04-06-2016 (Important News Clippings)

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04 Jun 2016
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jagran

Date: 04-06-16

कसौटी पर करीबी रिश्ते

गत दिनों अफ्रीकी देश कांगो के 23 वर्षीय मसोंडा कटांडा ओलिवर की नई दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में कथित रूप से अपराधी किस्म के तीन भारतीय नागरिकों ने हत्या कर दी। दोनों पक्षों में ऑटो रिक्शा को किराए पर लेने के दौरान उठे विवाद के बाद हत्या की यह घटना घटी। इसके कुछ ही दिनों बाद दिल्ली के ही महरौली इलाके में अफ्रीकी नागरिकों के साथ मारपीट की घटनाएं सामने आईं। स्थानीय निवासियों ने अफ्रीकी नागरिकों पर भारतीय परंपराओं और संस्कृति के प्रति असंवेदनशील होने का आरोप लगाया और दूसरी ओर अफ्रीकी नागरिकों को लगा कि भारतीय नस्ली पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। अफ्रीकी नागरिकों के खिलाफ हिंसक घटनाओं से जुड़ी खबरें समय-समय पर देश के विभिन्न भागों से आती रहती हैं। इसके बाद जिस तरह से अफ्रीकी देशों के राजदूतों ने एकजुट होकर इन घटनाओं का विरोध किया और प्रतिशोध में कांगो में भारतीयों को निशाना बनाया गया उसे देखते इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं की जांच परख आवश्यक है। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इन घटनाओं के खिलाफ अपनी नाखुशी जाहिर की है। कांगो में रहने वाले भारतीयों पर हमले को किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन जब भेदभाव की बात आती है तो इन मुद्दों के प्रति बेचैनी बढ़ जाती है। कुछ साल पहले ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों के खिलाफ हमलों के चलते किस तरह पूरा भारत क्रोधित हो गया था।

स्पष्ट रूप से मोदी सरकार ने इन घटनाओं को काफी गंभीरता से लिया है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस विषय को गृहमंत्री राजनाथ सिंह के सामने उठाकर अच्छा किया है। उन्होंने आश्वासन दिया है कि अफ्रीकी लोगों को पूरी सुरक्षा उपलब्ध कराई जाएगी। विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह के लिए अच्छा यही होगा कि वह महरौली की घटनाओं को लेकर मीडिया की निंदा न करें। उन्होंने असंवेदनशीलता का प्रदर्शन किया है जिससे बचा जाना चाहिए था। वीके सिंह को यह आभास होना चाहिए कि अब वह एक मंत्री हैं, सेना के जनरल नहीं। इन घटनाओं को एक खास परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए यह उचित होगा कि हम भारत के साथ अफ्रीकी देशों के संबंधों पर एक संक्षिप्त नजर डालें। दरअसल स्वतंत्रता के पहले भारत-अफ्रीकी देशों के संबंध अच्छे रहे। दोनों में एक-दूसरे के प्रति सहयोग की भावना रही। दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी के कामों को लेकर अफ्रीका भारतीयों की चेतना में बसा था। गांधीजी ने वहीं अंग्रेजों के भेदभावपूर्ण कानूनों के खिलाफ आंदोलन और अभियान चलाने के लिए अहिंसा और सत्याग्रह जैसे जादुई साधनों का विकास किया। दक्षिण अफ्रीकी शासन की रंगभेदी नीति के खिलाफ आंदोलन छेडऩे वाले ऐतिहासिक नेता और दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने भारत से कहा था कि आपने हमें गांधी दिया और हमने आपको महात्मा दिया। भारत की स्वतंत्रता के बाद नेहरू की सरकार और बाद में इंदिरा गांधी ने उपनिवेशवाद और रंगभेद से अफ्रीकी देशों की आजादी के लिए अथक परिश्रम किया। इसके फलस्वरूप भारत ने अफ्रीकी लोगों की नजरों में अपने लिए आदर हासिल किया।

राजनीतिक सहयोग के साथ ही आर्थिक, वाणिज्यिक और विकासात्मक सहयोग की परंपरा अफ्रीकी देशों के साथ भारत के संबंधों की पहचान रही है। अफ्रीकी देशों में लंबे समय से रह रहे भारतीय कारोबारी इसे और मजबूती प्रदान करते रहे हैं। मौजूदा दौर में दोनों देशों के संबंधों को भारत-अफ्रीका सम्मेलन के जरिए मजबूत किया गया है। अक्टूबर में दिल्ली में इसके तीसरे सम्मेलन का आयोजन किया गया था। भारत और अफ्रीकी देशों ने सभी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का निर्णय किया। भारत ने अफ्रीकी देशों में परियोजनाओं के लिए रियायती क्रेडिट के रूप में 1000 करोड़ अमेरिकी डॉलर और अनुदान के रूप में 60 करोड़ अमेरिकी डॉलर देने का निर्णय किया। यह सहयोग एकतरफा नहीं है। कई भारतीय कंपनियां अफ्रीकी देशों में काम कर रही हैं और इस प्रकार वे भारत को आर्थिक रूप से मदद पहुंचा रही हैं।

जाहिर है, यदि अफ्रीकी नागरिक यह कहना आरंभ कर देते हैं कि भारत उनके लिए सुरक्षित नहीं है या भारत नस्लवादी देश है तो सहयोग की यह भावना खतरे में पड़ जाएगी। भारत के खिलाफ शत्रुता का भाव रखने वाली अंतरराष्ट्रीय शक्तियां इन भावनाओं का प्रयोग भारतीय हितों को क्षति पहुंचाने के लिए करेंगी। भारत और अफ्रीकी देशों, दोनों पक्षों को पूरी परिपक्वता से इस मुद्दे का समाधान खोजना होगा। यह भी सावधानी बरतनी होगी कि इस बीच कोई नई समस्या पैदा न हो। सर्वप्रथम यह बात पूरी तरह से समझ लेनी चाहिए कि भारत नस्लवादी देश नहीं है। नस्लवाद सामाजिक पूर्वाग्रह और रूढि़वादिता से भिन्न होता है। नस्लवाद तब होता है जब राजनीतिक और कानूनी रूप से नस्ल या रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है। यह भारत में कभी नहीं रहा है। सामाजिक पूर्वाग्रह और रूढि़वादिता एक सामाजिक परिघटना है। इन सामाजिक प्रवृत्तियों को बदलने के लिए शिक्षा जरूरी है। हमें यह विदेशी संबंधों की बेहतरी के लिए ही नहीं करना चाहिए, बल्कि भारतीय समाज से ऊंच-नीच का भेद तब तक खत्म नहीं होगा जब तक ये सामाजिक बदलाव नहीं लाए जाते। उदाहरण के रूप में गोरेपन को ही सुंदरता का आधार क्यों माना जाना चाहिए? इन पूर्वाग्रहों का प्रचार यहां तक कि हमारे विज्ञापनों के जरिये भी किया जाता है। हमें शुरुआत इन विज्ञापनों को तत्काल रोकने के साथ करनी चाहिए। यह कदम एक नागरिक के रूप में हमारी प्रगतिशील सोच के प्रति प्रतिबद्धता को जाहिर करेगा। हमें अपनी उन शिक्षण संस्थाओं जहां अफ्रीकी छात्र पढ़ते हैं और उन समुदायों जहां अफ्रीकी नागरिक रहते हैं, में भी ऐसी ही सोच विकसित करनी होगी। इससे उन्हें यह भरोसा पैदा होगा कि भारत एक ऐसा देश है जो समानता का पक्षधर है।

अफ्रीकी राजदूतों ने भारत पर नस्लवादी भावना रखने और अफ्रीकी लोगों को डराने धमकाने के जो आरोप लगाए हैं वे सही नहीं है। उन्हें अपनी शिकायत शांतिपूर्वक, रचनात्मक और कूटनीतिक तरीके से दर्ज करानी चाहिए थी। इसके साथ ही अफ्रीकी राजदूतों को चाहिए कि वे अपने छात्रों को भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति संवेदनशील बनाएं ताकि समस्या पैदा करने वाले कारकों को कम किया जा सके। इसमें अफ्रीकी छात्र जहां पढ़ते हैं वहां के शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। उन्हें इंडियन काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेशन के साथ सहयोग कर भारतीय और अफ्रीकी छात्रों को एक मंच पर लाना चाहिए ताकि दोनों पक्षों में बेहतर तालमेल विकसित हो सके। अफ्रीकी राजदूतों को चाहिए कि वे बेजा प्रचार और कठोर बयानों के बजाय इस मुद्दे से निपटने में सावधानी बरतें और संवेदनशीलता का परिचय दें। ऐसा ही रवैया भारतीय पक्ष को भी अख्तियार करना चाहिए।

[ लेखक विवेक काटजू, भारतीय विदेश सेवा में वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं ]


Times of India

Date: 04-06-16

Are Indians Bipolar On Africa?

While India has supported African aspirations, we have a severe racism problem at home

Africans must be wondering whether Indians suffer from some version of schizophrenia. At one level, India has a record of verifiable empathy with Africa. Our friendship with the continent is based on cultural and historical ties that go back centuries. Millions of Indians have made Africa their home.

Mahatma Gandhi spent 21 years in South Africa and honed his satyagraha skills there. A newly independent India lent unequivocal support to the anti-colonial liberation struggles in Africa. Jawaharlal Nehru’s comrades in arms at the Afro-Asian Bandung Conference in 1955 were Presidents Nasser of Egypt and Kwame Nkrumah of Ghana. African leaders were prominent in joining with India in setting up the Non-Aligned Movement in 1961.

From the very beginning, independent India was unwavering in its opposition to apartheid in South Africa. Nelson Mandela considered Mahatma Gandhi to be his ideological guru, as did Martin Luther King, whose ancestors hailed from Africa.

This support for Africa, and solidarity with its concerns, cuts across party lines. I recall, as a young diplomat, accompanying the late PM V P Singh to Namibia in 1990 for that country’s Independence celebrations. Singh had taken three senior MPs with him: Atal Bihari Vajpayee, K R Narayanan and Harkishen Surjeet, each representing a different part of our political spectrum. Rajiv Gandhi was also there, invited separately in his own capacity.

The present NDA government has acted in accordance with this national consensus. In a laudable move, it organised in October 2015 the India-Africa Forum Summit in New Delhi. The Summit, attended by more than 40 African leaders, gave India a high-profile platform to reiterate her desire to further expand and strengthen economic, political and cultural ties with African countries.

Unfortunately, at another level, violent incidents against Africans in India have seen an ugly surge. On May 20 a Congolese national was beaten to death after an altercation over hiring of an autorickshaw in the national capital. On May 25, a Nigerian student was beaten up in Hyderabad over a parking dispute with an Indian. On May 28, seven African nationals were allegedly attacked by a group of 10 men in the Chhatarpur area in Delhi.

These condemnable attacks were not isolated or an aberration. In February 2016 a 21-year-old Tanzanian student was beaten and stripped by a group of locals in Bengaluru. They wrongly assumed that she was part of an incident in which a Sudanese man had earlier that day run his car over an Indian woman.

Bengaluru, which has a high concentration of African students, witnessed two widely reported incidents in 2015 of African students being attacked. In 2014 Rajiv Gandhi Metro Chowk in Delhi was the scene for two separate attacks on African nationals. In January 2014, there was the appalling incident of minister Somnath Bharti conducting a raid on African nationals living in Khirki Extension of South Delhi, in which two Ugandan women had to be rescued from a mob mouthing racist comments. In April 2012 a student from Burundi was viciously attacked in Punjab.

Given these compellingly contrasting narratives, one of an India consistently standing on the side of friendship and solidarity with Africa, and two, of some Indians repeatedly displaying hostility towards African nationals in India, who can fault Africans for concluding that we are schizophrenic?

However, this behavioural polarity is easily explained. The truth is that while the Republic of India does genuinely want to strengthen its time-tested friendship with Africa, most Indians are also incorrigibly racist. This colour consciousness of a definitively brown nation would be laughable if it was not so downright pathetic.

Our most beloved Hindu gods, Ram and Krishna, are dark. Our traditional notions of beauty were not defined by white. But our matrimonial ads only seem to offer ‘fair’ women, while ‘fair and lovely’ products futilely seek to lighten our colour.

There have been three broad reactions of the present government to the recent attacks. Sushma Swaraj rightly mobilised the external affairs ministry to assure African envoys and nationals in India, but wrongly maintained that this violence was not indicative of racism. Her junior minister General V K Singh wrongly – and insensitively – dismissed the whole matter by equating the deplorable attacks with a minor scuffle. And, expectedly, our otherwise eloquent PM said nothing at all.

The imperative now must be for the government to take concrete and institutional steps to prevent racism against Africans in our university campuses, in the areas where Africans live, and in their interaction with the police and administrative machinery. What needs to be done is known.

I had chaired in 2008, as director-general ICCR and at the behest of the PMO, a committee that visited many cities and universities and submitted a two-volume report on the steps to be taken. The report must be gathering dust somewhere. African students come in large numbers to study in India and are a source of revenue. If their experience in India is pleasant, they become life-long ambassadors in our interest. As importantly, a large Indian diaspora lives in Africa, and the last thing we would want is for reprisals to take place against them. As always, friendship – and diplomacy – is a two way street. India must never forget that.


logoTheEconomicTimes

Date: 04-06-16

To Africa from India, with bumbling love

That Vice-President Hamid Ansari is the first Indian vice-president to visit the African nations of Tunisia and Morocco in 50 years is testament to how India and the African continent have failed to build on their historic ties. The two-nation tour is an effort by New Delhi to build on diplomatic gains from the India-Africa Summit.

India and the African continent share historical ties, including a shared experience of a colonial past. Together, they are home to a third of the global population, the majority young.

For Africa, rich in minerals, land and raw manpower, India can be a reliable development partner: in developing infrastructure, education, healthcare, financial depth, farming and bridging the digital divide. Greater partnership will benefit both Africa and India.

Africa is home to seven of the fastestgrowing economies. The India-Africa partnership is not limited to trade and investment. The presence of large numbers of people of Indian origin across the continent adds to the sense of comfort and familiarity. An enhanced line of credit to Africa of $10 billion is a testament to India’s recognition of the potential.

Despite the ties, and India’s significant foreign direct investment in the continent, New Delhi has not been able to build on the relationship. The process for accessing these concessional loans is slow, and other countries like China that move faster are able to corner a larger share of the opportunities. More attention needs to be focused on simplification of bilateral processes and tax regimes, if India and Africa are to achieve the full potential of their partnership. India and the countries of the African continent recognise the potential of a partnership. The focus must shift to operationalising it, instead of merely harping on the reality of a huge potential.


Date: 04-06-16

For a Hundred Innovation Centres

Indian states should strive to attract them

Bengaluru has emerged as a major destination for innovation centres, finds a study by Capgemini. India’s Silicon Valley houses most India-located innovation centres, but other cities like Mumbai also have a few. Each state should try to make several of their cities/towns attractive destinations for large enterprises to locate their innovation centres.

The fear of obsolescence haunts the world’s companies. Since 2000, 52% of Fortune 500 companies have merged, been acquired or gone bankrupt. Innovation is the key to survival. It is not easy to innovate, however, even if large amounts of money can be spent on in-house R&D. What you cannot do yourself, you outsource — naturally. You set up an innovation centre in an innovation hub where startups, venture capital, skilled talent, energetic entrepreneurs, accelerators and academic institutions together produce innovative alchemy. Most innovation centres are company-owned, some are a bunch of startups tasked with disrupting the company’s existing business. Wal-Mart, for example, created an internal search engine that boosted online sale conversions 20% in this fashion. For Indian states, it makes sense to create the preconditions in their most promising cities to make them attractive for startups and their attendant ecosystem components. Bhubaneswar, Thiruvananthapuram, Kochi, Chennai, Pune and Kolkata are prime candidates to join the league of Bengaluru, Mumbai and the National Capital Region.

Instead of wasting money on organising mega-rituals that generate investment MoUs worth billions, only a fraction of which translate into projects that take off, state governments should consider investing in their towns and the individual constituents of a startup ecosystem. Bigots charged up on protecting obscure notions of Indian culture and vigilantes enforcing their norms of propriety on food, inter-gender mingling and life after work should be chased out or into jails; venture capitalists, skilled talent and academics welcomed. The challenge is decidedly political, and not just to invest in roads and universities and other infrastructure.