01-11-2025 (Important News Clippings)

Afeias
01 Nov 2025
A+ A-

To Download Click Here.


Date: 01-11-25

Sorry Not Sorry

Students are hooked to AI so what are univs to do?

TOI Editorials

Plague upon education, is how one academic has characterised chatbots that are now being used to write college essays around the world. Everyday profs plug student assignments into new detectors and find their classroom test positive for GPT or somesuch. In the headlines this week are two Illinois professors who found some undergrads first cheating the attendance system, then sending in apologies written by AI. Of course, there is a performative aspect to all apologies. Their social function doesn’t require sincerity but it does become thorny in the face of naked insincerity.

This is something educationists struggled with even before the dawn of AI. It takes a lot of teaching, for example, for students to get why plagiarism is wrong and how it damages the superstructure of human knowledge. AI enabled infractions have made this teaching even tougher. Coming down on students like a ton of bricks is, however, no solution. It will not advance any genuine understanding or moral reflection.That demands communication and perseverance.

Consider that no matter how much energy scientific journals put into policing LLM use, they will still fail, and it won’t even advance knowledge creation. Stronger peer review is much the better solution. Universities have to adjust to living with AI like the rest of society. From ‘lockdown’ options like in-class assignments and internet-disabled writing labs to standardising how students should work with AI text generators, there’re plenty of ways they can upgrade to help students do the same.


Date: 01-11-25

एसआईआर-2 की घोषणा से यह प्रक्रिया फिर सुर्खियों में

नीरजा चौधरी, ( वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार )

बिहार चुनाव की गहमागहमी के बीच प्रशांत किशोर के पश्चिम बंगाल और बिहार, दोनों राज्यों में मतदाता के तौर पर पंजीकृत होने की खबर आई। इससे न केवल प्रशांत किशोर को झटका लगा, बल्कि इसने फिर से मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण -2 (एसआईआर-2) की ओर भी ध्यान खींचा है। निर्वाचन आयोग द्वारा यह प्रक्रिया अब और राज्यों में कराई जा रही है। बिहार में इस प्रक्रिया के तहत जिन 68 लाख वोटरों के नाम हटाए गए, उनमें से 7 लाख ऐसे थे, जिनके नाम एक से अधिक वोटर सूची में दर्ज थे।

अब चुनाव आयोग द्वारा 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में नवम्बर 2025 से फरवरी 2026 के बीच फिर से एसआईआर-2 की घोषणा ने इस कवायद को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। केरल विधानसभा में इस प्रक्रिया के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया। पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने राज्य में विधानसभा और नगरीय निकाय के चुनावों से ठीक पहले यह प्रक्रिया कराने के समय को लेकर सवाल उठाए। तमिलनाडु में डीएमके ने पार्टी के वोटरों को मताधिकार से वंचित करने आशंका जताई। इन तीनों ही राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार हैं और वहां 2026 में चुनाव प्रस्तावित हैं। उनका यही सवाल है कि चुनाव से ठीक पहले यह प्रक्रिया क्यों की जानी चाहिए? बिहार में भी यही किया गया था। असम में भी 2026 में चुनाव हैं, लेकिन आयोग ने क्या उसे केवल इसलिए छोड़ दिया है, क्योंकि वहां भाजपा की सरकार है ?

बिहार में एसआईआर प्रक्रिया विवादित रही थी । सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा था और वह अभी भी इसकी संवैधानिक वैधता की जांच कर रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो एसआईआर-2 में आयोग ने कुछ अच्छे बदलाव किए हैं। मसलन, अब फॉर्म भरने के शुरुआती चरण में कोई दस्तावेज नहीं चाहिए आधार कार्ड सत्यापन दस्तावेज के रूप में मान्य होगा। नाम हटाने के बजाय नए वोटरों को शामिल करने पर जोर है। और सबसे अहम दलों से ‘संवाद’ किया जाएगा।

इस पूरी प्रक्रिया के पटरी से उतरने के पीछे कारण तकनीकी या विवरण संबंधी जटिलताएं नहीं, बल्कि आयोग और विपक्षी दलों के बीच भरोसे की कमी है। और निर्वाचन आयोग भी शायद इस स्थिति से खुश नहीं होगा। चाहे इसे सही मानें या गलत, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग सत्ताधारी दल की मदद कर रहा है। जिस तरीके से यह प्रक्रिया पूरी की गई, उसने कई लोगों के दिमाग में संशय पैदा किया है। और कई बार सच्चाई से ज्यादा धारणा मायने रखती है।

इसीलिए यह जरूरी है कि आयोग नए सिरे से पहल कर विपक्ष की सारी शंकाओं को दूर करे, भले वे कोरी कल्पनाएं हों या सत्ता हासिल करने की मंशा से ही क्यों ना व्यक्त की जा रही हों। इससे आयोग पर जनता का भरोसा कायम रह सकेगा। जरूरत पड़े तो आयोग को बार- बार विपक्ष से संवाद करने से भी नहीं हिचकना चाहिए, ताकि उसका कामकाज ना सिर्फ साफ-सुधरा हो, बल्कि वैसा दिखे भी । आखिर ऐसा क्या है, जो आयोग को विपक्ष के हर संशय की जांच करने और अपना जवाब देने से रोक रहा है? ऐसा करके आयोग को भले थोड़ा नुकसान हो, लेकिन अपनी विश्वसनीयता बहाल करके उसे बहुत फायदा होगा। फिर भी यदि विपक्ष जिद पर अड़ा रहे तो वह खुद बेनकाब हो जाएगा। यह चुनाव आयोग का दायित्व है कि वह भारतीय नागरिकों की एक प्रामाणिक सूची बनाए। लेकिन अभी तक वह बिहार की मतदाता सूचियों में से गैर-भारतीयों की संख्या नहीं निकाल पाया है। जबकि एसआईआर का एक प्रमुख कारण यही था।

विपक्षी दलों को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का नजरिया सामने आने तक एसआईआर के अगले चरण को रोक देना चाहिए। यह तर्कसंगत भी लगता है। दूसरा सुझाव यह है कि एसआईआर को टुकड़ों-टुकड़ों में कराने के बजाय क्या एक ही चरण में पूरे देश में नहीं करा लेना चाहिए? कुछेक राज्यों में यह प्रक्रिया कराने से सिर्फ संशय ही पैदा होता है। नए सिरे से सभी दलों से चर्चा इसमें मददगार हो सकती है। आखिरकार, लोकतांत्रिक शिष्टाचार ही परस्पर संवाद को कायम रख सकता है। और हमारे लोकतंत्र की चुनौतियों का हल निकालने के लिए अपेक्षित भी है।


Date: 01-11-25

आवश्यक है मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण

डा. हरबंश दीक्षित, ( लेखक तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय, मुरादाबाद के विधि संकाय में डीन हैं )

चुनाव आयोग ने 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआइआर अभियान शुरू करने का एलान किया है। इस घोषणा के साथ ही विपक्षी दलों ने इसका विरोध भी शुरू कर दिया है। विपक्षी दल सत्तारूढ़ दल पर बड़ी संख्या में वैध मतदाताओं विशेष रूप से अल्पसंख्यक और वंचित वर्गों के नाम सूची से हटाने का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि पुनरीक्षण के दौरान आधार कार्ड या दस्तावेजों की मांग से कई लोग मताधिकार से वंचित हो सकते हैं, इसलिए यह मनमाना और भेदभावपूर्ण हैं। पुनरीक्षण के लिए दी गई सीमित समयसीमा को लेकर भी आपत्ति हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं के सत्यापन के लिए दिया गया कम समय प्रक्रिया को त्रुटिपूर्ण बना सकता है, जिससे वास्तविक मतदाता छूट सकते हैं।

संविधान के अनुच्छेद-324 में चुनाव आयोग को चुनाव प्रक्रिया के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार दिया गया है। चुनाव आयोग इसके लिए मतदाता सूची को लगातार पुनरीक्षित करता रहता है ताकि नए मतदाताओं का नाम जोड़ सके और जो मतदाता नहीं रहे, उनका नाम हटाया जा सके। सर्वोच्च न्यायालय ने ‘लक्ष्मी चरन सेन बनाम एकेएम हसन’ (1985) मामले में स्पष्ट किया था कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण निरंतर चलते रहने वाली एक प्रक्रिया है। और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है कि यह अनवरत चलती रहे।

वयस्क मताधिकार हमारी लोकशाही का मूल सिद्धांत है। संविधान के अनुच्छेद-326 में उल्लिखित है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे ऐसा प्रत्येक भारतीय नागरिक जो 18 वर्ष की उम्र पूरी कर चुका है, जो विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून द्वारा अयोग्य नहीं ठहराया गया है, वोट देने का पात्र है। अनुच्छेद- 326 में दिए गए अधिकार का प्रयोग करते हुए संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 बनाया। इस कानून में मतदाता सूची को तैयार करने के संबंध में व्यापक उपबंध हैं। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 16(1) (ए) में कहा गया है कि जो व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है, उसे मतदाता सूची में पंजीकृत नहीं किया जा सकेगा। इसे स्पष्ट करते हुए धारा- 16 ( 2 ) में कहा गया है कि यदि ऐसे किसी व्यक्ति का नाम, जो भारत का नागरिक नहीं है, यदि मतदाता सूची में पंजीकृत भी कर लिया गया हैं तो भी उसका नाम मतदता सूची से निकाल दिया जाएगा। चूंकि किसी मतदता का नाम देश में किसी एक स्थान पर ही पंजीकृत हो सकता है, इसलिए मतदाता सूची का पुनरीक्षण करते समय यह सुनिश्चित किया जाता है कि वह उस स्थान का ‘समान्यतः निवासी’ हो जहां पर उसका नाम हो ।

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा-20 इसकी विस्तार से व्याख्या करती है। इसमें यह स्पष्ट किया गया कि किसी निर्वाचन क्षेत्र में घर होने मात्र से ही कोई व्यक्ति वहां का ‘सामान्यतः निवास’ नहीं मान लिया जाएगा, अपितु कुछ अपवादों को छोड़कर उसे यह भी साबित करना पड़ेगा कि वह व्यावहारिक रूप से उसी निर्वाचन क्षेत्र में निवास भी करता है। धारा 21 के अंतर्गत मतदाता सूची का पुनरीक्षण करते समय जमीनी स्तर के अधिकारियों को सुनिश्चित करना होता है कि मतदाता भारत का नागरिक हो तथा वह उस जगह पर सामान्यतः निवास करता हो। निर्वाचन प्रक्रिया की जीवंतता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण लगातार होता रहे और आवश्यकतानुसार नए मतदाताओं का नाम जुड़ता रहे तथा उन मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से हटाया जाता रहे, जो भारत के नागरिक नहीं हैं और सामान्यतः उस निर्वाचन क्षेत्र में निवास नहीं कर रहे हैं। न्यायबोध सुनिश्चित करना लोकशाही का प्रमुख कर्तव्य होता अतः मतदाता पुनरीक्षण के मामलों में भी इसे लेकर विशेष सावधानी बरती जाती है कि नाम जोड़ते समय या हटाते समय किसी के साथ अन्याय न हो इसके लिए धारा-24 में कहा गया है कि यदि कोई मतदाता इस तरह से तैयार की गई मतदाता सूची से असंतुष्ट है तौ वह जिला मजिस्ट्रेट या अन्य नियत प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकता हैं, ताकि किसी विसंगति को सुधारा जा सके। उसके बाद भी यदि कोई व्यक्ति असंतुष्ट हैं तो अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय का विकल्प भी खुला हुआ है।

मतदाता सूची के पुनरीक्षण के समय आधार कार्ड जैसे दस्तावेजों की प्रासंगिकता से जुड़े विवाद लगातार आ रहे हैं। आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम-2016 की धारा 19 में उल्लिखित है कि केवल आधार नंबर या उसका प्रमाणीकरण ही किसी व्यक्ति के अधिवास या नागरिकता का स्वतः प्रमाण नहीं माना जाएगा। इसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति की नागरिकता को साबित करने के लिए संविधान और नागरिकता अधिनियम की शर्तों को पूरा करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ‘डा. योगेश भारद्वाज बनाम उत्तर प्रदेश’ (1990) मामले की सुनवाई में स्पष्ट किया कि वैध रूप से भारत में रहने वाले व्यक्ति ही अधिवासी माने जाएंगे और यदि कोई व्यक्ति आव्रजन कानून का उल्लंघन करते हुए कहीं पर रहता है तो उसे देश का निवासी नहीं माना जा सकता।

यह भारत के चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि किसी गैर-नागरिक का नाम मतदाता सूची में शामिल न हो सके। इसलिए यदि किसी मतदाता की पात्रता पर कोई संदेह है तो इस संवैधानिक संस्था की जिम्मेदारी है कि उसकी सम्यक जांच करे। यदि ऐसा नहीं होता तो यह संवैधानिक निर्देशों का उल्लंघन जैसा होगा। इस प्रक्रिया में मतदाता सूची का पुनरीक्षण केवल औपचारिक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, अपितु संविधान के उदात्त उद्देश्यों का पूरा करने का पुनीत कर्तव्य भी है। इसमें यदि किसी भी तरह की चूक या त्रुटि संविधान के अनुच्छेद- 14 (1) (ए) और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। अतः हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि इसके पुनरीक्षण में सहयोग करे और यदि कोई शिकायत है तो संविधान और कानून में दिए गए उपबंधों के अनुसार आगे बढ़े।


Date: 01-11-25

मुक्त व्यापार समझौतों के क्रियान्वयन की तैयारी

अमिता बत्रा, ( लेखिका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान में प्रोफेसर हैं )

भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता पूरी होने की ओर अग्रसर है। हालांकि, अमेरिका के साथ व्यापार समझौता (जब भी पूरा होगा ) विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अनुरूप कानूनी रूप से बाध्यकारी मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) नहीं होगा। ऐसे में यह द्विपक्षीय व्यापार समझौता अनिश्चितता में घिरा रहेगा। इसलिए भारत के लिए निर्यात बाजार में विविधता लाने का लक्ष्य प्रमुख रहेगा और एफटीए इस लक्ष्य को हासिल करने में मददगार हो सकता है। ऐसे परिदृश्य में यह बात उत्साह बढ़ाने वाली है कि इस वर्ष के आरंभ में ब्रिटेन के साथ व्यापक एफटीए पर हस्ताक्षर करने के बाद यूरोपीय संघ के साथ एफटीए तेजी से आगे बढ़ रहा है। बहरहाल यह बात ध्यान देने वाली है कि एफटीए के लाभ केवल तभी पूरी तरह उठाए जा सकते हैं जब उन्हें सभी साझेदार देशों द्वारा मंजूर किया गया हो और तरजीही बाजार पहुंच के प्रावधानों को पूरी तरह लागू किया गया हो।

इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि एफटीए के हस्ताक्षर और क्रियान्वयन के बीच मिलने वाली अंतरिम अवधि का इस्तेमाल व्यापार संभावनाओं को अधिकतम स्तर पर ले जाने के लिए किया जाए। वस्त्र एवं कपड़ा क्षेत्र को लेकर यह बात खासतौर पर प्रासंगिक है। यह क्षेत्र कृषि के बाद देश में रोजगार प्रदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है और अमेरिका द्वारा लगाए गए जवाबी शुल्क ने इस पर सबसे अधिक प्रभाव डाला है। इतना ही नहीं, यही वह क्षेत्र है जहां हाल के वर्षों में भारत का निर्यात निराशाजनक रहा है। यह कमजोरी विश्व स्तर पर भी रही है और यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के लक्षित एफटीए बाजार में भी ।

वर्ष 2010 से 2024 के बीच वैश्विक वस्त्र निर्यात में भारत की हिस्सेदारी मामूली रूप से बढ़कर 5.2 फीसदी से 5.8 फीसदी हो गई है। हालांकि, कपड़ा क्षेत्र में जो वैश्विक वस्त्र निर्यात की प्रमुख श्रेणी हैं, भारत की हिस्सेदारी लगभग 3 फीसदी पर बनी हुई है और यह स्थिति सदी की शुरुआत से है। यह विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि विकासशील देशों ने, जो वैश्विक वस्त्र एवं कपड़ा निर्यात का 70 फीसदी हिस्सा रखते हैं, पिछले कुछ वर्षों में अपनी हिस्सेदारी में वृद्धि दर्ज की है।

चीन एक दशक से अधिक समय से दुनिया का सबसे बड़ा कपड़ा एवं वस्त्र निर्यातक बना हुआ है। बांग्लादेश और वियतनाम जैसे विकासशील देशों ने भी इस अवधि में सकारात्मक वृद्धि हासिल की है। दुनिया के कपड़ा निर्यात में वियतनाम की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में एक फीसदी से बढ़कर 2010 में 3 फीसदी पहुंच गई। वर्ष 2024 में यह इससे दोगुना यानी 6 फीसदी हो गई। दुनिया के शीर्ष 10 कपड़ा एवं वस्त्र निर्यातकों में वियतनाम की निर्यात हिस्सेदारी में सबसे तेज वार्षिक वृद्धि देखी गई।

यूरोपीय संघ का एकीकृत बाजार अमेरिकी बाजार के करीब दोगुना है। वहां के दो प्रमुख कपड़ा एवं वस्त्र आयातकों जर्मनी और फ्रांस में भारत की हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है। इसकी तुलना में चीन इन दोनों देशों में शीर्ष पर है जबकि बांग्लादेश ने अपनी हिस्सेदारी 2010 से अब तक तीन गुना से अधिक कर ली है। और वह दूसरा सबसे बड़ा निर्यात स्रोत है। बीते एक दशक में वियतनाम जर्मनी को कपड़ा एवं वस्त्र निर्यात के मामले में शीर्ष 10 स्रोतों में उभरा है।

इसी प्रकार ब्रिटेन में जो कि वैश्विक कपड़ा एवं वस्त्र आयात बाजार में 4 फीसदी से कम का हिस्सेदार है, वहां स्रोत देश के रूप में भारत की हिस्सेदारी 2010- 2022 के दौरान 7.8 फीसदी से कम होकर 6.3 फीसदी रह गई। इसी अवधि में बांग्लादेश ने अपनी हिस्सेदारी 5.8 फीसदी से बढ़ाकर 14.3 फीसदी पहुंचा दी। इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश ने यूके के दूसरे सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत को अपदस्थ कर दिया। वियतनाम भी समय के साथ ब्रिटेन के कपड़ा एवं वस्त्र निर्यात साझेदारों में शीर्ष 10 में शामिल हो गया।

इसलिए यह समझना आवश्यक है कि भले ही एफटीए भारत को तरजीही बाजार पहुंच प्रदान करेंगे, लेकिन वियतनाम को पहले से बढ़त प्राप्त है क्योंकि उसके यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ एफटीए 2020 और 2021 से प्रभावी हैं। वास्तव में, वियतनाम से प्रतिस्पर्धा और बढ़ेगी क्योंकि यूरोपीय संघ और ब्रिटेन को उसके कपड़ा एवं वस्त्र निर्यात पर शुल्क को शून्य करने की समय सीमा क्रमशः 2027 और 2028 तक पूरी तरह लागू हो जाएगी ।

इसके अतिरिक्त, वैसे तो ब्रिटेन के एफटीए में मूल देश के कड़े मूल्य संवर्धन नियम (आरओओ) वियतनाम को कुछ हद तक नुकसान में डालते हैं क्योंकि उसके कपड़ा एवं वस्त्र निर्यात में आयातित सामग्री की मात्रा अधिक है। फिर भी यह भारत के लिए संतुष्ट होने की वजह नहीं होनी चाहिए | व्यापक और प्रगतिशील प्रशांत पार साझेदारी (सीपीटीपीपी) के तहत अधिक लचीले आरओओ, जिसमें वियतनाम और ब्रिटेन दोनों सदस्य हैं, कुछ प्रतिशत गैर- स्रोत सामग्री वाले आयात को सदस्य देशों में तरजीही बाजार पहुंच की अनुमति देते हैं। इसके अतिरिक्त, इन उच्च मानकों वाले, गहन एफटीए में भागीदारी ने वियतनाम को अपने घरेलू विनिर्माण मानकों को अंतरराष्ट्रीय नियामक मानदंडों के अनुरूप ढालने में बढ़त दिलाई है। यह विशेष रूप से यूरोपीय संघ के सततता प्रेरित बाजार में वियतनामी निर्यात को तुलनात्मक रूप से अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने में सहायक सिद्ध हो रहा है।

एक अन्य क्षेत्र जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है वह है कपड़ा एवं वस्त्र की वैश्विक मूल्य शृंखला में बदलाव । अन्य विनिर्माण क्षेत्रों मसलन इलेक्ट्रॉनिक्स आदि की तुलना में कपड़ा एवं वस्त्र मूल्य शृंखला में अपेक्षाकृत अधिक घरेलू मूल्यवर्धन (डीवीए) रहा है। इस क्षेत्र में भारत का डीवीए 83.2 फीसदी है जो अन्य शीर्ष निर्यातक चीन ( 89.1 फीसदी) के समतुल्य है। परंतु इसका अर्थ तुलनात्मक प्रतिस्पर्धा नहीं है।

चीन तकनीक – सहायता प्राप्त और सुव्यवस्थित घरेलू एकीकरण के मामले में कपड़े से लेकर परिधान तक की जटिल आपूर्ति श्रृंखला में अग्रणी है। वास्तव में, अत्यधिक एकीकृत और बड़े पैमाने पर कुशल उत्पादन प्रणाली ने पकड़ा एवं वस्त्र कंपनियों के चीन से स्थानांतरण की प्रक्रिया को धीमा कर दिया है। चीन के प्रमुख रिटेल चेन प्लेटफॉर्म जैसे झेन और टेमू उपभोक्ता प्राथमिकताओं पर आधारित अपने विशाल डेटाबेस का उपयोग करते हुए मांग का अनुमान लगाने के लिए आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा, चीनी उत्पादन इकाइयों के विशाल नेटवर्क के साथ बैक एंड एकीकरण स्थापित कर लेने के कारण, ये प्लेटफॉर्म कच्चे माल और उत्पादन क्षमता को मांग के अनुरूप समन्वित कर पाते हैं। कुशल लॉजिस्टिक्स और प्रबंधन प्रणालियों को इस मांग-आपूर्ति समन्वय के साथ जोड़कर, ये ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम को अपने कपड़ा एवं वस्त्र निर्यात में प्रतिस्पर्धी कीमतों पर गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए लीड टाइम को कम करने में सफल रहे हैं।

इसकी तुलना में भारत का कपड़ा और वस्त्र क्षेत्र विश्व में सबसे लंबी आपूर्ति श्रृंखलाओं में से एक है, जिसमें किसान से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक कई मध्यस्थ शामिल होते हैं। परिणामस्वरूप लीड टाइम बढ़ जाता है और लॉजिस्टिक में देरी होती है, जिससे भारत में कपड़ा एवं वस्त्र मूल्य श्रृंखला के उत्पादन में लागत अधिक आती है और कार्यक्षमता में कमी रहती है।

इसके अतिरिक्त, लंबे समय से चली आ रही नीतिगत बाधाएं और श्रम बाजार की कठोरताएं इस क्षेत्र को आवश्यक पैमाने पर तकनीकी उन्नयन और कृत्रिम रेशों व तकनीकी वस्त्रों की ओर वैश्विक मांग के अनुरूप ढलने से रोकती रही हैं।

ऐसे में यह अहम है कि भारत तेज गति से चल रही एफटीए वार्ताओं के साथ-साथ तकनीकी उन्नयन और वैश्विक मानकों के अनुरूप होने के लिए क्षेत्रगत उत्पादन रणनीतियां तैयार करे।