भारत की जल समस्या एवं इज़राइली साझेदारी

Afeias
24 Jul 2017
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Date:24-07-17

 

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हाल ही में प्रधानमंत्री की इज़राइल यात्रा काफी चर्चा में रही। यू तो भारत काफी समय से इज़राइल से सैन्य सामग्री खरीदता रहा है, परन्तु देश के किसी प्रधानमंत्री की पहली इज़राइल यात्रा से दोनों देशों के बीच कई अन्य क्षेत्रों में समझौते हो सके हैं। इस संबंध में इज़राइल ने जल और कृषि के क्षेत्र में भारत को सहयोग देने पर सहमति जताई है।भारत में पानी की बढ़ती समस्या से हम सब परिचित हैं। फिलहाल हमारे पास प्रति व्यक्ति के लिए प्रतिवर्ष 1500 क्यूबिक मीटर से भी कम जल उपलब्ध है। आगे यह मात्रा भी कम होती जाएगी।इज़राइल के पास यह मात्रा मात्र 200 क्यूबिक मीटर है। वहाँ पानी की बहुत कमी है। फिर भी वहाँ से बेहतरीन कृषि उत्पाद यूरोप एवं विश्व क अन्य देशों को भेजे जाते हैं।अगर भारत को भी अपनी जल क्षमता को बढ़ाना है, तो इसके लिए इज़राइल से अच्छा गुरू कोई नहीं हो सकता।

जल-प्रबधन, ड्रिप सिंचाई, शहरी क्षेत्रों के अपशिष्ट जल की रिसाइक्लिंग और समुद्री जल के खारेपन को दूर करके पीने योग्य बनाने के क्षेत्र में इज़राइल में बहुत से अन्वेषण हुए हैं।हमारे प्रधानमंत्री के ‘हर खेत को पानी’ और ‘मोर क्रॉप पर ड्रॉप’ के लक्ष्य को ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ साथ लेकर चल रही है। इसकी पूर्ति के लिए हमारे यहाँ भी ड्रिप सिंचाई और छिड़काव में अनेक माइक्रो सिंचाई तकनीकें आगे बढ़कर काम कर रही हैं। इनमें महाराष्ट्र के जलगाँव में काम कर रही जैन इरिगेशन सिस्टम लिमिटेड ने तो इसी क्षेत्र में इज़राइल की दूसरी बड़ी कंपनी को एक प्रकार से खरीद लिया है। जैन इरिगशन छोटे विचारों से बड़ी क्रांति के लक्ष्य पर काम कर रही है।

भारत में लगभग 90 लाख हेक्टयर भूमि की सिंचाई माइक्रो-सिंचाई पद्धति से की जाती है। इज़राइल की मदद से भूमि के और अधिक क्षेत्र को इस सिंचाई पद्धति के अंतर्गत लाया जा सकता है।तकनीक के विकास का सही लाभ तभी मिलता है, जब इसका इस्तेमाल करने के लिए नीतियां सही हों। हमारे देश में सिंचाई के जल का मूल्य निर्धारित करने की अत्यंत आवश्यकता है। अभी तक कृषि के लिए बिजली एवं पानी पर सरकार द्वारा दी जाने वाले सब्सिड़ी के कारण इनका संतुलित उपयोग नहीं किया जा रहा है।जबकि इज़राइल के जल कानून के अनुसार यह जन सम्पत्ति का स्त्रोत है। अपने कुशल जल प्रशासन के साथ वहाँ की सरकार जल की एक-एक बूँद का हिसाब रखती है। अगर 2013 में वहाँ के जल प्रबंधन पर नजर डालें, तो हम पाते हैं कि वहाँ उपलब्ध कुल जल का 16 प्रतिशत विलवणीकृत जल एवं 22 प्रतिशत अपशिष्ट जल की रिसाइक्लिंग से प्राप्त हुआ था। साथ ही कृषि में उपयोग होने वाले जल का 62 प्रतिशत इसी  प्रकार के जल से पूरा किया गया, जिससे बाकी के जल को घरेलू उपयोग के लिए बचाया जा सके।भारत के लिए इस प्रकार की रिसाइक्लिंग तकनीक कारगर हो सकती है। भारत के पास इससे जुड़ी तकनीकी भी है। नागपुर और सूरत के अपशिष्ट जल शोधन संयंत्र शोधित जल को तमाम कपड़ा उद्योगों एवं थर्मल पावर स्टेशन को सप्लाई करते हैं।

भारत की समुद्री तट रेखा लगभग 7,500 कि.मी. है। अतः समुद्री जल को विलवणीकृत करने की तकनीक भी कारगर सिद्ध हो सकती है। वैसे तमिलनाडु एवं जामनगर संयंत्र भारत-इज़राइल साझेदारी में चलाए जा रहे हैं। भारत में यह तकनीकी उदयीमान है और अभी बहुत खर्चीली है। भारत में इसके आर्थिक पक्ष को लेकर भी संकट की स्थिति बन जाती है कि इस प्रकार की तकनीक का भारत सरकार उठाए या लाभार्थी? इस प्रकार की सार्वजनिक नीतियों को सुलझाया जाना चाहिए।इज़राइल के सहयोग से हम दूषित नदियों को स्वच्छ करने के बेहतर प्रयास कर सकते हैं। 2009 से 2015 तक नदियों का प्रदूषण स्तर लगभग दुगुना हो गया है। लगभग 63 प्रतिशत अपशिष्ट नदियों में बहा दिया जाता है। गंगा एवं यमुना की सफाई के लिए चलाए जा रहे अभियानों को कोई खास सफलता नहीं मिली है। हाल ही में दिल्ली सरकार ने यमुना की आठ कि.मी. तक की सफाई के लिए इज़राइल की एक कंपनी के साथ समझौता किया है। अगर यह अभियान सफल होता है, तो इसे आगे बढ़ाया जा सकता है।भारत की जल समस्या से निपटने के लिए अलग-अलग सरकारों, प्रशासन और व्यापारियों के समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अशोक गुलाटी एवं गायत्री माहन के लेख पर आधारित।