं स्थिर आपूर्ति शृंखला के जरिये सरकार महंगाई नियंत्रण का प्रयास कर रही है। इसी कारण आरबीआई मौद्रिक नीति समीक्षा बैठकों में तेज विकास दर के बजाय महंगाई नियंत्रण को प्राथमिकता दे रहा है। उसने लंबे समय से रेपो रेट 6.50 प्रतिशत और बैंक रेट 6.75 प्रतिशत पर स्थिर रखा है।मानसून के अच्छे रहने से इस वर्ष देश में खाद्यान्न, दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ेगा और इनकी आपूर्ति बढ़ने से इनकी कीमतें भी कम होंगी। इसके साथ सरकार खाद्य महंगाई के नियंत्रण के लिए चालू वित्त वर्ष के बजट के तहत की गई व्यवस्थाओं का भी तेजी से क्रियान्वयन कर रही है। जैसे कि दाम स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के लिए 10,000 करोड़ रुपये के प्रविधान किए गए हैं।इस कोष का उपयोग दाल, प्याज और आलू के बफर स्टाक को रखने के लिए किया जा रहा है। इस समय सरकार खाद, उर्वरक और बीजों की सरल आपूर्ति सुनिश्चित करने की डगर पर भी तेजी से आगे बढ़ रही है। इस प्रकार मौद्रिक प्रबंधन और खाद्यान्न निर्यात नीति एवं स्टाक सीमा निर्धारण आदि उपाय बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण कर सकेंगे।
खाद्य पदार्थों की महंगाई रोकने के लिए सरकार को इन तात्कालिक उपायों के साथ दीर्घकालीन उपायों पर भी ध्यान देना होगा। इस समय ग्रामीण भारत में जल्द खराब होने वाले ऐसे कृषि उत्पादों की आपूर्ति शृंखला बेहतर करने पर प्राथमिकता से काम करना होगा, जिनकी खाद्य महंगाई के उतार-चढ़ाव में ज्यादा भूमिका होती है।ऐसे में सरकार को खाद्य उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ कृषि उपज की बर्बादी को रोकने के बहुआयामी प्रयासों के तहत खाद्य भंडारण की कारगर व्यवस्था की डगर पर बढ़ना होगा। उम्मीद करें कि खुदरा महंगाई और थोक महंगाई दर के बढ़ने की चिंताओं के मद्देनजर सरकार और रिजर्व बैंक विभिन्न रणनीतिक प्रयासों से देश में महंगाई को नियंत्रित करने और विकास को गति देने के लिए नई संतुलित रणनीति के साथ आगे बढ़ेंगे। इससे रिजर्व बैंक के लक्ष्य के मुताबिक खुदरा महंगाई दर चालू वित्त वर्ष में 4.5 प्रतिशत तथा आगामी वित्त वर्ष 2025-26 में चार प्रतिशत के दायरे में दिखाई दे सकेगी।
Date: 25-11-24
महंगी कीमत
संपादकीय
अदाणी समूह एक बार फिर मुश्किल में है। इस बार एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर समूह हिंडनबर्ग रिसर्च की तुलना में कहीं अधिक विश्वसनीय स्रोत की ओर से समूह के खिलाफ आरोप लगाया गया है। गत वर्ष हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट के कारण बाजार में भूचाल आ गया था। वह रिपोर्ट अदाणी समूह की वित्तीय स्थिति से संबंधित थी। इस बार ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट ऑफ न्यूयॉर्क के फेडरल प्रॉसिक्यूटर समूह के चेयरमैन गौतम अदाणी, उनके भतीजे तथा कुछ अन्य अधिकारियों पर आरोप लगाया है कि उन्होंने अनुबंध हासिल करने के लिए भारत सरकार के अधिकारियों को रिश्वत दी । फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन द्वारा की जा रही जांच में अगर आरोप साबित होते हैं तो यह अमेरिकी कानूनों का उल्लंघन होगा क्योंकि अन्य देशों में रिश्वत देने को भी अमेरिकी निवेशकों के साथ धोखाधड़ी माना जाता है। आरोपों में यह बात भी शामिल है कि जांच एजेंसियों को भ्रमित किया गया और इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणों को मिटाया गया। अमेरिकी बाजार नियामक सिक्युरिटीज ऐंड एक्सचेंज कमीशन ने भी एक समांतर मामला दर्ज किया है। अदाणी समूह ने आरोपों से इनकार किया है। बहरहाल, यह खबर आते ही समूह की कंपनियों को दो लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ, हालांकि अगले दिन उन्होंने कुछ हद तक वापसी कर ली।’
संभव है कि समूह को अदालतों में जीत भी हासिल हो जाए। यकीनन यह एक खुला प्रश्न है कि क्या जनवरी में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभाल लेने तथा न्याय विभाग में कई पदों पर नियुक्तियां बदलने के बाद भी इस मामले में अभियोजन जारी रहेगा। इसके बावजूद जब तक यह प्रक्रिया चलेगी अदाणी समूह तथा उसकी कंपनियों को इसकी कीमत चुकानी होगी। समूह को पहले ही 60 करोड़ डॉलर की बॉन्ड बिक्री को निरस्त करना पड़ा है। समूह के कई उपक्रम शायद अब नजर ही नहीं आएं। नैरोबी के जोमो केन्याटा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को नए सिरे से विकसित करने और उसे तीन दशक तक चलाने की 1.85 अरब डॉलर की उसकी योजना केन्या में काफी समय से विरोध प्रदर्शन का विषय रही है। अब अमेरिका से यह मामला सामने आने के बाद इस सौदे को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया है। केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो ने राष्ट्र प्रमुख के रूप में केन्या की संसद को संबोधित करते हुए यह घोषणा की, ‘हमारी जांच एजेंसियों और साझेदार देशों से हासिल नई सूचनाओं के कारण हम इस साझेदारी को समाप्त कर रहे हैं। रुटोबिजली की लाइनों के उन्नयन के 73.6 करोड़ डॉलर के सौदे को भी समाप्त कर दिया, हालांकि इस सौदे को एक स्थानीय अदालत पहले ही निलंबित कर चुकी थी । समूह के व्यापक हितों को देखते हुए आने वाले दिनों में ऐसी और घटनाएं देखने को मिल सकती हैं।
एक ऐसे समूह के लिए जो ऐसे क्षेत्रों में काम करता है जहां पैसे जुटाने और राजनीतिक जोखिम कम करने की क्षमता अहम है, ऐसी खबर को आसानी से भुलाया नहीं जा सकता है। समूह को अपने नाम को पाक-साफ करने और मौजूदा तथा मुनाफे में चल रहे उपक्रमों को इसके नकारात्मक असर से बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। उसे अदालती प्रक्रियाओं के साथ भी पारदर्शी ढंग से सहयोग करना होगा। यह भारत के राष्ट्रीय हित का भी मामला है।
प्रतिष्ठा को पहुंची यह क्षति किसी एक समूह तक सीमित नहीं है। वेदांत रिसोर्स ने भी बाजार में अस्थिरता को देखते हुए डॉलर बॉन्ड बिक्री की योजना को फिलहाल स्थगित कर दिया है। भारतीय अधिकारियों को यह समझने की जरूरत है कि उनका अमेरिकी समकक्षों के साथ सूचनाओं को समय से साझा करना जरूरी है। ऐसा करके ही भारतीय व्यवस्था में विश्वास बहाल किया जा सकेगा और कंपनियों की दुनिया भर में धन जुटाने की क्षमता बरकरार रहेगी। इस संदर्भ में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड और भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समूह की कंपनियों के प्रकटीकरण में कोई अंतराल नहीं हो। केंद्र सरकार और संबंधित राज्यों की जांच एजेंसियों को भी मामले की जांच करनी चाहिए क्योंकि कथित रूप से रिश्वत देने की घटना भारत में हुई है। जांचों के नतीजों से इतर, यह घटना राष्ट्रीय स्तर के अग्रणी समूहों को बढ़ावा देने के जोखिम को भी रेखांकित करती है। एक समूह की समस्या भारत की समृद्धि की व्यापक कहानी को प्रभावित कर सकती है।
Date: 25-11-24
भारत और उसके बाहर अदाणी का मूल्यांकन
शेखर गुप्ता
तकरीबन दो साल में अदाणी समूह ने तीन बार बड़ी अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी हैं: पहली बार उसके कर्ज को लेकर दूसरी बार हिंडनबर्ग द्वारा बाजार से छेड़छाड़ और धोखाधड़ी के आरोपों को लेकर और अब अमेरिकी न्याय विभाग, फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन और सिक्युरिटीज ऐंड एक्सचेंज कमीशन द्वारा अभियोग लगाए जाने के बाद। इस बीच कुछ छोटे मोटे अवसर भी आए, मसलन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जांच और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच के खिलाफ हितों के टकराव के मामले की जांच।
इन तमाम बातों ने देश के सबसे तेजी से बढ़ते कारोबारी समूह के लिए माहौल खराब कर दिया। परंतु न तो इसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की आशंका उत्पन्न हुई और न ही उसके प्रमुख अधिकारियों को जेल भेजा गया। उसकी वैश्विक आकांक्षाओं को भी कोई खास क्षति नहीं पहुंची। परंतु ताजा घटनाक्रम के बाद ये तीनों हो सकते हैं।
अमेरिका ने गौतम अदाणी, उनके भतीजे सागर अदाणी और अन्य लोगों के खिलाफ वारंट जारी किया है। अदाणी ग्रीन एनर्जी ने अपना 60 करोड़ डॉलर (करीब 5,064 करोड़ रुपये) का अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड इश्यू निरस्त कर दिया है और केन्या अदाणी समूह के साथ करीब 3 अरब डॉलर मूल्य के संयुक्त उपक्रम से हाथ खींच लिए हैं। यह अदाणी समूह के लिए एक बड़ा अवसर था और इस बात ने उसे ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड की विशाल
कार्माइकल कोयला खदान के बाद के दूसरे सबसे बड़े वैश्विक उपक्रम से वंचित कर दिया है।
इससे पहले के झटकों से निपटने में समूह ने जबरदस्त मजबूती का प्रदर्शन किया। जाहिर है ‘व्यवस्था’ भी उसके साथ थी। हिंडनबर्ग के हमले के बाद समूह 20,000 करोड़ रुपये जुटाने के लिए फॉलोऑन सार्वजनिक पेशकश (एफपीओ) से पीछे हट गया। बाजार में उसके शेयर औंधे मुंह गिर गए। उस समय हमने माना था कि यह उभरते भारतीय पूंजीवाद का एक दौर है। यही वजह है कि हमने कहा था कि बाजार जीत गया और यह अदाणी पर था कि वह हारेंगे या नहीं।
अब हम फिर वहीं आ गए हैं। इस बार इल्जाम कहीं अधिक गंभीर हैं। खासतौर पर इसलिए कि ये किसी शॉर्ट सेलर या व्हिसलब्लोअर जैसे बाजार में रुचि रखने वाले की तरफ से नहीं आ रहे हैं। अधिकार क्षेत्र पर बहस की जा सकती है। यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण भी है। परंतु तथ्य यह है कि ये आरोप एक संप्रभु सरकार की ओर से लगे हैं। यह दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क की सरकार है और वैश्विक वित्तीय बाजार पर प्रभावी है। ऐसे में नुकसान की जल्दी भरपाई होती नहीं नजर आती । षडयंत्र सिद्धांतों पर यकीन करने वालों के अनुसार बाइडन प्रशासन ट्रंप के पद संभालने के दो माह पहले हालात बिगाड़ना चाहता है लेकिन इससे यह तथ्य नहीं बदलेगा कि मामला अब अदालत में है। हमारी व्यवस्था में तो एक बार मामला अदालत में जाने और आरोपपत्र दाखिल होने के बाद प्रक्रिया अपने आप में सजा में बदल जाती है। अब अदाणी समूह के सामने यही जोखिम है। उम्मीद है कि ट्रंप के आने के बाद यह सब बदल जाएगा।
परंतु समझदारी कहती है कि उम्मीद योजना नहीं होती है। चाहे जो भी हो, अगर ट्रंप के पास ऐसी शक्तियां और इरादा होता भी तो यह उनकी पहली प्राथमिकता नहीं होती। सबसे पहले वह अपने खिलाफ मामलों का कुछ करना चाहेंगे।
आइए गहराई से देखते हैं कि आगे क्या हालात बन सकते हैं? पहली बात, अदाणी परिवार से कोई गिरफ्तार नहीं होने जा रहा है, बशर्ते कि उनमें से कोई अजीबोगरीब क्षेत्र में न फंस जाए। भले ही अमेरिका कितना भी दबाव बनाए या राहुल गांधी कुछ भी मांग करें। इसके पीछे कई ठोस वजह हैं:
■ पहली बात तो यह कि अमेरिकी वारंट भारत में बाध्यकारी नहीं है। भारत और अमेरिका के बीच ऐसे रिश्ते नहीं हैं कि जैसे चेक गणराज्य के साथ हैं और जिसने तत्काल निखिल गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया था। वह साझा सौदेबाजी है। अगर ऐसा होता तो गुरपतवंत सिंह पन्नू बहुत पहले गिरफ्तार हो गया होता। कोई भारतीय सरकार भले ही वह कांग्रेस की सरकार हो अमेरिकी वारंट की तामील नहीं करा सकती। ऐसी स्थिति में अमेरिका भी यही करेगा। वॉरेन एंडरसन को याद कीजिए। भोपाल गैस कांड में जहां नरसंहार की तरह लोग मारे गए थे, यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन बॉस वॉरेन एंडरसन पर आरोप लगाया गया था और वह भारत में वांछित थे। उस अपराध को किसी देश के बाजार से छेड़छाड़ की तुलना में तो बड़ा ही माना जा सकता है। एंडरसन 92 वर्ष की अवस्था में निधन होने तक अमेरिका में रहते रहे। इस बीच उन्होंने कंपनी भी डाऊ केमिकल्स को बेच दी और अपनी हिस्सेदारी निकाल ली। उन्होंने कार्बाइड और डाऊ दोनों को बचाने के लिए एक कारोबारी आड़ भी तैयार की।
■ अगर देश में कांग्रेस की सरकार होती और राहुल गांधी प्रधानमंत्री होते तब भी केवल अमेरिका के आरोपों के आधार पर गिरफ्तारी नहीं की जा सकती थी। हमें अपने देश में आरोपों की जरूरत पड़ती। वे आरोप क्या हो सकते हैं? अमेरिका के आरोपों के बाद सेबी के लिए पहल करने का रास्ता खुल गया है, वह प्रतिबंध भी लगा सकता है और जब्ती की कार्रवाई भी कर सकता है। हालांकि गिरफ्तारी के लिए आपराधिक मामले की जरूरत होगी। भारत में अमेरिकन फॉरेन करप्ट प्रैक्टिस ऐक्ट जैसा प्रावधान नहीं है। ट्रंप उसे अमेरिका के कारोबारी हितों के खिलाफ मानते हैं। भारत में गंभीर अपराध तब होगा जब किसी सरकारी अधिकारी या सार्वजनिक व्यक्ति को रिश्वत देने का कोई प्रमाण सामने आए। तब प्रिवेंशन ऑफ करप्शन ऐक्ट लागू होगा।
अब तक अमेरिका ऐसा कोई प्रमाण नहीं दे सका है। अगर वह भविष्य में ऐसा करता है तो हालात नाटकीय रूप से बदल जाएंगे। भले ही सबसे पहले निशाने पर आने वाले व्यक्ति राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग के सहयोगी वाई एस जगन मोहन रेड्डी ही क्यों न हों। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की चुप्पी से इनअजीबोगरीब हालात को समझा जा सकता है। क्या वह अपने घोषित शत्रु के पीछे पड़कर भारतीय जनता पार्टी को शर्मिंदा करेंगे जो राजग में सबसे बड़ी पार्टी है । पैसे दिए जाने का सुराग मिलते ही हालात बदल जाएंगे। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि अमेरिका ने अब तक जेल की सजा की मांग नहीं की है लेकिन पूरक आरोप पत्र भी सामने आ सकते हैं।
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■ तब क्या होने की संभावना है? संभव कि सेबी नई जांचों का सिलसिला शुरू करे जो इन चल रही जांचों का नियामक के समक्ष खुलासा नहीं करने से संबंधित हों। दूसरा, इस बात की संभावना नहीं है। कि समूह विदेश में रणनीतिक परिसंपत्तियों की अधिग्रहण जारी रखेगा। तीसरा, भारत में उसकी परिसंपत्ति खरीद पर भी रोक लगेगी।
■ आखिर में, महाराष्ट्र और झारखंड चुनावों के नतीजों से इतर संसद में इसे लेकर काफी शोरगुल होगा। दूसरी बात, सऊदी शैली के अपवाद को छोड़कर अन्य तरह से किसी विदेशी पूंजी तक अदाणी की पहुंच असंभव हो जाएगी। चीन ने हाल ही में दो अरब डॉलर का सॉवरिन बॉन्ड जारी करके दुनिया को दिखा दिया है कि अमेरिका को कैसे अलग-थलग रखा जा सकता है।
अंतिम और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बाजार की ओर से दंड जारी रहेगा। पहले ही दिन समूह के बाजार पूंजीकरण में 2.6 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। अगले दिन जहां शुरुआती कारोबार में अदाणी के शेयरों में सुधार नजर आया, वहीं अंत में ज्यादातर शेयर गिरावट पर बंद हुए और दूसरे दिन भी समूह 35,000 करोड़ रुपये के नुकसान में रहा। यह बात हमें दोबारा फरवरी 2023 में वापस ले जाती है जब मैंने लिखा था कि बाजार चाहे जितना भटक जाए, अंतिम तौर पर वही प्रधान है। अदालतें, पुलिस, एजेंसियां – सभी पर हमारी नजर होगी। इस बीच हम सबसे बड़ी दलील को इस प्रकार रख सकते हैं: आप चाहे जितने बड़े हों, बाजार सबसे ऊपर है।
Date: 25-11-24
जरूरी चेतावनी
संपादकीय
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में विकासशील देशों की मदद के लिए जरूरी खरबों डॉलर की राशि पर कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ जबकि इसमें विकसित देशों को प्रति वर्ष 1.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की मदद का लक्ष्य तय करना था जिसमें से छह सौ अरब अमेरिकी डॉलर विकसित देशों के सरकारी कोष से मिलना चाहिए। इससे विकासशील देश आक्रोशित हैं। क्योंकि जलवायु संकट की मार झेलने के मामले में अग्रिम पंक्ति में खड़े विश्व के सबसे गरीब व कमजोर देशों के अस्तित्व का सवाल खड़ा हो गया है।
ग्लोबल साउथ का संदर्भ आर्थिक तौर पर कमजोर देशों के लिए है। इस पर भारत का कहना है कि वित्त, प्रौद्योगिकी व क्षमता निर्माण में पर्याप्त सहयोग के बिना जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई गंभीर रूप से प्रभावित होगी। अब जलवायु परिवर्तन दुनिया भर के मानव जीवन के हर पहलू के लिए भीषण खतरा बनता जा रहा है। आने वाले समय में तापमान इतना बढ़ने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं कि मानव जीवन पर संकट आ सकता है। भयावह सूखा, समुद्री जल स्तर बढ़ने तथा प्राकृतिक आपदाओं के कारण विभिन्न प्रजातियां विलुप्त हो जाने की आशंकाएं हैं। जलवायु परिवर्तन के लिए हमारा रहन-सहन दोषी है। तेल, गैस व कोयले के इस्तेमाल से जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जीवाश्म के जलने से ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न होती हैं जिनमें काबर्न डाइ ऑक्साइड की मात्रा अत्यधिक होती है। इनकी सघन मौजूदगी के कारण सूरज का पर्याप्त ताप धरती तक पहुंचने में व्यवधान होता है। अंदेशा है कि सदी के अंत तक साढ़े पांच सौ प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं। यदि सब मिल-जुल कर इस खतरनाक स्थिति से नहीं जूझेंगे तो जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभाव से बचाव नामुमकिन हो जाएगा। वास्तव में समृद्ध देश ही सबसे ज्यादा उत्सर्जन कर रहे हैं। वे गरीब देशों को घुड़की देते हैं। मगर जब मदद की बात आती है तो पांव खींच लेते हैं। यह विश्व युद्ध सरीखी विकराल समस्या है। आरोपों-प्रत्यारोपों की बजाय विकसित देशों को अपनी जिम्मेदारी निभाने में कोताही नहीं करनी चाहिए। विश्व की तमाम अन्य संस्थाओं को उन पर जोर डालने से हिचकना नहीं चाहिए। सवाल सिर्फ आर्थिक सहयोग का नहीं रहा अब उन्हें आगे बढ़कर मानवजनित दिक्कतों व तमाम प्रजातियों के बचाव के प्रति समय रहते गंभीर होना होगा।
शब्दों की दुनिया
संपादकीय
साल 2024 अब समापन की ओर बढ़ चला है और उसके साथ ही वार्षिक समीक्षाओं का दौर भी शुरू हो गया है। इसी कड़ी में कैम्ब्रिज डिक्शनरी ने ‘मेनिफेस्ट’ को ‘वर्ड ऑफ द ईयर’ या वर्ष का शब्द करार दिया है। लैटिन और फ्रेंच से उधार लेते हुए बने इस शब्द का पहले अर्थ था- आसानी से देखा जाने वाला या स्पष्ट, पर इसका अब अर्थ बदलकर हो गया है – कल्पना करना कि आप क्या घटित होने देना चाहते हैं। मेनिफेस्ट शब्द को वर्ष का शब्द इसलिए चुना गया है, क्योंकि साल 2024 में इस शब्द को कैम्ब्रिज डिक्शनरी पर सर्वाधिक 1,30,000 बार खोजा गया है। मेनिफेस्ट शब्द की यात्रा गौर करने लायक है, इससे पता चलता है कि भाषा या शब्दों की दुनिया में समय के साथ बदलाव की प्रक्रिया चलती रहती है। वैसे तो ज्यादातर शब्दों का अर्थ वही है, जो हजार साल पहले था, पर कुछ शब्द ऐसे हैं, जिनके अर्थ में बदलाव या विस्तार हुआ है। मेनिफेस्ट शब्द की ही चर्चा करें, तो इसका उल्लेख 600 साल पहले भी उपलब्ध था। एक रोचक तथ्य यह भी है कि 200 साल पहले इस शब्द का उपयोग अमेरिकी राजनीति में ‘प्रकट नियति’ के संदर्भ में किया गया था। मेनिफेस्ट से ही जुड़ा शब्द मेनिफेस्टो है, जिसका अर्थ है- घोषणापत्र । घोषणापत्र शब्द का इस्तेमाल ज्यादातर देशों की सियासी पार्टियां करती हैं। खैर, शब्दों की दुनिया अद्भुत है और अंग्रेजी की लगभग एकरूपता की वजह से कुछ अंग्रेजी शब्दकोश काफी लोकप्रिय हैं। कैम्ब्रिज डिक्शनरी अंग्रेजी भाषा सीखने वालों के लिए दुनिया की सबसे लोकप्रिय डिक्शनरी है। उसे पढ़ने और देखने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वैसे तो दुनिया शब्दों के मामले में पहले की तुलना में लापरवाह हुई है, पर शब्दों की शुद्धता की चिंता कमोबेश हर देश- समाज में पाई जाती है। इस साल कुछ नए शब्दों को भी डिक्शनरी में शामिल किया गया है। जैसे ‘ब्राट’ शब्द एक ऐसा बच्चा, जो खराब व्यवहार करता है। डेम्यूर – शांत और व्यवहार कुशल । इसी तरह एक शब्द है – गोल्डिलॉक्स – परिस्थिति विशेष के एकदम अनुकूल। एक नया उपयोगी शब्द डिक्शनरी में शामिल हुआ है इकोटेरियन ऐसा व्यक्ति जो सिर्फ वही चीज खाता है, जिससे पर्यावरण को कोई क्षति नहीं पहुंचती। कैम्ब्रिज की डिक्शनरी की तरह ही ऑक्सफोर्ड की डिक्शनरी भी काफी लोकप्रिय है और हिंदी शब्दों के संदर्भ में अगर देखें, तो ऑक्सफोर्ड की डिक्शनरी में हिंदी के शब्द ज्यादा सहजता से शामिल पाए जाते हैं। इधर, हिंदी का कोई नया शब्द अंग्रेजी डिक्शनरी में शामिल नहीं हुआ है। यह बात गौर करने की है कि इस साल अंग्रेजी के शब्दों का हिंदी में ज्यादा इस्तेमाल हुआ है। इस्तेमाल और समावेश में अंतर है। आमतौर पर हिंदी साहित्यकार जब अंग्रेजी का कोई शब्द लेते हैं, तो उसे अंग्रेजी ही मानते हैं और शायद बोलचाल या विद्वता के दबाव में हिंदी वाक्य में अंग्रेजी शब्द जस के तस रख दिए जाते हैं। किसी हिंदी शब्दकोश की कोई ऐसी स्थापित परंपरा नहीं है, जहां अंग्रेजी के शब्दों को हिंदी का बना लिया जाए। दूसरी ओर, अंग्रेजी डिक्शनरी में हिंदी शब्दों का समावेश सहज ही होता रहा है। अनेक शब्द हैं, जो अब अंग्रेजी में शामिल हैं- जंगल, ठग, दादागिरी, जुगाड़, दोस्ताना, बिंदास, शरारत, सब, जांबाज, सफर, दीदी, चमचा, चक्का जाम इत्यादि । शब्दों की दुनिया में एक भाषा से दूसरी में विकास और परस्पर आवाजाही सदैव स्वागतयोग्य है।