अर्थव्यवस्था को समझदारी से संभालने का समय
Date:27-09-19 To Download Click Here.
हाल ही में ऑटोमोबाइल क्षेत्र से शुरू हुई मंदी का प्रभाव अनेक आर्थिक क्षेत्रों में दिखाई पड़ रहा है। इसके लिए सरकार क्रमशः विभिन्न क्षेत्रों को प्रोत्साहन राशि देकर इनकी स्थिति सुधारने का प्रयत्न कर रही है। डूबती हुई अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने में सरकार का हस्तक्षेप उचित है। परन्तु इसे आखरी दांव की तरह प्रयोग में लाया जाना चाहिए।
रचनात्मक विनाश एक गतिशील अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है। अगर सरकार निजी उद्यमों को इस प्रकार की प्रोत्साहन राशि देती रहेगी, तो ऐसा कदम उन्हें तमाम ऐसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों से अलग कर देगा, जो पहले ही विपत्तियों से गुजर रहे हैं।
बाजार अर्थव्यवस्था में लाभ और हानि ही निवेश का रूख तय करते हैं। हानि होने पर उद्यमियों पर नए तरीकों से अधिक मेहनत और कीमतें कम करने का दबाव पड़ता है। अगर इन सबके बावजूद वे विफल रहते हैं, तो इसका अर्थ है कि निवेश की दिशा को मोड़ने का समय आ गया है। इस अस्थायी प्रक्रिया में सरकार तारणहार की भूमिका निभाती है। वह अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाने पर काम नहीं करती है।
ऑटो उद्योग के मामले में सरकार द्वारा प्रशस्त बचाव कार्य संदिग्ध हैं। यह ऐसा उद्योग रहा है, जिसे स्वतंत्रता के बाद से ही विदेशी प्रतिस्पर्धा के विरूद्ध संरक्षण मिला है। जब आयात पर उदारीकरण शुरू हुआ था, तब भी आयात की उच्च दर के द्वारा इस उद्योग को बचाए रखा गया। आज भी 40,000 डॉलर से कम की नई कारों पर सीमा शुल्क 60 प्रतिशत, महंगी कारों पर 100 प्रतिशत और सेकंड हैण्ड कारों पर 125 प्रतिशत है।
सरकार की इस नीति ने भारत में छोटे-छोटे ऑटो प्लांट के उदय को प्रोत्साहन दिया है। भारत में पिछले दो दशकों में ऑटो उद्योग ने बहुत कमाई की है। अब मंदी के दौर में उसे अपनी बिक्री के तरीकों की राह स्वयं खोजनी चााहिए। उत्पादकता की समस्या से निपटने के लिए उसे अपने कुछ अकुशल प्लांट बंद कर देने चाहिए। उपभोक्ताओं की कीमत पर आखिर कब तक और कितना लाभ कमाया जाएगा?
प्रथम दृष्टया, इस उद्योग की समस्याएं, पिछले कई वर्षों से चली आ रही सरकार की नीति के फलस्वरूप उपजी हैं। अगर शुरू से ही यह क्षेत्र प्रतिस्पर्धा में खड़ा रहा होता, तो मंदी के इस दौर में आयात बढ़ाकर उद्योग ने अपने को संभाल लिया होता। दुर्भाग्यवश विश्वबाजार में भारतीय ऑटो उद्योग का शेयर मात्र 0.9 प्रतिशत है।
ऑटो क्षेत्र को प्रोत्साहन राशि देने से पहले सरकार को दो महत्वपूर्ण तथ्यों पर विचार करना चाहिए।
- हानि में चल रहे आर्थिक क्षेत्रों की दुर्दशा को मीडिया में सुर्खियों में रखा जाता है, और ऐसा लगता है कि इन दो-चार सेक्टरों की दुर्दशा से जैसे समस्त अर्थव्यवस्था मंदी में आ गई है। दूसरी ओर देखें, तो मीडिया रिपोर्ट यह भी बताती है कि पिछले छः महीनों में फ्रिज, टी.वी., स्मार्टफोन आदि की बिक्री बढ़ी है।
- उद्योगों को प्रोत्साहन राशि देने में सरकार को बड़ी दुविधा का सामना करना पड़ सकता है। अगर सरकार इसे राजकोषीय घाटे में लेती है, तो जाहिर है कि वह इसकी भरपाई या तो अनिवार्य व्ययों को छोड़कर करेगी या करदाताओं पर बोझ बढ़ाकर करेगी। अगर वह बाजार में ऋण बढ़ाकर प्रोत्साहन राशि देती है, तो भविष्य के निजी निवेश को कमजोर कर देगी।
निकट अवधि में, सरकार को चाहिए कि वह इस समस्या का समाधान ब्याज और विनिमय दर पर छोड़ दे। लंबे समय में सुधार के लिए,ढांचागत सुधारों की जरूरत है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में सरकार को अपना शेयर 65 प्रतिशत से घटाकर 49 प्रतिशत या इससे कम कर देना चाहिए। अब सरकार को तेजी से गिरती अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने के लिए प्राथमिकता पर काम करने चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अरविंद पन्गढ़िया के लेख पर आधारित। 21 अगस्त, 2019