
‘विश्वकर्मा योजना’ से शिल्पकला को प्रोत्साहन
To Download Click Here.
स्वतंत्रता दिवस के अपने संदेश में प्रधानमंत्री ने ‘विश्वकर्मा योजना’ की घोषणा की है। इस पर 13,000 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है। इसका उद्देश्य परंपरागत कारीगरों और शिल्पकारों के कौशल को नई ऊँचाईयों तक ले जाना है। साथ ही इन कारीगरों की कला को ऐसे गुणवत्तापूर्ण मानदंडों से जोड़ा जाना है, जिससे कि वे उच्च मूल्य श्रृंखला का हिस्सा बन सकें।
कुछ बिंदु –
- अधिकांश भारतीय कारीगरी के कार्य का स्वरूप, अनुभव और डिजाइन सदियों से नहीं बदला है।
- उच्च स्तरीय शिल्प बाजार दुर्लभ और प्रतिस्पर्धी है। इस हेतु भारतीय शिल्पकारी को ‘कॉटेज इंडस्ट्री’ जैसे स्टूडियों से निकलकर गैलरी और आधुनिक शॉपफ्रंट पारिस्थितिकी तंत्र में घुसना होगा।
- ऐसा तभी हो सकता है, जब गुणवत्ता में सुधार हो, और पारंपरिक उत्पादों को रंग, डिजाइन और सामग्री को मांग के अनुसार तैयार किया जाए।
- इसके लिए कारीगरों का कौशल विकास जरूरी है। एक उत्साही, आधुनिक विश्व का सामना करने के लिए उन्हें प्रौद्योगिकी का ज्ञान कराना होगा।
- डिजाइन और विपणन (मार्केटिंग) में गुणवत्ता और नवाचार को लाना होगा। इन सब कदमों के आधार पर चीन ने अपने गांव के गांव हस्तशिल्प और कारीगरी को समर्पित कर रखे हैं।
भारत के प्रत्येक प्रांत में अनगिनत कलाएं और हस्तशिल्प छिपे हुए हैं। इन्हें सही मार्गदर्शन के साथ मंच देने की जरूरत है। उम्मीद की जा सकती है कि सरकार की इस योजना से भारतीय पारंपरिक कलाओं को विश्वस्तर पर सही पहचान और मूल्य मिल सकेगा।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 अगस्त, 2023
Related Articles
×