24-07-2024 (Important News Clippings)

Afeias
24 Jul 2024
A+ A-

To Download Click Here.


Date: 24-07-24

A message of fiscal stability, growth continuity

Yuvika Singhal, [ Co-Head, Research, QuantEco Research ]

The FY25 Union Budget has sent out a strong message under the new administration — there remains an unequivocal focus on stability (fiscal) and continuity (of sustainable growth impulses) amidst a new chiselled focus on providing growth a more inclusive character in India.

Focus on ‘weaker building blocks’

The 8.2% GDP growth in FY24, while commendable, was driven by an uneven K-shaped segmentation. The premiumisation of consumption, as seen in the robust demand for luxury cars, houses and goods, coincided with stagnant wages, low fast-moving consumer goods sales and (food) inflation continuing to vociferously bite those at the bottom end of the income pyramid. The fiscal deficit, at 5.6% of GDP in FY24, still high compared to pre-COVID-19 pandemic levels, provided the needed growth impetus via capital spending at a time when the private capex cycle remained much on the sidelines. Against this background, the FY25 Budget, through a panoply of measures, has addressed the weaker building blocks, viz. to improve the quality of employment, fortify agriculture and bring in the micro, small and medium enterprises (MSMEs) into a meaningful roleplay in India’s manufacturing renaissance. This will pave the path to establish a Viksit Bharat by 2047.

From an agriculture perspective — currently a key priority — promotion of Atmanirbharta in pulses and oilseeds, a focus on agriculture research (bearing in mind the realities of climate change), large-scale clusters for vegetable production, and Digital Public Infrastructure (DPI) in agriculture for coverage of farmers and their lands, are all likely to support the Annadata (i.e., farmer). A thriving agriculture sector will allow the government to deliver on its promise of foodgrains under the Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana (PMGKAY), now extended for five years.

On employment generation

The Budget entailed an energised focus on employment generation, for the youth especially, within the ambit of the formal workforce. A new scheme offering incentives to employers as well as employees who join the workforce for the first time, was announced at an outlay of ₹10,000 crore through the Ministry of Labour. Other fresh schemes incentivising internships with an outlay of ₹2,000 crore, and for skilling youth in collaboration with State governments and industry were envisaged. This somewhat resonates with the tripartite compact (between Centre, States, private sector) that the Economic Survey had recommended on the eve of the FY25 Union Budget to deliver on the rising aspirations of Indian youth.

Outlay towards housing saw a massive jump in the FY25 Budget. For urban Pradhan Mantri Awas Yojana (PMAY), the government allocated 37% more funds in FY25 versus FY24, which though impressive, pales into some degree of insignificance when compared to the 70% jump budgeted for the rural counterpart of the scheme. Housing for all remains a key hallmark of the government, which now embarks on its version 2.0.

The PLI Scheme too got a handsome raise of 75% in the FY25 Budget, driven by higher allocation to the auto sector. This was accompanied by tweaks to sectoral custom duties in a bid to support domestic manufacturing and deepen local value addition. Financing constraints, typically faced by MSMEs, were addressed via promise to facilitate term loans to MSMEs for purchase of machinery and equipment without collateral. To facilitate improved and undisrupted lending, banks will now be allowed to develop in-house credit assessment and a facilitation backed by the government to continue to extend credit to MSMEs even during stress times.

Most of these measures will dovetail handsomely with the macro focus of pushing a job-led growth in the medium term. Commendably, the government has succeeded in maintaining the fiscal discipline whilst extending a wide gamut of measures to stimulate the economy.

Looking ahead

Compared to the interim Budget’s fiscal deficit estimate of 5.1% of GDP, the government pruned the FY25 headline deficit target to 4.9%. It kept the intended 70 Basis points consolidation over FY24 intact, as in the interim Budget. This allows for a smoother transition to 4.6% fiscal deficit to GDP in FY26.

The display of intent to continue to consolidate its fiscal position well beyond FY26, preserves the trust that this government has earned from economy watchers in the last few years, despite facing the pressure of new demands by regional partners.

While the capex target was left unchanged at ₹11.1 trillion, the gains from the Reserve Bank of India’s transfer of a record high dividend of ₹2.1 trillion earlier this year were divided between higher welfare spends and a reduction in fiscal deficit.

All this will serve India well, at a time when domestic bonds have embarked on a maiden journey of getting included in global bond indices. In the face of greater scrutiny of India’s fiscal metrics by international agencies, now more than ever, an adherence to fiscal discipline prepares the groundwork for the possibility of a sovereign rating upgrade in the future.


Date: 24-07-24

विकसित भारत का लक्ष्य

संपादकीय

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यही प्रकट किया कि विकसित भारत का लक्ष्य उनकी निगाह में है। इसी कारण आम बजट अंतरिम बजट की कड़ी दिख रहा है। इस बजट से यह साफ है कि कृषि उत्थान के साथ-साथ रोजगार के अधिकाधिक अवसर पैदा करना मोदी सरकार की प्राथमिकता है।

इन दोनों क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना आवश्यक था, क्योंकि किसानों की आय बढ़ाने के साथ रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करने के वादे सरकार के लिए परेशानी का कारण बने हुए थे। बजट में किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये के प्रविधान किए गए हैं।

बजट का जोर कृषि के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, कृषि में तकनीक को बढ़ावा देने और किसानों का रुझान प्राकृतिक खेती की ओर करने पर है, लेकिन कृषि और किसानों की दशा सुधारने के लिए जो उपाय किए जाने हैं, उन्हें वांछित सफलता तब मिलेगी, जब राज्य सरकारें कृषि संबंधी केंद्रीय योजनाओं को सहयोग देने के साथ किसानों की दशा सुधारने के लिए अपने हिस्से की भी जिम्मेदारी का निर्वाह करेंगी।

राज्य सरकारों का यह रवैया समस्याजनक है कि कृषि क्षेत्र का उत्थान तो केवल केंद्र की जिम्मेदारी है। बजट में रोजगार के सवाल का समाधान करने के लिए जो कई उपाय किए गए हैं, वे युवाओं को उत्साहित करने वाले तो हैं, लेकिन देखना यह होगा कि इस सिलसिले में सरकार ने जिन तीन नई योजनाओं की घोषणा की है, वे रोजगार के कितने मौके उपलब्ध करा सकेंगी?

युवाओं के लिए यह घोषणा खासी आकर्षक है कि सरकार पांच सौ बड़ी कंपनियों में एक करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप कराएगी और उन्हें पांच हजार रुपये महीना देगी। अच्छा हो कि इस दायरे में अन्य कंपनियां भी लाई जाएं, ताकि अधिकाधिक युवाओं का कौशल विकास हो सके।

यह महत्वपूर्ण है कि लोकसभा चुनावों में अपेक्षित परिणाम न मिलने के बाद भी सरकार ने खुद को लोकलुभावन योजनाओं से दूर रखा और देश को विकसित बनाने में सहायक बनने वाली योजनाओं पर अपना ध्यान केंद्रित रखा और ऐसा करते समय वित्तीय अनुशासन को प्राथमिकता दी।

यह सरकार के आत्मविश्वास का परिचायक तो है, लेकिन इसके बाद भी इस बजट में देश की सूरत बदलने वाले क्रांतिकारी उपायों का अभाव दिखता है। ले-देकर आयकर कानून की समीक्षा का वादा किया गया है। आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि शहरीकरण की तेज रफ्तार के चलते अगले पांच-छह वर्षों में 40 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही होगी।

इसे देखते हुए शहरों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए था, क्योंकि शहर आर्थिक विकास के इंजन होते हैं। समस्या यह है कि शहरों के विकास के मामले में राज्य सरकारों का रवैया भी ढीलाढाला है। यह समझना होगा कि विकसित भारत का लक्ष्य केंद्र और राज्यों के सहयोग से ही हासिल किया जा सकता है।


Date: 24-07-24

वित्तीय अनुशासन पर कायम सरकार

धर्मकीर्ति जोशी, ( लेखक क्रिसिल में मुख्य अर्थशास्त्री हैं )

अपने तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में भी मोदी सरकार ने वित्तीय अनुशासन की राह पर चलने की अपनी परिपाटी को कायम रखा। अस्थिर एवं उथल-पुथल भरे वैश्विक एवं घरेलू माहौल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट के माध्यम से संतुलन साधने का प्रयास किया। किसी बड़ी रेवड़ी के एलान से परहेज करते हुए उन्होंने आवश्यक क्षेत्रों के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोलने से संकोच भी नहीं किया।

स्वस्थ राजस्व संग्रह के साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक से सरकार को जो अतिरिक्त लाभांश प्राप्त हुआ, उसका उपयोग भी बहुत विवेकसम्मत ढंग से किया गया। सरकार ने जहां इसका कुछ हिस्सा राजकोषीय घाटे को घटाने में किया तो वहीं शेष राशि को वहां खर्च किया, जहां इसकी सबसे अधिक आवश्यकता महसूस हो रही थी।

जैसे सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा देने, कौशल विकास एवं रोजगार सृजन, एमएसएमई सहित समग्र मैन्यूफैक्चरिंग को प्रोत्साहन, शहरी आवास की समस्या के समाधान और महंगाई को काबू करने से जुड़े उपाय तलाशने में अपने संसाधन लगाए। देखने में ये भले ही बड़े खर्चे लगें, लेकिन इनकी प्रकृति बहुत उत्पादक किस्म की होती है।

जैसे कौशल विकास से लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ते हैं तो उद्योगों को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप कर्मियों की आपूर्ति होती है। इसी प्रकार, शहरी आवास के निर्माण की योजना को देखें तो जहां उनके निर्माण से बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन की संभावनाएं बनेंगी, वहीं ऐसी परिसंपत्तियों का भी सृजन होगा जो दीर्घकाल में उद्योगों से लेकर कामगारों की आवासीय आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होंगी। इस प्रकार की गतिविधियों से आर्थिक गतिविधियों में लोगों की भागीदारी बढ़ती है, जिससे अंतत: आर्थिकी को ही गति मिलती है।

विभिन्न मदों में अपना खर्च बढ़ाने के बावजूद यदि सरकार राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.9 प्रतिशत तक लाने में सफल रही तो यह बहुत सराहनीय कहा जाएगा। यह अंतरिम बजट में घाटे के 5.1 प्रतिशत के अनुमान से भी बेहतर प्रदर्शन है। वित्त मंत्री ने आगामी वित्त वर्ष में न केवल घाटे के दायरे को और घटाकर 4.5 प्रतिशत पर लाने का एलान किया, बल्कि यह भी कहा कि सरकार चरणबद्ध रूप से अपनी उधारी का दायरा घटाएगी।

असल में सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ने का अर्थ बाहरी उधारी पर उसकी निर्भरता बढ़ना है। इससे जहां ब्याज अदायगी पर सरकारी राजस्व का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है, वहीं आर्थिक गतिविधियों के लिए वित्तीय तंत्र में संसाधनों की किल्लत भी पड़ जाती है। राजकोषीय घाटे का बेलगाम होना कई मोर्चों पर चिंता का सबब बन जाता है। यही कारण है कि इसे काबू करना सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल होता है और मोदी सरकार इस मोर्चे पर खरी उतरती आ रही है।

उत्पादक खर्चों में कोई कंजूसी न करते हुए सरकार ने पूंजीगत व्यय को बढ़ाए रखने का सिलसिला कायम रखा है। देश में पिछले कुछ समय से बुनियादी ढांचे के विकास ने तेज रफ्तार पकड़ी है। केंद्र सरकार इस मोर्चे पर राज्य सरकारों से लेकर निजी क्षेत्र को भी साधकर समन्वित प्रयासों पर जोर दे रही है। चूंकि बुनियादी ढांचे का प्रभाव कई स्तरों पर देखने को मिलता है, इसलिए इस पर जोर दिया जाना आवश्यक ही नहीं, अपितु अपरिहार्य हो जाता है।

बुनियादी ढांचे के विकास से निजी क्षेत्र के लिए भी अनुकूल कारोबारी परिवेश तैयार होता है। बजट में निजी क्षेत्र को और सहारा देने के लिए सरकार ने कई वस्तुओं पर ड्यूटी घटाई है। इससे देश में मोबाइल फोन से लेकर चार्जर का निर्माण किफायती होगा। मूल्यवान धातुओं सहित कई अन्य वस्तुओं पर ड्यूटी घटने से उनके दाम भी संभलेंगे, जो वर्तमान परिस्थितियों में बहुत आवश्यक हो गया था।

मैन्यूफैक्चरिंग के मोर्चे पर लेबर इंटेंसिव एमएसएमई के लिए क्रेडिट गारंटी योजना और मुद्रा लोन का दायरा बढ़ाना भी सराहनीय कदम हैं। कौशल विकास और इंटर्नशिप से जुड़ी पहल न केवल रोजगार सृजन का विस्तार करेगी, बल्कि उद्यमों को भी बड़ा सहारा देगी। अतिरिक्त कर्मियों की भर्ती पर सरकार का 3,000 रुपये का प्रोत्साहन भी नई नौकरियों को बढ़ावा देने में प्रभावी सिद्ध हो सकता है।

आर्थिक मोर्चे को संतुलन प्रदान करने की दृष्टि से महंगाई पर अंकुश लगाने को सरकार ने अपनी प्राथमिकता सूची में रखा। अक्सर देखने में आता है कि महंगाई की स्थिति मौद्रिक मोर्चे के बजाय आपूर्ति शृंखला से जुड़ी होती है तो सरकार ने इस स्थिति को सुधारने के लिए कदम उठाए हैं। इस दिशा में जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से अप्रभावित विभिन्न फसलों की नई किस्मों की पेशकश जैसी पहल की गई है।

इससे प्रतिकूल मौसमी परिघटनाओं से फसल को होने वाले नुकसान पर अंकुश लगने के साथ ही आपूर्ति के समीकरण भी नहीं बिगड़ेंगे और किसानों के हित भी सुरक्षित रहेंगे। सरकार कृषि उपज के भंडारण के लिए भी कमर कसे हुए है। निजी आयकर की दरों में बहुत मामूली फेरबदल किए हैं।

इसे लेकर वेतनभोगी वर्ग में असंतुष्टि का भाव दिख सकता है, क्योंकि ये शाश्वत अपेक्षाएं हैं। पूंजी बाजार से जुड़े विभिन्न करों के स्तर पर भी नकारात्मक प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। हालांकि पूंजीगत लाभ जैसे कर को लेकर अभी बहुत स्पष्टता नहीं है, लेकिन इसे बाजार में विभिन्न प्रकार के करों को एक स्तर पर सुसंगत करने की दिशा में आगे बढ़ने का संकेत माना जा सकता है। वैसे भी, प्यूचर एंड आप्शन यानी एफएंडओ को लेकर बीते दिनों तमाम तरह की आशंकाएं जताई गईं तो उसे देखते हुए यह अपेक्षित लग रहा था कि कुछ कदम जरूर उठाए जाएंगे। एंजल टैक्स की विदाई नि:संदेह स्वागतयोग्य है।

माना जा रहा था कि चुनावी झटके के बाद बजट कुछ लोकलुभावन हो सकता है, लेकिन सरकार ने उचित ही उससे किनारा किया। यह सही है कि इस समय सरकार, बैंकों और उद्योगों के बहीखातों से लेकर समग्र अर्थव्यवस्था काफी बेहतर स्थिति में हैं, लेकिन वर्तमान वैश्विक परिस्थितियां जिस प्रकार बेहद अस्थिर एवं अनिश्चित हैं, उसे देखते हुए अपने कवच को जरा सा कमजोर करना बहुत भारी पड़ सकता है।


Date: 24-07-24

समावेशी विकास के हरसंभव उपाय

विवेक देवराय आदित्य सिन्हा, ( देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख एवं सिन्हा परिषद में ओएसडी-अनुसंधान हैं )

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप अपनी प्राथमिकताएं गिनाई हैं। उनकी पहली प्राथमिकता ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं कृषि को समर्पित रही। बजट में कृषि उत्पादकता को बढ़ाने एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौती के मद्देनजर विशेष किस्मों के विकास के लिए व्यापक अनुसंधान के जरिये खेती-किसानी के कायाकल्प की योजना बनाई है।

इस दिशा में करीब 109 उच्च उत्पादकता वाली किस्में न केवल खाद्य सुरक्षा के लिए कवच की भूमिका निभाएंगी, बल्कि इनसे किसानों की आय भी सुधरेगी। प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा और बायो-इनपुट संसाधन केंद्रों की स्थापना से भी कृषि को बड़ा संबल मिलेगा। दलहन एवं तिलहन को प्रोत्साहन से देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा। उपभोग केंद्रों के निकट बड़े वेजिटेबल क्लस्टर और कृषि में डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की पहल से आपूर्ति सुधरने के साथ ही बाजारों तक किसानों की पहुंच सुगम होगी।

दूसरी प्राथमिकता कौशल विकास एवं रोजगार से जुड़ी है। इसके अंतर्गत विशेष पैकेज में दो लाख करोड़ रुपये का प्रविधान है, जिससे 4.1 करोड़ युवा लाभान्वित होंगे। पहली बार नौकरी में आए कर्मियों को 15,000 रुपये तक का एक महीने का पारिश्रमिक दिया जाएगा, जिससे 2.1 करोड़ युवाओं को लाभ मिलेगा।

विनिर्माण में रोजगार सृजन को प्रोत्साहन से 30 लाख नए कर्मियों को फायदा पहुंचेगा। वहीं, अतिरिक्त कर्मियों की भर्ती पर नियोक्ताओं को 3,000 रुपये प्रति माह दिए जाएंगे, जिसके माध्यम से 50 लाख नई भर्तियों की योजना है। महिलाओं की रोजगार में भागीदारी बढ़ाने के लिए कामकाजी महिलाओं के लिए हास्टल से लेकर अन्य सुविधाएं विकसित की जाएंगी।

कौशल विकास के लिए 1,000 आइटीआइ को उन्नत करना, 20 लाख युवाओं का केंद्रीय योजनाओं के जरिये कौशल विकास और आदर्श कौशल ऋण योजना को नए सिरे से तैयार किया गया है। शिक्षा ऋण में छूट के साथ ही उसे और सुगम बनाया जाएगा। शीर्ष 500 कंपनियों में युवाओं को इंटर्नशिप दिलाई जाएगी। इससे रोजगार संकट के समाधान के साथ ही हुए उद्योगों की अपेक्षाएं भी पूरी होंगी।

समावेशी मानव संसाधन विकास एवं सामाजिक न्याय भी सरकार की प्राथमिकता में शामिल है। इसके लिए पीएम विश्वकर्मा, पीएम स्वनिधि और राष्ट्रीय आजीविका मिशन के जरिये दस्तकारों, स्वयं सहायता समूहों और स्ट्रीट वेंडर्स की मदद दी जाएगी। पूर्वोदय योजना के तहत बिहार, झारखंड, बंगाल, ओडिशा और आंध्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं मानव संसाधन विकास के जरिये वृद्धि को नए पंख लगाए जाएंगे।

एमएसएमई के लिए नई क्रेडिट गारंटी स्कीम मशीनरी एवं उपकरण खरीदारी में मददगार होगी। उनकी संभावनाओं का आकलन करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को खास जिम्मा सौंपा गया है। एमएसएमई क्लस्टर्स के निकट सिडबी की शाखाओं के विस्तार से वित्त तक उनकी पहुंच भी बेहतर होगी। ई-कामर्स एक्सपोर्ट हब भी स्थापित होंगे। दिग्गज कंपनियों में इंटर्नशिप और विशेष औद्योगिक पार्कों की स्थापना से निवेश को लुभाने एवं रोजगार बढ़ाने में मदद मिलेगी।

शहरी विकास को प्राथमिकता में रखते हुए सरकार ने 30 लाख से अधिक की आबादी वाले कुछ बड़े शहरों को चिह्नित किया है। लोगों की आवास संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति की दिशा में करीब 10 लाख करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी योजना का एलान किया गया है। घर खरीदने पर ब्याज में छूट की सुविधा भी जारी रहेगी।

पीपीपी माडल के जरिये भी शहरी कामगारों के लिए आवास तैयार करने की योजना है। जल आपूर्ति, स्वच्छता और स्ट्रीट मार्केट से जुड़ी योजनाओं के माध्यम से शहरों में रहने के लिए अनुकूल परिवेश एवं रोजगार सृजन के प्रयास हुए हैं। सतत वृद्धि के लिए ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता के तहत मुफ्त बिजली के लिए पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के माध्यम से लोगों को छतों पर सोलर प्लांट लगाने के लिए प्रोत्साहन की पेशकश की गई है।

स्माल मॉड्यूलर न्यूक्लियर रिएक्टर के माध्यम से ऊर्जा संसाधनों का विविधीकरण किया जाएगा। एडवांस्ड अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट्स और ऐसी कुछ अन्य पहल के जरिये ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित किया गया है। पारंपरिक छोटे उद्यमों में इन्वेस्टमेंट-ग्रेड एनर्जी आडिट से भी स्वच्छ ऊर्जा के उपभोग को बढ़ावा मिलेगा।

इन्फ्रास्ट्रक्चर भी सरकार की वरीयता सूची में है। सरकार ने पूंजीगत व्यय के लिए 11.11 लाख करोड़ रुपये का प्रविधान करने के साथ ही राज्य सरकारों एवं निजी क्षेत्र को अतिरिक्त सहायता के संकेत दिए हैं। इस मोर्चे पर सड़क निर्माण, सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण और जल प्रबंधन आदि से जुड़ी योजनाएं शामिल हैं।

पर्यटन को भी प्राथमिकता देते हुए सैलानियों को लुभाने एवं रोजगार बढ़ाने पर जोर दिया गया है। तकनीक के महत्व को समझते हुए शोध एवं विकास की दिशा में अनुसंधान नेशनल रिसर्च फंड के विस्तार की योजना है। अंतरिक्ष से जुड़ी आर्थिक संभावनाओं को भुनाने के लिए 1,000 करोड़ का विशेष कोष स्थापित किया जाना है।

भूमि से लेकर श्रम सुधारों के मुद्दे पर भी आगे बढ़ने के संकेत दिए हैं, जो बेहद आश्वस्तकारी कदम है, क्योंकि लंबे समय से ऐसे सुधारों की प्रतीक्षा हो रही है। इसी कड़ी में ईज आफ डूइंग बिजनेस, डाटा गवर्नेंस और टेक्नोलाजी अडाप्शन से भी आर्थिक सक्षमता बढ़ने के भरे-पूरे आसार हैं। कुल मिलाकर, कौशल विकास एवं रोजगार में लक्षित निवेश के माध्यम से बजट में सतत एवं समावेशी आर्थिक वृद्धि का खाका खींचा गया है।


Date: 24-07-24

संतुलन साधने वाला बजट

संपादकीय

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2024-25 का बजट पेश करते समय उस राजनीतिक संदर्भ का जिक्र नहीं किया, जिसमें उनके मंत्रालय को बजट तैयार करना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली इस नई सरकार के समक्ष पहले की तुलना में अधिक चुनौतियां हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कुछ कट्टर समर्थकों से चुनाव में सरकार को मिले कड़े संदेश के बाद उस पर दबाव काफी बढ़ गया था।

सरकार चलाने के लिए जनता दल यूनाइटेड और तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) पर निर्भरता बढ़ने से इन दोनों दलों की मांगें पूरी करने का दबाव भी बढ़ गया था।
मगर सीतारमण एवं उनकी टीम ने इन राजनीतिक विवशताओं और सरकार की प्राथमिकताओं, विशेषकर राजकोषीय मजबूती के बीच संतुलन साध कर सराहनीय कार्य किया है।

बजट का एक बड़ा हिस्सा बिहार और आंध्र प्रदेश से जुड़ी परियोजनाओं को समर्पित था। परंतु, सीतारमण ने 2021 के बजट में जिस राजकोषीय मजबूती का मार्ग तैयार किया था, उसे कोई बड़ी क्षति नहीं पहुंची है। इस साल फरवरी में लेखानुदान में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.1 प्रतिशत तक सीमित करने का लक्ष्य रखा गया था।

मगर बजट में इसमें किसी तरह का इजाफा करने के बजाय इसे संशोधित कर 4.9 प्रतिशत कर दिया। इतना ही नहीं, वित्त मंत्री ने वादा किया कि अगले वर्ष तक राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.5 प्रतिशत से नीचे रह जाएगा। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से मिले 2.1 लाख करोड़ रुपये के भारी भरकम लाभांश की मदद से बजट आंशिक रूप से राजकोषीय समझबूझ के मोर्चे पर बेहतर साबित हुआ। फरवरी में अंतरिम बजट में लाभांश के अनुमान से सरकार को लगभग दोगुना रकम मिली।

राजकोषीय मोर्चे पर संयम जरूर दिखाया गया है मगर इससे व्यय की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होने दी गई है। पूंजीगत व्यय को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता में कोई कमी नहीं आई है। राजस्व व्यय में बढ़ोतरी कुल व्यय की तुलना में थोड़ी कम रही है। दिलचस्प है कि पूंजीगत व्यय में हुई बढ़ोतरी का कुछ हिस्सा राज्यों को भी आवंटित किया जाएगा।

हालांकि, यह रकम राज्यों को इस शर्त पर दी जाएगी कि वे आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले सुधार करेंगे। हालांकि, इससे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच पहले से चला रहा तनावपूर्ण संबंध और बिगड़ जाएगा।

दूसरी तरफ, सुधार को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार के पास सीमित विकल्प हैं और इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार इन सभी विकल्पों को आजमाएगी। सरकार उन मामलों में रकम खर्च करने में सतर्क रही है जहां सॉवरिन या सरकार की गारंटी पर्याप्त होती है। सरकार राज्य सरकारों को साथ लाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन का सहारा लेती रही है। ऐसा सूझ-बूझ वाला वित्तीय प्रबंधन सब्सिडी के आंकड़ों में भी साफ तौर पर परिलक्षित होता है।

सरकारी खरीद में कमी लाने से खाद्य सब्सिडी मद में व्यय कम हुआ है। भारत में राजकोषीय गणित तैयार करने में खाद्य सब्सिडी एक बड़ी समस्या रही है मगर अब जीडीपी के प्रतिशत के रूप में इसकी हिस्सेदारी धीरे-धीरे कम हो रही है। रोजगार की कमी एक अन्य बड़ी राजनीतिक बाधा रही है मगर इससे कभी सावधानी से नहीं निपटा गया।

उदाहरण के लिए बजट में ‘इंटर्नशिप’ योजना की घोषणा पूरी तरह सोच-समझकर नहीं की गई है। अगर यह योजना मूल स्वरूप में ही लागू हुई तो इससे मानव संसाधन नीतियों एवं निजी क्षेत्र में उथल-पुथल मच जाएगी। इससे संरक्षण एवं अक्षमता बढ़ जाएगी। इन पर दोबारा विचार करने की आवश्यकता आन पड़ सकती है।

बाजार ने बजट पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी। वित्त मंत्री ने दीर्घ अवधि के पूंजीगत लाभ पर कर 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया है और लघु अवधि के पूंजीगत लाभ पर कर भी 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है। वायदा एवं विकल्प कारोबार लेनदेन पर कर दरें बढ़ा दी गईं। हालांकि बाजार की प्रतिक्रिया से इतर इन बदलाव के आधार मजबूत हैं।

बजट में संरक्षणवादी नीति में आंशिक बदलाव करने की भी घोषणा हुई है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। लगभग 50 वस्तुओं पर सीमा शुल्क में कमी की गई है। सीतारमण ने सीमा शुल्क को तर्कसंगत बनाने का भी वादा किया है। कम एवं स्थिर शुल्कों की बदौलत ही भारत वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था का हिस्सा बन सकता है।

करों में बदलाव पर कुछ नकारात्मक प्रतिक्रियाएं इसलिए आई हैं कि यह स्पष्ट नहीं है कि भविष्य में प्रत्यक्ष करों की राह कैसी होगी। अगले वर्ष राजकोषीय घाटे पर बजट में उत्साहजनक वादा जरूर किया गया है मगर घाटे एवं कर्ज पर लक्ष्य अभी भी स्पष्ट नहीं हैं। इस पर स्थिति साफ होती तो काफी मदद मिली होती।


Date: 24-07-24

उम्मीदों का बजट

संपादकीय

जिस दौर में वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्थाओं में काफी उथल-पुथल और चिंताजनक हालात बने हुए हैं, उसमें मंगलवार को पेश बजट ने एक तरह से सबका खयाल रखने का आश्वासन दिया है। बजट के कुछ अहम बिंदुओं को देखते हुए यह साफ लगता है कि तीसरी बार सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की प्राथमिकताओं में अब शायद कुछ बदलाव आया है। वित्त मंत्री के रूप में निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण की शुरुआत में ही कहा कि शिक्षा और रोजगार के लिए बजट में 1.48 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। यानी सरकार पिछले कुछ समय से देश की राजनीति में चुनावी मुद्दा बने, लेकिन प्रकारांतर से उपेक्षित सवालों की सुध लेती दिखती है। देश में बेरोजगारी की चुनौतियों से जूझने के लिए तीन नई योजनाओं की घोषणा की गई है, जिसमें अगले पांच वर्षों के लिए दो हजार करोड़ रुपए की राशि तय की गई है। औपचारिक क्षेत्र में पहली बार नौकरी हासिल करने वालों को सरकार उनके पहले महीने के वेतन पर अनुदान के रूप में पंद्रह हजार रुपए तक की अतिरिक्त राशि देगी।

इसके अलावा, एक करोड़ युवाओं को पांच वर्ष में शीर्ष पांच सौ कंपनियों में प्रशिक्षुता या इंटर्नशिप का मौका देने की बात की गई है, जिसके तहत युवाओं को पांच हजार रुपए मासिक भत्ता दिया जाएगा। जाहिर है, लंबे समय के बाद ऐसा लगता है कि बेरोजगारी की समस्या की गंभीरता को स्वीकार करने की कोशिश की गई है। आमतौर पर इस पर सबकी नजर रहती है कि बजट में मध्यवर्ग के लिए क्या कोई राहत है। इस लिहाज से देखें तो सरकार ने नई कर व्यवस्था की दरों में जो बदलाव किया है, उससे लोगों के साढ़े सत्रह हजार रुपए तक बच सकते हैं और अब तीन लाख रुपए की आय तक कोई आयकर नहीं देना होगा। अप्रत्यक्ष कर की दरों में बदलाव के बाद अब कैंसर की कुछ दवाएं, मोबाइल फोन, सोना-चांदी के दाम में कमी आने की संभावना है। मगर आम लोग जिस महंगाई से जूझ रहे हैं, उससे कितनी राहत मिलेगी, इस मसले पर कोई स्पष्टता नहीं है। हालांकि कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास पर विशेष ध्यान देने के अलावा प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना के तहत किए गए नए प्रावधानों से मध्यवर्ग को लाभ मिल सकता है।

इसी तरह, कर ढांचे के नए स्वरूप से ऐसा लगता है कि सरकार की मंशा लोगों को पैसा बचाने के बजाय खर्च करने का विकल्प चुनने की ओर प्रवृत्त करने की है। अल्पकालिक पूंजीगत लाभ और दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के नियमों में हुए बदलाव का असर इस रूप में सामने आया कि बजट भाषण के दौरान ही शेयर बाजार धड़ाम से गिर गए। एक उम्मीद यह थी कि पिछले कुछ समय से रेल यात्रा के समूचे तंत्र को लेकर जितने बड़े पैमाने पर सवाल उठे थे, तो सरकार बजट में शायद इस पर ध्यान दे। मगर विचित्र यह है कि रेलवे क्षेत्र के लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई इस बजट में खासतौर पर बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए जिस तरह अलग से बड़े एलान किए गए हैं, उसने सबका ध्यान खींचा है। खासतौर पर बिहार के लिए छब्बीस हजार करोड़ की बड़ी राशि देने की घोषणा की गई। यह सभी जानते हैं कि मौजूदा सरकार के गठन में जद ( एकी) और तेलगु देसम की क्या भूमिका रही है। यही वजह है कि विपक्ष ने इसे ‘सरकार बचाओ’ बजट कहा है। बहरहाल, सरकार अगर इसे उम्मीदों का बजट बता रही हैं, तो आने वाले वक्त में ये आश्वासन कसौटी पर रहेंगे।


Date: 24-07-24

एकाकीपन का दंश

संपादकीय

सभ्यता के विकास क्रम में कायदे से होना यह चाहिए था कि सामाजिकता की जड़ें मजबूत हों और सरोकार की संवेदना को ज्यादा से ज्यादा जगह मिले। मगर आधुनिक समाज में नए-नए तकनीकों के सहारे रोज आधुनिक होती दुनिया में मनुष्य की पहुंच का दायरा तो विस्तृत हुआ है, मगर इसी क्रम में एक नई समस्या यह पैदा हुई है कि हजारों मील दूर किसी व्यक्ति से रिश्तों के आभासी तार जोड़ने वाला कोई इंसान वास्तविक समाज के साथ जुड़ाव को महसूस करने की संवेदना खोता गया । यह बेवजह नहीं है कि बहुत सारे लोग अकेलेपन के दंश को अलग-अलग रूप में झेलते हैं, मगर इसकी वजहों और हल को लेकर उनके भीतर कोई स्पष्टता नहीं बन पाती। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस स्थिति को ‘जुड़ाव न महसूस करने के सामाजिक दर्द रूप में परिभाषित किया है। अगर कोई व्यक्ति इस समस्या के जाल में खुद को फंसा हुआ पा रहा है और उसके प्रति सहज या अनुकूलित होता जा रहा है, तो इससे ऐसे व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक सेहत में तेज गिरावट हो सकती है। एक शोध में इसका आकलन इस रूप में किया गया है कि सामाजिक जुड़ाव की भावना का अभाव हर रोज पंद्रह सिगरेट पीने के बराबर का स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है।

दरअसल, अलग-अलग कारणों से अपने दायरे में सिमटते जा रहे लोग न केवल सामूहिकता बोध से वंचित हो रहे हैं, बल्कि कई गंभीर बीमारियों को पलने का मौका दे रहे हैं। अफसोस यह है कि स्मार्टफोन या आधुनिक यंत्रों को बहुत सारे लोग आज अपने सामाजिक संबंधों के दुनिया भर में विस्तृत होने का जरिया मानते हैं। मगर इंटरनेट पर लोगों की फैलती दुनिया कितनी आभासी है, इसका पता तब चलता है, जब किसी गंभीर मानसिक या शारीरिक परेशानी में लोग फंसते हैं और उस समय उन्हें वास्तविक दुनिया के मनुष्यों की जरूरत होती है। तब उन्हें अपने परिजन, रिश्तेदार, करीबी दोस्त याद आते हैं, जो उसे इस संजाल से निकलने में मदद कर सकते हैं। मगर तकनीक आधारित कथित आधुनिकता के मूल्यों और उसमें सिमटती दुनिया में लोग लगातार भीड़ में अकेले पड़ते जा रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि लोगों के बीच प्रत्यक्ष रूप से आपसी मेलजोल बढ़े, सहयोग पर आधारित सामाजिकता बोध की भावना मजबूत हो ।


Date: 24-07-24

संतुलित बजट

संपादकीय

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का 2024 का बजट कई मामलों में संतुलित माना जाएगा। नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में राजग सरकार के तीसरी बार सत्ता में आने के बाद यह पहला बजट है। बजट में निसंदेह मानव संसाधन विकास और बुनियादी विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है। केंद्र सरकार वेतनभोगियों की उम्मीदों में वह खरी उतरीं। नई टैक्स व्यवस्था में अब स्टैंडर्ड डिडक्शन पचास हजार से बढ़ाकर पिच्छत्तर हजार रुपए कर दिया। वेतनभोगियों को इनकम टैक्स में 17,500 रुपए तक की बचत होगी। वित्तमंत्री का कहना है कि इनकम टैक्स एक्ट की छह महीने में समीक्षा की जाएगी। कैपिटल गेन छूट की सीमा बढ़ा दी गई है। महिलाओं द्वारा खरीदी गई संपत्ति पर स्टॉम्प ड्यूटी कम करने के साथ ही चुनिंदा शहरों में साप्ताहिक हाट या स्ट्रीट फूड हब डेवलप करने की योजना भी है। सौ बड़े शहरों के लिए जलापूर्ति, सीवेज उपचार व ठोस अपशिष्ट परियोजनाओं की भी घोषणा की। देश में घरेलू क्रूज का परिचालन करने वाली विदेशी शिपिंग कंपनियों के लिए सरल कर व्यवस्था दी। सरकार ने स्पेस इकोनॉमी के लिए हजार करोड़ रुपए के वेंचर कैपिटल फंड स्थापित करने का भी प्रस्ताव रखा। सोने-चांदी पर कस्टम ड्यूटी घटाकर 6 फीसद व प्लैटनियम पर 6.5 फीसद का प्रस्ताव रखा। टीडीएस में देरी को अपराध से बाहर कर सीतारमण ने नौकरीपेशा को राहत दी है। केंद्रीय बजट में युवाओं के रोजगार के लिए 500 टॉप कंपनियों में एक करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप मुहैया कराने के साथ ही पांच हजार रुपए महीने स्टाइपेंड देने की भी बात की। बजट के जरिये सियासी समीकरण दुरुस्त करने और विपक्षी धार को कुंद करने की रणनीति के तहत सरकार ने अपने अहम सहयोगी दलों जेडी(यू) व टीडीपी शासित राज्यों बिहार व आंध्र प्रदेश के लिए विशेष पैकेज दिया। हालांकि इस दिलदारी से बाकी राज्यों में सरकार के खिलाफ आवाज तेज होगी। खैर, जैसी उम्मीदें थीं, बजट वैसा नहीं रहा। विपक्ष का आरोप है कि बजट में गरीबों व आम लोगों के लिए कुछ नहीं है। साथ ही इसे राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित भी बताया। राहुल गांधी ने इसे कुर्सी बचाओ व कॉपी-पेस्ट बजट तक कह दिया। यह कहना गलत नहीं होगा कि देश की अर्थव्यवस्था तेजी से स्थिर होने के बावजूद क्षेत्रीय असंतुलन गंभीर बना हुआ है। मगर तमाम चुनौतियों के बावजूद धन प्रबंधन करने में सीतारमण ने किसी को निराश नहीं होने देने की भरपूर कोशिश की है।


Date: 24-07-24

अपनी जिम्मेदारी में खरा उतरा बजट

एन.के.सिंह, ( अध्यक्ष 15वां वित्त आयोग )

यह केंद्रीय बजट भारत के सामने मौजूद तमाम अहम मुद्दों को संबोधित करता है। यह 2047 तक भारत को विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के संकल्प को साकार करने की दिशा में प्रेरित करने की एक अहम पहल है। यह सराहनीय है कि इसमें कई विरोधाभासों को अनेक तरीकों से सुसंगत बनाने की कोशिश की गई है। वाकई, संतुलन बनाने के लिए बुद्धिमत्ता और नेतृत्व की जरूरत होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस कार्य को पूरी जिम्मेदारी के साथ विश्वसनीय रूप से अंजाम दिया है। आइए, बजट के खास बिंदुओं पर विचार करते हैं-

पहला, भारत, हाल के वर्षों में शायद अकेला ऐसा देश है, जिसने सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने के अलावा विकास के गुणों को समग्र आर्थिक स्थिरता के साथ जोड़ने की कोशिश की है। वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में 6.5 से 7 प्रतिशत की वृद्धि जारी रहने की उम्मीद है, जबकि मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के 4.5 फीसदी के की ओर बढ़ रही है। विकास की गति जारी रखते हुए समग्र रोडमैप आने वाले वर्ष में राजकोषीय घाटे के पांच प्रतिशत से कम रहने का सुझाव देता है, जो मध्यम अवधि के लक्ष्य 4.5 प्रतिशत के अनुरूप है।

दूसरा, अनेक दबावों के बावजूद, अंतरिम बजट के साथ तालमेल बिठाते हुए पूंजीगत व्यय पर जोर जारी है। इस वर्ष भी पूंजीगत व्यय 11.11 लाख करोड़ रुपये है, जो भारत की जीडीपी का 3.4 प्रतिशत है। सड़कों, राजमार्गों, हवाई अड्डों और औद्योगिक गलियारों में सुधार के लिए यह धन मांगा गया है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक प्रतिस्पद्र्धा दक्षता बढ़ेगी और बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

तीसरा, पहली बार बजट में रोजगार सृजन के साथ प्रौद्योगिकी के उपयोग पर ध्यान दिया गया है। 500 शीर्ष कंपनियों में एक करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप के लिए प्रभावी कार्यक्रम की घोषणा हुई है, जहां कंपनियों से प्रशिक्षण और इंटर्नशिप लागत का 10 प्रतिशत अपने सीएसआर फंड से वहन करने की उम्मीद की जाएगी।

चौथा, इसी क्रम में रोजगार सृजन के इंजन के रूप में पर्यटन के महत्व को पहचानते हुए वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि सरकार सफल काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर की तर्ज पर विष्णुपाद मंदिर कॉरिडोर और महाबोधि मंदिर कॉरिडोर के विकास में सहयोग करेगी, ताकि इन तीर्थस्थलों को विश्वस्तरीय तीर्थ और पर्यटन स्थलों में शुमार किया जा सके।

पांचवां, बजट यह मानता है कि कृषि के तौर-तरीके को बढ़ती पर्यावरणीय चुनौतियों से जोड़ने की जरूरत है। वित्त मंत्री ने जिक्र किया है कि सरकार उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु-अनुकूल किस्मों के विकास के लिए कृषि अनुसंधान ढांचे की व्यापक समीक्षा करेगी।

छठा, विनिर्माण क्षेत्र में यह एक महत्वपूर्ण खोज रही है कि पहली बार अतिरिक्त रोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए योजना घोषित हुई है। यहां प्रोत्साहन कर्मचारी और नियोक्ता, दोनों को दिया जाएगा। बजट में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) पर विशेष ध्यान दिया गया है, जिसमें एमएसएमई को वैश्विक स्तर पर बढ़ाने और प्रतिस्पद्र्धा के लिए वित्त-पोषण, विनियामक परिवर्तन और तकनीकी मदद देने के वास्ते पैकेज की घोषणा हुई है।

सातवां, कॉरपोरेट कर दर में कटौती से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को भी प्रोत्साहन मिलेगा और प्रौद्योगिकी के विकास को बल मिलेगा। जिस गति से भारत में वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) बन रहे हैं, जिनकी संख्या 1,600 से अधिक है और 2028 तक 2,100 से ज्यादा होने का अनुमान है, उससे अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण होगा और देश प्रौद्योगिकी के मामले में ज्यादा सक्षम बनेगा। अपनी विशाल आबादी का लाभ उठाने के लिए यह काम जरूरी है।

आठवां, कर संरचना में सुधार की कोशिश हुई है। कर संरचना को तर्कसंगत बनाने से जीएसटी से अपेक्षित राजस्व लाभ में सुधार होगा। सीमा शुल्क के संबंध में बात करें, तो शुल्क संरचना में सुधार काफी समय से लंबित था और यह भारत की कराधान संरचना को अंतरराष्ट्रीय संरचनाओं के अनुरूप बनाएगा।

नौवां, प्रत्यक्ष करों के संबंध में भी मौलिक समीक्षा की जरूरत पहचानते हुए आयकर अधिनियम 1961 की व्यापक समीक्षा के प्रति प्रतिबद्धता जताई गई है। ऐसा करने के पिछले प्रयास सफल नहीं रहे हैं। इसे वैश्विक मानदंडों के अनुरूप बनाने की जरूरत है। उम्मीद है, इस व्यापक समीक्षा के नतीजे तय समय सीमा में सामने आएंगे और 2025 के बजट में प्रतिबिंबित होंगे। हालांकि, इसके लिए इंतजार न करते हुए कर संरचना में कुछ बदलाव किए गए हैं।

दसवां, बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए विशेष प्रबंध काफी समय से लंबित थे। प्रति व्यक्ति आय सबसे कम होने के चलते बिहार विकास के पिरामिड में सबसे निचले पायदान पर कायम है। बिहार अपने बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए एक निश्चित पहल का हकदार है। एक बिजली परियोजना और अन्य अनेक विकास योजनाओं की घोषणा की गई है। बोधगया, राजगीर, वैशाली और प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की क्षमता का लाभ उठाया जाएगा। इसी तरह से आंध्र प्रदेश के संबंध में भी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की दिशा में कदम उठाए गए हैं। हालांकि, इसकी रूपरेखा ऐसी लग सकती है कि ऐसा गठबंधन सरकार की मजबूरियों की वजह से किया गया है, पर गहराई से देखें, तो सभी को बिहार की विकास संबंधी मजबूरियों और स्थानीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने पर गौर करना चाहिए।

यह बजट अक्षय ऊर्जा के दौर में व्यवस्थित बदलाव के लिए भी जिम्मेदारी से काम करता दिखता है। भारत को वैश्विक प्रतिबद्धताओं को भी पूरा करना है और जलवायु अनुकूल बुनियादी ढांचा हमें जिम्मेदार देश के रूप में आगे बढ़ने में सक्षम बनाएगा। कुल मिलाकर, यह एक ऐसा बजट है, जिसका लाभकारी प्रभाव आने वाले महीनों में महसूस किया जाएगा। शेयर बाजार सूचकांक में फौरी बदलाव के प्रति ज्यादा सही प्रतिक्रिया के लिए बजट के बारीक लफ्जों को पढ़ने और समझने की जरूरत है। मैं इस बजट को विश्वसनीयता, जिम्मेदारी और सुसंगतता के मामले में उच्च रेटिंग दूंगा।


 

Subscribe Our Newsletter