विशेष विवाह अधिनियम से जुड़ी वैधानिक गलतियां

Afeias
13 Mar 2025
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भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में विशेष विवाह अधिनियम ऐसा कानून है, जो किसी भी व्यक्ति को विवाह के इच्छुक जोड़े के निर्णय में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है।

कुछ बिंदु –

  • विशेष विवाह अधिनियम की धारा 5 से 8 में जोड़े को विवाह तिथि से 30 दिन पहले लिखित नोटिस देना होता है। इस नोटिस की जाँच कोई भी कर सकता है। 30 दिनों की अवधि में कोई भी आपत्ति उठाई जा सकती है। विवाह अधिकारी उन आपत्तियों को कायम रख सकता है।
  • यह प्रावधान गोपनीयता और साथी चुनने की स्वतंत्रता के सिद्धांतों का सीधा उल्लंघन है। पुट्टुस्वामी मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि ‘गोपनीयता के मूल में व्यक्तिगत अंतरंगता का संरक्षण शामिल है।’ इस निर्णय के बाद भी विवाह अधिनियम गोपनीयता का सीधा उल्लंघन करता चला जा रहा है।
  • 2023 में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा था कि ‘विशेष विवाह अधिनियम का उद्देश्य जोड़ों की सुरक्षा करना है। लेकिन ये प्रावधान उन्हें समाज, जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस के आक्रमण के लिए खुला छोड़ देते हैं।’
  • रिपोर्टों से पता चलता है कि उत्तराखंड में अंतर धार्मिक जोड़े यूसीसी लागू होने की प्रतीक्षा कर रहे थे, क्योंकि यूसीसी नियम विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह को मान्यता देते हैं। इसके अनुसार विवाहों से जुड़े कानूनों में एकरूपता होती है। तो अब अंतर धार्मिक या अंतजातीय विवाहों का विरोध क्यों किया जा रहा है।

द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 07 मार्च, 2025