उच्चतम न्यायालय ने जमानत पर दिए तीन सबक
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हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने प्रोटेक्शन फॉर मनी लांड्रिंग एक्ट या धन शोधन या पीएमएलए मामले में दिल्ली के मंत्री सिसोदिया की जमानत के बाद दो और जमानत दी हैं।
उच्चतम न्यायालय के इन आदेशों से जुड़े मुख्य बिंदु –
– पीएमएलएए यूएपीए (आतंकवाद विरोधी कानून) और पीएसए (पब्लिक सेफ्टी एक्ट) के तहत जमानत एक आदर्श है।
– न्यायालय के एक के बाद एक आए जमानत के आदेश में जांच एजेंसियों को जांच की गुणवत्ता और प्रकृति के लिए फटकार लगाई गई है।
– इन मामलों में न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय और जांच एजेंसियों के समक्ष तीन बिंदु रखे –
1) जांचकर्ता ऐसे ‘साक्ष्य के आधार पर जमानत के विरूद्ध बहस नहीं कर सकते, जो केवल तब लागू होंगे, जब होंगे, मुकदमा शुरू होगा।’’ न्यायालय ने यह भी कहा कि ‘अनुमान’ साक्ष्य नहीं हैं।
2) जांच पूरी होने के बाद भी एजेंसी ने जमानत का विरोध किया था। न्यायालय ने एजेंसी को आगाह किया कि अगर साक्ष्य की गुणवत्ता पर की गई टिप्पणी को जमानत आदेश में डाल दिया जाता, तो यह मुकदमे को भी प्रभावित करता।
3) न्यायालय ने फिर से दोहराया कि यद्यपि पीएमएलए की धारा 45 जमानत के लिए दोहरी शर्तें निर्धारित करती है, लेकिन यह नहीं कहती कि स्वतंत्रता से वंचित करना आदर्श है।
उच्चतम न्यायालय की कड़ी टिप्पणीयों को कानूनी मिसाल के तौर पर नहीं देखा जा सकता है। लेकिन इस तरह के ऑर्बिटर डिक्टा का उद्देश्य पुलिस और उच्च न्यायालयों के लिए सबक है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 29 अगस्त, 2024